मत्ती 16
16
ईश्वरीय चिह्न की माँग#मक 8:11-21
1फरीसी और सदूकी येशु के पास आए। उन्होंने येशु की परीक्षा लेने के लिए उन से निवेदन किया, “आप हमें स्वर्ग का#16:1 मूल में ‘स्वर्ग से’। कोई चिह्न दिखाइए।”#मत 12:38 2येशु ने उत्तर दिया, “शाम को तुम लोग कहते हो, ‘मौसम अच्छा रहेगा, क्योंकि आकाश लाल है।’#लू 12:54-56 3सबेरा होने पर कहते हो, ‘आज आँधी आएगी, क्योंकि आकाश लाल और बादलों से घिरा हुआ है।’ तुम लोग आकाश के लक्षण तो पहचान लेते हो, पर समय के लक्षण नहीं पहचान सकते।#मत 11:4 4यह दुष्ट और व्यभिचारिणी पीढ़ी एक चिह्न ढूँढ़ती है, परन्तु नबी योना के चिह्न को छोड़ कर इसे और कोई चिह्न नहीं दिया जाएगा।” और येशु उन्हें छोड़ कर चले गये।#योना 2:1; मत 12:39-40
फरीसियों का खमीर
5शिष्य झील के उस पार पहुँचे। वे अपने साथ रोटियाँ लाना भूल गये थे। 6इसलिए जब येशु ने उन से कहा, “देखो, फरीसियों और सदूकियों के खमीर से सावधान रहना”#लू 12:1; 1 कुर 5:6-8 7तो वे आपस में कहने लगे, “हम रोटियाँ नहीं लाए, इसलिए यह ऐसा कह रहे हैं।” 8यह जान कर येशु ने उन से कहा, “अल्पविश्वासियो! तुम यह क्यों सोचते हो कि हमारे पास रोटियाँ नहीं हैं।#मत 6:30 9क्या तुम अब तक नहीं समझते? क्या उन पाँच हजार लोगों के लिए पाँच रोटियाँ तुम्हें याद नहीं हैं? और तुम ने रोटियों से भरी कितनी टोकरियाँ एकत्र की थीं?#मत 14:17-21 10और उन चार हजार लोगों के लिए सात रोटियाँ, और तुम ने कितने टोकरे इकट्ठे किए थे?#मत 15:34-38 11तुम क्यों नहीं समझते कि मैंने रोटियों के बारे में यह नहीं कहा, बल्कि फरीसियों और सदूकियों के खमीर से सावधान रहने को कहा है।” 12तब शिष्य समझ गये कि येशु ने रोटी के खमीर से नहीं, बल्कि फरीसियों और सदूकियों की शिक्षा से सावधान रहने को कहा था।#यो 6:27
पतरस का विश्वास
13जब येशु कैसरिया-फिलिप्पी प्रदेश में आए तब उन्होंने अपने शिष्यों से पूछा#मक 8:27-30; लू 9:18-21 , “मानव पुत्र कौन है, इस विषय में लोग क्या कहते हैं?” 14शिष्यों ने उत्तर दिया, “कुछ लोग कहते हैं, योहन बपतिस्मादाता; कुछ कहते हैं, नबी एलियाह और कुछ लोग कहते हैं, नबी यिर्मयाह अथवा नबियों में से कोई एक नबी।”#मत 14:2; 17:10 15इस पर येशु ने कहा, “और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?” 16सिमोन पतरस ने उत्तर दिया, “आप मसीह हैं, आप जीवन्त परमेश्वर के पुत्र हैं।”#यो 6:69; गल 1:15-16 17इस पर येशु ने उससे कहा, “सिमोन, योना के पुत्र! तुम धन्य हो, क्योंकि किसी निरे मनुष्य#16:17 मूल में, ‘माँस और रक्त’ ने नहीं, बल्कि मेरे स्वर्गिक पिता ने तुम पर यह प्रकट किया है।#मत 17:4-5 18मैं तुम से कहता हूँ कि तुम ‘पतरस’ अर्थात् ‘चट्टान’ हो और इस ‘चट्टान’ पर मैं अपनी कलीसिया#16:18 कलीसिया यूनानी शब्द ‘एक्लेसिया’ का हिन्दी रूपान्तर और इब्रानी शब्द ‘काहाल’ का अनुवाद है, अर्थात् (एकत्रित) समाज, विश्वासियों का समूह बनाऊंगा और अधोलोक के फाटक इस पर प्रबल नहीं हो पाएँगे।#यो 1:42; इफ 2:20; यश 28:16 19मैं तुम्हें स्वर्गराज्य की कुंजियाँ#16:19 कुंजियाँ : सर्वोच्च अधिकार का प्रतीक प्रदान करूँगा। जो कुछ तुम पृथ्वी पर बाँधोगे#16:19 बाँधना और खोलना : यहूदी धर्मशास्त्रियों की भाषा में ‘मना करना’ और ‘अनुमति देना’ अथवा, समाज से ‘बहिष्कृत करना’ और समाज में ‘स्वीकृत करना’ वह स्वर्ग में बंधा रहेगा। और जो कुछ पृथ्वी पर खोलोगे, वह स्वर्ग में खुला रहेगा।”#मत 18:18; यश 22:22; अय्य 38:17 20तब येशु ने अपने शिष्यों को कड़ी चेतावनी दी, “तुम किसी को भी यह नहीं बताना कि मैं मसीह हूँ।”#मत 17:9
दु:खभोग और पुनरुत्थान की प्रथम भविष्यवाणी
21उस समय से येशु अपने शिष्यों को यह समझाने लगे#मक 8:31—9:1; लू 9:22-27 कि “मुझे यरूशलेम जाना ही होगा। यह अनिवार्य है कि मैं वहाँ धर्मवृद्धों, महापुरोहितों और शास्त्रियों के हाथ से बहुत दु:ख उठाऊं, मार डाला जाऊं और तीसरे दिन जीवित हो उठूँ#16:21 अथवा “जीवित उठाया जाऊं”।”#यो 2:19
22पतरस येशु को अलग ले गया और उन्हें यह कहते हुए डाँटने लगा, “परमेश्वर ऐसा न करे। प्रभु! यह आप पर कभी नहीं बीतेगी।” 23इस पर येशु ने मुड़ कर, पतरस से कहा, “मेरे सामने से हट जाओ, शैतान! तुम मेरे रास्ते में बाधा बन रहे हो। तुम परमेश्वर की बातें नहीं, बल्कि मनुष्यों की बातें सोचते हो।”
आत्मत्याग की आवश्यकता
24इसके पश्चात् येशु ने अपने शिष्यों से कहा, “जो मेरा अनुसरण करना चाहता है, वह आत्मत्याग करे और अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले;#मत 10:38-39; लू 14:27 25क्योंकि जो कोई अपना प्राण सुरक्षित रखना चाहता है, वह उसे खो देगा और जो मेरे कारण अपना प्राण खोएगा वह उसे बचाएगा। 26मनुष्य को इससे क्या लाभ यदि वह सारा संसार तो प्राप्त कर ले, लेकिन अपना प्राण ही गँवा दे? अपने प्राण के बदले में मनुष्य क्या देगा?#मत 4:8; लू 17:33; यो 12:25 27क्योंकि मानव-पुत्र अपने स्वर्गदूतों के साथ अपने पिता की महिमा में आएगा और वह प्रत्येक मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार फल देगा।#यो 5:29; रोम 2:6; भज 62:12; नीति 24:12 28मैं तुम से सच कहता हूँ, यहाँ खड़े लोगों में कुछ ऐसे लोग हैं, जो तब तक मृत्यु का स्वाद नहीं चखेंगे जब तक वे मानव-पुत्र को अपने राज्य में आता हुआ न देख लेंगे।”#मत 10:23
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