जकर्याह पुस्तक-परिचय
पुस्तक-परिचय
नबी जकर्याह के प्रस्तुत ग्रंथ को स्पष्टत: दो खण्डों में विभाजित किया जा सकता है। पहला खण्ड: अध्याय 1-8। इनमें वास्तविक नबी जकर्याह की नबूवतें हैं, जिनका समय ईसवी पूर्व 520 से 518 तक है। निष्कासनोत्तर काल में यहूदी समाज की वापसी और पुन: स्थापना का यह समय था। इस कठिन परिस्थिति में हग्गय और जकर्याह सहयोगी नबी थे। नबी जकर्याह आठ दर्शनों के रूप में नबूवत करते हैं। इन दर्शनों के माध्यम से वह परमेश्वर के उद्देश्यों का प्रकाशन अथवा रहस्योद्घाटन प्रस्तुत करते हैं। इनका विषय है: यरूशलेम नगर का जीर्णोंद्धार, मन्दिर का पुनर्निर्माण, प्रभु परमेश्वर के निज लोगों का शुद्धीकरण, और दाऊद वंशज जरूब्बाबेल को आशा-दीप समझते हुए आनेवाले मसीह का युग जताना।
दूसरा खण्ड (तथा-कथित “द्वितीय जकर्याह” ) : अध्याय 9-14। इस खण्ड में सन् 518 ईसवी पूर्व के पश्चात् दी गई नबूवतों का संकलन है। संभवत: राजा सिकन्दर महान द्वारा स्थापित यूनानी साम्राज्य का आरंभिक काल इन नबूवतों के लिए उपयुक्त रचनाकाल ठहराया जा सकता है। उस समय यहूदियों का नेतृत्व करने के लिए योग्य “चरवाहे” नहीं थे। महापुरोहितीय पद भी भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद से कलंकित था। नबी-सन्देश का मुख्य विषय है: सच्चे मसीह का आगमन और अंतिम न्याय। किसी प्रिय व्यक्ति के “बेधित” होने का शोक-सूचक कथन (12:10) अत्यंत रहस्यपूर्ण है, जो भविष्य के लिए अर्थगर्भित ही बना (यो 19:34)।
विषय-वस्तु की रूपरेखा
पहला खण्ड : 1:1−8:23
आठ दर्शन 1:1−6:15
आशा के सन्देश और चेतावनियां 7:1−8:23
दूसरा खण्ड : 9:1−14:21
पड़ोसी देशों पर महासंकट 9:1-8
अराजकता एवं अशांति में भावी शांति-राज्य की तैयारी 9:9−11:17
यरूशलेम का नवीकरण और विश्व-कल्याण 12:1−14:21
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जकर्याह पुस्तक-परिचय: HINCLBSI
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