कुलुस्सियों कुलुस्सियों के नाम प्रेरित पौलुस की पत्री
कुलुस्सियों के नाम प्रेरित पौलुस की पत्री
प्रेरित पौलुस ने कुलुस्सियों के नाम इस पत्री को कारावास से लिखा था। कुलुस्से एक छोटा सा नगर था जो इफिसुस नगर के पूर्व में स्थित था। पूर्व और पश्चिम के व्यापार के मुख्य मार्ग पर स्थित होने कारण इस नगर में अनेक विचारधाराओं के लोग थे। इस नगर की कलीसिया की स्थापना इपफ्रास द्वारा की गई थी, और पौलुस कभी वहाँ नहीं गया था (1:4–8; 2:1)। संभव है कि जब पौलुस ने अपनी तीसरी प्रचार यात्रा के दौरान तीन वर्ष इफिसुस में बिताए थे, तो उस समय इपफ्रास पौलुस के संपर्क में आया और मसीही बन गया। बाद में उसने जाकर कुलुस्से नगर में प्रचार किया जिसके परिणामस्वरूप वहाँ की कलीसिया की स्थापना हुई।
कलीसिया स्थापित होने के कुछ समय के पश्चात् पौलुस को इपफ्रास से पता चला था कि उस कलीसिया में कुछ झूठे शिक्षक आ गए हैं जो यीशु मसीह के कार्य और व्यक्तित्व के महत्त्व को कम कर रहे थे, और कुछ धर्म-विधियों, रहस्यवादी ज्ञान, और कठोर नियमों का पालन करने पर ज़ोर दे रहे थे। कुलुस्से की कलीसिया में खतरनाक रूप से पनप रही इस विधर्मी शिक्षा के प्रत्युत्तर के रूप में पौलुस मसीह पर केंद्रित इस पत्री को लिखता है, जिसमें वह मसीह की श्रेष्ठता और उद्धार की परिपूर्णता पर बल देता है। यीशु मसीह, जो सारी सृष्टि का कर्ता है और कलीसिया का सिर है, वह प्रत्येक विश्वासी की हर आत्मिक और व्यावहारिक ज़रूरत को पूरा करने के लिए पर्याप्त है।
पत्री स्पष्ट रूप से दो मुख्य भागों में विभाजित है : पहले भाग में मसीह संबंधी सिद्धांत हैं (अध्याय 1 और 2), और दूसरे भाग में मसीह की अधीनता में व्यावहारिक जीवन जीने के विषय में निर्देश हैं (अध्याय 3 और 4)।
रूपरेखा
1. अभिवादन और धन्यवाद की प्रार्थना 1:1–14
2. मसीह की श्रेष्ठता 1:15—2:3
3. मसीह में स्वतंत्रता 2:4–23
4. मसीह में नया जीवन 3:1—4:6
5. उपसंहार 4:7–18
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