YouVersion Logo
Search Icon

शासक ग्रंथ 18

18
मीकाह और दान-कुल
1उन दिनों में इस्राएली समाज में राजा की प्रथा न थी। उन्‍हीं दिनों में दान-कुल के लोग निवास के लिए भूमि की खोज में थे; क्‍योंकि अब तक उन्‍हें इस्राएली कुलों के मध्‍य पैतृक अधिकार के लिए भूमि प्राप्‍त नहीं हुई थी। #यहो 19:47 2अत: दान कुल के लोगों ने अपने समस्‍त कुल में से पाँच योग्‍य पुरुषों को सोर्आह नगर तथा एश्‍ताओल नगर से देश का भेद लेने और उसकी छान-बीन करने के लिए भेजा। उन्‍होंने उन पुरुषों से कहा, ‘जाओ, और देश की छान-बीन करो।’ वे पाँच पुरुष एफ्रइम पहाड़ी प्रदेश में मीकाह के घर आए। उन्‍होंने वहाँ रात व्‍यतीत की। 3जब वे मीकाह के घर के निकट थे तब उन्‍होंने लेवीय युवक की आवाज पहचान ली। वे उस ओर मुड़ आए। उन्‍होंने उससे पूछा, ‘कौन व्यक्‍ति आपको यहाँ लाया? आप यहाँ क्‍या कर रहे हैं? यहाँ आपका क्‍या काम है?’ 4लेवीय ने उनसे कहा, ‘मीकाह ने मेरे साथ इस प्रकार का व्‍यवहार किया : मैं उनका पुरोहित हूँ। वह मुझे वेतन देते हैं।’ 5उन्‍होंने लेवीय से कहा, ‘कृपया, परमेश्‍वर से एक बात पूछिए जिससे हमें पता चले : जिस यात्रा पर हम जा रहे हैं, क्‍या वह सफल होगी?’ 6पुरोहित ने उनसे कहा, ‘शान्‍ति से जाओ। जो यात्रा आप कर रहे हैं, उस पर प्रभु की कृपा-दृष्‍टि है।’
7अत: वे पाँच पुरुष चले गए। वे लइश नगर में आए। उन्‍होंने उसमें रहने वाले लोगों को देखा कि वे सीदोनी जाति के समान निश्‍चिन्‍तता से निवास करते हैं। वे शान्‍तिपूर्वक तथा निश्‍चिन्‍त ढंग से रहते हैं। उन्‍हें पृथ्‍वी की किसी भी वस्‍तु का अभाव नहीं है। वे सीदोन देश से दूर रहते हैं। सीरिया देश से भी#18:7 मूल में, ‘किसी मानव से भी।’ उनका सम्‍बन्‍ध नहीं है।#शास 18:27-28
8जब वे पाँच पुरुष अपने भाई-बन्‍धुओं के पास सोर्आह और एश्‍ताओल वापस आए तब उनके भाई-बन्‍धुओं ने उनसे पूछा, ‘तुम क्‍या समाचार लाए?’ 9उन्‍होंने कहा, ‘उठो! हम उन पर चढ़ाई करेंगे। हमने देश को देख लिया। वह बहुत अच्‍छा देश है। क्‍या आप लोग कुछ नहीं करेंगे? वहाँ जाने और उस देश पर अधिकार करने में आलस्‍य मत कीजिए। 10जब आप वहाँ जाएँगे तब आपको निश्‍चिन्‍त ढंग से निवास करने वाले लोग मिलेंगे। उनका देश विस्‍तृत है। प्रभु ने निश्‍चय ही उस देश को आप के हाथ में सौंप दिया है। वह ऐसा स्‍थान है जहाँ पृथ्‍वी की किसी भी वस्‍तु का अभाव नहीं है।’
11अत: दान कुल के छ: सौ शस्‍त्रधारी सैनिकों ने सोर्आह और एश्‍ताओल नगरों से प्रस्‍थान किया। 12वे वहाँ से चले। उन्‍होंने यहूदा प्रदेश के किर्यत-यआरीम नगर में पड़ाव डाला। इसलिए आज भी उस स्‍थान को महनेह-दान#18:12 अर्थात् ‘दान का पड़ाव’ कहते हैं। यह किर्यत-यआरीम की पश्‍चिम दिशा में है। 13वे वहाँ से एफ्रइम पहाड़ी प्रदेश में पहुँचे। वे मीकाह के घर पर आए। 14जो पाँच पुरुष लइश नगर का भेद लेने गए थे, उन्‍होंने अपने भाई-बन्‍धुओं से यह कहा था, ‘क्‍या आप जानते हैं कि इन घरों में एपोद, गृह-देवता की मूर्तियाँ और चांदी की ढली-गढ़ी प्रतिमा हैं? अब सोचिए कि हमें ऐसी स्‍थिति में क्‍या करना चाहिए।’ 15वे वहाँ से मुड़ गए और लेवीय युवक के निवास-स्‍थान में आए, जो मीकाह के घर में था। उन्‍होंने उससे उसका हाल-चाल पूछा। 16दान कुल के छ: सौ शस्‍त्रधारी सैनिक प्रवेश-द्वार पर खड़े थे। 17पाँच पुरुष, जो लइश नगर का भेद लेने गए थे, मीकाह के घर में घुस गए। उन्‍होंने चांदी की ढली-गढ़ी प्रतिमा, एपोद और गृह-देवता की मूर्तियाँ उठा लीं। पुरोहित छ: सौ शस्‍त्रधारी सैनिकों के साथ प्रवेश-द्वार पर खड़ा था। 18जब ये पाँच पुरुष मीकाह के घर में घुस गए और इन्‍होंने चांदी की ढली-गढ़ी प्रतिमा, एपोद, और गृह-देवता की मूर्तियाँ उठा लीं तब पुरोहित ने उनसे कहा, ‘यह आप क्‍या कर रहे हैं?’ 19उन्‍होंने उससे कहा, ‘आप चुप रहिए, अपने मुँह पर हाथ रखिए। आप हमारे साथ चलिए। हमारे आदरणीय पिता और पुरोहित बनिए। इन दोनों में क्‍या श्रेष्‍ठ है: एक व्यक्‍ति के परिवार का पुरोहित बनना अथवा इस्राएलियों के एक कुल और गोत्र का पुरोहित बनना?’ 20पुरोहित का हृदय प्रसन्न हो गया। उसने एपोद, गृह-देवता की मूर्तियाँ और चांदी की प्रतिमा ले लीं, और लोगों के मध्‍य आ गया।
21जिस मार्ग से वे आए थे, वे उस ओर लौटे। उन्‍होंने बच्‍चों, पशुओं और सामान को अपने आगे कर लिया। 22जब वे मीकाह के घर से दूर चले गए तब मीकाह ने अपने घर के आसपास के घरों में रहनेवाले पड़ोसियों को एकत्र किया। वे दान कुल के लोगों का पीछा कर उनके निकट पहुँच गए। 23उन्‍होंने दान कुल के लोगों को पुकारा। दान कुल के लोगों ने पीछे की ओर मुख किया और उनसे पूछा, ‘तुम्‍हें क्‍या हुआ, जो दल-बल के साथ आ रहे हो?’ 24मीकाह ने कहा, ‘तुमने मेरे देवता की मूर्तियाँ ले लीं, जिन्‍हें मैंने बनाया था। तुम मेरे पुरोहित को भी लिए जा रहे हो। अब मेरे पास क्‍या बचा? फिर तुम मुझसे पूछते हो कि मुझे क्‍या हुआ।’ 25दान कुल के लोगों ने उससे कहा, ‘धीरे बोलो! तुम्‍हारी आवाज हमारे लोगों को सुनाई न दे। अन्‍यथा उग्र स्‍वभाव के पुरुष तुम पर टूट पड़ेंगे, और तुम तथा तुम्‍हारे परिवार के सदस्‍य अपने प्राणों से हाथ धो बैठेंगे।’ 26यों दान कुल के लोग अपने मार्ग पर चले गए। मीकाह ने देखा कि वे उससे अधिक शक्‍तिशाली हैं। इस कारण वह अपने घर की ओर मुड़ा, और लौट गया।
लइश नगर का पुनर्निर्माण
27दान कुल के लोग मीकाह की मूर्तियाँ जिन्‍हें उसने बनाया था, तथा उसके पुरोहित को लेकर लइश नगर में आए। वहाँ के निवासी शान्‍तिपूर्वक और निश्‍चिन्‍त ढंग से रहने वाले थे। उन्‍होंने उनको तलवार से मार डाला, और नगर को आग से जला दिया। 28उस नगर को बचानेवाला कोई न था, क्‍योंकि वह सीदोन देश से दूर था। इसके अतिरिक्‍त उसका सीरिया देश से सम्‍बन्‍ध भी नहीं था। वह बेत-रहोब की घाटी में था। अत: दान कुल के लोगों ने नगर का पुनर्निर्माण किया, और वे उसमें बस गए। 29उन्‍होंने इस्राएल#18:29 अर्थात् ‘याकूब’ के पुत्र और अपने कुलपति दान के नाम पर उसका नाम दान नगर रखा। पहले इस नगर का नाम लइश था। 30दान कुल के लोगों ने अपने उपयोग के लिए उस चांदी की मूर्ति को प्रतिष्‍ठित किया। जिस दिन देश-वासियों का निष्‍कासन#18:30 अथवा, ‘गुलाम बन कर देश से निष्‍कासित हुए।’ हुआ, उस दिन तक गेर्शोम का पुत्र, मूसा का पौत्र योनातन तथा उसके बाद उसके पुत्र दान कुल के पुरोहित रहे। 31उन्‍होंने मीकाह की मूर्ति, जिसको उसने बनाया था, अपने उपयोग के लिए प्रतिष्‍ठित की। जिस दिन तक परमेश्‍वर का गृह शिलोह नगर में रहा, उतने दिन तक यह मूर्ति प्रतिष्‍ठित रही।

Highlight

Share

Copy

None

Want to have your highlights saved across all your devices? Sign up or sign in