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मत्ती मत्ती रचित सुसमाचार

मत्ती रचित सुसमाचार
पारंपरिक रूप से यह माना जाता है कि मत्ती रचित सुसमाचार प्रभु यीशु मसीह के एक शिष्य मत्ती द्वारा लिखा गया है, जिसे लेवी भी कहा जाता है (देखें मरकुस 2:14; लूका 5:27)। मत्ती एक कर वसूलनेवाला था जिसने अपना कार्य छोड़कर यीशु का अनुसरण करने का निर्णय लिया (9:9–13)।
मत्ती रचित सुसमाचार को यद्यपि यहूदी पाठकों को ध्यान में रखते हुए लिखा गया, परंतु इसका संदेश समस्त मानवजाति के लिए है। इस सुसमाचार का मुख्य उद्देश्य यह प्रमाणित करना है कि यीशु मसीह के रूप में उस उद्धारकर्ता का आगमन हो गया है जिसकी प्रतिज्ञा पुराने नियम की भविष्यवाणियों में की गई थी।
मत्ती ने इस पूरे सुसमाचार को बहुत सुंदर रीति से व्यवस्थित किया है। इसमें वह यीशु को मूसा के समान एक महान शिक्षक के रूप में प्रस्तुत करता है जिसके पास परमेश्‍वर की व्यवस्था और परमेश्‍वर के राज्य के विषय में सिखाने का अधिकार है। बाइबल की पहली पाँच पुस्तकों के समान मत्ती अपने सुसमाचार को पाँच महान उपदेशों के इर्द-गिर्द बुनता है : (1) पहाड़ी उपदेश, जो परमेश्‍वर के राज्य में प्रवेश करनेवालों के चरित्र, कार्यों और विशेषाधिकारों का वर्णन करता है (अध्याय 5—7); (2) बारह शिष्यों को उनके सेवाकार्य के लिए दिए गए निर्देश (अध्याय 10); (3) स्वर्ग के राज्य की शिक्षा देनेवाले दृष्‍टांत (अध्याय 13); (4) सच्‍ची शिष्यता का अर्थ समझानेवाली शिक्षाएँ (अध्याय 18); और (5) वर्तमान युग की समाप्‍ति और स्वर्ग के राज्य के आगमन से संबंधित शिक्षा (अध्याय 24—25)।
इस पुस्तक की समाप्‍ति महान आदेश (28:18–20) के साथ होती है, जिसमें यीशु अपने अनुयायियों को पूरे जगत में जाने, यीशु की शिक्षाओं को सिखाने, बपतिस्मा देने और शिष्य बनाने का आदेश देता है।
रूपरेखा
1. यीशु मसीह की वंशावली, उसका जन्म और आरंभिक वर्ष 1:1—2:23
2. यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले का सेवाकार्य 3:1–12
3. यीशु मसीह का बपतिस्मा और उसकी परीक्षा 3:13—4:11
4. गलील क्षेत्र में यीशु का सेवाकार्य 4:12—18:35
5. गलील से यरूशलेम की ओर यात्रा 19:1—20:34
6. यरूशलेम में यीशु का विजय प्रवेश और अंतिम दुःखभोग सप्‍ताह 21:1—27:66
7. यीशु मसीह का पुनरुत्थान और महान आदेश 28:1–20

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