लूकस 1
1
प्रस्तावना
1-2जो आरम्भ से प्रत्यक्षदर्शी थे और शुभ संदेश के सेवक बने, उन से हमें जो परम्परा मिली, उसके आधार पर बहुतों ने हमारे बीच हुई घटनाओं का वर्णन प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।#यो 15:27 3मैंने भी आरम्भ से सब बातों का सावधानी से अध्ययन किया है। इसलिए श्रीमान् थिओफिलुस, मुझे आपके लिए उनका क्रमबद्ध विवरण लिखना उचित जान पड़ा,#प्रे 1:1 4जिससे आप यह जान लें कि जिन बातों की शिक्षा आप को मिली है, वे प्रामाणिक हैं।
योहन बपतिस्मादाता के जन्म का सन्देश
5यहूदा प्रदेश के राजा हेरोदेस के समय में अबिय्याह के दल का जकर्याह नामक एक पुरोहित था। उसकी पत्नी हारून वंश की थी। उसका नाम एलीशेबा था।#1 इत 25:10 6वे दोनों परमेश्वर की दृष्टि में धार्मिक थे। वे प्रभु की सब आज्ञाओं और नियमों का निर्दोष अनुसरण करते थे। 7उनके कोई सन्तान नहीं थी, क्योंकि एलीशेबा बाँझ थी और दोनों बूढ़े हो चले थे।
8जब जकर्याह नियुिक्त के क्रम से अपने दल के साथ परमेश्वर के सामने पुरोहित का कार्य कर रहा था, 9तब पुरोहितों की प्रथा के अनुसार उसके नाम चिट्ठी निकली कि वह प्रभु के मन्दिर में प्रवेश कर धूप जलाए।#नि 30:7 10धूप जलाने के समय सब लोग बाहर प्रार्थना कर रहे थे। 11उस समय प्रभु का दूत उसे धूप की वेदी की दायीं ओर दिखाई दिया। 12जकर्याह स्वर्गदूत को देख कर घबरा गया और भयभीत हो उठा; 13परन्तु स्वर्गदूत ने उससे कहा, “जकर्याह! डरिए नहीं। आपकी प्रार्थना सुनी गयी है। आपकी पत्नी एलीशेबा को एक पुत्र उत्पन्न होगा। आप उसका नाम ‘योहन’#1:13 अर्थात् ‘प्रभु कृपालु है।’ रखना। 14आप आनन्दित और उल्लसित होंगे और उसके जन्म पर बहुत लोग आनन्द मनाएँगे, 15क्योंकि वह प्रभु की दृष्टि में महान् होगा। वह दाखरस और मदिरा नहीं पिएगा, वरन् अपनी माता के गर्भ से ही पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होगा।#गण 6:3; शास 13:4-5; 1 शम 1:11 16वह इस्राएल के बहुत लोगों को उनके प्रभु परमेश्वर की ओर लौटा लाएगा। 17वह नबी एलियाह के सदृश आत्मा और सामर्थ्य से सम्पन्न होकर प्रभु का अग्रदूत बनेगा, जिससे वह माता-पिता और उनकी संतान में मेल कराए और आज्ञा-उल्लंघन करने वालों को धार्मिकों की सद्बुद्धि प्रदान करे, और प्रभु के लिए एक सुयोग्य प्रजा तैयार करे।”#मत 17:11-13; मल 3:1; 4:5-6; प्रव 48:10-11
18जकर्याह ने स्वर्गदूत से कहा, “मैं यह कैसे जानूँ? क्योंकि मैं तो बूढ़ा हूँ और मेरी पत्नी भी बूढ़ी हो चली है।”#उत 18:11 19स्वर्गदूत ने उसे उत्तर दिया, “मैं गब्रिएल स्वर्गदूत हूँ। परमेश्वर के सामने उपस्थित रहता हूँ। मैं आप से बातें करने और आप को यह शुभ समाचार सुनाने भेजा गया हूँ।#दान 8:16; 9:21; इब्र 1:14; तोब 12:15 20देखिए, जिस दिन तक ये बातें पूरी नहीं होंगी, उस दिन तक आप गूँगे रहेंगे और बोल नहीं सकेंगे; क्योंकि आपने मेरी बातों पर, जो अपने समय पर पूरी होंगी, विश्वास नहीं किया।”#लू 1:45
21जनसमूह जकर्याह की बाट जोह रहा था और आश्चर्य कर रहा था कि वह मन्दिर में इतनी देर क्यों लगा रहा है। 22बाहर निकलने पर जब वह उन से बोल नहीं सका, तो वे समझ गये कि उस ने मन्दिर में कोई दर्शन देखा है। वह उनसे हाथ से इशारा करता रहा, और मुँह से बोल न सका।
23अपनी धर्म-सेवा के दिन पूरे हो जाने पर वह अपने घर चला गया। 24कुछ समय बाद उसकी पत्नी एलीशेबा गर्भवती हुई। उसने पाँच महीने तक अपने को यह कहते हुए छिपाये रखा, 25“प्रभु ने समाज में मेरा कलंक दूर करने के लिए अब मुझ पर कृपा-दृष्टि की है।”#उत 30:23
प्रभु येशु के जन्म का सन्देश
26छठे महीने स्वर्गदूत गब्रिएल परमेश्वर की ओर से, गलील प्रदेश के नासरत नामक नगर में एक कुँआरी के पास भेजा गया, 27जिसकी मंगनी राजा दाऊद के वंशज यूसुफ़ नामक पुरुष से हुई थी। उस कुँआरी का नाम मरियम था।#लू 2:5; मत 1:16,18 28स्वर्गदूत ने उसके पास आ कर उससे कहा, “प्रणाम,#1:28 अथवा ‘आनन्द मनाइए’। प्रभु की कृपापात्री! प्रभु आपके साथ है।”#शास 5:24; सप 3:14 29वह इस कथन से बहुत घबरा गयी और मन में सोचने लगी कि इस प्रणाम का अर्थ क्या है। 30तब स्वर्गदूत ने उससे कहा, “मरियम! डरिए नहीं। परमेश्वर ने आप पर कृपा की है। 31देखिए, आप गर्भवती होंगी, और एक पुत्र को जन्म देंगी और उसका नाम ‘येशु’#1:31 अर्थात् ‘प्रभु उद्धारकर्ता है’। रखेंगी।#शास 13:3; यश 7:14; मत 1:21-23 32वह महान होगा और सर्वोच्च परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा। प्रभु परमेश्वर उसे उसके पूर्वज दाऊद का सिंहासन प्रदान करेगा। #यश 9:7; 2 शम 7:12-13,16 33वह याकूब के वंश पर सदा-सर्वदा राज्य करेगा और उसके राज्य का अन्त कभी नहीं होगा।”#मी 4:7; दान 7:14
34मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, “यह कैसे सम्भव होगा? क्योंकि मैं पुरुष को नहीं जानती।” 35स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, “पवित्र आत्मा आप पर उतरेगा और सर्वोच्च परमेश्वर का सामर्थ्य आप पर छाया करेगा। इसलिए जो आप से उत्पन्न होगा, वह पवित्र होगा और परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा।#नि 13:12; मत 1:18,20 36देखिए, बुढ़ापे में आपकी कुटुम्बिनी एलीशेबा को भी पुत्र होने वाला है। अब उसका, जो बाँझ कहलाती थी, छठा महीना हो रहा है; 37क्योंकि परमेश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।”#उत 18:14
38मरियम ने कहा, “देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ। आपके कथन के अनुसार मेरे लिए हो।” तब स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।
मरियम और एलीशेबा का मिलन
39उन दिनों मरियम उठी और पहाड़ी क्षेत्र में यहूदा प्रदेश के एक नगर को शीघ्रता से गई। 40उसने जकर्याह के घर में प्रवेश कर एलीशेबा का अभिवादन किया। 41ज्यों ही एलीशेबा ने मरियम का अभिवादन सुना, बच्चा उसके गर्भ में उछल पड़ा और एलीशेबा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गयी#लू 1:15; उत 25:22; 2 शम 6:14 42और ऊंचे स्वर से बोल उठी, “आप नारियों में धन्य हैं और धन्य है आपके गर्भ का फल!#व्य 28:4; शास 5:24; यहूदी 13:18 43मुझे यह सौभाग्य कैसे प्राप्त हुआ कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आयीं? 44क्योंकि देखिए, ज्यों ही आपका प्रणाम मेरे कानों में पड़ा, बच्चा मेरे गर्भ में आनन्द के मारे उछल पड़ा। 45धन्य हैं आप, जिन्होंने यह विश्वास किया कि प्रभु ने आप से जो कहा, वह पूरा होगा!”#लू 1:20; 11:28
मरियम का भजन
46इस पर मरियम ने यह कहा :
“मेरी आत्मा प्रभु का गुनगान करती है;#1 शम 2:1-10
47मेरा प्राण अपने मुक्तिदाता परमेश्वर में
आनन्द मनाता है;
48क्योंकि उसने अपनी दासी की दीनता पर
कृपा-दृष्टि की है।#लू 1:25; 1 शम 1:11; भज 113:5-6; लू 11:27; प्रव 11:12
अब से सब पीढ़ियाँ मुझे धन्य कहेंगी;
49क्योंकि सर्वशक्तिमान ने मेरे लिए महान्
कार्य किये हैं।
पवित्र है उसका नाम!#भज 111:9
50उसकी करुणा उसके भक्तों पर पीढ़ी-दर-
पीढ़ी बनी रहती है।#भज 103:13,17
51“प्रभु ने अपना बाहुबल प्रदर्शित किया है,
उसने अक्खड़ घमण्डियों को तितर-बितर
कर दिया।#भज 89:10; 2 शम 22:28
52उसने शक्तिशालियों को उनके सिंहासनों से
उतार दिया
और दीनों को महान् बनाया।#भज 147:6; अय्य 12:19; 5:11; 1 शम 2:7; प्रव 10:14
53उसने भूखों को अच्छी वस्तुओं से तृप्त किया
और धनवानों को खाली हाथ लौटा दिया।#1 शम 2:5; भज 34:10; 107:9
54उसने अपनी करुणा को स्मरण कर, अपने
सेवक इस्राएल को संभाला;#यश 41:8; भज 98:3
55जैसी प्रतिज्ञा उसने हमारे पूर्वजों से की थी
कि अब्राहम तथा उनकी सन्तान के प्रति
उसकी करुणा सदा बनी रहेगी।”#मी 7:20; उत 17:7; 18:18; 22:17
56लगभग तीन महीने एलीशेबा के साथ रह कर मरियम अपने घर लौट गयी।
योहन बपतिस्मादाता का जन्म
57एलीशेबा के प्रसव का समय पूरा हुआ और उसने एक पुत्र को जन्म दिया। 58जब उसके पड़ोसियों और सम्बन्धियों ने सुना कि प्रभु ने उस पर इतनी बड़ी दया की है, तब उन्होंने उसके साथ आनन्द मनाया।
59आठवें दिन वे बालक का खतना करने आए। वे उसका नाम उसके पिता के नाम पर जकर्याह रखना चाहते थे,#उत 17:12 60परन्तु उसकी माँ ने कहा, “नहीं, इसका नाम ‘योहन’ रखा जाएगा।”#लू 1:13 61उन्होंने उससे कहा, “तुम्हारे कुटुम्ब में यह नाम तो किसी का भी नहीं है।” 62तब उन्होंने उसके पिता से इशारे से पूछा कि वह उसका क्या नाम रखना चाहता है। 63उसने पाटी मँगा कर लिखा, “इसका नाम योहन है।” सब अचम्भे में पड़ गये। 64उसी क्षण जकर्याह के मुख और जीभ के बन्धन खुल गये और वह परमेश्वर की स्तुति करते हुए बोलने लगा। 65सब पड़ोसियों पर प्रभु का भय छा गया। और यहूदा प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र में ये सब बातें चारों ओर फैल गयीं। 66सब सुनने वालों ने उन पर मन-ही-मन विचार कर कहा, “पता नहीं, यह बालक क्या बनेगा?” क्योंकि सचमुच बालक पर प्रभु का हाथ था।
जकर्याह का भजन
67योहन का पिता जकर्याह पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गया और उसने यह कहते हुए नबूवत की :
68“धन्य है प्रभु, इस्राएल का परमेश्वर!
उसने अपनी प्रजा की सुध ली है
और उसका उद्धार किया है।#लू 7:16; भज 41:13; 72:18
69उसने अपने सेवक दाऊद के वंश में हमारे
लिए एक शक्तिशाली मुक्तिदाता #1:69 अथवा, ‘उद्धार का सींग’ उत्पन्न
किया है। #1 शम 2:10; भज 18:2; 132:17
70वह अपने पवित्र नबियों के मुख से प्राचीन
काल से यह कहता आया है
71कि वह शत्रुओं और सब बैरियों के हाथ से
हमें छुड़ाएगा#भज 106:10
72और अपने पवित्र विधान#1:72 अथवा ‘वाचा’ को स्मरण कर
हमारे पूर्वजों पर दया करेगा।#भज 105:8; 106:45; उत 17:7; लेव 26:42
73उसने शपथ खा कर हमारे पिता अब्राहम से
कहा था#उत 22:16-17; मी 7:20
74कि वह हमारे शत्रुओं के हाथ से हमें मुक्त
करेगा,
75जिससे हम निर्भयता, पवित्रता और धार्मिकता
से
जीवन भर उसके सम्मुख उसकी सेवा कर
सकें।#तीत 2:12
76“हे बालक! तू सर्वोच्च परमेश्वर का नबी
कहलाएगा;
तू प्रभु का अग्रदूत बनेगा
कि तू उसका मार्ग तैयार करे#मल 3:1; मत 3:3; मक 1:2
77और उसकी प्रजा को पाप-क्षमा द्वारा मुक्ति
का ज्ञान प्रदान करे।#यिर 31:34
78हमारे परमेश्वर की इस प्रेमपूर्ण दया से
हमें स्वर्ग से प्रकाश प्राप्त होगा,#गण 24:17; यश 60:1-2; मल 4:2
79जिससे वह अन्धकार और मृत्यु की छाया में
बैठने वालों को ज्योति प्रदान करे
और हमारे चरणों को शान्ति-पथ पर अग्रसर
करे।”#मत 4:16; यश 9:2; 58:8
80बालक योहन बढ़ता गया और उसका आत्मिक बल विकसित होता गया। वह इस्राएल के सामने प्रकट होने के दिन तक निर्जन प्रदेश में रहा।#मत 3:1; 2:4; मी 5:2-4
Currently Selected:
लूकस 1: HINCLBSI
Highlight
Share
Copy
Want to have your highlights saved across all your devices? Sign up or sign in
Hindi CL Bible - पवित्र बाइबिल
Copyright © Bible Society of India, 2015.
Used by permission. All rights reserved worldwide.