प्रत्येक महापुरोहित मनुष्यों में से चुना जाता है और परमेश्वर-सम्बन्धी बातों में मनुष्यों का प्रतिनिधि नियुक्त किया जाता है, जिससे वह भेंट और पापों के प्रायश्चित की बलि चढ़ाये। वह अज्ञानियों और भूले-भटके लोगों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार कर सकता है, क्योंकि वह स्वयं दुर्बलताओं से घिरा हुआ है। यही कारण है कि उसे न केवल जनता के लिए, बल्कि अपने लिए भी पापों के प्रायश्चित की बलि चढ़ानी पड़ती है। कोई भी अपने आप यह गौरवपूर्ण पद नहीं अपनाता। प्रत्येक महापुरोहित हारून की भाँति परमेश्वर द्वारा बुलाया जाता है। इसी प्रकार, मसीह ने अपने को महापुरोहित बनने का गौरव नहीं प्रदान किया; किन्तु परमेश्वर ने किया और उन से कहा, “तू मेरा पुत्र है, आज मैं ने तुझे उत्पन्न किया है।” अन्यत्र भी वह कहता है, “तू मलकीसेदेक के अनुरूप सदा पुरोहित बना रहेगा।” मसीह ने इस पृथ्वी पर रहते समय पुकार-पुकार कर और आँसू बहा-बहा कर परमेश्वर से, जो उन्हें मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थना और अनुनय-विनय की। श्रद्धाभक्ति के कारण उनकी प्रार्थना सुनी गयी। पुत्र होने पर भी उन्होंने दु:ख सह कर आज्ञापालन सीखा। वह पूर्ण रूप से सिद्ध बन कर और परमेश्वर से मलकीसेदेक के अनुरूप महापुरोहित की उपाधि प्राप्त कर उन सब के शाश्वत मुक्ति के स्रोत बन गये, जो उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं।
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