उत्‍पत्ति 32:6-32

उत्‍पत्ति 32:6-32 HINCLBSI

दूत याकूब के पास लौट आए। अन्‍होंने कहा, ‘हम आपके भाई एसाव के पास गए थे। वह आपसे भेंट करने आ रहे हैं। उनके साथ चार सौ पुरुष हैं। याकूब बहुत डर गया। वह संकट में पड़ गया। उसने अपने साथ के लोगों को, भेड़-बकरियों को, गाय-बैलों और ऊंटों को विभक्‍त कर दो दल बनाए। उसने सोचा, ‘यदि एसाव आकर एक दल को नष्‍ट करेगा तो दूसरा दल भागकर बच जाएगा।’ याकूब ने परमेश्‍वर से प्रार्थना की, ‘मेरे दादा अब्राहम के परमेश्‍वर, मेरे पिता इसहाक के परमेश्‍वर! हे प्रभु, तूने मुझसे कहा था, “अपने देश, अपने जन्‍म-स्‍थान को लौट जा। मैं तेरे साथ भलाई करूंगा।” जो करुणा और सच्‍चाई तूने अपने सेवक पर की है, उसके लिए मैं सर्वथा अयोग्‍य हूं। जब मैंने यह यर्दन नदी पार की थी तब सम्‍पत्ति के नाम पर मेरे पास मात्र एक लाठी थी; किन्‍तु अब मैं इतना समृद्ध हूँ कि मैं दो दलों में विभक्‍त हो लौट रहा हूँ। कृपया मुझे मेरे भाई एसाव के हाथ से मुक्‍त कर। मैं उससे डरता हूँ। ऐसा न हो कि वह आकर हम सब को, बच्‍चों समेत माताओं को मार डाले। तूने कहा था, “मैं तेरे साथ भलाई करूँगा, और तेरे वंश को समुद्र के रेतकणों के सदृश असंख्‍य बनाऊंगा, जिनका अधिकता के कारण गिनना असम्‍भव होता है।” ’ याकूब ने वह रात वहीं व्‍यतीत की। उसने अपने भाई एसाव को भेंट में देने के लिए अपनी समस्‍त सम्‍पत्ति में से ये पशु चुने: दो सौ बकरियाँ, बीस बकरे, दो सौ भेड़ें, बीस मेढ़े, अपने-अपने बच्‍चों समेत तीस दुधारू ऊंटनियां, चालीस गायें, दस बैल, बीस गदहियां और दस गधे। याकूब ने इनके अलग-अलग झुण्‍ड बनाकर उनको अपने सेवकों के हाथ में सौंप दिया और उनसे कहा, ‘तुम लोग मुझसे पहले प्रस्‍थान करो। झुण्‍डों के बीच में पर्याप्‍त दूरी रखना।’ तत्‍पश्‍चात् उसने आगे वाले झुण्‍ड के रखवाले को आदेश दिया, ‘जब तुम्हें मेरे भाई एसाव मिलें और वह तुमसे पूछें, “तुम किसके सेवक हो? तुम कहां जा रहे हो? यह तुम्‍हारे सामने किसके पशु हैं?” तब तुम कहना, “यह आपके सेवक याकूब के पशु हैं। उन्‍होंने अपने स्‍वामी एसाव को भेंट के रूप में इनको भेजा है। आपके सेवक याकूब भी हमारे पीछे आ रहे हैं।” इसी प्रकार उसने दूसरे, तीसरे तथा उन सब रखवालों को, जो झुण्‍ड के पीछे-पीछे चल रहे थे, आदेश दिया, ‘जब तुम एसाव से मिलो तब ये ही बातें उनसे कहना। यह भी कहना, “आपके सेवक याकूब हमारे पीछे आ रहे हैं।” वह सोचता था, ‘सम्‍भवत: मैं अपने आगे जाने वाली भेंट के माध्‍यम से एसाव का क्रोध शान्‍त कर सकूँ। इसके पश्‍चात् मैं उनका दर्शन करूँगा। कदाचित् वह मुझे स्‍वीकार करें।’ अत: उसने भेंट अपने पहले ही भेज दी और वह स्‍वयं उस रात पड़ाव पर रह गया। याकूब उसी रात उठा। उसने अपनी दोनों पत्‍नियों और दोनों सेविकाओं एवं ग्‍यारह पुत्रों को लेकर यब्‍बोक नदी का घाट पार किया। उसने उन्‍हें नदी के पार भेज दिया। जो कुछ उसके पास था, उसे उसने नदी के पार भेज दिया। याकूब अकेला रह गया। एक मनुष्‍य आया और वह उससे प्रात:काल तक लड़ता रहा। जब उस मनुष्‍य ने देखा कि वह याकूब को पराजित नहीं कर सकता, तब उसने याकूब की जांघ के जोड़ को स्‍पर्श किया। अत: उससे लड़ते-लड़ते याकूब की जांघ का जोड़ उखड़ गया। उस मनुष्‍य ने कहा, ‘मुझे जाने दे। सबेरा हो रहा है।’ याकूब बोला, ‘जब तक तू मुझे आशीर्वाद नहीं देगा, मैं तुझे नहीं जाने दूँगा।’ उसने पूछा, ‘तेरा नाम क्‍या है?’ याकूब ने उत्तर दिया, ‘याकूब।’ तब वह बोला, ‘अब तेरा नाम याकूब न होगा, वरन् “इस्राएल” होगा; क्‍योंकि तूने परमेश्‍वर और मनुष्‍य से लड़कर विजय प्राप्‍त की है।’ याकूब ने पूछा, ‘कृपया, मुझे अपना नाम बता।’ उसने कहा, ‘तूने मेरा नाम क्‍यों पूछा?’ तत्‍पश्‍चात् उसने याकूब को आशीर्वाद दिया। याकूब ने उस स्‍थान का नाम ‘पनीएल’ रखा; क्‍योंकि उसने कहा, ‘मैंने परमेश्‍वर को साक्षात् देखा फिर भी मैं जीवित रहा!’ जब याकूब ने पनीएल से प्रस्‍थान किया तब वह अपनी जांघ के कारण लंगड़ा रहा था और सूर्य उस पर चमकने लगा था। इस्राएली जाति के लोग आज तक पशु के कूल्‍हे की नस को, जो जांघ के जोड़ों पर होती है, नहीं खाते; क्‍योंकि उस मनुष्‍य ने याकूब की जांघ में कूल्‍हे की नस को स्‍पर्श किया था।