इब्रानियों 11

11
विश्‍वास का महत्‍व
1विश्‍वास उन बातों का पक्‍का निश्‍चय#11:1 अथवा “आधार” अथवा, “आश्‍वासन”, अथवा, “स्‍थिर प्रतीक्षा” है, जिनकी हम आशा करते हैं और उन वस्‍तुओं के अस्‍तित्‍व के विषय में दृढ़ धारणा है, जिन्‍हें हम नहीं देखते।#इब्र 3:14; 2 कुर 5:7 2विश्‍वास के कारण हमारे पूर्वज परमेश्‍वर के कृपापात्र समझे गए।#प्रव 44:10—50:21; 1 मक 2:51-64 3विश्‍वास द्वारा हम जान लेते हैं कि परमेश्‍वर के शब्‍द द्वारा विश्‍व का निर्माण हुआ है और अदृश्‍य से दृश्‍य की उत्‍पत्ति हुई है।#उत 1:1
4विश्‍वास के कारण हाबिल ने काइन की अपेक्षा कहीं अधिक श्रेष्‍ठ बलि चढ़ायी। विश्‍वास के कारण वह धार्मिक समझा गया, क्‍योंकि परमेश्‍वर ने उसका चढ़ावा स्‍वीकार किया। उसकी मृत्‍यु हुई; किन्‍तु विश्‍वास के कारण वह आज भी बोल रहा है।#उत 4:4; मत 23:35
5विश्‍वास के कारण हनोक ले#11:5 अथवा “आरोहित” अथवा ‘ऊपर उठा लिया गया।’ लिया गया ताकि उसे मृत्‍यु का अनुभव न हो। वह फिर नहीं दिखाई पड़ा, क्‍योंकि परमेश्‍वर ने उसे उठा लिया था। धर्मग्रन्‍थ उसके विषय में कहता है कि उठाये जाने के पहले “उसने परमेश्‍वर को प्रसन्न किया था।”#उत 5:21-24 (यू. पाठ); प्रव 44:16 6और विश्‍वास के बिना परमेश्‍वर को प्रसन्न करना, असंभव है। अत: जो परमेश्‍वर के निकट पहुँचना चाहता है, उसे विश्‍वास करना आवश्‍यक है कि परमेश्‍वर है और वह उन लोगों को प्रतिफल देता है, जो उसकी खोज में लगे रहते हैं।#इब्र 7:25; 10:35
7नूह अपने विश्‍वास के कारण अदृश्‍य घटनाओं से परमेश्‍वर के द्वारा सचेत किया गया। उसने इस चेतावनी का सम्‍मान किया और अपना परिवार बचाने के लिए जलयान का निर्माण किया। उसने अपने विश्‍वास द्वारा संसार को दोषी ठहराया और वह उस धार्मिकता का अधिकारी बना, जो विश्‍वास पर आधारित है।#उत 6:8-9,13-22; 7:1; रोम 3:22,24; 4:20
8विश्‍वास के कारण अब्राहम ने परमेश्‍वर का बुलावा स्‍वीकार किया कि वह उस देश को जाएं जिसको वह विरासत में प्राप्‍त करने वाले थे। अब्राहम यह न जानते हुए भी कि वह कहाँ जा रहे हैं, उन्‍होंने उस देश के लिए प्रस्‍थान किया।#उत 12:1-4 9विश्‍वास के कारण परदेशी की तरह प्रतिज्ञात देश में कुछ समय तक निवास किया। वह इसहाक तथा याकूब के समान, जो उनके साथ एक ही प्रतिज्ञा के उत्तराधिकारी थे, तम्‍बुओं में रहने लगे।#उत 23:4; 26:3; 35:12 10अब्राहम ने ऐसा किया, क्‍योंकि वह उस पक्‍की नींव वाले नगर की प्रतीक्षा में थे, जिसका वास्‍तुकार तथा निर्माता परमेश्‍वर है।
11विश्‍वास के कारण ही आयु ढल जाने पर भी अब्राहम ने प्रजनन#11:11 कुछ प्राचीन प्रतियों में, ‘सारा ने गर्भधारण की...’ की शक्‍ति पाई-सारा भी बांझ थी-क्‍योंकि उनका विचार यह था कि जिसने प्रतिज्ञा की है, वह सच्‍चा है।#उत 17:19; 21:2 12और इसलिए एक मरणासन्न व्यक्‍ति, अर्थात् अब्राहम से वह सन्‍तति उत्‍पन्न हुई, जो आकाश के तारों की तरह असंख्‍य है और सागर-तट के बालू के कणों की तरह अगणित।#उत 15:5; 22:17; 32:12; रोम 4:19
13प्रतिज्ञा का फल पाये बिना ये सब विश्‍वास करते हुए मर गये। परन्‍तु उन्‍होंने उसको दूर से देखा और उसका स्‍वागत किया। वे अपने को पृथ्‍वी पर परदेशी तथा प्रवासी मानते थे।#भज 39:12; 1 इत 29:15; उत 23:4; 47:9; 1 पत 1:1; 2:11 14जो इस तरह की बातें कहते हैं, वे यह स्‍पष्‍ट कर देते हैं कि वे स्‍वदेश की खोज में लगे हुए हैं। 15यदि उस देश की बात सोचते जो वे पीछे छोड़ आए थे तो उन्‍हें वहाँ लौटने का अवसर था। 16पर नहीं, वे तो एक उत्तम स्‍वदेश अर्थात् स्‍वर्ग की खोज में लगे हुए थे; इसलिए परमेश्‍वर को उन लोगों का परमेश्‍वर कहलाने में लज्‍जा नहीं होती। उसने तो उनके लिए एक नगर का निर्माण किया है।#नि 3:6; मक 12:26-27
17जब परमेश्‍वर ने अब्राहम की परीक्षा ली, तब विश्‍वास के कारण अब्राहम ने इसहाक को अर्पित किया। वह अपने एकलौते पुत्र को बलि चढ़ाने को तैयार हो गये, यद्यपि उनसे यह प्रतिज्ञा की गयी थी#उत 22:1-2; याक 2:22 18और कहा गया था कि ‘इसहाक से तेरा वंश चलेगा।’#उत 21:12 19अब्राहम यह मानते थे कि परमेश्‍वर मृतकों को भी जिला सकता है। और एक प्रकार से प्रतीक रूप में उन्‍होंने अपने पुत्र को फिर प्राप्‍त किया।#रोम 4:17
20विश्‍वास के कारण इसहाक ने याकूब एवं एसाव के भविष्‍य के लिए आशीर्वाद दिया।#उत 27:27,29,39-40 21विश्‍वास के कारण याकूब ने मरते समय यूसुफ के हर एक पुत्र को आशीर्वाद दिया और उन्‍होंने अपनी छड़ी की मूठ के सहारे झुक कर परमेश्‍वर की आराधना की।#उत 47:31 (यू. पाठ); 48:15-16 22विश्‍वास के कारण यूसुफ ने मरते समय मिस्र से इस्राएलियों के निर्गमन का उल्‍लेख किया और अपनी अस्‍थि के विषय में आदेश दिया।#उत 50:24
23विश्‍वास के कारण मूसा के माता-पिता ने यह देख कर कि शिशु सुन्‍दर है, उसे जन्‍म के बाद तीन महीनों तक छिपाये रखा और वे राजा के आदेश से भयभीत नहीं हुए।#नि 2:2
24विश्‍वास के कारण बड़े हो जाने पर मूसा ने फरओ#11:24 अथवा, “फिरौन” की पुत्री का बेटा कहलाना अस्‍वीकार किया।#नि 2:10-11 25उन्‍होंने पाप का अल्‍पस्‍थायी सुख भोगने की अपेक्षा परमेश्‍वर की प्रजा के साथ अत्‍याचार सहना अधिक उचित समझा। 26उन्‍होंने मिस्र की धन-सम्‍पत्ति की अपेक्षा मसीह का अपयश अधिक मूल्‍यवान् समझा, क्‍योंकि उनकी दृष्‍टि भविष्‍य में प्राप्‍त होने वाले पुरस्‍कार पर लगी हुई थी।#इब्र 13:13; 10:34-35; भज 89:50; 69:9 27विश्‍वास के कारण उन्‍होंने मिस्र देश को छोड़ दिया। वह राजा फरओ के क्रोध से भयभीत नहीं हुए, बल्‍कि दृढ़ बने रहे, मानो वह अदृश्‍य परमेश्‍वर को देख रहे थे।#नि 2:15; 12:51
28विश्‍वास के कारण मूसा ने “पास्‍का”#11:28 अथवा “फसह” की विधियों का पालन किया और रक्‍त छिड़का, जिससे पहलौठों का विनाशक दूत इस्राएलियों के पहलौठे पुत्रों पर हाथ न डाले।#नि 12:12-13 29विश्‍वास के कारण उन लोगों ने लाल समुद्र को पार किया, मानो वह सूखी भूमि था और जब मिस्रियों ने वैसा ही करने की चेष्‍टा की, तो वे डूब मरे।#नि 14:22,27 30जब इस्राएली सात दिनों तक यरीहो नगर की शहरपनाह की परिक्रमा कर चुके तब विश्‍वास के कारण वह गिर पड़ी।#यहो 6:20 31विश्‍वास के कारण राहाब नामक वेश्‍या अविश्‍वासियों के साथ नष्‍ट नहीं हुई, क्‍योंकि उसने गुप्‍तचरों का मैत्रीपूर्ण स्‍वागत किया था।#यहो 2:1-12; 6:17,23; याक 2:25
32मैं और क्‍या कहूँ? यदि मैं गिदओन, बाराक, शिमशोन, यिफ्‍ताह, दाऊद, शमूएल और नबियों की भी चर्चा करने लगूँ, तो मेरे पास समय नहीं रहेगा।#शास 6:11; 4:6; 15:20; 12:7 33उन्‍होंने अपने विश्‍वास द्वारा राज्‍यों को अपने अधीन कर लिया, न्‍याय का पालन किया, प्रतिज्ञाओं का फल पाया, सिंहों का मुँह बन्‍द किया#शास 14:6; दान 6:22; 1 शम 17:34-35 34और प्रज्‍वलित आग बुझायी। वे तलवार की धार से बच गये और दुर्बल होते हुए भी शक्‍तिशाली बन गये। उन्‍होंने युद्ध में वीरता का प्रदर्शन किया और विदेशी सेनाओं को भगा दिया।#दान 3:23-25 35स्‍त्रियों ने अपने पुनर्जीवित मृतकों को फिर प्राप्‍त किया। कुछ लोग यन्‍त्रणा सह कर मर गये और वे उस से इसलिए छुटकारा नहीं चाहते थे कि उन्‍हें श्रेष्‍ठतर पुनरुत्‍थान प्राप्‍त हो।#1 रा 17:23; 2 रा 4:36; 2 मक 6:18—7:42 36उपहास, कोड़ों, बेड़ियों और बन्‍दीगृह द्वारा कुछ लोगों की परीक्षा ली गयी है।#यिर 20:2; 37:15 37कुछ लोग पत्‍थरों से मारे गये, कुछ आरे से चीर दिये गये#11:37 कुछ प्रतियों में ये शब्‍द भी पाए जाते हैं : “उनके विश्‍वास को परखा गया।” और कुछ तलवार से मौत के घाट उतारे गये। कुछ लोग दरिद्रता, अत्‍याचार और उत्‍पीड़न के शिकार बन कर भेड़ों और बकरियों की खाल ओढ़े, इधर-उधर भटकते रहे।#2 इत 24:21 38संसार उनके योग्‍य नहीं था। उन्‍हें उजाड़ स्‍थानों, पहाड़ी प्रदेशों, गुफाओं और धरती के गड्ढों की शरण लेनी पड़ी। 39वे सब अपने विश्‍वास के कारण परमेश्‍वर के कृपापात्र समझे गये। फिर भी उन्‍हें प्रतिज्ञा का फल प्राप्‍त नहीं हुआ, 40क्‍योंकि परमेश्‍वर ने हम को दृष्‍टि में रख कर एक श्रेष्‍ठतर योजना बनायी थी। वह चाहता था कि वे हमारे साथ ही पूर्णता तक पहुँचें।

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