शहरपनाह का निर्माण हो चुका था, और मैं उसके प्रवेश-द्वारों में दरवाजे भी लगा चुका था। द्वारपालों, मन्दिर के गायकों और उप-पुरोहितों की नियुिक्त की जा चुकी थी। अब मैंने अपने भाई हनानी और राजगढ़ के प्रशासक हनन्याह के हाथ में यरूशलेम नगर का प्रबन्ध सौंप दिया। हनन्याह अनेक लोगों से कहीं अधिक विश्वसनीय और परमेश्वर-भक्त व्यक्ति था।