YouVersion Logo
Search Icon

यहेजकेल 33

33
यहेजकेल इस्राएल का पहरुआ
(यहेज 3:16–21)
1यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुँचा : 2“हे मनुष्य के सन्तान, अपने लोगों से कह, जब मैं किसी देश पर तलवार चलाने लगूँ और उस देश के लोग किसी को अपना पहरुआ करके ठहराएँ, 3तब यदि वह यह देखकर कि इस देश पर तलवार चलनेवाली है, नरसिंगा फूँककर लोगों को चिता दे, 4तो जो कोई नरसिंगे का शब्द सुनने पर न चेते और तलवार के चलने से मर जाए, उसका खून उसी के सिर पड़ेगा। 5उसने नरसिंगे का शब्द सुना, परन्तु न चेता; इसलिये उसका खून उसी को लगेगा। परन्तु यदि वह चेत जाता, तो अपना प्राण बचा लेता। 6परन्तु यदि पहरुआ यह देखने पर कि तलवार चलनेवाली है नरसिंगा फूँककर लोगों को न चिताए, और तलवार के चलने से उनमें से कोई मर जाए, तो वह तो अपने अधर्म में फँसा हुआ मर जाएगा, परन्तु उसके खून का लेखा मैं पहरुए ही से लूँगा।
7“इसलिये, हे मनुष्य के सन्तान, मैं ने तुझे इस्राएल के घराने का पहरुआ ठहरा दिया है; तू मेरे मुँह से वचन सुन सुनकर उन्हें मेरी ओर से चिता दे। 8यदि मैं दुष्‍ट से कहूँ, ‘हे दुष्‍ट, तू निश्‍चय मरेगा,’ तब यदि तू दुष्‍ट को उसके मार्ग के विषय न चिताए, तो वह दुष्‍ट अपने अधर्म में फँसा हुआ मरेगा, परन्तु उसके खून का लेखा मैं तुझी से लूँगा। 9परन्तु यदि तू दुष्‍ट को उसके मार्ग के विषय चिताए कि वह अपने मार्ग से फिरे और वह अपने मार्ग से न फिरे, तो वह तो अपने अधर्म में फँसा हुआ मरेगा, परन्तु तू अपना प्राण बचा लेगा।
व्यक्‍तिगत जिम्मेदारी
10“फिर हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएल के घराने से यह कह, तुम लोग कहते हो : ‘हमारे अपराधों और पापों का भार हमारे ऊपर लदा हुआ है और हम उसके कारण गलते जाते हैं; हम कैसे जीवित रहें?’ 11इसलिये तू उनसे यह कह, परमेश्‍वर यहोवा की यह वाणी है : मेरे जीवन की सौगन्ध, मैं दुष्‍ट के मरने से कुछ भी प्रसन्न नहीं होता, परन्तु इससे कि दुष्‍ट अपने मार्ग से फिरकर जीवित रहे; हे इस्राएल के घराने, तुम अपने अपने बुरे मार्ग से फिर जाओ; तुम क्यों मरो? 12हे मनुष्य के सन्तान, अपने लोगों से यह कह, जब धर्मी जन अपराध करे तब उसका धर्म उसे बचा न सकेगा, और दुष्‍ट की दुष्‍टता भी जो हो, जब वह उस से फिर जाए, तो उसके कारण वह न गिरेगा; और धर्मी जन, यदि वह पाप करे, तब अपने धर्म के कारण जीवित न रहेगा। 13यदि मैं धर्मी से कहूँ कि तू निश्‍चय जीवित रहेगा, और वह अपने धर्म पर भरोसा करके कुटिल काम करने लगे, तब उसके धर्म के कामों में से किसी का स्मरण न किया जाएगा; जो कुटिल काम उस ने किए हों वह उन्हीं में फँसा हुआ मरेगा। 14फिर जब मैं दुष्‍ट से कहूँ, तू निश्‍चय मरेगा, और वह अपने पाप से फिरकर न्याय और धर्म के काम करने लगे, 15अर्थात् यदि दुष्‍ट जन बन्धक लौटा दे, अपनी लूटी हुई वस्तुएँ भर दे, और बिना कुटिल काम किए जीवनदायक विधियों पर चलने लगे, तो वह न मरेगा; वह निश्‍चय जीवित रहेगा। 16जितने पाप उसने किए हों, उनमें से किसी का स्मरण न किया जाएगा; उसने न्याय और धर्म के काम किए और वह निश्‍चय जीवित रहेगा।
17“तौभी तुम्हारे लोग कहते हैं, प्रभु की चाल ठीक नहीं; परन्तु उन्हीं की चाल ठीक नहीं हैं। 18जब धर्मी अपने धर्म से फिरकर कुटिल काम करने लगे, तब निश्‍चय वह उनमें फँसा हुआ मर जाएगा। 19जब दुष्‍ट अपनी दुष्‍टता से फिरकर न्याय और धर्म के काम करने लगे, तब वह उनके कारण जीवित रहेगा। 20तौभी तुम कहते हो, ‘प्रभु की चाल ठीक नहीं?’ हे इस्राएल के घराने, मैं हर एक व्यक्‍ति का न्याय उसकी चाल ही के अनुसार करूँगा।”
यरूशलेम के पतन का समाचार
21फिर हमारी बँधुआई के ग्यारहवें वर्ष के दसवें महीने के पाँचवें दिन को, एक व्यक्‍ति जो यरूशलेम से भागकर बच गया था, वह मेरे पास आकर कहने लगा, “नगर ले लिया गया।”#2 राजा 25:3–10; यिर्म 39:2–8; 52:4–14 22उस भागे हुए के आने से पहले साँझ को यहोवा की शक्‍ति#33:22 मूल में, हाथ मुझ पर हुई थी; और भोर तक अर्थात् उस मनुष्य के आने तक उसने मेरा मुँह खोल दिया; अत: मेरा मुँह खुला ही रहा, और मैं फिर गूँगा न रहा।
लोगों के पाप
23तब यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुँचा : 24“हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएल की भूमि के उन खण्डहरों के रहनेवाले यह कहते हैं, ‘अब्राहम एक ही मनुष्य था, तौभी देश का अधिकारी हुआ; परन्तु हम लोग बहुत से हैं, इसलिये देश निश्‍चय हमारे ही अधिकार में दिया गया है।’ 25इस कारण तू उनसे कह, परमेश्‍वर यहोवा यों कहता है : तुम लोग तो मांस लहू समेत खाते और अपनी मूरतों की ओर दृष्‍टि करते, और हत्या करते हो; फिर क्या तुम उस देश के अधिकारी रहने पाओगे? 26तुम अपनी अपनी तलवार पर भरोसा करते और घिनौने काम करते, और अपने अपने पड़ोसी की स्त्री को अशुद्ध करते हो : फिर क्या तुम उस देश के अधिकारी रहने पाओगे? 27तू उनसे यह कह, परमेश्‍वर यहोवा यों कहता है : मेरे जीवन की सौगन्ध, नि:सन्देह जो लोग खण्डहरों में रहते हैं, वे तलवार से गिरेंगे, और जो खुले मैदान में रहता है, उसे मैं जीवजन्तुओं का आहार कर दूँगा, और जो गढ़ों और गुफाओं में रहते हैं, वे मरी से मरेंगे। 28मैं उस देश को उजाड़ ही उजाड़ कर दूँगा; और उसके बल का घमण्ड जाता रहेगा; और इस्राएल के पहाड़ ऐसे उजड़ेंगे कि उन पर होकर कोई न चलेगा। 29इसलिये जब मैं उन लोगों के किए हुए सब घिनौने कामों के कारण उस देश को उजाड़ ही उजाड़ कर दूँगा, तब वे जाने लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
भविष्यद्वक्‍ता के सन्देश का परिणाम
30“हे मनुष्य के सन्तान, तेरे लोग दीवारों के पास और घरों के द्वारों में तेरे विषय में बातें करते और एक दूसरे से कहते हैं, ‘आओ, सुनो, कि यहोवा की ओर से कौन सा वचन निकलता है।’ 31वे प्रजा के समान तेरे पास आते और मेरी प्रजा बनकर तेरे सामने बैठकर तेरे वचन सुनते हैं, परन्तु वे उन पर चलते नहीं; मुँह से तो वे बहुत प्रेम दिखाते हैं, परन्तु उनका मन लालच ही में लगा रहता है। 32तू उनकी दृष्‍टि में प्रेम के मधुर गीत गानेवाला और अच्छा बजानेवाला– सा ठहरा है, क्योंकि वे तेरे वचन सुनते तो हैं, परन्तु उन पर चलते नहीं। 33इसलिये जब यह बात घटेगी, और वह निश्‍चय घटेगी! तब वे जान लेंगे कि हमारे बीच एक भविष्यद्वक्‍ता आया था।”

Highlight

Share

Copy

None

Want to have your highlights saved across all your devices? Sign up or sign in