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अय्‍यूब पुस्‍तक-परिचय

पुस्‍तक-परिचय
प्रस्‍तुत काव्‍य-ग्रन्‍थ में एक धार्मिक व्यक्‍ति के दु:खभोग की कहानी है, जिसके माध्‍यम से एक शाश्‍वत प्रश्‍न उठाया गया है कि मनुष्‍य पर दु:ख क्‍यों आता है। वास्‍तव में यह प्राचीन लोक-कथा का प्रसंग है, और इसका नायक−अय्‍यूब−अनेक प्रकार से अकारण दु:ख भोगता है। प्राक्‍कथन गद्य में है। इसमें अय्‍यूब को धीर-प्रशांत व्यक्‍ति के रूप में दर्शाया गया है, जो हर विपत्ति में खरा उतरता है। उसके पुत्र अचानक मर जाते हैं। उसकी धन-सम्‍पत्ति नष्‍ट हो जाती है। वह स्‍वयं एक असाध्‍य रोग से पीड़ित हो जाता है। इन सब विपत्तियों में भी अय्‍यूब अपने मुंह से कोई पाप-वचन नहीं निकालता, परमेश्‍वर की निन्‍दा नहीं करता।
ग्रंथ के काव्‍य-भाग में रचयिता अय्‍यूब के तीन मित्रों के माध्‍यम से दु:ख की समस्‍या का समाधान संवादों के द्वारा ढूँढने का प्रयत्‍न करता है। तीनों मित्रों का अय्‍यूब की विपत्तियों के सम्‍बन्‍ध में अपना-अपना दृष्‍टिकोण है। स्‍वयं अय्‍यूब भी अपने दु:ख के विषय में अपना दृष्‍टिकोण प्रस्‍तुत करता है। इस प्रकार रचयिता के समय में (सम्‍भवत: छठी सदी ईसवी पूर्व) लोक-प्रचलित दु:ख संबंधी विचारधाराओं का पता चलता है।
अय्‍यूब के मित्र धार्मिक परम्‍परा के अनुरूप धार्मिक शब्‍दावली में अय्‍यूब के दु:ख का कारण बताते हैं कि परमेश्‍वर मनुष्‍य के अच्‍छे कर्म का अच्‍छा फल तथा बुरे कर्म का बुरा फल देता है। वह सत्‍कर्म करने वाले को पुरस्‍कृत करता तथा दुष्‍कर्म करने वाले को दण्‍ड देता है। अत: अय्‍यूब के दु:ख का कारण उसके दुष्‍कर्म हैं, किन्‍तु अय्‍यूब इस दृष्‍टिकोण को स्‍वीकार नहीं करता। उसकी मान्‍यता यह है कि उसने ऐसे कठोर दण्‍ड के उपयुक्‍त कोई पाप अथवा दुष्‍कर्म नहीं किया है। वह हर दृष्‍टि से धार्मिक है। वह समझ नहीं पाता है कि मुझ-जैसे धार्मिक पुरुष पर परमेश्‍वर ने इस प्रकार के दु:ख क्‍यों आने दिये। वह साहस के साथ परमेश्‍वर को भी ललकारता है। अय्‍यूब असहनीय दु:ख के बावजूद परमेश्‍वर पर अपना विश्‍वास नहीं खोता। फिर भी वह चाहता है कि परमेश्‍वर उसके साथ न्‍याय करे, और उसे निर्दोष प्रमाणित करे, ताकि समाज धार्मिक व्यक्‍ति के रूप में उसे पुन: स्‍वीकार करे।
काव्‍य ग्रंथ के अंतिम अध्‍यायों में परमेश्‍वर स्‍वयं इस वाद-विवाद में हस्‍तक्षेप करता है। इससे ठीक पहले एलीहू नामक युवा श्रोता एकाएक मंच पर आता है और अपने ओजस्‍वी भाषण में सब पर अभियोग लगाता है। अचानक परमेश्‍वर बवण्‍डर में से बोल उठता है।
यद्यपि परमेश्‍वर अय्‍यूब को सीधा उत्तर नहीं देता और न ही उसकी शंका का समाधान करता है, फिर भी वह अय्‍यूब के विश्‍वास का प्रतिफल देता है। वह अपने सामर्थ्य और ज्ञान का प्रकाश उस पर उदित करता है। अय्‍यूब विनम्रतापूर्वक यह स्‍वीकार करता है कि केवल परमेश्‍वर ही महान और बुद्धिमान है। तब वह अपने क्रोध में उच्‍चारित शब्‍दों के लिए पश्‍चात्ताप करता है।
प्रस्‍तुत काव्‍य ग्रंथ का अन्‍त भी गद्य में है। इसमें यह बताया गया है कि परमेश्‍वर अय्‍यूब का दु:ख दूर करता है। जितनी धन-सम्‍पत्ति अय्‍यूब के पास पहले थी, उसका दुगुना वह अय्‍यूब को लौटा देता है। यों वह अय्‍यूब को धन-सम्‍पत्ति एवं वैभव से पुन: सम्‍पन्न कर देता है। परमेश्‍वर अय्‍यूब के मित्रों को उनकी मूर्खतापूर्ण बातों के लिए डांटता है, क्‍योंकि उन्‍होंने अय्‍यूब के दु:ख का भेद नहीं समझा था! केवल अय्‍यूब ही यह समझ सका कि परम्‍परावादी धर्म ने परमेश्‍वर को जिस रूप से चित्रित किया है, परमेश्‍वर उससे कहीं अधिक महान है।
विषय-वस्‍तु की रूपरेखा
प्राक्‍कथन 1:1−2:13
अय्‍यूब और उसके मित्र 3:1−31:40
(क) अय्‍यूब की शिकायत 3:1-26
(ख) प्रथम संवाद 4:1−14:22
(ग) दूसरा संवाद 15:1−21:34
(घ) तीसरा संवाद 22:1−27:23
(च) बुद्धि की प्रशंसा में 28:1-28
(छ) अय्‍यूब का अंतिम तर्क 29:1−31:40
एलीहू का भाषण 32:1−37:24
प्रभु परमेश्‍वर का अय्‍यूब को उत्तर 38:1−42:6
उपसंहार 42:7-17

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