नीतिवचन 1:6-33

नीतिवचन 1:6-33 - जिस से वे नीतिवचन और दृष्‍टान्त को,
और बुद्धिमानों के वचन और
उनके रहस्यों को समझें।

यहोवा का भय मानना बुद्धि का मूल है;
बुद्धि और शिक्षा को मूढ़ ही लोग
तुच्छ जानते हैं।

हे मेरे पुत्र, अपने पिता की शिक्षा पर कान लगा,
और अपनी माता की शिक्षा को न तज;
क्योंकि वे मानो तेरे सिर के लिये
शोभायमान मुकुट,
और तेरे गले के लिये कन्ठ माला होगी।
हे मेरे पुत्र, यदि पापी लोग तुझे फुसलाएँ,
तो उनकी बात न मानना।
यदि वे कहें, “हमारे संग चल कि
हम हत्या करने के लिये घात लगाएँ,
हम निर्दोषों की ताक में रहें;
हम अधोलोक के समान उनको जीवता,
कबर में पड़े हुओं के समान
समूचा निगल जाएँ।
हम को सब प्रकार के अनमोल पदार्थ मिलेंगे,
हम अपने घरों को लूट से भर लेंगे;
तू हमारा साझी हो जा,
हम सभों का एक ही बटुआ हो,”
तो हे मेरे पुत्र, तू उनके संग मार्ग में न चलना,
वरन् उनकी डगर में पाँव भी न रखना।
क्योंकि वे बुराई ही करने को दौड़ते हैं,
और हत्या करने को फुर्ती करते हैं।
क्योंकि पक्षी के देखते हुए
जाल फैलाना व्यर्थ होता है;
और ये लोग तो अपनी ही हत्या करने के
लिये घात लगाते हैं,
और अपने ही प्राणों की घात में रहते हैं।
सब लालचियों की चाल ऐसी ही होती है,
उनका प्राण लालच ही के कारण
नष्‍ट हो जाता है।

बुद्धि सड़क में ऊँचे स्वर से बोलती है,
और चौकों में प्रचार करती है;
वह बाज़ारों की भीड़ में पुकारती है;
वह फाटकों के बीच में
और नगर के भीतर भी ये बातें
बोलती है :
“हे भोले लोगो, तुम कब तक भोलेपन से
प्रीति रखोगे?
हे ठट्ठा करनेवालो, तुम कब तक
ठट्ठा करने से प्रसन्न रहोगे?
हे मूर्खो, तुम कब तक ज्ञान से बैर रखोगे?
तुम मेरी डाँट सुनकर मन फिराओ;
सुनो, मैं अपनी आत्मा तुम्हारे लिये
उण्डेल दूँगी,
मैं तुम को अपने वचन बताऊँगी।
मैं ने तो पुकारा परन्तु तुम ने इन्कार किया,
और मैं ने हाथ फैलाया, परन्तु किसी ने
ध्यान न दिया,
वरन् तुम ने मेरी सारी सम्मति को
अनसुनी किया,
और मेरी ताड़ना का मूल्य न जाना;
इसलिये मैं भी तुम्हारी विपत्ति के समय
हँसूँगी;
और जब तुम पर भय आ पड़ेगा,
वरन् आँधी के समान तुम पर भय आ पड़ेगा,
और विपत्ति बवण्डर के समान आ पड़ेगी,
और तुम संकट और सकेती में फँसोगे,
तब मैं ठट्ठा करूँगी।
उस समय वे मुझे पुकारेंगे, और मैं न सुनूँगी;
वे मुझे यत्न से तो ढूँढ़ेंगे, परन्तु न पाएँगे।
क्योंकि उन्होंने ज्ञान से बैर किया,
और यहोवा का भय मानना उनको न भाया।
उन्होंने मेरी सम्मति न चाही,
वरन् मेरी सब ताड़नाओं को तुच्छ जाना।
इसलिये वे अपनी करनी का फल आप भोगेंगे,
और अपनी युक्‍तियों के फल से
अघा जाएँगे।
क्योंकि भोले लोगों का भटक जाना,
उनके घात किए जाने का कारण होगा,
और निश्‍चिन्त रहने के कारण मूढ़ लोग
नष्‍ट होंगे,
परन्तु जो मेरी सुनेगा, वह निडर बसा रहेगा,
और बेखटके सुख से रहेगा।”

जिस से वे नीतिवचन और दृष्‍टान्त को, और बुद्धिमानों के वचन और उनके रहस्यों को समझें। यहोवा का भय मानना बुद्धि का मूल है; बुद्धि और शिक्षा को मूढ़ ही लोग तुच्छ जानते हैं। हे मेरे पुत्र, अपने पिता की शिक्षा पर कान लगा, और अपनी माता की शिक्षा को न तज; क्योंकि वे मानो तेरे सिर के लिये शोभायमान मुकुट, और तेरे गले के लिये कन्ठ माला होगी। हे मेरे पुत्र, यदि पापी लोग तुझे फुसलाएँ, तो उनकी बात न मानना। यदि वे कहें, “हमारे संग चल कि हम हत्या करने के लिये घात लगाएँ, हम निर्दोषों की ताक में रहें; हम अधोलोक के समान उनको जीवता, कबर में पड़े हुओं के समान समूचा निगल जाएँ। हम को सब प्रकार के अनमोल पदार्थ मिलेंगे, हम अपने घरों को लूट से भर लेंगे; तू हमारा साझी हो जा, हम सभों का एक ही बटुआ हो,” तो हे मेरे पुत्र, तू उनके संग मार्ग में न चलना, वरन् उनकी डगर में पाँव भी न रखना। क्योंकि वे बुराई ही करने को दौड़ते हैं, और हत्या करने को फुर्ती करते हैं। क्योंकि पक्षी के देखते हुए जाल फैलाना व्यर्थ होता है; और ये लोग तो अपनी ही हत्या करने के लिये घात लगाते हैं, और अपने ही प्राणों की घात में रहते हैं। सब लालचियों की चाल ऐसी ही होती है, उनका प्राण लालच ही के कारण नष्‍ट हो जाता है। बुद्धि सड़क में ऊँचे स्वर से बोलती है, और चौकों में प्रचार करती है; वह बाज़ारों की भीड़ में पुकारती है; वह फाटकों के बीच में और नगर के भीतर भी ये बातें बोलती है : “हे भोले लोगो, तुम कब तक भोलेपन से प्रीति रखोगे? हे ठट्ठा करनेवालो, तुम कब तक ठट्ठा करने से प्रसन्न रहोगे? हे मूर्खो, तुम कब तक ज्ञान से बैर रखोगे? तुम मेरी डाँट सुनकर मन फिराओ; सुनो, मैं अपनी आत्मा तुम्हारे लिये उण्डेल दूँगी, मैं तुम को अपने वचन बताऊँगी। मैं ने तो पुकारा परन्तु तुम ने इन्कार किया, और मैं ने हाथ फैलाया, परन्तु किसी ने ध्यान न दिया, वरन् तुम ने मेरी सारी सम्मति को अनसुनी किया, और मेरी ताड़ना का मूल्य न जाना; इसलिये मैं भी तुम्हारी विपत्ति के समय हँसूँगी; और जब तुम पर भय आ पड़ेगा, वरन् आँधी के समान तुम पर भय आ पड़ेगा, और विपत्ति बवण्डर के समान आ पड़ेगी, और तुम संकट और सकेती में फँसोगे, तब मैं ठट्ठा करूँगी। उस समय वे मुझे पुकारेंगे, और मैं न सुनूँगी; वे मुझे यत्न से तो ढूँढ़ेंगे, परन्तु न पाएँगे। क्योंकि उन्होंने ज्ञान से बैर किया, और यहोवा का भय मानना उनको न भाया। उन्होंने मेरी सम्मति न चाही, वरन् मेरी सब ताड़नाओं को तुच्छ जाना। इसलिये वे अपनी करनी का फल आप भोगेंगे, और अपनी युक्‍तियों के फल से अघा जाएँगे। क्योंकि भोले लोगों का भटक जाना, उनके घात किए जाने का कारण होगा, और निश्‍चिन्त रहने के कारण मूढ़ लोग नष्‍ट होंगे, परन्तु जो मेरी सुनेगा, वह निडर बसा रहेगा, और बेखटके सुख से रहेगा।”

नीतिवचन 1:6-33