यहेजकेल 1
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दर्शन और आह्वान
1तीसवें वर्ष के#1:1 अर्थात् ‘यहेजकेल की आयु के’ अथवा, ‘निष्कासन के’ चौथे महीने की पांचवीं तारीख को#1:1 अथवा, ‘पांचवें दिन’ यह घटना घटी। उस समय कबार नदी के तट पर यहूदा प्रदेश से निष्कासित बन्दियों का शिविर था। मैं भी इन्हीं बन्दियों में था। तब स्वर्ग खुल गया, और मैंने परमेश्वर के दर्शन देखे।#मत 3:16; प्रक 19:11
2(राजा यहोयाकीन की कैद का पांचवां वर्ष था।) उसी महीने की पांचवीं तारीख को 3प्रभु का यह सन्देश पुरोहित यहेजकेल बेन-बूजी को मिला। उस समय पुरोहित यहेजकेल कसदी कौम के देश में कबार नदी के तट पर बन्दियों के शिविर में थे। वहाँ प्रभु की सामर्थ्य नबी यहेजकेल को प्राप्त हुई।#1:3 शब्दश: ‘प्रभु का हाथ उन पर पड़ा’
4जब मैं-यहेजकेल ने आंखें ऊपर उठायीं, तब यह देखा: उत्तर दिशा से आंधी उठी, और उसके साथ महा मेघ है, और उस महा मेघ के चारों ओर प्रकाश है, जिससे आग रह-रह कर बिजली के सदृश चमक रही है। आग के मध्य में मानो पीतल चमक रहा है। 5तब आग में से चार आकृतियाँ निकलीं, जो जीवधारी प्राणियों के समान दिखाई दे रही थीं। उनका रूप मनुष्यों के समान था,#प्रक 4:6; यहेज 10:8 6किन्तु प्रत्येक प्राणी के चार मुंह और चार पंख थे। 7उनके पैर सीधे थे, और पांवों के तलुए बछड़े के खुरों के समान थे, और वे चमकाए हुए पीतल के समान चमक रहे थे। 8उनके चारों ओर पंखों के नीचे, मनुष्य के ही हाथ थे।
चारों प्राणियों के चेहरे और पंख इस प्रकार थे: 9उनके पंख परस्पर जुड़े हुए थे। वे चलते समय अपनी आंखों की सीध में सीधे चलते थे, और मुड़ते नहीं थे। 10चारों के चेहरे का रूप इस प्रकार था : प्रत्येक प्राणी का चेहरा सामने की ओर मनुष्य के समान था, दाहिनी ओर सिंह का था, और बायीं ओर बैल का तथा पीछे की ओर गरुड़ का।#प्रक 4:7 11चारों प्राणियों के चेहरों की आकृति यही थी।
उनके पंख ऊपर की ओर फैले हुए थे। प्रत्येक प्राणी के दो पंख दूसरे प्राणी के दो पंखों से मिले हुए थे। वे अन्य दो पंखों से अपना शरीर ढके हुए थे।#यश 6:2 12वे सीधे, अपने सामने की ओर चल रहे थे, और चलते समय न दाएँ और न बाएँ मुड़ रहे थे। जहाँ आत्मा जाना चाहती थी, वहाँ वे जा रहे थे। 13चारों जीवधारियों के मध्य में आग के जलते हुए अंगारों के समान कुछ था। वह जलती हुई मशाल के समान जीवधारियों के बीच यहाँ-वहाँ घूम रहा था। आग धधक रही थी, और उससे बिजली निकल रही थी।#प्रक 4:5 14जीवधारी बिजली की चमक के समान इधर-उधर कौंध रहे थे।#जक 4:10; भज 104:4
15जब मैं जीवधारियों को देख रहा था तब मुझे एक पहिया दिखाई दिया, जो भूमि पर था। वस्तुत: चारों जीवधारियों की बाजू में एक-एक पहिया था, जो भूमि को स्पर्श कर रहा था।#यहेज 10:9-10 16उन पहियों की चमक और बनावट इस प्रकार थी : वे स्वर्णमणि के समान चमक रहे थे। चारों की बनावट एक-जैसी थी; बनावट ऐसी थी, मानो एक पहिए के भीतर दूसरा पहिया हो। 17वे चारों दिशाओं में घूम सकते थे। वे किसी भी दिशा में बिना मुड़े ही जा सकते थे। 18चारों पहियों के घेरे बहुत बड़े और भयानक थे। उनके घेरों में चारों ओर आंखें ही आंखें थीं।#यहेज 10:12; प्रक 4:8 19जब जीवधारी चलते थे तब उनके साथ-साथ ये पहिए भी चलते थे, और जब जीवधारी भूमि की सतह से ऊपर उठते थे तब पहिए भी उठ जाते थे। 20जहाँ आत्मा जाना चाहती थी, वहाँ जीवधारी जाते थे, और जीवधारियों के साथ ये पहिए भी उठ जाते थे; क्योंकि जीवधारियों की आत्मा इन पहियों में थी। 21जब जीवधारी जाते थे तब ये पहिए भी जाते थे। जब वे खड़े होते तब पहिये भी खड़े हो जाते। जब जीवधारी भूमि से ऊपर उठते तब उनके पहिये भी ऊपर उठ जाते थे; क्योंकि जीवधारियों की आत्मा इन पहियों में थी।
22उन जीवधारियों के सिर के ऊपर आकाश-मण्डल के समान कुछ था, जो भय उत्पन्न करनेवाला स्फटिक के समान चमक रहा था। वह उनके सिर पर फैला हुआ था।#यहेज 10:1 23आकाशमण्डल के नीचे, उनके पंख एक-दूसरे की ओर सीधे फैले हुए थे। वे अपने दो पंखों से अपना-अपना शरीर ढके हुए थे। 24जब वे चलते थे तब उनके पंखों की आवाज ऐसी सुनाई पड़ती थी मानो सागर का गर्जन हो, अथवा सर्वशक्तिमान परमेश्वर का स्वर#1:24 अथवा, ‘बादलों का गर्जन’ हो या सेना का कोलाहल हो। जब जीवधारी रुककर खड़े होते थे तब वे अपने पंख नीचे कर लेते थे।#यहेज 43:2; प्रक 1:15 25उनके सिर के ऊपर आकाशमण्डल था। उससे एक आवाज आती थी। जब-जब जीवधारी रुककर खड़े होते थे तब वे अपने पंख नीचे कर लेते थे।
26जीवधारियों के सिर के ऊपर आकाश-मण्डल था। उस आकाशमण्डल के ऊपर सिंहासन के समान कुछ था। यह सिंहासन मानो नीलम का बना था। सिंहासन के समान इस आसन पर कोई बैठा था, जिसकी आकृति मनुष्य के समान थी।#नि 24:10; प्रक 1:13; 4:2 27मुझे ऐसा दिखाई दिया मानो उसकी कमर से ऊपर की ओर का हिस्सा चमकाया हुआ पीतल है, और उसके भीतर और बाहर मानो आग धधक रही है। आकृति का जो भाग कमर के सदृश था, उसके नीचे अग्नि थी। मनुष्य की आकृति के चारों ओर प्रभा-मण्डल था।#यहेज 8:2 28जैसे वर्षा के दिन बादलों में धनुष दिखाई पड़ता है, वैसे ही उसके चारों ओर का प्रभा-मण्डल दिखाई दे रहा था।
प्रभु के तेज का रूप मानो ऐसा ही दिखाई दे रहा था। जब मैंने प्रभु के तेज के दर्शन किए, तब मैं श्रद्धा और भक्ति से नतमस्तक हो गया, और मैंने किसी की आवाज सुनी। कोई व्यक्ति मुझसे कह रहा था#1:28 अथवा, ‘वाणी कह रही थी’। :#उत 9:13-15; नि 33:20; दान 8:17
वर्तमान में चयनित:
यहेजकेल 1: HINCLBSI
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