YouVersion Logo
Search Icon

अय्यूब 32

32
एलीहू का तर्क
(32:1—37:24)
1तब उन तीनों पुरुषों ने यह देखकर कि अय्यूब अपनी दृष्‍टि में निर्दोष है उसको उत्तर देना छोड़ दिया। 2तब बूजी बारकेल का पुत्र एलीहू जो राम के कुल का था, उसका क्रोध भड़क उठा। अय्यूब पर उसका क्रोध इसलिये भड़क उठा कि उसने परमेश्‍वर को नहीं, अपने ही को निर्दोष ठहराया। 3फिर अय्यूब के तीनों मित्रों के विरुद्ध भी उसका क्रोध इस कारण भड़का कि वे अय्यूब को उत्तर न दे सके, तौभी उसको दोषी ठहराया। 4एलीहू अपने को उन से छोटा जानकर अय्यूब की बातों का अन्त होने की बाट जोहता रहा। 5परन्तु जब एलीहू ने देखा कि ये तीनों पुरुष कुछ उत्तर नहीं देते, तब उसका क्रोध भड़क उठा।
6तब बूजी बारकेल का पुत्र एलीहू कहने लगा,
“मैं तो जवान हूँ, और तुम बहुत बूढ़े हो;
इस कारण मैं रुका रहा, और अपना
विचार तुम को बताने से डरता था।
7मैं सोचता था, ‘जो आयु में बड़े हैं वे ही
बात करें,
और जो बहुत वर्ष के हैं, वे ही बुद्धि सिखाएँ।’
8परन्तु मनुष्य में आत्मा तो है ही,
सर्वशक्‍तिमान की दी हुई साँस, जो उन्हें
समझने की शक्‍ति देता है।
9जो बुद्धिमान हैं वे बड़ी आयु के लोग ही नहीं,
और न्याय के समझनेवाले बूढ़े ही
नहीं होते।
10इसलिये मैं कहता हूँ, ‘मेरी भी सुनो#32:10 मूल में, सुन ;
मैं भी अपना विचार बताऊँगा।’
11“मैं तो तुम्हारी बातें सुनने को ठहरा रहा,
मैं तुम्हारे प्रमाण सुनने के लिये ठहरा रहा;
जब कि तुम कहने के लिये शब्द ढूँढ़ते रहे।
12मैं चित्त लगाकर तुम्हारी सुनता रहा।
परन्तु किसी ने अय्यूब के पक्ष का खण्डन
नहीं किया,
और न उसकी बातों का उत्तर दिया।
13तुम लोग मत समझो कि हम को ऐसी
बुद्धि मिली है,
कि उसका खण्डन मनुष्य नहीं परमेश्‍वर ही
कर सकता है।
14जो बातें उस ने कहीं वह मेरे विरुद्ध नहीं कहीं,
और न मैं तुम्हारी सी बातों से उसको
उत्तर दूँगा।
15“वे विस्मित हुए, और फिर कुछ उत्तर
नहीं दिया;
उन्होंने बातें करना छोड़ दिया#32:15 मूल में, बातों ने उन से कूच किया
16इसलिये कि वे कुछ नहीं बोलते और चुपचाप
खड़े हैं,
क्या इस कारण मैं ठहरा रहूँ?
17परन्तु अब मैं भी कुछ कहूँगा#32:17 मूल में, अपना अंश उत्तर दूँगा ,
मैं भी अपना विचार प्रगट करूँगा।
18क्योंकि मेरे मन में बातें भरी हैं,
और मेरी आत्मा मुझे उभार रही है।
19मेरा मन उस दाखमधु के समान है, जो
खोला न गया हो;
वह नई कुप्पियों के समान फटा चाहता है।
20शान्ति पाने के लिये मैं बोलूँगा;
मैं मुँह खोलकर उत्तर दूँगा।
21न मैं किसी आदमी का पक्ष करूँगा,
और न मैं किसी मनुष्य की चापलूसी
करूँगा।
22क्योंकि मुझे तो चापलूसी करना आता
ही नहीं
नहीं तो मेरा सिरजनहार क्षण भर में मुझे
उठा लेता।

Highlight

Share

Copy

None

Want to have your highlights saved across all your devices? Sign up or sign in