2 इतिहास 4
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1उसने पीतल की एक वेदी बनाई। वह नौ मीटर चौड़ी और नौ मीटर लम्बी थी। वह साढ़े चार मीटर ऊंची थी।#नि 27:1
2तत्पश्चात् उसने ढली हुई धातु का एक हौज बनाया। वह गोलाकार था। वह एक किनारे से दूसरे किनारे तक साढ़े चार मीटर चौड़ा था। वह सवा दो मीटर ऊंचा था। उसकी सम्पूर्ण परिधि साढ़े तेरह मीटर थी।#1 रा 7:23-26 3हौज के किनारे के नीचे, उसकी बाहरी ओर, उसकी सम्पूर्ण परिधि में बछड़ों की आकृतियां बनी थीं। ये दो कतारों में थीं। जब हौज को ढाला गया था तब उसके साथ इन्हें भी ढाला गया था। 4हौज बारह बैलों पर स्थित था। तीन बैलों के मुंह उत्तर की ओर, तीन बैलों के मुंह पश्चिम की ओर, तीन बैलों के मुंह दक्षिण की ओर, और तीन बैलों के मुंह पूर्व की ओर थे। हौज उन पर रखा गया था। बैलों का पिछला भाग भीतर की ओर था। 5हौज की धातु की मोटाई प्राय: आठ सेंटीमीटर थी। उसका किनारा, कटोरे के किनारे के समान, सोसन-पुष्प के आकार का था। उसमें प्राय: एक लाख पैंतीस हजार लिटर पानी समाता था।
6उसने धोने के काम के लिए दस कण्डाल भी बनाए। उसने भवन की दक्षिण दिशा में पांच कण्डाल, और उत्तर दिशा में पांच कण्डाल रखे। अग्नि-बलि में चढ़ाई जाने वाली प्रत्येक वस्तु को बलि के पूर्व कण्डाल के पानी में धोया जाता था। हौज के पानी में पुरोहित स्नान करते थे।#1 रा 7:38-51
7उसने निर्देश के अनुसार सोने के दस दीपाधार बनाए, और उनको मन्दिर में रख दिया: पांच दाहिनी ओर और पांच बाईं ओर। 8उसने दस मेजें भी बनवाईं और उनको मन्दिर में रख दिया: पांच दाहिनी ओर और पांच बाईं ओर। इनके अतिरिक्त उसने रक्त छिड़कने के लिए सोने के सौ पात्र भी बनवाए।
9उसने पुरोहितों का आंगन, बड़ा आंगन, तथा आंगन के दरवाजे भी बनवाए, और उन दरवाजों को पीतल से मढ़ दिया। 10उसने हौज को भवन की दाहिनी ओर, दक्षिण-पूर्व दिशा में रखा।
11हूराम-अबी ने राख उठाने के पात्र, फावड़ियां और चिलमचियां बनाईं। इस प्रकार हूराम ने काम पूरा किया। उसने राजा सुलेमान के आदेश के अनुसार प्रभु के भवन के लिए ये-ये वस्तुएं बनाई थीं : 12दो स्तम्भ; स्तम्भों के शिखर पर दो गोलाकार स्तम्भ-शीर्ष; स्तम्भ-शीर्षों को ढकने के लिए दो जालियां; 13दोनों जालियों के लिए चार सौ अनार। उसने स्तम्भ-शीर्षों को ढकने के लिए अनारों की जालियां चारों ओर दो कतारों में लगाई थीं। 14उसने आधार स्तम्भ भी बनाए। उन आधारों पर कण्डाल, 15एक हौज और उसके किनारे, नीचे की ओर बारह बैल। 16यह सब सामग्री-राख उठाने के पात्र, फावड़ियां, कांटे तथा अन्य सब पात्र जिनको हूराम-अबी ने प्रभु के भवन के लिए राजा सुलेमान के आदेश से बनाया, झिलमिलाते पीतल की थी। 17राजा सुलेमान ने उनको यर्दन के मैदान में ढाला था। ढलाई-घर सूक्कोत और सारतान नगरों के मध्य में था। 18राजा सुलेमान ने यह सब सामग्री इतनी अधिक मात्रा में बनाई थी, कि उसने पीतल की तौल का हिसाब नहीं रखा।
19राजा सुलेमान ने परमेश्वर के भवन की ये वस्तुएं भी बनाईं: स्वर्ण वेदी और मेज, जिसपर ‘प्रभु-भेंट की रोटी’ रखी जाती थी; 20शुद्ध सोने के दीपाधार और उनके शुद्ध सोने के दीये, जो निर्धारित निर्देश के अनुसार पवित्र अन्तर्गृह में निरन्तर जलते रहते थे; 21पुष्प, दीपक और चिमटे−ये भी कुन्दन के थे; 22कैंचियां, रक्त छिड़कने के पात्र, धूपदान और करछे−ये शुद्ध सोने के थे; परमपवित्र स्थान के दरवाजों तथा मध्यभाग के दरवाजों के कब्जे−ये भी सोने के थे।
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