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2 इतिहास 33

33
यहूदा में मनश्शे का राज्य
(2 राजा 21:1–9)
1जब मनश्शे राज्य करने लगा, तब वह बारह वर्ष का था, और यरूशलेम में पचपन वर्ष तक राज्य करता रहा। 2उसने वह किया जो यहोवा की दृष्‍टि में बुरा था, अर्थात् उन जातियों के घिनौने कामों के अनुसार जिनको यहोवा ने इस्राएलियों के सामने से देश से निकाल दिया था।#यिर्म 15:4 3उसने उन ऊँचे स्थानों को जिन्हें उसके पिता हिजकिय्याह ने तोड़ दिया था, फिर बनाया, और बाल नामक देवताओं के लिये वेदियाँ और अशेरा नामक मूरतें बनाईं, और आकाश के सारे गणों को दण्डवत् करता, और उनकी उपासना करता रहा। 4उसने यहोवा के उस भवन में वेदियाँ बनाईं जिसके विषय यहोवा ने कहा था “यरूशलेम में मेरा नाम सदा बना रहेगा।”#2 इति 6:6 5वरन् यहोवा के भवन के दोनों आँगनों में भी उसने आकाश के सारे गणों के लिये वेदियाँ बनाईं। 6फिर उसने हिन्नोम के बेटे की तराई में अपने बेटों को होम करके चढ़ाया, और शुभ–अशुभ मुहूर्तों को मानता, और टोना और तंत्र–मंत्र करता, और ओझों और भूतसिद्धिवालों से सम्बन्ध रखता था। वरन् उसने ऐसे बहुत से काम किए, जो यहोवा की दृष्‍टि में बुरे हैं और जिनसे वह अप्रसन्न होता है। 7उसने अपनी खुदवाई हुई मूर्ति परमेश्‍वर के उस भवन में स्थापित की जिसके विषय परमेश्‍वर ने दाऊद और उसके पुत्र सुलैमान से कहा था, “इस भवन में, और यरूशलेम में, जिसको मैं ने इस्राएल के सब गोत्रों में से चुन लिया है, मैं अपना नाम सर्वदा रखूँगा, 8और मैं ऐसा न करूँगा कि जो देश मैं ने तुम्हारे पुरखाओं को दिया था, उसमें से इस्राएल फिर मारा मारा फिरे; इतना अवश्य हो कि वे मेरी सब आज्ञाओं को अर्थात् मूसा की दी हुई सारी व्यवस्था और विधियों और नियमों का पालन करने की चौकसी करें।”#1 राजा 9:3–5; 2 इति 7:12–18 9मनश्शे ने यहूदा और यरूशलेम के निवासियों को यहाँ तक भटका दिया कि उन्होंने उन जातियों से भी बढ़कर बुराई की, जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियों के सामने से नष्‍ट किया था।
मनश्शे का पश्‍चाताप
10यहोवा ने मनश्शे और उसकी प्रजा से बातें कीं, परन्तु उन्होंने कुछ ध्यान नहीं दिया। 11तब यहोवा ने उन पर अश्शूर के सेनापतियों से चढ़ाई कराई, और वे मनश्शे को नकेल डालकर और पीतल की बेड़ियों से जकड़कर, बेबीलोन को ले गए। 12तब संकट में पड़कर वह अपने परमेश्‍वर यहोवा को मानने लगा, और अपने पूर्वजों के परमेश्‍वर के सामने बहुत दीन हुआ, और उससे प्रार्थना की। 13तब उसने प्रसन्न होकर उसकी विनती सुनी, और उसको यरूशलेम में पहुँचाकर उसका राज्य लौटा दिया। तब मनश्शे को निश्‍चय हो गया कि यहोवा ही परमेश्‍वर है।
14इसके बाद उसने दाऊदपुर से बाहर गीहोन के पश्‍चिम की ओर नाले में मछली फाटक तक एक शहरपनाह बनवाई, फिर ओपेल को घेरकर बहुत ऊँचा कर दिया; और यहूदा के सब गढ़वाले नगरों में सेनापति ठहरा दिए। 15फिर उसने पराये देवताओं को और यहोवा के भवन में की मूर्ति को, और जितनी वेदियाँ उसने यहोवा के भवन के पर्वत पर, और यरूशलेम में बनवाई थीं, उन सब को दूर करके नगर से बाहर फेंकवा दिया। 16तब उसने यहोवा की वेदी की मरम्मत की, और उस पर मेलबलि और धन्यवादबलि चढ़ाने लगा, और यहूदियों को इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा की उपासना करने की आज्ञा दी। 17तौभी प्रजा के लोग ऊँचे स्थानों पर बलिदान करते रहे, परन्तु केवल अपने परमेश्‍वर यहोवा के लिये।
मनश्शे के राज्य का अन्त और उसकी मृत्यु
(2 राजा 21:17,18)
18मनश्शे के और काम, और उसने जो प्रार्थना अपने परमेश्‍वर से की, और उन दर्शियों के वचन जो इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा के नाम से उससे बातें करते थे, यह सब इस्राएल के राजाओं के इतिहास में लिखा हुआ है। 19उसकी प्रार्थना और वह कैसे सुनी गई, और उसका सारा पाप और विश्‍वासघात, और उसने दीन होने से पहले कहाँ कहाँ ऊँचे स्थान बनवाए, और अशेरा नामक और खुदी हुई मूर्तियाँ खड़ी कराईं, यह सब होशे के वचनों में लिखा है। 20अन्त में मनश्शे अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसे उसी के घर में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र आमोन उसके स्थान पर राज्य करने लगा।
यहूदा में आमोन का राज्य
(2 राजा 21:19–26)
21जब आमोन राज्य करने लगा, तब वह बाईस वर्ष का था, और यरूशलेम में दो वर्ष तक राज्य करता रहा। 22उसने अपने पिता मनश्शे के समान वह किया जो यहोवा की दृष्‍टि में बुरा है। जितनी मूर्तियाँ उसके पिता मनश्शे ने खोदकर बनवाई थीं, वह भी उन सभों के सामने बलिदान करता और उन सभों की उपासना भी करता था। 23जैसे उसका पिता मनश्शे यहोवा के सामने दीन हुआ, वैसे वह दीन न हुआ, वरन् आमोन अधिक दोषी होता गया। 24उसके कर्मचारियों ने द्रोह की गोष्‍ठी करके, उसको उसी के भवन में मार डाला। 25तब साधारण लोगों ने उन सभों को मारा डाला, जिन्होंने राजा आमोन से द्रोह की गोष्‍ठी की थी; और लोगों ने उसके पुत्र योशिय्याह को उसके स्थान पर राजा बनाया।

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