1 थिस्सलुनीकियों थिस्सलुनीकियों के नाम प्रेरित पौलुस की पहली पत्री
थिस्सलुनीकियों के नाम प्रेरित पौलुस की पहली पत्री
थिस्सलुनीकियों की पहली पत्री का लेखक प्रेरित पौलुस है (देखें 1:1; 2:18), जिसे उसने लगभग 51 ईस्वी में कुरिंथुस नगर से लिखा था। थिस्सलुनीके नगर रोमी साम्राज्य के मकिदुनिया प्रांत की राजधानी था, और पौलुस ने फिलिप्पी नगर से आने के बाद वहाँ सुसमाचार का प्रचार करके कलीसिया की नींव डाली थी। परंतु यहाँ भी उन यहूदियों ने पौलुस का विरोध करना आरंभ कर दिया था जो गैर-यहूदियों के बीच सुसमाचार के प्रचार की उसकी सफलता से जलते थे। इस कारण पौलुस को थिस्सलुनीके नगर को छोड़कर बिरीया नगर को जाना पड़ा (प्रेरितों 17:1–10)। बाद में कुरिंथुस पहुँचने पर पौलुस को अपने सहकर्मी तीमुथियुस से थिस्सलुनीके नगर की कलीसिया की दशा का पता चला।
अतः थिस्सलुनीकियों की पहली पत्री नए विश्वासियों को उनके क्लेशों में उत्साहित करने (3:3-5); उन्हें भक्तिपूर्ण जीवन जीने का निर्देश देने (4:1-12); और मसीह में सो चुके विश्वासियों के भविष्य के प्रति उन्हें आश्वस्त करने (4:13-18) के लिए लिखी गई थी।
यद्यपि पौलुस अपनी इस पत्री में कई विषयों पर बात करता है, फिर भी अंत समय की घटनाओं का विषय थिस्सलुनीकियों को लिखी पौलुस की दोनों पत्रियों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। थिस्सलुनीकियों की पहली पत्री का प्रत्येक अध्याय मसीह के पुनरागमन के उल्लेख के साथ समाप्त होता है, और अध्याय 4 इसका विस्तार से वर्णन करता है। अतः पौलुस इस पत्री में मसीह के पुनरागमन से संबंधित ऐसे कई प्रश्नों का उत्तर देता है जो उस कलीसिया में उठ खड़े हुए थे, जैसे मसीह का पुनरागमन कब होगा? क्या मसीह में सो चुके विश्वासी पुनरागमन के समय अनंत जीवन के भागी होंगे? इन प्रश्नों का उत्तर देने के द्वारा पौलुस विश्वासियों को विश्वास और धीरज के साथ यीशु मसीह की प्रतीक्षा करते हुए अपने-अपने कार्यों को करने की सलाह देता है।
रूपरेखा
1. भूमिका 1:1
2. थिस्सलुनीके के विश्वासियों के लिए परमेश्वर का धन्यवाद और स्तुति 1:2—3:13
3. मसीही आचरण के विषय में उपदेश 4:1–12
4. मसीह के पुनरागमन से संबंधित शिक्षा 4:13—5:11
5. कलीसियाई जीवन के विषय में उपदेश 5:12–22
6. अंतिम प्रार्थना और अभिवादन 5:23–28
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