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1 यूहन्ना भूमिका

भूमिका
यूहन्ना की पहली पत्री के दो मुख्य उद्देश्य हैं : (1) अपने पाठकों को परमेश्‍वर और उसके पुत्र, यीशु मसीह, की सहभागिता में जीवन व्यतीत करने को उत्साहित करना, और (2) उन्हें झूठी शिक्षा का पालन करने, जिससे यह सहभागिता नष्‍ट हो जाएगी, के विरुद्ध चेतावनी देना। यह झूठी शिक्षा इस धारणा पर आधारित थी कि बुराई भौतिक संसार के सम्पर्क में आने का परिणाम होती है, और इसलिये यीशु, परमेश्‍वर का पुत्र, वास्तव में एक मनुष्य हो ही नहीं सकता। इन शिक्षकों का दावा था कि उद्धार प्राप्‍त करने के लिये एक व्यक्‍ति को इस संसार के जीवन से सम्बन्धित बातों से मुक्‍त होना होगा; तथा वे यह भी सिखाते थे कि नैतिकता या अपने भाई से प्रेम रखने जैसी बातों का उद्धार से कोई सम्बन्ध नहीं है।
इस शिक्षा के विरुद्ध लेखक स्पष्‍ट रूप से यह दर्शाता है कि यीशु मसीह एक वास्तविक मानव था, तथा वह इस बात पर बल देता है कि वे जो यीशु मसीह में विश्‍वास करते और परमेश्‍वर से प्रेम रखते हैं अवश्य ही आपस में एक दूसरे से भी प्रेम रखें।
रूप–रेखा :
भूमिका 1:1–4
ज्योति और अन्धकार 1:5—2:29
परमेश्‍वर की सन्तान और शैतान की सन्तान 3:1–24
सत्य और झूठ 4:1–6
प्रेम का कर्तव्य 4:7–21
विजयी विश्‍वास 5:1–21

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