यिशय वंश के तने से एक शाखा निकलेगी; उसकी जड़ से एक टहनी फूटेगी, और फलवंत होगी। प्रभु की आत्मा, बुद्धि और समझ की आत्मा, सम्मत्ति और सामर्थ्य की आत्मा, ज्ञान और प्रभु के भय की आत्मा उस पर ठहरी रहेगी। प्रभु का भय ही उसका आनन्द होगा। वह केवल मुंह देखकर न्याय नहीं करेगा; वह केवल कान से सुनकर निर्णय नहीं देगा; वरन् वह गरीबों का न्याय धार्मिकता से करेगा, वह पृथ्वी के दीन-दलितों का निर्णय निष्पक्षता से करेगा। वह अपने शब्द-रूपी डंडे से अत्याचारियों पर प्रहार करेगा; वह मुंह की फूंक से दुष्टों का नाश करेगा। धर्म ही उसकी शक्ति, सच्चाई ही उसका सामर्थ्य होगी।
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