मूसा ने उत्तर दिया, ‘पर देख, वे मुझ पर विश्वास नहीं करेंगे, वे मेरी बात नहीं सुनेंगे; क्योंकि वे कहेंगे, “प्रभु ने तुझे दर्शन नहीं दिया।” ’ प्रभु ने मूसा से पूछा, ‘तेरे हाथ में यह क्या है?’ उन्होंने उत्तर दिया, ‘लाठी।’ प्रभु ने कहा, ‘इसे भूमि पर फेंक दे।’ मूसा ने उसे भूमि पर फेंका तो वह सर्प बन गई। मूसा उसके सम्मुख से हट गए। प्रभु ने मूसा से कहा, ‘अपना हाथ बढ़ा और उसकी पूंछ से उसे पकड़।’ उन्होंने अपना हाथ बढ़ाकर उसे पकड़ा, और वह उनके हाथ में पुन: लाठी बन गई।’ प्रभु ने कहा, ‘इस प्रकार उन्हें विश्वास होगा कि उनके पूर्वजों के परमेश्वर, अब्राहम के परमेश्वर, इसहाक के परमेश्वर और याकूब के परमेश्वर, मुझ-प्रभु ने तुझे दर्शन दिया है।’ तत्पश्चात् प्रभु ने उनसे पुन: कहा, ‘अपना हाथ वस्त्र के भीतर छाती पर रख।’ मूसा ने वस्त्र के भीतर छाती पर अपना हाथ रखा। जब उन्होंने उसे बाहर निकाला तब उनका हाथ बर्फ के समान कोढ़ जैसा सफेद हो गया। परमेश्वर ने कहा, ‘अब अपना हाथ फिर से वस्त्र के भीतर छाती पर रख।’ अत: मूसा ने पुन: अपना हाथ वस्त्र के भीतर छाती पर रखा। जब उन्होंने उसे छाती से बाहर निकाला तब वह उनके शेष शरीर के सदृश जैसा का तैसा हो गया। परमेश्वर ने कहा, ‘यदि वे तुझ पर विश्वास न करें, अथवा प्रथम चिह्न पर ध्यान न दें तो वे दूसरे चिह्न पर ध्यान देंगे। यदि वे इन दोनों चिह्नों पर भी विश्वास न करें, और तेरी बात को न सुनें तो तू नील नदी का जल लेना और उसे सूखी भूमि पर उण्डेलना। जो जल तू नील नदी से लेगा, वह सूखी भूमि पर रक्त बन जाएगा।’
मूसा ने प्रभु से कहा, ‘हे मेरे स्वामी, मैं कुशल वक्ता नहीं हूं। मैं न पहले कभी था, और न जब से तू अपने सेवक से वार्तालाप करने लगा है, मैं हूं। मुझे बोलने में कठिनाई होती है और मेरी जीभ लड़खड़ाती है।’ प्रभु ने उनसे पुन: कहा, ‘किसने मनुष्य का मुंह बनाया? कौन उसे गूंगा, बहरा, दृष्टिवाला अथवा अन्धा बनाता है? क्या मैं प्रभु ही उसे ऐसा नहीं बनाता? अब जा, मैं तेरी वाणी पर निवास करूंगा। जो बोलना है, वह मैं तुझे सिखाऊंगा।’