योहन 15:1-17

योहन 15:1-17 HINCLBSI

“मैं सच्‍ची दाखलता हूँ और मेरा पिता किसान है। वह उस डाली को, जो मुझ में नहीं फलती, काट देता है और उस डाली को, जो फलती है, छाँटता है, जिससे वह और भी अधिक फल उत्‍पन्न करे। उस वचन के कारण, जो मैंने तुम से कहा है, तुम शुद्ध हो चुके हो। तुम मुझ में रहो और मैं तुम में रहूँगा। जिस तरह डाली यदि दाखलता में न रहे स्‍वयं नहीं फल सकती, उसी तरह यदि तुम मुझ में न रहो तो तुम भी नहीं फल सकते। “मैं दाखलता हूँ और तुम डालियाँ हो। जो मुझ में रहता है और मैं उस में, वह बहुत फलता है; क्‍योंकि मुझ से अलग रह कर तुम कुछ भी नहीं रह सकते। यदि कोई मुझ में नहीं रहता, तो वह डाली की तरह फेंक दिया जाता है और सूख जाता है। लोग ऐसी सूखी डालियाँ बटोर लेते हैं और आग में झोंककर जला देते हैं। यदि तुम मुझ में रहो और मेरी शिक्षा तुम में बनी रहती है, तो चाहे जो माँगो, वह तुम्‍हारे लिए हो जाएगा। मेरे पिता की महिमा इसी में है कि तुम बहुत फल उत्‍पन्न करो। तभी तुम मेरे शिष्‍य होगे। “जिस प्रकार पिता ने मुझ से प्रेम किया है, उसी प्रकार मैंने भी तुम से प्रेम किया है। तुम मेरे प्रेम में बने रहो। यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे; जैसे मैंने भी अपने पिता की आज्ञाओं का पालन किया है और उसके प्रेम में बना रहता हूँ। “मैंने तुम से यह इसलिए कहा है कि मेरा आनन्‍द तुम में हो और तुम्‍हारा आनन्‍द परिपूर्ण हो जाए। मेरी आज्ञा यह है : जिस प्रकार मैंने तुम से प्रेम किया है, उसी प्रकार तुम भी एक-दूसरे से प्रेम करो। इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिए अपने प्राण अर्पित कर दे। यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन करते हो, तो तुम मेरे मित्र हो। अब से मैं तुम्‍हें सेवक नहीं कहूँगा। सेवक नहीं जानता कि उसका स्‍वामी क्‍या करने वाला है। मैंने तुम्‍हें मित्र कहा है, क्‍योंकि मैंने अपने पिता से जो कुछ सुना, वह सब तुम्‍हें बता दिया है। तुम ने मुझे नहीं चुना, बल्‍कि मैंने तुम्‍हें इसलिए चुना और नियुक्‍त किया कि तुम संसार में जाओ और फलवंत हो तथा तुम्‍हारा फल बना रहे, जिससे तुम मेरे नाम में पिता से जो कुछ माँगो, वह तुम्‍हें प्रदान करे। मैं तुम को ये आज्ञाएँ इस लिए दे रहा हूँ कि तुम एक-दूसरे से प्रेम करो।

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योहन 15:1-17 - “मैं सच्‍ची दाखलता हूँ और मेरा पिता किसान है। वह उस डाली को, जो मुझ में नहीं फलती, काट देता है और उस डाली को, जो फलती है, छाँटता है, जिससे वह और भी अधिक फल उत्‍पन्न करे। उस वचन के कारण, जो मैंने तुम से कहा है, तुम शुद्ध हो चुके हो। तुम मुझ में रहो और मैं तुम में रहूँगा। जिस तरह डाली यदि दाखलता में न रहे स्‍वयं नहीं फल सकती, उसी तरह यदि तुम मुझ में न रहो तो तुम भी नहीं फल सकते।
“मैं दाखलता हूँ और तुम डालियाँ हो। जो मुझ में रहता है और मैं उस में, वह बहुत फलता है; क्‍योंकि मुझ से अलग रह कर तुम कुछ भी नहीं रह सकते। यदि कोई मुझ में नहीं रहता, तो वह डाली की तरह फेंक दिया जाता है और सूख जाता है। लोग ऐसी सूखी डालियाँ बटोर लेते हैं और आग में झोंककर जला देते हैं। यदि तुम मुझ में रहो और मेरी शिक्षा तुम में बनी रहती है, तो चाहे जो माँगो, वह तुम्‍हारे लिए हो जाएगा। मेरे पिता की महिमा इसी में है कि तुम बहुत फल उत्‍पन्न करो। तभी तुम मेरे शिष्‍य होगे।

“जिस प्रकार पिता ने मुझ से प्रेम किया है, उसी प्रकार मैंने भी तुम से प्रेम किया है। तुम मेरे प्रेम में बने रहो। यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे; जैसे मैंने भी अपने पिता की आज्ञाओं का पालन किया है और उसके प्रेम में बना रहता हूँ।
“मैंने तुम से यह इसलिए कहा है कि मेरा आनन्‍द तुम में हो और तुम्‍हारा आनन्‍द परिपूर्ण हो जाए। मेरी आज्ञा यह है : जिस प्रकार मैंने तुम से प्रेम किया है, उसी प्रकार तुम भी एक-दूसरे से प्रेम करो। इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिए अपने प्राण अर्पित कर दे। यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन करते हो, तो तुम मेरे मित्र हो। अब से मैं तुम्‍हें सेवक नहीं कहूँगा। सेवक नहीं जानता कि उसका स्‍वामी क्‍या करने वाला है। मैंने तुम्‍हें मित्र कहा है, क्‍योंकि मैंने अपने पिता से जो कुछ सुना, वह सब तुम्‍हें बता दिया है। तुम ने मुझे नहीं चुना, बल्‍कि मैंने तुम्‍हें इसलिए चुना और नियुक्‍त किया कि तुम संसार में जाओ और फलवंत हो तथा तुम्‍हारा फल बना रहे, जिससे तुम मेरे नाम में पिता से जो कुछ माँगो, वह तुम्‍हें प्रदान करे। मैं तुम को ये आज्ञाएँ इस लिए दे रहा हूँ कि तुम एक-दूसरे से प्रेम करो।

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