2 तीमुथियुस तीमुथियुस के नाम प्रेरित पौलुस की दूसरी पत्री
तीमुथियुस के नाम प्रेरित पौलुस की दूसरी पत्री
तीमुथियुस के नाम प्रेरित पौलुस की दूसरी पत्री का लेखक भी पौलुस था और इस पत्री को भी उसने तीमुथियुस को संबोधित करते हुए कारावास से ही लिखा। यह पत्री मुख्यतः एक व्यक्तिगत पत्री थी जिसमें पौलुस अपने आत्मिक पुत्र तीमुथियुस को कई विषयों पर सलाह देता है। इस पत्री के लिखे जाने के समय वह कारावास में अकेला था और केवल लूका को छोड़ और कोई उसके पास नहीं था (4:11), और वह चाहता था कि तीमुथियुस शीघ्र उसके पास आ जाए (4:9, 21)। (तीमुथियुस के विषय में और अधिक जानकारी के लिए तीमुथियुस के नाम प्रेरित पौलुस की पहली पत्री की भूमिका देखें।)
कारावास में कष्टों को सहने के बावजूद पौलुस रोमी सताव के बीच कलीसियाओं के विषय में चिंतित था। इस संदर्भ में पौलुस तीमुथियुस को निर्देश देता है कि वह सुसमाचार की रखवाली करे (1:14), उसमें दृढ़ बना रहे (3:14), उसका प्रचार करता रहे (4:2), और यदि आवश्यकता हो तो सेवाकार्य के लिए दुःख भी उठाए (1:8; 2:3)। इस पत्री का मुख्य विषय सहनशील और दृढ़ बने रहने का प्रोत्साहन है। पौलुस तीमुथियुस को प्रोत्साहित करता है कि लगातार प्रचार करता रहे, सच्ची शिक्षाओं को थामे रहे, तथा कष्टों और विरोध के बीच शिक्षक और प्रचारक होने के अपने कर्त्तव्य को पूरा करे। इन सब में पौलुस सताव के बीच अपने विश्वास, धीरज, प्रेम, सहनशीलता और कष्टों का उदाहरण देते हुए तीमुथियुस को अंत तक विश्वासयोग्य बने रहने (4:6–8), तथा “मूर्खता और अज्ञानता के विवादों” (2:23) से दूर रहने की सलाह देता है।
रूपरेखा
1. भूमिका 1:1–2
2. तीमुथियुस के लिए पौलुस का धन्यवाद और आदेश 1:3–18
3. तीमुथियुस के लिए निर्देश और चेतावनी 2:1—3:17
4. पौलुस की दशा और अंतिम टिप्पणियाँ 4:1–18
5. अंतिम अभिवादन 4:19–22
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