YouVersion Logo
Search Icon

भजन संहिता 107

107
पांचवां खण्‍ड
प्रभु संकट से मुक्‍त करता है
1प्रभु की सराहना करो,
क्‍योंकि वह भला है;
क्‍योंकि उसकी करुणा सदा बनी रहती है!#भज 136:1; यिर 33:11
2प्रभु द्वारा मुक्‍त किए गए लोग,
जिन्‍हें बैरी के हाथ से उसने मुक्‍त किया है,
3जिन्‍हें भिन्न-भिन्न देशों से,
पूर्व और पश्‍चिम,
उत्तर और दक्षिण से एकत्र किया है,
वे प्रभु की सराहना करें।
4कुछ निर्जन प्रदेश में, उजाड़ खण्‍ड में भटक
रहे थे,
उन्‍हें बस्‍ती का मार्ग नहीं मिला था।
5भूख और प्‍यास के कारण उनके प्राण मूर्छित
हो गए थे।
6तब उन्‍होंने अपने संकट में प्रभु की दुहाई दी,
और प्रभु ने विपत्ति से उन्‍हें छुड़ाया।
7वह उन्‍हें सीधे मार्ग पर ले गया
कि वे बस्‍ती में पहुंच जाएं।
8प्रभु की करुणा के लिए,
मानव-जाति के प्रति किए गए
उसके आश्‍चर्यपूर्ण कर्मो के लिए
वे उसकी सराहना करें।
9प्रभु प्‍यासे प्राण को तृप्‍त करता है,
वह भूखे व्यक्‍ति को भली वस्‍तु से सन्‍तुष्‍ट
करता है।#यश 55:1; लू 1:53
10कुछ अन्‍धकार और मृत्‍यु-छाया में बैठे थे,
पीड़ा और लोहे में जकड़े थे,
11क्‍योंकि उन्‍होंने परमेश्‍वर के वचनों के प्रति
विद्रोह किया,
और सर्वोच्‍च प्रभु के परामर्श को तुच्‍छ
समझा था।
12अत: उनके हृदय कष्‍ट से दबा दिए गए;
वे गिर पड़े,
और उनका कोई सहायक न था।
13तब उन्‍होंने अपने संकट में प्रभु की दुहाई दी,
और प्रभु ने विपत्ति से उन्‍हें बचाया;
14वह उन्‍हें अन्‍धकार और मृत्‍यु-छाया से
निकाल लाया;
उसने उनकी बेड़ियां तोड़ डालीं।
15प्रभु की करुणा के लिए,
मानव-जाति के प्रति किए गए,
उसके आश्‍चर्यपूर्ण कर्मों के लिए
वे उसकी सराहना करें।
16प्रभु पीतल के द्वार भी तोड़ डालता है,
वह लोहे के छड़ों को भी टुकड़े-टुकड़े
करता है।
17कुछ अपने अपराधपूर्ण आचरण के कारण
रोगी
और कुकर्मों के कारण पीड़ित थे।
18उनको भोजन से अरुचि हो गई थी,
और वे मृत्‍यु-द्वार तक पहुंच चुके थे।
19तब उन्‍होंने अपने संकट में प्रभु की दुहाई दी,
और प्रभु ने विपत्ति से उन्‍हें बचाया;
20उसने अपना वचन भेजकर उन्‍हें स्‍वस्‍थ
किया,
और विनाश से उनकी रक्षा की।#मत 8:8
21प्रभु की करुणा के लिए,
मानव-जाति के प्रति किए गए,
उसके आश्‍चर्यपूर्ण कर्मों के लिए,
वे उसकी सराहना करें।
22वे स्‍तुति-बलि अर्पित करें
और जयजयकार सहित
उसके कार्यों का वर्णन करें।
23कुछ जलयानों में समुद्र पर गए थे,
वे महासागर में व्‍यापार करते थे।
24उन्‍होंने प्रभु के कार्यों को,
गहरे सागर में किए गए उसके
आश्‍चर्यपूर्ण कर्मों को देखा।
25प्रभु ने आज्ञा दी, और तूफान आ गया,
जिसने लहरों को उठा दिया।#योना 1:4
26जलयान आकाश तक ऊंचे उठ जाते,
और फिर सागर की गहराइयों में नीचे आ
जाते थे;
संकट के कारण उनके प्राण पलायन करने
लगे थे।
27वे लुढ़कते थे, शराबी के समान लड़खड़ाते थे,
और उनकी बुद्धि नष्‍ट हो चुकी थी!
28तब उन्‍होंने अपने संकट में प्रभु की दुहाई दी,
और प्रभु ने विपत्ति से उन्‍हें बचाया।
29प्रभु ने तूफान को शान्‍त किया,
और सागर की लहरें स्‍थिर हो गई।#मत 8:26
30तब वे आनन्‍दित हुए,
क्‍योंकि उन्‍हें शान्‍ति मिली;
प्रभु ने उन्‍हें उनके बन्‍दरस्‍थान तक पहुंचा
दिया,
जहां वे जाना चाहते थे।
31प्रभु की करुणा के लिए,
मानव-जाति के प्रति किए गए
उसके आश्‍चर्यपूर्ण कर्मों के लिए,
वे उसकी सराहना करें।
32वे लोगों की मण्‍डली में उसकी अत्‍यधिक
प्रशंसा करें,
धर्मवृद्धों की सभा में उसकी स्‍तुति करें!
33प्रभु नदियों को मरुभूमि में,
झरनों को शुष्‍क भूमि में,#यश 42:15
34वहां के निवासियों की दुष्‍टता के कारण
फलवन्‍त भूमि को लोनी मिट्टी में बदल
डालता है।#प्रव 39:23
35वह मरुभूमि को जलाशय में,
निर्जल भूमि को जल के झरनों में
बदल देता है।#यश 41:18
36तब वह वहां भूखों को बसाता है,
और वे बसने के लिए नगर का निर्माण करते हैं।
37वे भूमि में बीज बोते,
अंगूर के बाग लगाते,
और अधिकाधिक फल प्राप्‍त करते हैं।
38प्रभु उनको आशिष देता है
कि वे बढ़ते जाएं;
वह उनके पशुओं को भी घटने नहीं देता है।
39जब वे दमन, संकट और दु:ख के कारण
घटते और दब जाते हैं
40तब प्रभु शासकों पर पराजय के अपमान की
वर्षा करता है,
और उन्‍हें मार्गहीन उजाड़ खण्‍ड में भटकाता है।
41किन्‍तु वह दरिद्र को पीड़ा से निकाल कर
उन्नत करता है,
वह उनके परिवारों को रेवड़ के सदृश
विशाल बनाता है।
42निष्‍कपट व्यक्‍ति यह देखकर आनन्‍दित होते हैं;
दुष्‍टता अपना मुंह बन्‍द रखती है।#अय्‍य 22:19; 5:16
43जो बुद्धिमान है,
वह इन बातों पर ध्‍यान दे;
लोग प्रभु की करुणा पर विचार करें।#हो 14:9

Highlight

Share

Copy

None

Want to have your highlights saved across all your devices? Sign up or sign in

YouVersion uses cookies to personalize your experience. By using our website, you accept our use of cookies as described in our Privacy Policy