सभा-उपदेशक 4:8-12

सभा-उपदेशक 4:8-12 HINCLBSI

यद्यपि मनुष्‍य अकेला है, उसका पुत्र नहीं, भाई नहीं, तथापि वह निरन्‍तर कमाता ही जाता है, उसके परिश्रम का कोई अन्‍त नहीं। उसकी आंखें धन-सम्‍पत्ति से तृप्‍त नहीं होतीं। वह अपने आपसे कभी पूछता नहीं, “मैं यह सब परिश्रम किसके लिए कर रहा हूं, और क्‍यों स्‍वयं को सुख-चैन से वंचित कर रहा हूं?” यह भी व्‍यर्थ है, और एक दु:खद कार्य-व्‍यापार है। एक से दो अच्‍छे होते हैं, क्‍योंकि उन्‍हें उनके परिश्रम का अच्‍छा फल मिलता है। यदि उनमें से एक गिरता है तो दूसरा उसको उठा सकता है। शोक उसको जो अकेला है! यदि वह गिर जाए तो उसको कौन उठाएगा? यदि दो एक साथ लेटें तो वे गर्म रहेंगे। किन्‍तु अकेला व्यक्‍ति अपने को कैसे गर्म कर सकता है? प्रहार करनेवाला अकेले व्यक्‍ति पर प्रबल हो सकता है, परन्‍तु दो व्यक्‍ति उसका सामना कर सकते हैं। जो रस्‍सी तीन तागों से बटी होती है, वह जल्‍दी नहीं टूटती।