यशायाह 5
5
अंगूर-उद्यान की नीति कथा
1मैं अपने प्रिय के लिए
एक प्रेम गीत गाऊंगा।
इस गीत का विषय
मेरे प्रिय का अंगूर-उद्यान है।
एक अति उपजाऊ पहाड़ी पर
मेरे प्रिय का एक अंगूर-उद्यान था। #यिर 2:21; भज 80:8; मत 21:33
2उसने भूमि को खोदा,
उसके पत्थर-कंकड़ बीने,
और उसमें
उत्तम जाति की अंगूर-बेल लगाई।
उसने अंगूर-उद्यान के मध्य
एक मचान बनाया,
और वहाँ अंगूर-रस के लिए कुण्ड खोदा।
उसने आशा की,
कि अंगूर-उद्यान में उसे मीठे अंगूर मिलेंगे,
पर उसमें केवल खट्टे अंगूर लगे!#यश 27:2-5; यो 15:1-2
3अब, ओ यरूशलेम नगर के नागरिको,
ओ यहूदा प्रदेश के निवासियो,
तुमसे मेरा यह निवेदन है :
अब तुम्हीं मेरे और मेरे अंगूर-उद्यान के
मध्य न्याय करो।
4मेरे अंगूर-उद्यान में
और क्या करने को शेष था,
जो मैंने उसके लिए नहीं किया?
पर जब मैंने उसके मीठे अंगूर की आशा की,
तब मुझे उससे केवल खट्टे अंगूर मिले।
5अब मैं तुम्हें बताता हूं,
मैं अपने अंगूर-उद्यान के साथ कैसा व्यवहार
करूंगा :
मैं उसकी बाड़ हटा दूंगा,
और तब पशु उसको चर जाएंगे।
मैं उसकी दीवारें ढाह दूंगा,
और राहगीर उसको रौंदेंगे।
6मैं उसको उजाड़ दूंगा;
मैं उसको नहीं छांटूंगा,
और न कुदाली से खोदकर
उसको निराऊंगा।
तब उसमें कंटीले झाड़-झंखाड़ उग आएंगे।
मैं बादलों को भी आदेश दूंगा,
कि वे उस पर पानी न बरसाएँ।
7स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु का यह अंगूर-उद्यान
इस्राएल वंश है।
यहूदा प्रदेश के निवासी
प्रभु के सुन्दर पौधे हैं।
प्रभु ने उनसे न्याय की आशा की,
पर उसे देखने को मिला: रक्त पात।
प्रभु ने उनसे धार्मिकता की आशा की,
पर उसे सुनने को मिला: गरीबों का करुण-
क्रंदन!
दुर्जनो, तुम्हें धिक्कार है।
8धिक्कार है तुम्हें!
तुम एक के बाद एक मकान बनाते जाते हो,
खेत पर खेत जोड़ते जाते हो,
कि अन्त में गरीबों के लिए एक गज जमीन
भी नहीं बचती,
और तुम सारी भूमि के अकेले मालिक बन
बैठते हो!#मी 2:2
9स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु ने मेरे कानों में यह
कहा :
‘निस्सन्देह अनेक घर उजड़ जाएंगे,
विशाल और सुन्दर भवन निर्जन हो जाएंगे।
10अंगूर-उद्यान की दस बीघा भूमि पर
केवल एक बीघा भूमि#5:10 मूल में, ‘एक बत’, प्राय: चालीस लिटर के बराबर। की फसल होगी;
दस किलो#5:10 मूल में, ‘होमेर’ बीज से केवल एक किलो
अन्न उपजेगा।
11धिक्कार है तुम्हें!
तुम बड़े सबेरे उठते ही नशा करते हो;
शराब की गर्मी चढ़ाने के लिए
रात को बड़ी देर तक पीते रहते हो। #नीति 23:29-30; प्रज्ञ 2:7-9
12तुम्हारे भोजन-उत्सव में
सितार, सारंगी, डफ, बांसुरी बजाये जाते हैं,
और शराब का दौर चलता है।
पर तुम प्रभु के कार्यों पर ध्यान नहीं देते,
और न ही उसकी कृतियों पर
तुम्हारी दृष्टि जाती है।
13मेरे निज लोग ज्ञान के अभाव के कारण बन्दी
होकर
अपने देश से निर्वासित हो गये।
प्रतिष्ठित लोग भी भूख से मर रहे हैं,
और जनता प्यास से।
14मृतक-लोक की भूख बढ़ गई है,
वह मुंह फैलाए खड़ा है।
यरूशलेम नगर का अभिजात्य वर्ग,
जन-साधारण वर्ग,
शोरगुल करती हुई भीड़
और आमोद-प्रमोद में डूबे हुए लोग,
मृतक-लोक के मुंह में समा जाएंगे।
15मनुष्य-जाति का पतन हो गया,
मनुष्य नीचे गिर गया;
घमण्डियों की आंखें नीची कर दी गईं।
16स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु
न्याय करने के कारण उन्नत हुआ है;
पवित्र परमेश्वर धार्मिक कार्यों के द्वारा
अपनी पवित्रता प्रकट करता है।
17जहाँ हृष्ट-पुष्ट बैल चरते थे,
अब वहां मेमने चरेंगे;
जहाँ पशु घास खाकर मोटे होते थे,
वहाँ अब विस्तृत चरागाह में
भेड़-बकरी के बच्चे चरेंगे।#5:17 मूल में अस्पष्ट
18धिक्कार है तुम्हें!
तुम अधर्म को झूठ की डोरियों से,
और पाप को गाड़ी की रस्सी से खींचते हो।
19तुम कहते हो,
‘प्रभु शीघ्रता करे,
वह अपना कार्य अविलम्ब पूरा करे,
ताकि हम भी उस कार्य को देखें।
इस्राएल के पवित्र परमेश्वर की योजना
शीघ्र पूरी हो,
जिनसे हम उसको जान सकें।’#2 पत 3:3
20धिक्कार है तुम्हें!
तुम बुराई को भलाई,
और भलाई को बुराई कहते हो।
तुम प्रकाश को अन्धकार
और अन्धकार को प्रकाश बताते हो।
तुम विष को अमृत
और अमृत को विष मानते हो।#मत 23:13
21धिक्कार है तुम्हें!
तुम अपनी ही दृष्टि में
स्वयं को बुद्धिमान और चतुर समझते हो।
22धिक्कार है तुम्हें!
तुम शराब पीने में वीरता दिखाते हो,
और शराब को तेज बनाने में बहादुरी।
23तुम घूस लेकर अपराधी को छोड़ देते हो,
और निर्दोष को उसके न्यायोचित अधिकार
से वंचित कर देते हो।
24जैसे अग्नि की लपटें
खूंटों को भस्म कर देती हैं;
जैसे सूखी घास ज्वाला में जलकर
राख बन जाती है,
वैसे ही उन लोगों की जड़ सड़ जाएगी,
उनके फूल धूल की तरह उड़ जाएंगे;
क्योंकि उन्होंने स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु की
व्यवस्था को
मानने से इन्कार किया;
उन्होंने इस्राएल के पवित्र परमेश्वर की
वाणी को तुच्छ समझा।
25अत: प्रभु का क्रोध
अपने लोगों के विरुद्ध भड़क उठा।
उसने उन पर हाथ उठाया,
और उन पर प्रहार किया।
पहाड़ हिल उठे।
उनकी लाशें कूड़ा-कचरा-सी
सड़कों पर बिछ गईं।
इस विनाश के बाद भी
उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ,
और प्रहार के निमित्त
उसका हाथ उठा रहा।
26प्रभु सुदूर राष्ट्र के लिए झंडा फहराएगा;
वह पृथ्वी के सीमांत से
उसे बुलाने के लिए सीटी बजाएगा।
देखो, वह अविलम्ब,
पवन की गति से आएगा।#यिर 5:15
27उसके सैनिक न थके-मांदे होंगे,
और न लड़खड़ाकर गिरेंगे।
वे न ऊंघेंगे, और न सोएंगे।
उनका न कमर-पट्टा ढीला होगा,
और न जूते का बन्धन टूटा होगा।
28उनके तीर प्राण-बेधी हैं।
वे धनुष चढ़ाए हुए हैं।
उनके घोड़ों के खुर वज्र की तरह हैं।
उनके रथ के पहिए बवंडर के सदृश घूमते हैं।
29वे शेर की तरह दहाड़ते हैं,
उनका गर्जन जवान सिंह के समान है।
वे गुर्राकर शिकार को पकड़ते,
और उसको दबोचकर ले जाते हैं।
उनके मुंह से उनको कौन छुड़ा सकता है?#हो 5:14
30उस दिन वे समुद्र के गर्जन की तरह
इस्राएल पर गुर्राएंगे।
यदि कोई व्यक्ति इस्राएल देश पर दृष्टिपात
करेगा,
तो वह वहाँ यह देखेगा :
अन्धकार और संकट के बादल!
काले बादलों से प्रकाश छिप जाएगा।
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