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न्यायियों 2

2
बोकीम में यहोवा का दूत
1यहोवा का दूत गिलगाल से बोकीम को जाकर कहने लगा, “मैं ने तुम को मिस्र से ले आकर इस देश में पहुँचाया है, जिसके विषय में मैं ने तुम्हारे पुरखाओं से शपथ खाई थी। और मैं ने कहा था, ‘जो वाचा मैं ने तुम से बाँधी है, उसे मैं कभी न तोड़ूँगा; 2इसलिये तुम इस देश के निवासियों से वाचा न बाँधना; तुम उनकी वेदियों को ढा देना।#निर्ग 34:12,13; व्य 7:2–5 ’ परन्तु तुम ने मेरी बात नहीं मानी। तुम ने ऐसा क्यों किया है? 3इसलिये मैं कहता हूँ, ‘मैं उन लोगों को तुम्हारे सामने से न निकालूँगा; और वे तुम्हारे पांजर में काँटे, और उनके देवता तुम्हारे लिये फंदा ठहरेंगे’।” 4जब यहोवा के दूत ने सारे इस्राएलियों से ये बातें कहीं, तब वे लोग चिल्‍ला चिल्‍लाकर रोने लगे। 5और उन्होंने उस स्थान का नाम बोकीम#2:5 अर्थात्, रोनेवाले रखा। और वहाँ उन्होंने यहोवा के लिये बलि चढ़ाई।
यहोशू की मृत्यु
6जब यहोशू ने लोगों को विदा किया था, तब इस्राएली देश को अपने अधिकार में कर लेने के लिये अपने अपने निज भाग पर गए। 7और यहोशू के जीवन भर, और उन वृद्ध लोगों के जीवन भर जो यहोशू के मरने के बाद जीवित रहे और देख चुके थे कि यहोवा ने इस्राएल के लिये कैसे कैसे बड़े काम किए हैं, इस्राएली लोग यहोवा की सेवा करते रहे। 8तब यहोवा का दास नून का पुत्र यहोशू एक सौ दस वर्ष का होकर मर गया। 9और उसको तिम्नथेरेस में जो एप्रैम के पहाड़ी देश में गाश नामक पहाड़ के उत्तरी ओर है, उसी के भाग में मिट्टी दी गई।#यहो 19:49,50 10और उस पीढ़ी के सब लोग भी अपने अपने पितरों में मिल गए; तब उसके बाद जो दूसरी पीढ़ी हुई उसके लोग न तो यहोवा को जानते थे और न उस काम को जो उसने इस्राएल के लिये किया था।
इस्राएलियों द्वारा यहोवा को त्याग देना
11इसलिये इस्राएली वह करने लगे जो यहोवा की दृष्‍टि में बुरा है, और बाल नामक देवताओं की उपासना करने लगे; 12वे अपने पूर्वजों के परमेश्‍वर यहोवा को, जो उन्हें मिस्र देश से निकाल लाया था, त्यागकर पराये देवताओं, अर्थात् आसपास के लोगों के देवताओं की उपासना करने लगे, और उन्हें दण्डवत् किया; और यहोवा को रिस दिलाई। 13वे यहोवा को त्याग कर बाल देवताओं और अशतोरेत देवियों की उपासना करने लगे। 14इसलिये यहोवा का कोप इस्राएलियों पर भड़क उठा, और उसने उनको लुटेरों के हाथ में कर दिया जो उन्हें लूटने लगे; और उसने उनको चारों ओर के शत्रुओं के अधीन कर दिया; और वे फिर अपने शत्रुओं के सामने ठहर न सके। 15जहाँ कहीं वे बाहर जाते वहाँ यहोवा का हाथ उनकी बुराई में लगा रहता था, जैसे यहोवा ने उनसे कहा था, वरन् यहोवा ने शपथ भी खाई थी; इस प्रकार वे बड़े संकट में पड़ गए।
16तौभी यहोवा उनके लिये न्यायी ठहराता था जो उन्हें लूटने वाले के हाथ से छुड़ाते थे। 17परन्तु वे अपने न्यायियों की भी नहीं मानते थे; वरन् व्यभिचारिन के समान पराये देवताओं के पीछे चलते और उन्हें दण्डवत् करते थे; उनके पूर्वज जो यहोवा की आज्ञाएँ मानते थे, उनकी उस लीक को उन्होंने शीघ्र ही छोड़ दिया, और उनके अनुसार न किया। 18जब जब यहोवा उनके लिये न्यायी को ठहराता तब तब वह उस न्यायी के संग रहकर उसके जीवन भर उन्हें शत्रुओं के हाथ से छुड़ाता था; क्योंकि यहोवा उनका कराहना जो अन्धेर और उपद्रव करनेवालों के कारण होता था सुनकर दु:खी था। 19परन्तु जब न्यायी मर जाता, तब वे फिर पराये देवताओं के पीछे चलकर उनकी उपासना करते, और उन्हें दण्डवत् करके अपने पुरखाओं से अधिक बिगड़ जाते थे; और अपने बुरे कामों और हठीली चाल को नहीं छोड़ते थे। 20इसलिये यहोवा का कोप इस्राएल पर भड़क उठा; और उसने कहा, “इस जाति ने उस वाचा को जो मैं ने उनके पूर्वजों से बाँधी थी तोड़ दिया, और मेरी बात नहीं मानी, 21इस कारण जिन जातियों को यहोशू मरते समय छोड़ गया है उनमें से मैं अब किसी को उनके सामने से न निकालूँगा; 22जिससे उनके द्वारा मैं इस्राएलियों की परीक्षा करूँ, कि जैसे उनके पूर्वज मेरे मार्ग पर चलते थे वैसे ही ये भी चलेंगे कि नहीं।” 23इसलिये यहोवा ने उन जातियों को एकाएक न निकाला, वरन् रहने दिया, और उसने उन्हें यहोशू के हाथ में भी न सौंपा था।

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