YouVersion Logo
Search Icon

अय्यूब 35

35
1एलीहू कहता चला गया। वह बोला:
2“अय्यूब, यह तेरे लिये कहना उचित नहीं की
‘मैं अय्यूब, परमेश्वर के विरुद्ध न्याय पर है।’
3अय्यूब, तू परमेश्वर से पूछता है कि
‘हे परमेश्वर, मेरा पाप तुझे कैसे हानि पहुँचाता है?
और यदि मैं पाप न करुँ तो कौन सी उत्तम वस्तु मुझको मिल जाती है?’
4“अय्यूब, मैं (एलीहू) तुझको और तेरे मित्रों को जो यहाँ तेरे साथ हैं उत्तर देना चाहता हूँ।
5अय्यूब! ऊपर देख
आकाश में दृष्टि उठा कि बादल तुझसे अधिक उँचें हैं।
6अय्यूब, यदि तू पाप करें तो परमेश्वर का कुछ नहीं बिगड़ता,
और यदि तेरे पाप बहुत हो जायें तो उससे परमेश्वर का कुछ नहीं होता।
7अय्यूब, यदि तू भला है तो इससे परमेश्वर का भला नहीं होता,
तुझसे परमेश्वर को कुछ नहीं मिलता।
8अय्यूब, तेरे पाप स्वयं तुझ जैसे मनुष्य को हानि पहुँचाते हैं,
तेरे अच्छे कर्म बस तेरे जैसे मनुष्य का ही भला करते हैं।
9“लोगों के साथ जब अन्याय होता है और बुरा व्यवहार किया जाता है,
तो वे मदद को पुकारते हैं, वे बड़े बड़ों की सहायता पाने को दुहाई देते हैं।
10किन्तु वे परमेश्वर से सहायता नहीं माँगते।
वे नही कहते हैं कि, ‘परमेश्वर जिसने हम को रचा है वह कहाँ है? परमेश्वर जो हताश जन को आशा दिया करता है वह कहाँ है?’
11वे ये नहीं कहा करते कि,
‘परमेश्वर जिसने पशु पक्षियों से अधिक बुद्धिमान मनुष्य को बनाया है वह कहाँ है?’
12“किन्तु बुरे लोग अभिमानी होते है,
इसलिये यदि वे परमेश्वर की सहायता पाने को दुहाई दें तो उन्हें उत्तर नहीं मिलता है।
13यह सच है कि परमेश्वर उनकी व्यर्थ की दुहाई को नहीं सुनेगा।
सर्वशक्तिशाली परमेश्वर उन पर ध्यान नहीं देगा।
14अय्यूब, इसी तरह परमेश्वर तेरी नहीं सुनेगा,
जब तू यह कहता है कि वह तुझको दिखाई नहीं देता
और तू उससे मिलने के अवसर की प्रतीक्षा में है,
और यह प्रमाणित करने की तू निर्दोष है।
15“अय्यूब, तू सोचता है कि परमेश्वर दुष्टों को दण्ड नहीं देता है
और परमेश्वर पाप पर ध्यान नहीं देता है।
16इसलिये अय्यूब निज व्यर्थ बातें करता रहता है।
अय्यूब ऐसा व्यवहार कर रहा है कि जैसे वह महत्वपूर्ण है।
किन्तु यह देखना कितना सरल है कि अय्यूब नहीं जानता कि वह क्या कह रहा है।”

Currently Selected:

अय्यूब 35: HERV

Highlight

Share

Copy

None

Want to have your highlights saved across all your devices? Sign up or sign in

Videos for अय्यूब 35