यिर्मयाह पुस्तक-परिचय
पुस्तक-परिचय
नबी यिर्मयाह का सेवा-काल ईसवी पूर्व सातवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से छठी शताब्दी के पूर्वार्ध तक माना जाता है। उन्होंने अपने दीर्घ सेवाकाल के आरंभ में धर्मसुधार के कार्यों में राजा योशियाह का साथ दिया था। नबी ने परमेश्वर के लोगों को चेतावनी दी थी कि इस्राएली राष्ट्र पर विनाश के बादल मंडरा रहे हैं, क्योंकि उन्होंने परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया है। यरूशलेम के निवासी मूर्तियों में अवास्तविकता की पूजा करने लगे, वरन् अपने पड़ोसी को वास्तविक आदर नहीं देते और यों अधर्म करते थे। इसलिए उनका मंदिर खड़ा नहीं रह सकेगा! नबी यिर्मयाह ने स्वयं अपने जीवनकाल में अपने इस कठोर वचन को सच प्रमाणित होते देखा। यरूशलेम नगर बेबीलोन के सम्राट नबूकदनेस्सर के हाथों विनष्ट हो गया। यरूशलेम का मंदिर भी खण्डहर हो गया, तथा प्रजा को गुलाम बन कर बेबीलोन देश जाना पड़ा। एकाएक नबी यिर्मयाह की वाणी मधुर हो गई। उन्होंने दृढ़तापूर्वक यह नबूवत की कि इस्राएली लोग अंतत: बंधुआई से वापस यरूशलेम लौटेंगे और इस्राएली राष्ट्र की पुन: स्थापना होगी।
यिर्मयाह ग्रन्थ को चार खण्डों में विभाजित किया जा सकता है:
पहला खण्ड: यहूदा प्रदेश के राजा योशियाह, यहोयाकीम तथा सिदकियाह के राज्यकाल में दिए गए सन्देश।
दूसरा खण्ड: यिर्मयाह के सचिव बारूक द्वारा लिखित कार्य-विवरण। अध्याय 36 में सन् 605 ईशवी पूर्व का यह अनिष्ट-सूचक दृश्य मिलता है कि राजा यहोयाकीम चर्मपत्र पर लिखित नबूवतों को जलाता है। अत: बारूक को एक नया संस्करण तैयार करना पड़ा। इसमें नबी यिर्मयाह की अनेक नबूवतें एवं उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएं उल्लिखित हैं (इसमें यरूशलेम के पतन के बाद की घटनाएं भी सम्मिलित हैं)।
तीसरा खण्ड: इस खण्ड में परमेश्वर के वे वचन हैं, जो उसने नबी के मुख से अन्य राष्ट्रों के सम्बन्ध में कहे थे।
चौथा खण्ड: वास्तव में यह ऐतिहासिक परिशिष्ट है, जिसमें यरूशलेम के पतन एवं बेबीलोन को निष्कासित होनेवालों का विवरण दिया गया है।
नबी यिर्मयाह एक संवेदनशील व्यक्ति थे। वह अपनी कौम से प्रेम करते थे और उन्हें उसके भविष्य की चिन्ता थी। वह अपने लोगों के लिए ऐसे अशुभ वचन अपने मुख से निकालना पसन्द नहीं करते थे, और उन्हें मानसिक कष्ट होता था कि वह परमेश्वर के नबी हैं। फिर भी उन्हें हथौड़े की मार के सदृश परमेश्वर का वचन सुनाना ही पड़ा। परमेश्वर का वचन उनके हृदय में अग्नि-जैसा प्रज्वलित था, और वह अग्नि को अपने हृदय में दबा कर नहीं रख सकते थे।
प्रस्तुत ग्रंथ के सर्वोत्कृष्ट अंश वे हैं, जिनका संबंध “नया विधान” (वाचा) से है: “बिना गुरु के ही सब छोटे-बड़े लोग प्रभु को जानेंगे, क्योंकि प्रभु की व्यवस्था उनके हृदय पर अंकित होगी: मैं उनका परमेश्वर होऊंगा, और वे मेरे निज लोग होंगे” (31:31-34)।
विषय-वस्तु की रूपरेखा
संदेशों का पहला आलेख 1:1−25:38
नबी को प्रभु का आह्वान 1:1-19
योशियाह, यहोयाकीम तथा सिदकियाह
के राज्यकाल में हुई नबूवतें 2:1−25:38
नबी यिर्मयाह के जीवन की घटनाएं और नये संदेश 26:1−45:5
विभिन्न राष्ट्रों के विरुद्ध नबूवतें 46:1−51:64
यरूशलेम का पतन 52:1-34
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यिर्मयाह पुस्तक-परिचय: HINCLBSI
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