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अय्‍यूब 35

35
अय्‍यूब पर तीसरा आरोप
1एलीहू ने यह भी कहा,
2‘क्‍या तुम इस बात को न्‍यायसंगत
समझते हो?
क्‍या तुम यह दावा करते हो कि तुम परमेश्‍वर
से अधिक धार्मिक हो?
3तुमने पूछा कि “मुझे धार्मिकता से क्‍या लाभ
हुआ?
पाप न करने से मेरी दशा बेहतर हो गई?”
4मैं तुम्‍हें और तुम्‍हारे साथ
तुम्‍हारे मित्रों को उत्तर दूंगा।
5‘अय्‍यूब, आकाश की ओर दृष्‍टि डालो; और
ध्‍यान से देखो;
उन बादलों को निहारो, जो तुम से अधिक
ऊंचाई पर हैं।
6यदि तुमने पाप किया तो तुम्‍हारे इस कार्य से
परमेश्‍वर का क्‍या बिगड़ गया?
यदि तुम एक के बाद एक अपराध करते
जाओ
तो तुम परमेश्‍वर का क्‍या कर लोगे?#अय्‍य 2:2-3
7यदि तुम धार्मिक हो तो तुम उसको क्‍या दे
देते हो?
अथवा तुम्‍हारी धार्मिकता के कारण वह
तुमसे क्‍या पा जाता है?
8अय्‍यूब, तुम्‍हारे दुष्‍कर्मों का सम्‍बन्‍ध तुम्‍हारे
जैसे ही मनुष्‍य से होता है;
तुम्‍हारी धार्मिकता का फल भी मानव को
मिलता है।
9‘अत्‍याचार बढ़ जाने पर मनुष्‍य दुहाई देते हैं,
वे बलवान के बाहुबल के कारण सहायता
के लिए पुकारते हैं।
10पर वे यह नहीं कहते, “मेरा सृजन
करनेवाला परमेश्‍वर कहाँ है?
वह हमें रात में भी गीत गाने की प्रेरणा देता
है।
11वह हमें पृथ्‍वी के पशुओं से अधिक शिक्षा
देता है।
वह हमें आकाश के पक्षियों से अधिक
बुद्धि देता है।”
12‘वे दुहाई देते हैं, किन्‍तु परमेश्‍वर उनको
उत्तर नहीं देता;
बुरे लोगों के अहंकार के कारण
उनकी दुहाई व्‍यर्थ जाती है।
13निस्‍सन्‍देह परमेश्‍वर व्‍यर्थ दुहाई नहीं सुनता;
सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर उस पर ध्‍यान नहीं
देता।
14तब तुम यह शिकायत क्‍यों करते हो कि तुम्‍हें
उसका दर्शन नहीं मिलता;
तुम्‍हारा मुकदमा उसके सम्‍मुख है,
और तुम उसकी प्रतीक्षा कर रहे हो?
15अय्‍यूब, परमेश्‍वर ने तुम पर क्रोध कर तुम्‍हें
दण्‍ड नहीं दिया,
उसने तुम्‍हारे अपराध पर अधिक ध्‍यान नहीं
दिया
16तो तुम मुंह खोलकर व्‍यर्थ की बकवास
करने लगे,
और बेसमझी की बातें बढ़ाते जा रहे हो।’

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