“जब तूँ पंचे उपासे रहा, त कपटी मनइन कि नाईं तोंहरे मुँहे माहीं उदासी न छाई रहय, काहेकि कपटी मनई इआ देखामँइ के खातिर आपन मुँह उदास कए रहत हें, कि जउने सगले मनई इआ जानँय कि ऊँ पंचे उपासे हँय, हम तोंहसे पंचन से सही-सही कहित हएन, कि ऊँ पंचे आपन प्रतिफल पाय चुके हँय। पय जब तूँ पंचे उपासे रहा, त अपने मूँड़े माहीं तेल लगाबा अउर आपन मुँह धोबा, जउने दूसर मनई न जानँइ कि तूँ पंचे उपासे हया, बलकिन तोंहार पंचन के पिता परमातिमा जउन गुप्त रूप माहीं हें, जानँइ कि तूँ पंचे उपासे हया, तब तोंहार पंचन के पिता परमातिमा जउन गुप्त रूप माहीं तोंहरे कीन कामन काहीं देखत हें, तोंहईं एखर प्रतिफल देइहँय।”