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2 शमूएल 14

14
अबशालोम की वापसी
1सरूयाह का पुत्र योआब ताड़ गया कि राजा दाऊद का हृदय अबशालोम में लगा है। 2अत: उसने तकोआह नगर में एक दूत भेजा, और वहाँ से एक बुद्धिमती स्‍त्री को बुलाया। योआब ने उससे यह कहा, ‘तुम मृतक के लिए शोक मनानेवाली स्‍त्री बनो और मातमी वस्‍त्र पहिन लो। तुम तेल लगाकर बनाव-श्रृंगार मत करना, वरन् ऐसी स्‍त्री का अभिनय करना जो कई दिन से मृतक के लिए शोक मना रही है।#1 शम 25:3; आमो 1:1 3तुम महाराज के पास जाना, और उनसे ये बातें कहना।’ योआब ने उसको सब बातें सिखा दीं।
4तकोआह नगर की स्‍त्री राजा दाऊद के पास गई। उसने सिर झुकाकर अभिवादन किया। वह बोली, ‘महाराज की दुहाई!’#2 रा 6:26 5राजा ने उससे पूछा, ‘क्‍या बात है?’ स्‍त्री ने उत्तर दिया, ‘महाराज, मैं विधवा हूँ। मेरा पति मर गया है। 6आपकी सेविका के दो पुत्र थे। एक दिन वे खेत में परस्‍पर लड़ने लगे। वहाँ उन्‍हें छुड़ानेवाला कोई न था। मेरे एक पुत्र ने दूसरे पुत्र पर वार किया, और उसको मार डाला। 7अब सारा गोत्र आपकी सेविका के विरुद्ध खड़ा हो गया है। मेरे गोत्र के लोग मुझसे यह कह रहे हैं, “अपने भाई पर वार करने वाले को हमारे सुपुर्द करो। जिस भाई की उसने हत्‍या की है, उसके प्राण के बदले में हम उसकी हत्‍या करेंगे।” महाराज, यों वे उत्तराधिकारी को भी समाप्‍त कर देंगे। महाराज, मेरे बचे हुए एकमात्र दीपक को भी वे बुझाना चाहते हैं, जिससे मेरे पति का नाम और उसका वंश धरती पर से मिट जाए।’
8राजा दाऊद ने स्‍त्री से कहा, ‘तुम अपने घर जाओ। मैं स्‍वयं तुम्‍हारे मामले के सम्‍बन्‍ध में आदेश दूँगा।’ 9तकोआह नगर की स्‍त्री ने राजा से कहा, ‘महाराज, हे स्‍वामी! इस अधर्म का दोष मुझ पर, और मेरे पैतृक कुल पर ही लगे। महाराज और उनका सिंहासन निर्दोष माना जाए।’ 10राजा दाऊद ने उससे कहा, ‘जो तुम्‍हें धमकाएगा, उसको मेरे पास लाना। तब वह तुम्‍हें कभी स्‍पर्श भी नहीं करेगा।’ 11स्‍त्री बोली, ‘महाराज अपने प्रभु परमेश्‍वर के नाम की शपथ खाएँ कि रक्‍त-प्रतिशोधी बदला नहीं लेगा, और मेरा पुत्र धरती पर से नहीं मिटेगा।’ दाऊद ने कहा, ‘जीवन्‍त प्रभु की सौगन्‍ध! तुम्‍हारे पुत्र के सिर का बाल भी भूमि पर नहीं गिरेगा।’
12तब स्‍त्री ने कहा, ‘महाराज, अपनी सेविका को अनुमति दीजिए कि वह आपसे, अपने स्‍वामी से एक बात कह सके।’ दाऊद ने कहा, ‘बोलो।’ 13स्‍त्री ने कहा, ‘महाराज, आपने परमेश्‍वर के निज लोगों के विरुद्ध षड्‍यन्‍त्र क्‍यों रचा? यदि महाराज देश से निकाले गए व्यक्‍ति को वापस नहीं लाते हैं, तो आप अपने इस निर्णय से स्‍वयं को दोषी सिद्ध करते हैं। 14हम सबको एक न एक दिन मरना ही है। हम भूमि पर उण्‍डेले गए जल के समान हैं जिसको फिर एकत्र नहीं किया जा सकता है; और न परमेश्‍वर शव को खड़ा करता है।#14:14 मूल में अस्‍पष्‍ट। अन्‍य अनुवाद, “तौभी परमेश्‍वर प्राण नहीं लेता,” अथवा “परन्‍तु परमेश्‍वर की यह इच्‍छा नहीं है” । अब महाराज ऐसी योजना बनाएँ कि निर्वासित व्यक्‍ति उनसे दूर न रहे, वह देश-निकाला हुआ न रहे।#अय्‍य 14:7-12; भज 88:5 15मैं महाराज से ये ही बातें कहने के लिए आई थी; क्‍योंकि लोगों ने मुझे डरा दिया था। आपकी सेविका ने यह सोचा था कि मैं महाराज से ये बातें कहूँगी। कदाचित महाराज अपनी सेविका के कथन के अनुसार कार्य करें। 16मुझे निश्‍चय था कि महाराज अपनी सेविका की प्रार्थना सुनेंगे और मुझे उस व्यक्‍ति के हाथ से मुक्‍त करेंगे जो मुझे और मेरे पुत्र को धरती से मिटाकर परमेश्‍वर की मीरास से, इस्राएली राष्‍ट्र से वंचित करना चाहता है; 17मैंने यह भी सोचा था कि महाराज के, मेरे स्‍वामी के वचन से मुझे शान्‍ति मिलेगी, क्‍योंकि महाराज भले और बुरे में भेद करने वाले परमेश्‍वर के दूत के सदृश हैं। प्रभु परमेश्‍वर आपके साथ हो!’#उत 3:5
18तब राजा दाऊद ने स्‍त्री से यह कहा, ‘मैं तुमसे एक बात पूछ रहा हूँ। तुम उसको मुझसे मत छिपाना।’ स्‍त्री ने कहा, ‘महाराज, मेरे स्‍वामी, बोलिए।’ 19राजा ने पूछा, ‘क्‍या तुम्‍हारी इन सब बातों में योआब का हाथ है?’ स्‍त्री ने उत्तर दिया, ‘मेरे स्‍वामी, महाराज की सौगन्‍ध! जो कुछ महाराज ने कहा, उसके एक अक्षर को भी मैं अस्‍वीकार नहीं कर सकती। महाराज का कथन अक्षरश: सच है। आपके सेवक योआब ने मुझे यह कार्य करने का आदेश दिया था। उन्‍होंने मुझे ये सब बातें सिखाई थीं। 20आपके सेवक योआब ने बात छिपाने के लिए#14:20 अथवा, ‘स्‍थिति बदलने के लिए’। इस ढंग से कार्य किया है। परन्‍तु महाराज में परमेश्‍वर के दूत की बुद्धि के सदृश बुद्धि है। देश में घटने वाली सब बातों को महाराज जानते हैं।’
21तब राजा दाऊद ने योआब से कहा, ‘सुनो, मैं तुम्‍हारी बात स्‍वीकार करता हूँ। जाओ! युवक अबशालोम को वापस लाओ।’ 22योआब भूमि पर मुँह के बल गिरा। उसने राजा का अभिवादन किया। उसे धन्‍य! धन्‍य! कहा। योआब ने कहा, ‘हे मेरे स्‍वामी, महाराज! आज आपके सेवक को ज्ञात हुआ कि मैंने आपकी कृपा-दृष्‍टि प्राप्‍त की है। महाराज ने अपने सेवक की विनती स्‍वीकार की।’ 23तत्‍पश्‍चात् योआब तैयार हुआ। वह गशूर नगर को गया, और वहाँ से अबशालोम को यरूशलेम नगर में ले आया। 24परन्‍तु राजा दाऊद ने कहा, ‘वह अपने महल में चला जाए, और मुझे अपना मुँह न दिखाए।’ अत: अबशालोम अपने महल में अलग रहने लगा। वह राजा के दर्शन न कर सका।
25समस्‍त इस्राएली राष्‍ट्र में अबशालोम अपनी सुन्‍दरता के लिए अत्‍यन्‍त प्रसिद्ध था। उसके समान और कोई सुन्‍दर न था। उसमें नख से शिख तक कुछ दोष न था। 26वह वर्ष के अन्‍त में अपने सिर के बाल कटवाता था। जब सिर पर बाल का भार बढ़ने लगता था तब वह उसको कटवाता था। उसने अपने सिर के बाल कटवाए। उसने उनको तौला। वे राजा की तौल के अनुसार लगभग सवा दो किलो निकले!
27अबशालोम को तीन पुत्र और एक पुत्री उत्‍पन्न हुई। पुत्री का नाम तामार था। वह देखने में सुन्‍दर थी।#2 शम 18:18
28अबशालोम दो वर्ष तक यरूशलेम नगर में रहा। किन्‍तु वह राजा के दर्शन नहीं कर सका। 29तब अबशालोम ने योआब के पास सन्‍देश भेजा और उसे बुलाया। वह योआब को राजा के पास भेजना चाहता था। पर योआब उसके पास नहीं आया। अबशालोम ने दूसरी बार सन्‍देश भेजा। तब भी वह आने को तैयार नहीं हुआ। 30अत: अबशालोम ने अपने सेवकों को आदेश दिया, ‘देखो, मेरे खेत के पास ही योआब का एक खेत है। उसमें जौ की फसल खड़ी है। जाओ, और उसमें आग लगा दो।’ अत: अबशालोम के सेवकों ने योआब के खेत में आग लगा दी।#शास 15:5 31तब योआब उठा। वह अबशालोम के पास उसके महल में आया। उसने अबशालोम से पूछा, ‘तुम्‍हारे सेवकों ने मेरे खेत में आग क्‍यों लगाई?’ 32अबशालोम ने योआब को उत्तर दिया, ‘देखिए, मैंने आपके पास यह सन्‍देश भेजा था : “आप यहाँ आइए। मैं आपको राजा के पास भेजना चाहता हूँ कि आप राजा से यह बात कहें : मैं गशूर नगर से यहाँ क्‍यों आया हूँ? मेरा वहीं रहना अधिक अच्‍छा होता।” अब मुझे राजा के दर्शन करने दीजिए। यदि मैंने अपराध किया है, तो वह मुझे मार डालें।’ 33योआब राजा के पास गया। उसने राजा को यह बात बताई। अत: राजा ने अबशालोम को बुलाया। अबशालोम राजा के पास आया। वह उसके सम्‍मुख भूमि पर मुँह के बल गिरा, और उसका अभिवादन किया। राजा ने अबशालोम को चूमा।

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