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भजन संहिता 29

29
आंधी में प्रभु की आवाज
दाऊद का भजन।
1ओ परमेश्‍वर के दूतो#29:1 शब्‍दश:, ‘ईश्‍वर के पुत्रो’
प्रभु के गुणों को स्‍वीकार करो;
तुम प्रभु की महिमा और शक्‍ति को
स्‍वीकार करो।#भज 96:7-9
2तुम प्रभु के नाम की महिमा को स्‍वीकार करो;
पवित्रता से सजकर#29:2 अथवा ‘पवित्र परमेश्‍वर के दर्शन के लिए’ अथवा ‘पवित्र परिधान पहिनकर’ प्रभु की आराधना करो।
3प्रभु की वाणी सागरों पर है;
महिमायुक्‍त परमेश्‍वर गरजन करता है;
प्रभु महासागरों पर है।#अय्‍य 37:4-5
4प्रभु की वाणी शक्‍तिशाली है;
प्रभु की वाणी तेजस्‍वी है।
5प्रभु की वाणी देवदार के वृक्षों को उखाड़
फेंकती है;
प्रभु लबानोन के देवदारों को नष्‍ट करता है।
6वह लबानोन को बछड़े के समान
और हेर्मोन#29:6 मूल में ‘सिर्योन’ पर्वत को सांड़ जैसा कुदाता है।
7प्रभु की वाणी अग्‍नि-ज्‍वाला उगलती है।
8प्रभु की वाणी निर्जन प्रदेश को
प्रकंपित करती है;
प्रभु कादेश निर्जन प्रदेश को कंपित करता है।
9प्रभु की वाणी बांज वृक्षों को झकझोरती है;#29:9 अथवा “प्रभु की वाणी से हरिणियों का गर्भपात हो जाता है”
और वन के वृक्षों को झाड़ देती है;
तब उसके भवन में सब पुकार उठते हैं,
“प्रभु की महिमा हो!”
10प्रभु जल-प्रवाह पर विराजमान है;
राजाधिराज प्रभु युग-युगांत
सिंहासनारूढ़ है।
11प्रभु अपनी प्रजा को शक्‍ति प्रदान करे;
प्रभु अपनी प्रजा को शान्‍ति का वरदान दे।

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