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सभा-उपदेशक 1:18
पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)
अधिक बुद्धि अधिक कष्ट की जननी है। ज्ञान बढ़ानेवाला अपने दु:ख को भी बढ़ाता है।
तुलना
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2
सभा-उपदेशक 1:9
जो बात हो चुकी है वह फिर होगी; जो बन चुकी है वह फिर बनेगी; इस सूर्य के नीचे कुछ भी नया नहीं है।
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3
सभा-उपदेशक 1:8
सब बातें थकानेवाली हैं, मनुष्य उनका वर्णन नहीं कर सकता। आंखें देखकर भी तृप्त नहीं होतीं, और न कान सुनकर ही संतुष्ट होते हैं।
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सभा-उपदेशक 1:2-3
सभा-उपदेशक यह कहता है: सब व्यर्थ है, सब निस्सार है। निस्सन्देह सब व्यर्थ है, सब निस्सार है; सब कुछ व्यर्थ है! जो मेहनत मनुष्य इस धरती पर करता है, उसे उससे क्या प्राप्त होता है?
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5
सभा-उपदेशक 1:14
जो कुछ सूर्य के नीचे धरती पर होता है, वह सब मैंने देखा है। मुझे अनुभव हुआ कि यह सब निस्सार है− यह मानो हवा को पकड़ना है।
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6
सभा-उपदेशक 1:4
एक पीढ़ी गुजरती है, और दूसरी पीढ़ी आती है, पर पृथ्वी ज्यों की त्यों सदा बनी रहती है।
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7
सभा-उपदेशक 1:11
प्राचीनकाल की बातों की स्मृति वर्तमान काल में शेष नहीं रहती, और न हमारे पश्चात् आनेवाले लोगों को भविष्य की बातें याद रहेंगी।
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8
सभा-उपदेशक 1:17
अत: मैंने अपना मन यह जानने में लगाया कि बुद्धि क्या है, पागलपन और मूर्खता क्या है। तब मुझे ज्ञात हुआ कि यह भी हवा को पकड़ना है। क्योंकि−
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