भोज-उत्सव एक सौ अस्सी दिन तक मनाया गया। उस अवधि में उसने अतिथियों को अपना राजकीय वैभव दिखाया और अपनी प्रभुता की शान-शौकत प्रदर्शित की।
एक सौ अस्सी दिन के पश्चात् सम्राट क्षयर्ष ने अपने महल के उद्यान के मण्डप में राजधानी शूशन के समस्त निवासियों को−छोटे-बड़े सब को−भोज दिया। यह भोज-उत्सव सात दिन तक चलता रहा।
भोज-स्थल पर चांदी की छड़ों में और संगमर्मर के खम्भों में बैंगनी रंग के पतले सूत की डोरियों पर सफेद सूती परदे टंगे थे और नीले रंग की झालरें लटक रही थीं। लाल, सफेद, पीले, और काले संगमर्मर के फर्श पर सोने और चांदी के आसन रखे थे। अतिथियों को सोने के चषक में शराब पिलाई गई। ये चषक भिन्न-भिन्न प्रकार के थे। सम्राट की शान-शौकत के अनुरूप शाही शराब अतिथियों को छक कर पिलाई गई।
मद्यपान नियम से हो रहा था। शराब पीने के लिए किसी को विवश नहीं किया गया; क्योंकि सम्राट ने अपने महल के भण्डारियों को यह आदेश दे रखा था कि अतिथियों की इच्छानुसार उनके साथ व्यवहार किया जाए।
रानी वशती ने सम्राट क्षयर्ष के महल में महिलाओं को भोज दिया था।
सातवें दिन, जब सम्राट क्षयर्ष शराब में मस्त था, उसने अपने सात सेवक-खोजों−महूमान, बिज्जता, हर्बोना, बिग्ता, अबग्ता, जेतेर और कर्कस−को आदेश दिया कि वे रानी वशती को राजमुकुट के साथ सम्राट के सम्मुख पेश करें ताकि वह लोगों और दरबारियों को उसकी सुन्दरता के दर्शन करा सके; क्योंकि रानी वशती देखने में सुन्दर थी।
खोजों ने सम्राट का आदेश रानी वशती को दिया, किन्तु रानी ने सम्राट के सम्मुख आना अस्वीकार कर दिया। सम्राट नाराज हुआ। उसके भीतर ही भीतर क्रोध भभकने लगा।
सम्राट की यह नीति थी कि वह विधि और न्याय-शास्त्र के आचार्यों से परामर्श ले, जो परंपराओं से परिचित थे। ये आचार्य सम्राट के समीप ही रहते थे। ये सम्राट के सम्मुख किसी भी समय आ-जा सकते थे। इनका स्थान साम्राज्य में प्रथम था। ये फारस और मादय देशों के सात प्रशासक थे। इनके नाम थे: कर्शना, शेतार, अदमाता, तर्शीश, मेरेस, मर्सना और ममूकान। सम्राट ने उनसे पूछा, ‘मैंने खोजों के द्वारा जो आदेश रानी वशती को भेजा था, उसने उसकी अवहेलना की है। अत: कानून के अनुसार उसके साथ क्या व्यवहार किया जाए?’
ममूकान ने सम्राट और उच्चाधिकारियों के सम्मुख यह कहा, ‘रानी वशती ने, न केवल महाराज के प्रति अपराध किया है वरन् महाराज के अधीन समस्त प्रदेशों के उच्चाधिकारियों और निवासियों के प्रति भी अपराध किया है। रानी के इस कार्य की चर्चा सब स्त्रियों में फैल जाएगी, और वे भी अपने-अपने पति के आदेश की उपेक्षा करेंगी। वे कहेंगी, “महाराज क्षयर्ष ने रानी वशती को आदेश दिया था कि वह उनके सम्मुख पेश हो, किन्तु वह नहीं आई, अत: हम भी अपने पति के आदेश का पालन नहीं करेंगी।” आज ही फारस और मादय देशों की महिलाएँ, जिन्होंने रानी वशती के इस कार्य की चर्चा सुनी है, महाराज के प्रशासकों से यही बात कहेंगी। इस प्रकार सब ओर भारी उपेक्षा और क्रोध का वातावरण निर्मित होगा। यदि महाराज को यह उचित प्रतीत हो तो वह एक राजाज्ञा प्रसारित करें, और यह राजाज्ञा फारस और मादय देशों के विधि-शास्त्र में लिख ली जाए ताकि यह रद्द न की जा सके : “वशती महाराज क्षयर्ष के सम्मुख आज से फिर कभी उपस्थित नहीं हो सकेगी।” महाराज पटरानी का पद किसी अन्य स्त्री को, जो उससे अच्छी हो, प्रदान करें। जब महाराज की राजाज्ञा उनके विशाल साम्राज्य के कोने-कोने में प्रसारित की जाएगी तब सब पत्नियां अपने-अपने पति का−चाहे वह बड़ा हो, अथवा छोटा−आदर-सम्मान करेंगी।’
ममूकान की यह सलाह सम्राट और उसके उच्चाधिकारियों को पसन्द आई। सम्राट ने ममूकान की सलाह के अनुसार कार्य किया। उसने अपने अधीन सब प्रदेशों को, उनकी लिपि में, और वहां के निवासियों की भाषा में राजपत्र भेजे, जिनमें यह आदेश लिखा था: “प्रत्येक पुरुष अपने घर में स्वामी होगा, और उसकी आज्ञा सर्वोच्च होगी।”