व्यवस्था-विवरण 28
28
आज्ञापालन के फल
1‘परन्तु यदि तू अपने प्रभु परमेश्वर की वाणी ध्यानपूर्वक सुनेगा, उन समस्त आज्ञाओं के अनुसार कार्य करने को तत्पर रहेगा, जिनका आदेश आज मैं तुझे दे रहा हूँ, तो तेरा प्रभु परमेश्वर तुझ को पृथ्वी के समस्त राष्ट्रों के मध्य सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठित करेगा।#लेव 26:3 2यदि तू अपने प्रभु परमेश्वर की वाणी सुनेगा तो ये आशिषें तेरे पास आकर तुझको पकड़ लेंगी। 3तू नगर में आशिष प्राप्त करेगा। तू गांव में आशिष प्राप्त करेगा। 4तेरी देह के फल पर, तेरी भूमि की उपज पर, तेरे पालतू पशुओं और भेड़-बकरियों के बच्चों पर आशिष होगी। 5तेरी टोकरी और आटा गूंधने के पात्र पर आशिष होगी। 6तेरे आगमन पर आशिष होगी, तेरे प्रस्थान पर आशिष होगी।
7‘प्रभु आक्रमण करनेवाले तेरे शत्रुओं को तेरे सम्मुख पराजित करेगा। वे एक ओर से तुझ पर चढ़ाई करेंगे, पर तेरे सम्मुख से सात ओर भागेंगे। 8प्रभु आशिष को आदेश देगा कि वह तेरे खत्तों और सब उद्यमों में तेरे साथ जाए। जो देश तेरा प्रभु परमेश्वर तुझे दे रहा है, उसमें वह तुझे आशिष देगा।
9‘यदि तू अपने प्रभु परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करेगा, और उसके मार्ग पर चलेगा तो जैसी उसने तुझ से शपथ खाई है, उसके अनुसार वह तुझको अपने लिए पवित्र लोग के रूप में प्रतिष्ठित करेगा। 10पृथ्वी के समस्त लोग यह देखेंगे कि तू प्रभु के स्वामित्व और संरक्षण में है।#28:10 मूल मुहावरा, ‘प्रभु का नाम तुझ पर अंकित है।’ अत: वे तुझ से डरेंगे।#यिर 14:9; यो 13:34-35 11जिस देश को देने की शपथ प्रभु ने तेरे पूर्वजों से खाई थी, उस देश में वह तेरी देह के फल, तेरे पशुओं के बच्चों, और भूमि की उपज को समृद्ध करेगा। 12समय पर तेरे खेतों पर वर्षा करने के लिए, तेरे सब काम-धन्धों पर आशिष देने के लिए प्रभु आकाश के अपने उत्तम भण्डार-गृहों को खोल देगा। तब तू अनेक राष्ट्रों को ऋण देगा, पर तू स्वयं ऋण नहीं लेगा।#व्य 11:14 13प्रभु तुझ को उच्च आसन पर प्रतिष्ठित करेगा, निम्न स्थान पर नहीं। तू क्रमश: ऊंचा ही उठता जाएगा, और नीचे की ओर नहीं आएगा। किन्तु तुझे ये आशिषें तब प्राप्त होंगी जब तू अपने प्रभु परमेश्वर की आज्ञाओं को सुनेगा, जिनका पालन करने, और जिनके अनुसार कार्य करने का आदेश आज मैं तुझे दे रहा हूँ, 14और जब तू दूसरे देवताओं का अनुसरण करने और उनकी पूजा करने के लिए मेरे इन वचनों से, जिनका पालन करने का आदेश आज मैं तुझे दे रहा हूँ, विमुख नहीं होगा, इनसे न दाएँ मुड़ेगा और न बाएँ।
आज्ञा उल्लंघन के गम्भीर परिणाम
15‘परन्तु यदि तू अपने प्रभु परमेश्वर की वाणी नहीं सुनेगा, उसकी उन समस्त आज्ञाओं और संविधियों के अनुसार, जिनका आदेश आज मैं तुझे दे रहा हूँ, कार्य करने को तत्पर नहीं होगा, तो ये अभिशाप तेरे पास आकर तुझ को पकड़ लेंगे।#लेव 26:14 16तू नगर में शापित होगा। तू गांव में शापित होगा। 17तेरी टोकरी और आटा गूंधने के पात्र पर अभिशाप पड़ेगा। 18तेरी देह के फल, तेरी भूमि की उपज, पालतू पशुओं और भेड़-बकरियों के बच्चों पर अभिशाप पड़ेगा। 19तेरे आगमन पर अभिशाप पड़ेगा, तेरे प्रस्थान पर अभिशाप पड़ेगा।
20‘जब तक तू नष्ट नहीं हो जाएगा, अविलम्ब मिट नहीं जाएगा तब तक प्रभु तेरे बुरे कार्यों के कारण, तेरे समस्त उद्यमों पर अभिशाप, उलझन और विफलता भेजेगा, क्योंकि तूने प्रभु को छोड़ दिया है। 21जब तक तू उस देश से, जिस पर अधिकार करने के लिए तू वहाँ जा रहा है, पूर्णत: समाप्त नहीं हो जाएगा तब तक प्रभु तुझको महामारी से मारता रहेगा। 22प्रभु तुझको क्षय, ज्वर, जलन, ताप, अकाल, फफूंदी और पूर्वी वायु के झोंकों से मारेगा। जब तक तू मिट नहीं जाएगा तब तक ये तेरा पीछा करते रहेंगे। 23तेरे सिर के ऊपर का आकाश पीतल जैसा सख्त हो जाएगा। तेरे पैरों के नीचे की भूमि लोहा जैसे कठोर बन जाएगी। न आकाश से वर्षा होगी और न भूमि पर उपज। 24प्रभु तेरे देश पर होने वाली वर्षा को धूल और रेत-कण में बदल देगा। जब तक तू नष्ट नहीं हो जाएगा तब तक वह आकाश से तुझ पर बरसती रहेगी।
25‘प्रभु तेरे शत्रुओं के द्वारा तुझको पराजित करेगा। तू एक ओर से उन पर चढ़ाई करेगा, पर उनके सम्मुख से सात ओर भागेगा। तू पृथ्वी के समस्त राज्यों के लिए वीभत्स हौआ बन जाएगा।#यिर 24:9 26तेरी लोथ आकाश के पक्षियों और भूमि के जंगली पशुओं का आहार बनेगी। उनको डराकर भगानेवाला कोई न होगा। 27प्रभु तुझ को मिस्री फोड़ों से, बवासीर, दाद और खुजली से ऐसा पीड़ित करेगा कि तू उनसे स्वस्थ नहीं हो सकेगा। 28प्रभु तुझ पर पागलपन, अन्धापन और मति-भ्रम भेजेगा। 29जैसे अन्धा व्यक्ति अन्धकार में टटोलता है वैसे तू दोपहर में टटोलेगा। तू अपने किसी काम में सफल नहीं होगा। अन्य राष्ट्र तुझ पर निरन्तर दमन करते और तुझको लूटते रहेंगे। तुझको बचानेवाला कोई न होगा। 30तू कुंआरी कन्या से सगाई करेगा, पर दूसरा व्यक्ति उससे विवाह करेगा। तू मकान बनाएगा, पर स्वयं उसमें निवास नहीं कर सकेगा। तू अंगूर का उद्यान लगाएगा, पर उसके फलों का आनन्द नहीं ले पाएगा।#यिर 8:10; आमो 5:11 31तेरी आंखों के सामने तेरा बैल काटा जाएगा, पर तू उसका मांस नहीं खा सकेगा। तेरे सम्मुख से तेरा गधा लूट लिया जाएगा, और तुझे नहीं लौटाया जाएगा। तेरी भेड़ तेरे शत्रुओं को दे दी जाएगी। तुझको बचानेवाला कोई न होगा। 32तेरे पुत्र और पुत्रियाँ दूसरी जाति के हाथ में सौंप दिए जाएंगे। तेरी आंखें दिन भर उनकी प्रतीक्षा करते-करते थक जाएंगी। उनको रोकने की शक्ति तेरे हाथ में नहीं होगी। 33ऐसे लोग जिन्हें तू नहीं जानता है, तेरी भूमि की उपज, तेरे परिश्रम का फल खाएँगे। तुझ पर निरन्तर दमन होता रहेगा, तू कुचला जाता रहेगा। 34जो विनाश तेरी आंखें देखेंगी, उससे तू पागल हो जाएगा। 35प्रभु तेरे पैर के तलवे से सिर की चोटी तक, घुटनों और पैरों में कष्टदायक फोड़ों से तुझको पीड़ित करेगा, जिनसे तू स्वस्थ नहीं हो सकेगा।
36‘प्रभु तुझ को और तेरे राजा को, जिसे तूने अपने ऊपर प्रतिष्ठित किया है, ऐसे देश में ले जाएगा, जिसको न तू जानता है और न तेरे पूर्वज जानते थे। वहाँ तू पराए देवताओं की, लकड़ी और पत्थर की मूर्तियों की पूजा करेगा।#2 रा 17:4 37जहाँ प्रभु तुझे ले जाएगा, वहाँ के लोगों के मध्य तू हौआ, कहावत, और लोकोिक्त बन जाएगा। 38तू खेत में बहुत बीज बोएगा, किन्तु थोड़ी फसल ही एकत्र कर पाएगा, क्योंकि टिड्डियाँ उसको चट कर जाएंगी। 39तू अंगूर के उद्यान लगाएगा, उनमें परिश्रम करेगा, पर न तू अंगूर-रस पी सकेगा, और न अंगूर के फल एकत्र कर सकेगा, क्योंकि कीड़ा उनको खा जाएगा। 40तू अपनी राज्य-सीमा के भीतर जैतून के पेड़ लगाएगा, पर जैतून के तेल का उपयोग नहीं कर पाएगा क्योंकि वे झड़ जाएंगे। 41तू पुत्र और पुत्रियाँ उत्पन्न करेगा, किन्तु वे तेरे नहीं रहेंगे, क्योंकि वे युद्ध में बन्दी बनकर चले जाएंगे। 42तेरे सब वृक्षों और भूमि की उपज पर कीड़े-मकोड़े लग जाएंगे। 43तेरे मध्य रहनेवाला प्रवासी तुझ से अधिक ऊंचा उठता जाएगा और तू गिरता जाएगा। 44तू उसको उधार नहीं देगा, वरन् वह तुझको उधार देगा। वह उच्च आसन पर प्रतिष्ठित होगा, और तू निम्न स्थान पर! 45जब तक तू नष्ट नहीं हो जाएगा, तब तक ये अभिशाप तुझ पर आकर तेरा पीछा करेंगे, तुझे पकड़े रहेंगे, क्योंकि तूने अपने प्रभु परमेश्वर की वाणी नहीं सुनी, उसकी आज्ञाओं और संविधियों का पालन नहीं किया, जिनका उसने तुझे आदेश दिया था। 46ये अभिशाप चेतावनी-चिह्न तथा आश्चर्यपूर्ण कार्य के रूप में तेरे और तेरे वंश पर सदा रहेंगे।
47‘आशिषों की प्रचुरता होने पर भी तूने आनन्दपूर्वक और भले हृदय से अपने प्रभु परमेश्वर की सेवा नहीं की। 48इसलिए तू भूखा, प्यासा, नंगा रहकर, हर प्रकार के अभाव में अपने शत्रुओं की सेवा करेगा, जिन्हें प्रभु तेरे विरुद्ध भेजेगा। जब तक वह तुझे नष्ट नहीं कर देगा, तब तक तेरी गर्दन पर लोहे का जुआ रखा रहेगा। 49प्रभु दूर से, पृथ्वी के सीमान्त से, एक राष्ट्र को तेरे विरुद्ध बाज की गति के सदृश वेगपूर्वक लाएगा। तू उस राष्ट्र की भाषा नहीं समझेगा। 50उस राष्ट्र के लोगों के कठोर चेहरे होंगे, जो न बूढ़ों का सम्मान करेंगे, और न बच्चों पर दया। 51जब तक तू नष्ट नहीं हो जाएगा, तब तक वे तेरे पशुओं के बच्चों और तेरी भूमि की उपज को खाते रहेंगे। जब तक वे तुझको मिटा नहीं देंगे, तब तक वे तेरे लिए अन्न, अंगूर का रस, तेल, तेरे पालतू पशुओं और भेड़-बकरियों के बच्चे नहीं छोड़ेंगे। 52वे तेरे समस्त नगरों में तुझे घेर लेंगे। जिन ऊंची और मजबूत प्राचीरों पर तुझे भरोसा है, उन्हें वे समस्त देश में ढाह देंगे। जो नगर तेरे प्रभु परमेश्वर ने तुझे दिए हैं, उनमें समस्त देश में वे तुझको घेर लेंगे। 53उस घेराबन्दी की घोर विपत्ति में, जो तेरे शत्रु तुझ पर ढाहेंगे, तू अपनी देह के फल को, प्रभु परमेश्वर द्वारा दिए गए अपने पुत्र-पुत्रियों के मांस को खाएगा।#2 रा 6:28-29; यिर 19:9; शोक 4:10 54तेरा अत्यन्त कोमल और सुकुमार पुरुष भी अपने भाई, अपनी प्राणप्रिय पत्नी और अपने बचे हुए बच्चों पर क्रूर दृष्टि डालेगा। 55वह उनमें से किसी को भी अपने बच्चों का मांस, जो वह खाएगा, नहीं देगा; क्योंकि उस घेराबन्दी की घोर विपत्ति में, जो तेरे शत्रु तेरे समस्त नगरों में तुझ पर ढाहेंगे, उसके पास कुछ भी भोजन-वस्तु नहीं होगी। 56तेरी अत्यन्त कोमल और सुकुमार स्त्री, जो अपनी कोमलता और सुकुमारता के कारण धरती पर पैर रखते हुए डरती है, अपने प्राणप्रिय पति, पुत्र और पुत्री पर क्रूर दृष्टि डालेगी। 57वह अपनी आंवल झिल्ली और अपने उत्पन्न किए हुए बच्चों को उनसे छिपाकर रखेगी, जिससे वह भोजन-वस्तु के अभाव में घेराबन्दी और विपत्ति के समय, जो तेरे शत्रु तेरे समस्त नगरों में तुझ पर ढाहेंगे, उनको खा सके।
58‘यदि तू इस पुस्तक में लिखित व्यवस्था के सब वचनों का पालन नहीं करेगा, उनके अनुसार कार्य नहीं करेगा, और अपने प्रभु परमेश्वर के महिमामय और आतंकपूर्ण नाम से नहीं डरेगा 59तो प्रभु तुझ पर और तेरे वंश पर असाधारण महामारियाँ ढाहेगा। वह भयंकर और दीर्घ महामारियों से, असाध्य और दीर्घ रोगों से तुझ को पीड़ित करेगा। 60वह मिस्र देश के समस्त रोग, जिनसे तू डरता है, तुझ पर पुन: लगाएगा, और ये रोग तुझ से चिपके रहेंगे। 61इनके अतिरिक्त सब प्रकार की बीमारी, महामारी, जिसका उल्लेख व्यवस्था की इस पुस्तक में नहीं हुआ है, प्रभु तुझ पर डालेगा, जब तक तू नष्ट नहीं हो जाएगा। 62यद्यपि तेरे लोग आकाश के तारों के समान असंख्य हैं, पर वे मुट्ठी भर शेष रह जाएंगे, क्योंकि तूने अपने प्रभु परमेश्वर की वाणी नहीं सुनी। 63जैसे प्रभु तेरे लोगों की भलाई करने और उनकी जनसंख्या बढ़ाने में हर्षित होता था, वैसे ही वह उनको मिटाने में, नष्ट करने में हर्षित होगा। जिस भूमि पर तू अधिकार करने जा रहा है, उस पर से तू उखाड़ दिया जाएगा। 64प्रभु तुझको पृथ्वी के एक सीमांत से दूसरे सीमांत तक, पृथ्वी की विभिन्न जातियों में तितर-बितर कर देगा। वहाँ तू उन पराए देवताओं की लकड़ी और पत्थर की मूर्तियों की पूजा करेगा जिन्हें न तू जानता है और न तेरे पूर्वज जानते थे। 65उन राष्ट्रों में तुझे आराम नहीं मिलेगा, और न पैर रखने के लिए विश्राम-स्थल! प्रभु वहाँ तुझे कांपता हुआ हृदय, धुंधली आंखें और क्षीण प्राण प्रदान करेगा। 66तेरा जीवन कच्चे धागे से बन्धा तेरे सामने सन्देह में लटकता रहेगा। तू रात और दिन भय से कांपता रहेगा। तुझे अपने जीवन की सुरक्षा पर भरोसा नहीं होगा। 67जो दृश्य तेरी आंखें देखेंगी, जो भय तेरा हृदय अनुभव करेगा, उसके कारण तू सबेरे कहेगा, “काश! सन्ध्या होती” और सन्ध्या के समय कहेगा, “काश! सबेरा होता।” #अय्य 7:4 68प्रभु तुझ को जलयानों में मिस्र देश वापस ले जाएगा, यद्यपि मैंने कहा था कि तू फिर कभी उस मार्ग पर नहीं लौटेगा। वहाँ तू स्वयं को गुलाम स्त्री-पुरुष के रूप में अपने शत्रुओं के हाथ बेचना चाहेगा, किन्तु तुझे खरीदने वाला कोई नहीं होगा।’#हो 8:13
वर्तमान में चयनित:
व्यवस्था-विवरण 28: HINCLBSI
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