‘अत: तुम मेरे इन शब्दों को अपने हृदय और प्राण में धारण करना! उन्हें चिह्न-स्वरूप अपने हाथ पर बांधना। वे तुम्हारी दोनों आंखों के मध्य शिरोबंद होंगे। तुम उन्हें अपने बच्चों को सिखाना। जब तुम अपने घर में बैठते हो, अथवा मार्ग पर चलते हो, जब तुम लेटते हो अथवा उठते हो, तब तुम, इन्हीं आज्ञाओं की चर्चा करना। तुम उन्हें अपने घर की चौखट के बाजुओं और नगर के प्रवेश-द्वारों पर लिखना।
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