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लेवीय व्‍यवस्‍था 19

19
पवित्रता और न्‍याय के नियम
1प्रभु मूसा से बोला, 2‘तू समस्‍त इस्राएली मण्‍डली से बोलना; तू उनसे यह कहना: पवित्र बनो! क्‍योंकि मैं प्रभु तुम्‍हारा परमेश्‍वर पवित्र हूँ।#लेव 11:44; 20:7,26; इफ 1:4; 1 थिस 4:7; 1 पत 1:16 3प्रत्‍येक व्यक्‍ति अपने माता-पिता का आदर करेगा। तुम मेरे विश्राम दिवसों का पालन करोगे। मैं प्रभु, तुम्‍हारा परमेश्‍वर हूँ।#नि 20:8,12; व्‍य 5:12,16
4‘तुम मूर्तियों की ओर उन्‍मुख मत होना, और न उनकी पूजा करने के लिए देवताओं की प्रतिमाएं बनाना। मैं प्रभु तुम्‍हारा परमेश्‍वर हूँ।#नि 20:4,23; 34:16; लेव 26:1; व्‍य 27:15
5‘जब तुम सहभागिता-बलि के पशु को मेरे लिए बलि करोगे, तब उसको इस प्रकार बलि करना कि मैं तुमसे प्रसन्न हो सकूँ। 6जिस दिन तुम बलि करोगे, उसी दिन अथवा दूसरे दिन उसका मांस खाना। परन्‍तु तीसरे दिन का बचा हुआ मांस अग्‍नि में जलाया जाएगा। 7यदि तुम बचा हुआ मांस तीसरे दिन भी खाओगे तो वह दूषित होगा। उससे मुझे प्रसन्नता न होगी। 8उसको खाने वाला अपने अधर्म का भार स्‍वयं वहन करेगा; क्‍योंकि उसने प्रभु की पवित्र वस्‍तु को अपवित्र किया है। ऐसा व्यक्‍ति अपने लोगों में से नष्‍ट किया जाएगा।
9‘जब तुम अपनी भूमि की फसल काटोगे तब खेतों को पूरा का पूरा मत काटना, और न फसल की कटाई के पश्‍चात् सिल्‍ला बीनना।#लेव 23:22; व्‍य 24:19-22 10तुम अपने अंगूर-उद्यान के सब अंगूर तोड़कर उसको पूर्णत: झाड़ मत देना; और न अपने अंगूर-उद्यान के गिरे हुए फलों को बीनना। तुम उनको निर्धन और प्रवासी लोगों के लिए छोड़ देना। मैं प्रभु, तुम्‍हारा परमेश्‍वर हूँ।
11‘तुम चोरी न करना। धोखा मत देना। एक-दूसरे से#19:11 शब्‍दश:, ‘प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति देश-भाई से’। झूठ मत बोलना।#नि 20:15; व्‍य 5:19 12तुम मेरे नाम से झूठी शपथ नहीं खाना; और इस प्रकार अपने परमेश्‍वर का नाम अपवित्र मत करना। मैं प्रभु हूँ।#नि 20:7; व्‍य 5:11; मत 5:33 13तुम अपने पड़ोसी पर अत्‍याचार मत करना, और न उसको लूटना। किसी मजदूर की मजदूरी रात से सबेरे तक तुम्‍हारे पास नहीं रहनी चाहिए।#व्‍य 24:14; याक 5:4 14तुम बहरे को अपशब्‍द मत कहना, और न अन्‍धे के सम्‍मुख रोड़ा अटकाना, वरन् तुम परमेश्‍वर से डरना। मैं प्रभु हूँ।#व्‍य 27:18
15‘तुम न्‍याय करते समय अन्‍याय मत करना। तुम न तो दरिद्र व्यक्‍ति का पक्ष लेना और न बड़े मनुष्‍य के सम्‍मुख झुकना, वरन् धार्मिकता से अपने देश-भाई अथवा बहिन का न्‍याय करना।#नि 23:6-8; व्‍य 1:17; 16:19 16तुम निन्‍दक के समान अपने लोगों में यहां-वहां निन्‍दा मत फैलाना, और न अपने पड़ोसी की हत्‍या के उदेश्‍य से घात लगाना। मैं प्रभु हूँ।
17‘तुम अपने भाइयों अथवा बहिनों#19:17 मूल में, ‘भाई’ से हृदय में घृणा मत करना। तुम अपने देश-भाई अथवा बहिन को अवश्‍य समझाना। ऐसा न हो कि उसके कारण तुम्‍हें पाप का भार वहन करना पड़े।#यहेज 33:6; मत 18:15 18तुम अपने जाति-भाई-बहिनों से प्रतिशोध न लेना, और न उनके प्रति शत्रुता रखना, वरन् अपने पड़ोसी को अपने ही समान प्रेम करना। मैं प्रभु हूँ। #मत 5:43; 19:19; 22:39; रोम 12:17,19; 13:9; गल 5:14; याक 2:8
19‘तुम मेरी संविधियों का पालन करना। तुम अपने पशुओं को विजातीय पशुओं से गर्भाधान मत कराना। तुम अपने खेतों में दो जाति के बीज नहीं बोना, और न सूती-ऊनी धागे के सम्‍मिश्रण से बुने हुए वस्‍त्र अपने ऊपर धारण करना। #व्‍य 22:9-11
20‘यदि कोई पुरुष ऐसी स्‍त्री के साथ, जो दासी है, जिसकी मंगनी दूसरे पुरुष से हुई है और जिसको मूल्‍य देकर मुक्‍त नहीं किया गया है, अथवा जिसे स्‍वतन्‍त्रता नहीं दी गई है, कामुक होकर सहवास करता है, तो जांच-पड़ताल की जाएगी। उन्‍हें मृत्‍यु-दण्‍ड नहीं मिलेगा; क्‍योंकि वह स्‍वतन्‍त्र नहीं थी। 21किन्‍तु वह पुरुष प्रभु के लिए दोष-बलि में चढ़ाने के हेतु एक मेढ़ा मिलन-शिविर के द्वार पर लाएगा। 22जो पाप उसने किया है, उसके लिए पुरोहित प्रभु के सम्‍मुख दोष-बलि के मेढ़े से प्रायश्‍चित करेगा। तब उसका पाप क्षमा किया जाएगा।
23‘जब तुम कनान देश में प्रवेश करोगे, और वहाँ आहार के लिए सब प्रकार के वृक्ष लगाओगे, तब उनके फलों को वर्जित मानना। तीन वर्ष तक उनके फल तुम्‍हारे लिए वर्जित रहेंगे। तुम उन्‍हें कदापि मत खाना। 24वृक्ष के सब फल चौथे वर्ष में प्रभु के स्‍तुति-उत्‍सव के निमित्त पवित्र होंगे। 25तुम पांचवें वर्ष में उनके फल खा सकते हो, जिससे वे तुम्‍हारे लिए फल की भरपूर फसल उत्‍पन्न करें। मैं प्रभु, तुम्‍हारा परमेश्‍वर हूँ।
26‘तुम रक्‍त सम्‍मिश्रित मांस मत खाना। तुम शकुन-अपशकुन मत मानना, और न जादू-टोना करना।#उत 9:4; लेव 7:26; व्‍य 18:10 27तुम मृत्‍यु शोक प्रकट करने के लिए अपनी कनपटी के केशों को मत मूंड़ना और न दाढ़ी के किनारे को काटना। 28किसी व्यक्‍ति की मृत्‍यु के कारण अपने शरीर पर घाव मत करना, और न उस पर गोदने गुदवाना। मैं प्रभु हूँ।#लेव 21:5; व्‍य 14:1; यिर 16:6; यहेज 7:18
29‘तुम अपनी पुत्री को वेश्‍या बनाकर भ्रष्‍ट मत करना; ऐसा न हो कि सारा देश वेश्‍यागमन करने लगे और वह लम्‍पटता से भर जाए।#व्‍य 23:17 30तुम मेरे विश्राम-दिवसों का पालन करना; मेरे पवित्र-स्‍थान के प्रति श्रद्धा रखना। मैं प्रभु हूँ।#लेव 26:2; नि 20:8; यिर 17:21; यहेज 20:12
31‘तुम ओझों अथवा भूत-प्रेत साधनेवालों की ओर उन्‍मुख मत होना। उन्‍हें मत खोजना, अन्‍यथा उनके द्वारा तुम अपवित्र हो जाओगे। मैं प्रभु, तुम्‍हारा परमेश्‍वर हूँ।#1 शम 28:7; 2 रा 23:4; यश 8:19
32‘तुम आदर देने के लिए वृद्ध मनुष्‍य के सम्‍मुख खड़े होना, और वयोवृद्ध मनुष्‍य का सम्‍मान करना। तुम अपने परमेश्‍वर से डरना। मैं प्रभु हूँ।
33‘यदि कोई प्रवासी तुम्‍हारे साथ तुम्‍हारे देश में निवास करता है तो तुम उस पर अत्‍याचार मत करना।#नि 22:21; व्‍य 24:17; 27:19 34तुम्‍हारे मध्‍य में निवास करने वाला प्रवासी व्यक्‍ति तुम्‍हारे लिए देशी भाई अथवा बहिन के सदृश होगा। तुम उससे अपने समान प्रेम करना; क्‍योंकि तुम भी मिस्र देश में प्रवासी थे। मैं प्रभु, तुम्‍हारा परमेश्‍वर हूँ।
35‘तुम न्‍याय, पाप, तौल और मात्रा में अन्‍याय मत करना।#आमो 8:5; यश 10:2 36तुम्‍हारे तराजू, बाट, किलो और लिटर#19:36 मूल में “एपा और हीन” सब ठीक-ठीक हों। मैं प्रभु, तुम्‍हारा परमेश्‍वर हूँ, जिसने तुम्‍हें मिस्र देश से बाहर निकाला है।#व्‍य 25:13; नीति 20:10; यहेज 45:10 37तुम मेरी सब संविधियों और न्‍याय-सिद्धान्‍तों का पालन करना, और उन्‍हें व्‍यवहार में लाना। मैं प्रभु हूँ।’

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