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नीतिवचन पुस्‍तक-परिचय

पुस्‍तक-परिचय
प्रस्‍तुत ग्रंथ में नैतिक तथा धार्मिक शिक्षाओं को लोकोिक्‍तयों, कहावतों, मुहावरों एवं पहेलियों के रूप में प्रस्‍तुत किया गया है। इनमें अधिकांश का संबंध दिन-प्रतिदिन के व्‍यवहार से है; ये दैनिक आचरण के लिए “हितोपदेश” ही हैं। पुस्‍तक के आरम्‍भ में पाठक को बता दिया जाता है कि “प्रभु की श्रद्धा-भक्‍ति करना ही बुद्धि (प्रज्ञ) का आरम्‍भ है” । तत्‍पश्‍चात् प्राक्‍कथन के रूप में नैतिकता, व्‍यवहार-कुशलता, सदाचरण के विषय में अधिक विस्‍तार से सुभाषित वचन कहे गए हैं। छोटी-छोटी सूिक्‍तयों में प्राचीन इस्राएली गुरुओं ने जीवन के सम्‍बन्‍ध में अपनी अन्‍तरदृष्‍टि प्रकट की है। उन्‍होंने अपने अनुभव को सहज और सरल ढंग से बताया है! बुद्धिमान व्यक्‍ति वह है जो अमुक-अमुक परिस्‍थिति में कर्त्तव्‍य-धर्म के अनुसार व्‍यवहार करता है। जनता के ये जन-गुरु कौन थे? दरबारी शैली में ऐसे नीतिवचन कहने का श्रेय राजा सुलेमान को दिया गया है (1 राजा 4:32)। वास्‍तव में, प्राचीन विद्यागृहों की कक्षाओं में इस प्रकार का बुद्धि-साहित्‍य लोक शिक्षा का रोचक माध्‍यम था।
नीतिवचनों में से कुछ वचन परिवार से सम्‍बन्‍धित हैं, कुछ लेन-देन से, कुछ व्‍यापार से। कुछ मनुष्‍य के सामाजिक व्‍यवहार और शिष्‍टाचार पर प्रकाश डालते हैं, और कुछ मनुष्‍य की इस आवश्‍यकता पर जोर डालते हैं कि वह आत्‍म-संयम रखे, अपनी वाणी पर नियंत्रण रखे। कुछ नीतिवचन विनम्रता, धैर्य, गरीबी, परिश्रम और मित्रता के संबंध में कहे गए हैं। बुद्धि स्‍वयं ज्ञान-दात्री के रूप में सीधे-सादे लोगों को आमंत्रित करती है और उन्‍हें मूढ़ मोहनी से दूर रहने के लिए सतर्क करती है। पुस्‍तक के अन्‍त में आदर्श गृहिणी की प्रशंसा की गई है।
विषय-वस्‍तु की रूपरेखा
बुद्धि की प्रशंसा 1:1−9:18
राजा सुलेमान के नीतिवचन :
(क) पहला संग्रह 10:1−22:16
(ख) ज्ञानियों के तीस नीतिवचन 22:17−24:34
(ग) दूसरा संग्रह 25:1−29:27
आगूर के नीतिवचन 30:1-33
अन्‍य नीतिवचन 31:1-31

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