YouVersion Logo
Search Icon

अय्‍यूब 3

3
अय्‍यूब अपने जन्‍म-दिवस को धिक्‍कारता है
1इसके बाद अय्‍यूब ने अपना मुँह खोला और उसने इन शब्‍दों में अपने जन्‍म-दिवस को धिक्‍कारा। 2उसने कहा :
3‘जिस दिन मैं पैदा हुआ वह नष्‍ट हो जाए!
जिस रात को यह कहा गया
कि शिशु गर्भ में आया,
वह रात मिट जाए#प्रव 23:14#यिर 20:14-18
4वह दिन अंधकारमय हो जाए!
स्‍वर्ग से परमेश्‍वर उसकी सुधि न ले,
और न प्रकाश उस पर चमके!
5अंधकार और मृत्‍यु की छाया
उस पर अपना अधिकार जमायें;
काली घटाएँ उस पर छा जाएँ,
दिन की सघन रेतीली हवाएँ उसको डराएँ।
6उस रात को—
जब मैं गर्भ में आया था,
तिमिर अंधकार घेर ले;
साल के दिनों में उसको
आनन्‍द का दिन न माना जाए;
महीने के दिनों में उसको गिना न जाए।
7वह रात बाँझ हो जाए,
उसमें सोहर का आनन्‍द-गान न सुनाई दे।
8श्राप देनेवाले उसको श्राम दें,
लिव्‍यातान राक्षस को जगाने में निपुण व्यक्‍ति
उस रात को कोसें।
9भोर के तारे अन्‍धकारमय हो जाएँ।
रात को सबेरे के प्रकाश की आशा हो,
पर उसकी आशा कभी पूरी न हो;
वह प्रात: की किरण-रूपी पलकों को न देख
सके।
10क्‍योंकि उस रात ने मेरी माँ की कोख को बन्‍द
नहीं किया,
और न ही मेरी आँखों के सामने से
दु:ख दर्द हटाया।
11‘मैं जन्‍म के समय मर क्‍यों न गया;
गर्भ से बाहर आते ही मेरा प्राण
क्‍यों न निकल गया?
12मैं पिता के घुटनों पर क्‍यों रखा गया?
मुझे माँ का दूध क्‍यों पिलाया गया?
13यदि मैं मर गया होता
तो अब चुपचाप पड़ा रहता,
मैं चिरनिद्रा में सोता
और आराम करता—
14पृथ्‍वी के राजाओं और मन्‍त्रियों के साथ
जिन्‍होंने अपनी यादगार में
खण्‍डहरों का पुनर्निर्माण किया था,#यहेज 32:18-30
15अथवा उन धनवानों के साथ
जिनके पास अपार सोना था,
जिन्‍होंने अपने महलों को चाँदी से भर
लिया था।
16मैं समय से पूर्व उत्‍पन्न मृत शिशु के समान,
गर्भपात के सदृश क्‍यों न हुआ,
जो प्रकाश तक नहीं देख पाता?
17अधोलोक में दुष्‍ट अपनी दुष्‍टता से छूट जाते
हैं,
वहाँ थके-माँदे लोग विश्राम पाते हैं।
18वहाँ बन्‍दी भी सुख से रहते हैं,
वहाँ उन के निरीक्षकों की कठोर आवाज
नहीं होती।
19अधोलोक में बड़े-छोटे सब बराबर हैं;
वहाँ गुलाम अपने मालिक से मुक्‍त रहता
है।
जो दु:ख में है, वह शीघ्र मर क्‍यों नहीं जाता?
20‘जो दु:ख में है,उसे जीवन का प्रकाश क्‍यों
दिया जाता है?
जिसका पैर कबर में लटका है, उसे जीवन
क्‍यों मिलता है?
21वे मृत्‍यु की प्रतीक्षा करते हैं, पर वह नहीं
आती;
गड़ा धन खोजनेवालों से अधिक
वे मृत्‍यु को खोजते हैं।#प्रक 9:6
22जब वे उसको पा लेते हैं,
तब उनके आनन्‍द की कोई सीमा नहीं
रहती,
वे अपनी मृत्‍यु से हर्षित होते हैं।
23‘जो व्यक्‍ति अपना मार्ग नहीं देख पाता है,
उसे प्रकाश क्‍यों दिखाया जाता है?
जिसके चारों ओर स्‍वयं परमेश्‍वर ने घेराबन्‍दी
कर दी है,
उसे रास्‍ता क्‍यों बताया जाता है?
24मेरी आहें ही मेरा भोजन हैं,
बहते हुए जल की तरह मेरी कराहें बहती हैं।
25जिस बात से मैं डरता था, वही मुझ पर
आयी;
जिससे मैं आतंकित था, वही मुझ पर टूट
पड़ा।
26न मुझे सुख है, और न शान्‍ति;
मुझे आराम भी नहीं है;
हर क्षण मुझ पर दु:ख के बादल मंडराते
हैं।’

Highlight

Share

Copy

None

Want to have your highlights saved across all your devices? Sign up or sign in