जब राजा सुलेमान ने अपनी प्रार्थना समाप्त की तब आकाश से आग गिरी और उसने अग्नि-बलि तथा पशु-बलि को भस्म कर दिया, और प्रभु के तेज से मन्दिर परिपूर्ण हो गया। पुरोहित प्रभु के भवन में प्रवेश न कर सके; क्योंकि प्रभु के तेज से उसका भवन भरा हुआ था। जब इस्राएलियों ने देखा कि आकाश से आग गिरी और प्रभु के तेज से मन्दिर परिपूर्ण हो गया, तब उन्होंने फर्श की ओर सिर झुकाकर प्रभु की साष्टांग वन्दना की और उसकी स्तुति करते हुए यह गीत गाया, ‘क्योंकि प्रभु भला है, और उसकी करुणा सदा की है।’ तत्पश्चात् राजा तथा उसके साथ के सब लोगों ने प्रभु के सम्मुख पशुओं की बलि अर्पित की। राजा सुलेमान ने बलि में प्रभु को बाईस हजार बछड़े और एक लाख बीस हजार भेड़ें चढ़ाईं। इस प्रकार राजा और सब इस्राएली लोगों ने परमेश्वर के भवन को उस की महिमा के लिए अर्पित किया। पुरोहित अपने निर्धारित स्थान पर सेवा-कार्य के लिए खड़े थे। लेवीय उपपुरोहित भी अपने-अपने हाथों में वाद्य-यन्त्र लिए हुए खड़े थे। ये वाद्य-यन्त्र राजा दाऊद ने प्रभु की महिमा के लिए, उसके नाम का गुणगान करने के लिए बनाए थे। जब राजा दाऊद का यह स्तुति-गान ‘प्रभु की करुणा सदा की है’ होता था, तब उपपुरोहित वाद्य-यन्त्र बजाते थे। अत: उपपुरोहितों ने वाद्य-यन्त्र बजाए। दूसरी ओर पुरोहित तुरहियां बजाते रहे। सब इस्राएली पास खड़े रहे। राजा सुलेमान ने मध्यवर्ती आंगन को भी प्रभु की महिमा के लिए अर्पित किया। यह प्रभु के भवन के सम्मुख था। जो कांस्य वेदी सुलेमान ने बनाई थी, वह छोटी थी। उस पर अग्नि-बलि, अन्न-बलि और सहभागिता-बलि एक साथ चढ़ाना सम्भव न था। इसलिए राजा सुलेमान ने मध्यवर्ती आंगन में अग्नि-बलि और सहभागिता-बलि की चर्बी चढ़ाई। राजा सुलेमान ने उस समय सात दिन तक यात्रा-पर्व मनाया। पर्व में हमात घाटी की सीमा से मिस्र देश की बरसाती नदी तक के इस्राएलियों का विशाल जन-समूहएकत्र हुआ। आठवें दिन उन्होंने महा-धर्मसभा की; क्योंकि उन्होंने सात दिन तक वेदी का अर्पण और यात्रा-पर्व मनाया था। सातवें महीने की तेईस तारीख को राजा सुलेमान ने लोगों को विदा किया, और लोग अपने-अपने घर को लौट गए। उनके हृदय आनन्द और हर्ष से भरे हुए थे कि प्रभु ने अपने सेवक दाऊद और राजा सुलेमान तथा अपने निज लोग इस्राएलियों के लिए कितने भले कार्य किए हैं। इस प्रकार राजा सुलेमान ने प्रभु के भवन तथा अपने राजमहल का निर्माण-कार्य समाप्त किया। उसने प्रभु के भवन में तथा अपने राजमहल में अनेक निर्माण-कार्यों की योजना बनाई थी। उसने सफलतापूर्वक अपनी योजना को पूरा किया। प्रभु ने रात में सुलेमान को दर्शन दिया, और उससे कहा, ‘मैंने तेरी प्रार्थना सुनी, मैंने इस स्थान को अपने लिए बलि-भवन के रूप में चुना है। जब मैं आकाश के झरोखे बन्द कर दूंगा, और इस देश में वर्षा नहीं होगी; अथवा जब मेरे आदेश से टिड्डियां इस देश की फसल चट कर जाएंगी, अथवा जब मैं अपने निज लोगों के मध्य महामारियां भेजूंगा, तब यदि मेरे निज लोग, जो मेरे अपने लोग हैं, जिनको मैंने अपना नाम दिया है, स्वयं को विनम्र और दीन बनाएंगे, मुझसे प्रार्थना करेंगे, और मेरे मुख का दर्शन प्राप्त करने का प्रयत्न करेंगे, और अपने बुरे आचरण को छोड़ देंगे, तो मैं स्वर्ग से उनकी प्रार्थना को सुनूंगा, और उनके पाप क्षमा कर दूंगा, मैं उनके देश को रोग-मुक्त कर दूंगा।
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