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1 राजाओं 3

3
बुद्धि प्राप्‍ति के लिये सुलैमान की प्रार्थना
(2 इति 1:3–12)
1फिर राजा सुलैमान मिस्र के राजा फ़िरौन की बेटी को ब्याह कर उसका दामाद बन गया, और उसको दाऊदपुर में लाकर जब तक अपना भवन और यहोवा का भवन और यरूशलेम के चारों ओर की शहरपनाह न बनवा चुका, तब तक उसको वहीं रखा। 2क्योंकि प्रजा के लोग तो ऊँचे स्थानों पर बलि चढ़ाते थे और उन दिनों तक यहोवा के नाम का कोई भवन नहीं बना था।
3सुलैमान यहोवा से प्रेम रखता था और अपने पिता दाऊद की विधियों पर चलता तो रहा, परन्तु वह ऊँचे स्थानों पर भी बलि चढ़ाया और धूप जलाया करता था। 4और राजा गिबोन को बलि चढ़ाने गया, क्योंकि मुख्य ऊँचा स्थान वही था, तब वहाँ की वेदी पर सुलैमान ने एक हज़ार होमबलि चढ़ाए।
5गिबोन में यहोवा ने रात को स्वप्न के द्वारा सुलैमान को दर्शन देकर कहा, “जो कुछ तू चाहे कि मैं तुझे दूँ, वह माँग।” 6सुलैमान ने कहा, “तू अपने दास मेरे पिता दाऊद पर बड़ी करुणा करता रहा, क्योंकि वह अपने को तेरे सम्मुख जानकर तेरे साथ सच्‍चाई और धर्म और मन की सीधाई से चलता रहा; और तू ने यहाँ तक उस पर करुणा की थी कि उसे उसकी गद्दी पर विराजनेवाला एक पुत्र दिया है, जैसा कि आज वर्तमान है। 7और अब, हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा! तू ने अपने दास को मेरे पिता दाऊद के स्थान पर राजा किया है, परन्तु मैं छोटा लड़का–सा हूँ जो भीतर बाहर आना जाना नहीं जानता। 8फिर तेरा दास तेरी चुनी हुई प्रजा के बहुत से लोगों के मध्य में है, जिनकी गिनती बहुतायत के मारे नहीं हो सकती। 9तू अपने दास को अपनी प्रजा का न्याय करने के लिये समझने की ऐसी शक्‍ति#3:9 मूल में, सुननेहारा मन दे, कि मैं भले बुरे को परख सकूँ : क्योंकि कौन ऐसा है कि तेरी इतनी बड़ी प्रजा का न्याय कर सके?” 10इस बात से प्रभु प्रसन्न हुआ कि सुलैमान ने ऐसा वरदान माँगा है। 11तब परमेश्‍वर ने उससे कहा, “इसलिये कि तू ने यह वरदान माँगा है, और न तो दीर्घायु और न धन और न अपने शत्रुओं का नाश माँगा है, परन्तु समझने के विवेक का वरदान माँगा है इसलिये सुन, 12मैं तेरे वचन के अनुसार करता हूँ, तुझे बुद्धि और विवेक से भरा मन देता हूँ; यहाँ तक कि तेरे समान न तो तुझ से पहले कोई कभी हुआ, और न बाद में कोई कभी होगा। 13फिर जो तू ने नहीं माँगा, अर्थात् धन और महिमा, वह भी मैं तुझे यहाँ तक देता हूँ, कि तेरे जीवन भर कोई राजा तेरे तुल्य न होगा। 14फिर यदि तू अपने पिता दाऊद के समान मेरे मार्गों में चलता हुआ, मेरी विधियों और आज्ञाओं को मानता रहेगा तो मैं तेरी आयु को बढ़ाऊँगा।”
15तब सुलैमान जाग उठा; और देखा कि यह स्वप्न था; फिर वह यरूशलेम को गया, और यहोवा की वाचा के सन्दूक के सामने खड़ा होकर, होमबलि और मेलबलि चढ़ाए, और अपने सब कर्मचारियों के लिये भोज किया।
सुलैमान का अद्भुत न्याय
16उस समय दो वेश्याएँ राजा के पास आकर उसके सम्मुख खड़ी हुईं। 17उन में से एक स्त्री कहने लगी, “हे मेरे प्रभु! मैं और यह स्त्री दोनों एक ही घर में रहती हैं; और इसके संग घर में रहते हुए मेरे एक बच्‍चा हुआ। 18फिर मेरे ज़च्‍चा के तीन दिन के बाद ऐसा हुआ कि यह स्त्री भी ज़च्‍चा हो गई; हम तो संग ही संग थीं, हम दोनों को छोड़कर घर में और कोई भी न था। 19और रात में इस स्त्री का बालक इसके नीचे दबकर मर गया। 20तब इसने आधी रात को उठकर, जब तेरी दासी सो ही रही थी, तब मेरा लड़का मेरे पास से लेकर अपनी छाती में रखा, और अपना मरा हुआ बालक मेरी छाती में लिटा दिया। 21भोर को जब मैं अपना बालक दूध पिलाने को उठी, तब उसे मरा हुआ पाया; परन्तु भोर को मैं ने ध्यान से यह देखा, कि वह मेरा पुत्र नहीं है।” 22तब दूसरी स्त्री ने कहा, “नहीं, जीवित पुत्र मेरा है, और मरा पुत्र तेरा है।” परन्तु वह कहती रही, “नहीं, मरा हुआ तेरा पुत्र है और जीवित मेरा पुत्र है,” यों वे राजा के सामने बातें करती रहीं।
23तब राजा ने कहा, “एक तो कहती है, ‘जो जीवित है, वही मेरा पुत्र है, और मरा हुआ तेरा पुत्र है;’ और दूसरी कहती है, ‘नहीं, जो मरा है वही तेरा पुत्र है, और जो जीवित है, वह मेरा पुत्र है’।” 24फिर राजा ने कहा, “मेरे पास तलवार ले आओ;” अत: एक तलवार राजा के सामने लाई गई। 25तब राजा बोला, “जीविते बालक को दो टुकड़े करके आधा इसको और आधा उसको दो।” 26तब जीवित बालक की माता का मन अपने बेटे के स्‍नेह से भर आया, और उसने राजा से कहा, “हे मेरे प्रभु! जीवित बालक उसी को दे, परन्तु उसको किसी भाँति न मार।” दूसरी स्त्री ने कहा, “वह न तो मेरा हो और न तेरा, वह दो टुकड़े किया जाए।” 27तब राजा ने कहा, “पहली को जीवित बालक दो; किसी भाँति उसको न मारो; क्योंकि उसकी माता वही है।” 28जो न्याय राजा ने चुकाया था, उसका समाचार समस्त इस्राएल को मिला, और उन्होंने राजा का भय माना, क्योंकि उन्होंने यह देखा, कि उसके मन में न्याय करने के लिये परमेश्‍वर की बुद्धि है।

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