YouVersion Logo
Search Icon

1 कुरिन्थियों 11

11
1तुम मेरी सी चाल चलो जैसा मैं मसीह की सी चाल चलता हूँ।#1 कुरि 4:16; फिलि 3:17
आराधना में सिर ढाँकना
2हे भाइयो, मैं तुम्हें सराहता हूँ कि सब बातों में तुम मुझे स्मरण करते हो; और जो परम्पराएँ मैं ने तुम्हें सौंपी हैं, उनका पालन करते हो। 3परन्तु मैं चाहता हूँ कि तुम यह जान लो कि हर एक पुरुष का सिर मसीह है, और स्त्री का सिर पुरुष है, और मसीह का सिर परमेश्‍वर है। 4जो पुरुष सिर ढाँके हुए प्रार्थना या भविष्यद्वाणी करता है, वह अपने सिर का अपमान करता है। 5परन्तु जो स्त्री उघाड़े सिर प्रार्थना या भविष्यद्वाणी करती है, वह अपने सिर का अपमान करती है, क्योंकि वह मुण्डी होने के बराबर है। 6यदि स्त्री ओढ़नी न ओढ़े तो बाल भी कटा ले; यदि स्त्री के लिये बाल कटाना या मुण्डन कराना लज्जा की बात है, तो ओढ़नी ओढ़े। 7हाँ, पुरुष को अपना सिर ढाँकना उचित नहीं, क्योंकि वह परमेश्‍वर का स्वरूप और महिमा है; परन्तु स्त्री पुरुष की महिमा है।#उत्प 1:26,27 8क्योंकि पुरुष स्त्री से नहीं हुआ, परन्तु स्त्री पुरुष से हुई है; 9और पुरुष स्त्री के लिये नहीं सिरजा गया, परन्तु स्त्री पुरुष के लिये सिरजी गई है।#उत्प 2:18–23 10इसी लिये स्वर्गदूतों के कारण स्त्री को उचित है कि अधिकार#11:10 या अधीनता का चिह्न अपने सिर पर रखे। 11तौभी प्रभु में न तो स्त्री बिना पुरुष, और न पुरुष बिना स्त्री के है। 12क्योंकि जैसे स्त्री पुरुष से है, वैसे ही पुरुष स्त्री के द्वारा है; परन्तु सब वस्तुएँ परमेश्‍वर से हैं। 13तुम आप ही विचार करो, क्या स्त्री को उघाड़े सिर परमेश्‍वर से प्रार्थना करना शोभा देता है? 14क्या स्वाभाविक रीति से भी तुम नहीं जानते कि यदि पुरुष लम्बे बाल रखे, तो उसके लिये अपमान है। 15परन्तु यदि स्त्री लम्बे बाल रखे तो उसके लिये शोभा है, क्योंकि बाल उस को ओढ़नी के लिये दिए गए हैं। 16परन्तु यदि कोई विवाद करना चाहे, तो यह जान ले कि न हमारी और न परमेश्‍वर की कलीसियाओं की ऐसी रीति है।
प्रभु–भोज के विषय में
(मत्ती 26:26–29; मरकुस 14:22–25; लूका 22:14–20)
17परन्तु यह आज्ञा देते हुए मैं तुम्हें नहीं सराहता, इसलिये कि तुम्हारे इकट्ठे होने से भलाई नहीं, परन्तु हानि होती है। 18क्योंकि पहले तो मैं यह सुनता हूँ, कि जब तुम कलीसिया में इकट्ठे होते हो तो तुम में फूट होती है, और मैं इस पर कुछ–कुछ विश्‍वास भी करता हूँ। 19क्योंकि दलबन्दी भी तुम में अवश्य होगी, इसलिये कि जो लोग तुम में खरे हैं वे प्रगट हो जाएँ। 20अत: तुम जो एक जगह में इकट्ठे होते हो तो यह प्रभु–भोज खाने के लिये नहीं, 21क्योंकि खाने के समय एक दूसरे से पहले अपना भोज खा लेता है, इस प्रकार कोई तो भूखा रहता है और कोई मतवाला हो जाता है। 22क्या खाने–पीने के लिये तुम्हारे घर नहीं? या परमेश्‍वर की कलीसिया को तुच्छ जानते हो, और जिनके पास नहीं है उन्हें लज्जित करते हो? मैं तुम से क्या कहूँ? क्या इस बात में तुम्हारी प्रशंसा करूँ? नहीं, मैं प्रशंसा नहीं करता।
23क्योंकि यह बात मुझे प्रभु से पहुँची, और मैं ने तुम्हें भी पहुँचा दी कि प्रभु यीशु ने जिस रात वह पकड़वाया गया, रोटी ली, 24और धन्यवाद करके तोड़ी और कहा, “यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिये है : मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” 25इसी रीति से उसने बियारी के पीछे कटोरा भी लिया और कहा, “यह कटोरा मेरे लहू में नई वाचा है : जब कभी पीओ, तो मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।”#निर्ग 24:6–8; यिर्म 31:31–34 26क्योंकि जब कभी तुम यह रोटी खाते और इस कटोरे में से पीते हो, तो प्रभु की मृत्यु को जब तक वह न आए, प्रचार करते हो।
27इसलिये जो कोई अनुचित रीति से प्रभु की रोटी खाए या उसके कटोरे में से पीए, वह प्रभु की देह और लहू का अपराधी ठहरेगा। 28इसलिये मनुष्य अपने आप को जाँच ले और इसी रीति से इस रोटी में से खाए, और इस कटोरे में से पीए। 29क्योंकि जो खाते–पीते समय प्रभु की देह को न पहिचाने, वह इस खाने और पीने से अपने ऊपर दण्ड लाता है। 30इसी कारण तुम में बहुत से निर्बल और रोगी हैं, और बहुत से सो भी गए। 31यदि हम अपने आप को जाँचते तो दण्ड न पाते। 32परन्तु प्रभु हमें दण्ड देकर हमारी ताड़ना करता है, इसलिये कि हम संसार के साथ दोषी न ठहरें।
33इसलिये, हे मेरे भाइयो, जब तुम खाने के लिये इकट्ठे होते हो तो एक दूसरे के लिये ठहरा करो। 34यदि कोई भूखा हो तो अपने घर में खा ले, जिससे तुम्हारा इकट्ठा होना दण्ड का कारण न हो। शेष बातों को मैं आकर ठीक करूँगा।

Highlight

Share

Copy

None

Want to have your highlights saved across all your devices? Sign up or sign in