नीतिवचन 26:1-16

नीतिवचन 26:1-16 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)

जैसा धूपकाल में हिम का, और कटनी के समय जल का पड़ना, वैसा ही मूर्ख की महिमा भी ठीक नहीं होती। जैसे गौरैया घूमते–घूमते और सूपाबेनी उड़ते– उड़ते नहीं बैठती, वैसे ही व्यर्थ शाप नहीं पड़ता। घोड़े के लिये कोड़ा, गदहे के लिये लगाम, और मूर्खों की पीठ के लिये छड़ी है। मूर्ख को उसकी मूर्खता के अनुसार उत्तर न देना ऐसा न हो कि तू भी उसके तुल्य ठहरे। मूर्ख को उसकी मूढ़ता के अनुसार उत्तर देना, ऐसा न हो कि वह अपने लेखे में बुद्धिमान ठहरे। जो मूर्ख के हाथ से संदेश भेजता है, वह मानो अपने पाँव पर कुल्हाड़ा मारता और विष पीता है। जैसे लंगड़े के पाँव लडखड़ाते हैं, वैसे ही मूर्खों के मुँह में नीतिवचन होता है। जैसे पत्थरों के ढेर में मणियों की थैली, वैसे ही मूर्ख को महिमा देनी होती है। जैसे मतवाले के हाथ में काँटा गड़ता है, वैसे ही मूर्खों का कहा हुआ नीतिवचन भी दु:खदाई होता है। जैसा कोई तीरन्दाज जो अकारण सब को मारता हो, वैसा ही मूर्खों या राहगीरों का मज़दूरी में लगानेवाला भी होता है। जैसे कुत्ता अपनी छाँट को चाटता है, वैसे ही मूर्ख अपनी मूर्खता को दुहराता है। यदि तू ऐसा मनुष्य देखे जो अपनी दृष्‍टि में बुद्धिमान बनता हो, तो उससे अधिक आशा मूर्ख ही से है। आलसी कहता है, “मार्ग में सिंह है, चौक में सिंह है!” जैसे किवाड़ अपनी चूल पर घूमता है, वैसे ही आलसी अपनी खाट पर करवटें लेता है। आलसी अपना हाथ थाली में तो डालता है, परन्तु आलस्य के कारण कौर मुँह तक नहीं उठाता। आलसी अपने को ठीक उत्तर देनेवाले सात मनुष्यों से भी अधिक बुद्धिमान समझता है।

नीतिवचन 26:1-16 पवित्र बाइबल (HERV)

जैसे असंभव है बर्फ का गर्मी में पड़ना और जैसे वांछित नहीं है कटनी के वक्त पर वर्षा का आना वैसे ही मूर्ख को मान देना अर्थहीन है। यदि तूने किसी का कुछ भी बिगाड़ा नहीं और तुझको वह शाप दे, तो वह शाप व्यर्थ ही रहेगा। उसका शाप पूर्ण वचन तेरे ऊपर से यूँ उड़ निकल जायेगा जैसे चंचल चिड़िया जो टिककर नहीं बैठती। घोड़े को चाबुक सधाना पड़ता है। और खच्चर को लगाम से। ऐसे ही तुम मूर्ख को डंडे से सधाओ। मूर्ख को उत्तर मत दो नहीं तो तुम भी स्वयं मूर्ख से दिखोगे। मूर्ख की मूर्खता का तुम उचित उत्तर दो, नहीं तो वह अपनी ही आँखों में बुद्धिमान बन बैठेगा। मूर्ख के हाथों सन्देशा भेजना वैसा ही होता है जैसे अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारना, या विपत्तिको बुलाना। बिना समझी युक्ति किसी मूर्ख के मुख पर ऐसी लगती है, जैसे किसी लंगड़े की लटकती मरी टाँग। मूर्ख को मान देना वैसा ही होता है जैसे कोई गुलेल में पत्थर रखना। मूर्ख के मुख में सूक्ति ऐसे होती है जैसे शराबी के हाथ में काँटेदार झाड़ी हो। किसी मूर्ख को या किसी अनजाने व्यक्ति को काम पर लगाना खतरनाक हो सकता है। तुम नहीं जानते कि किसे दुःख पहुँचेगा। जैसे कोई कुत्ता कुछ खा करके बीमार हो जाता है और उल्टी करके फिर उसको खाता है वैसे ही मूर्ख अपनी मूर्खता बार—बार दोहराता है। वह मनुष्य जो अपने को बुद्धिमान मानता है, किन्तु होता नहीं है वह तो किसी मूर्ख से भी बुरा होता है। आलसी करता रहता है, काम नहीं करने के बहाने कभी वह कहता है सड़क पर सिंह है। जैसे अपनी चूल पर चलता रहता किवाड़। वैसे ही आलसी बिस्तर पर अपने ही करवटें बदलता है। आलसी अपना हाथ थाली में डालता है किन्तु उसका आलस, उसके अपने ही मुँह तक उसे भोजन नहीं लाने देता। आलसी मनुष्य, निज को मानता महाबुद्धिमान! सातों ज्ञानी पुरुषों से भी बुद्धिमान।

नीतिवचन 26:1-16 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)

जैसे ग्रीष्‍म ऋतु में बरफ का गिरना, जैसे फसल की कटनी के समय पानी का बरसना ठीक नहीं, वैसे ही मूर्ख का सम्‍मान करना अनुचित है। जैसे गौरैया और सूपावेनी आकाश में उड़ते समय नहीं ठहरतीं, वैसे ही अकारण दिया गया शाप भी मनुष्‍य पर नहीं ठहरता। घोड़े के लिए लगाम, गधे के लिए छड़ी और मूर्ख की पीठ के लिए बेंत उचित है। मूर्ख की मूर्खता भरी बातों का उत्तर मत देना; अन्‍यथा तू भी उसी के समान मूर्ख बन जाएगा। मूर्ख को उसकी मूर्खता के अनुरूप उत्तर देना; अन्‍यथा वह स्‍वयं को अपनी दृष्‍टि में बुद्धिमान समझेगा। जो मनुष्‍य मूर्ख के हाथ से सन्‍देश भेजता है, वह मानो अपने पैर पर कुल्‍हाड़ी मारता है, वह मानो विपत्ति मोल लेता है। जैसे पंगु मनुष्‍य के पैर व्‍यर्थ लटकते रहते हैं, वैसे ही मूर्ख के मुंह में नीति के वचन व्‍यर्थ लगते हैं। मूर्ख मनुष्‍य को सम्‍मान देना, मानो सूअर के आगे मोती डालना है। मूर्ख मनुष्‍य के मुंह में नीतिवचन ऐसे लगते हैं, मानो शराबी के हाथ में कांटों की शाख! जो मालिक राह चलते शराबी या मूर्ख को काम पर लगाता है, वह मानो ऐसा तीरंदाज है, जो अकारण सबको घायल करता है। जो मूर्ख बार-बार मूर्खता के काम करता है, वह मानो कुत्ते के समान अपनी उल्‍टी को चाटता है। यदि तुझे ऐसा मनुष्‍य मिले, जो स्‍वयं को अपनी दृष्‍टि में बुद्धिमान मानता है, तो उस मनुष्‍य से अधिक मूर्ख का भविष्‍य उज्‍ज्‍वल है। आलसी मनुष्‍य नकली डर का बहाना बनाता है। वह कहता है, ‘रास्‍ते में सिंह है; गलियों में सिंह है।’ जैसे किवाड़ अपने कब्‍जे पर घूमता है, वैसे ही आलसी मनुष्‍य बिस्‍तर से उठना नहीं चाहता, और करवटें बदलता है। आलसी मनुष्‍य भोजन की थाली में हाथ डालता है, पर आलस्‍य के कारण कौर मुंह तक नहीं उठाता। आलसी मनुष्‍य स्‍वयं को अपनी दृष्‍टि में सात बुद्धिमान मनुष्‍यों से श्रेष्‍ठ समझता है, जो सोच-समझ कर उत्तर देते हैं।

नीतिवचन 26:1-16 Hindi Holy Bible (HHBD)

जैसा धूपकाल में हिम का, और कटनी के समय जल का पड़ना, वैसा ही मूर्ख की महिमा भी ठीक नहीं होती। जैसे गौरिया घूमते घूमते और सूपाबेनी उड़ते-उड़ते नहीं बैठती, वैसे ही व्यर्थ शाप नहीं पड़ता। घोड़े के लिये कोड़ा, गदहे के लिये बाग, और मूर्खों की पीठ के लिये छड़ी है। मूर्ख को उस की मूर्खता के अनुसार उत्तर न देना ऐसा न हो कि तू भी उसके तुल्य ठहरे। मूर्ख को उसकी मूढ़ता के अनुसार उत्तर न देना, ऐसा न हो कि वह अपने लेखे बुद्धिमान ठहरे। जो मूर्ख के हाथ से संदेशा भेजता है, वह मानो अपने पांव में कुल्हाड़ा मारता और विष पीता है। जैसे लंगड़े के पांव लड़खड़ाते हैं, वैसे ही मूर्खों के मुंह में नीतिवचन होता है। जैसे पत्थरों के ढेर में मणियों की थैली, वैसे ही मूर्ख को महिमा देनी होती है। जैसे मतवाले के हाथ में कांटा गड़ता है, वैसे ही मूर्खों का कहा हुआ नीतिवचन भी दु:खदाई होता है। जैसा कोई तीरन्दाज जो अकारण सब को मारता हो, वैसा ही मूर्खों वा बटोहियों का मजदूरी में लगाने वाला भी होता है। जैसे कुत्ता अपनी छाँट को चाटता है, वैसे ही मूर्ख अपनी मूर्खता को दुहराता है। यदि तू ऐसा मनुष्य देखे जो अपनी दृष्टि में बुद्धिमान बनता हो, तो उस से अधिक आशा मूर्ख ही से है। आलसी कहता है, कि मार्ग में सिंह है, चौक में सिंह है! जैसे किवाड़ अपनी चूल पर घूमता है, वैसे ही आलसी अपनी खाट पर करवटें लेता है। आलसी अपना हाथ थाली में तो डालता है, परन्तु आलस्य के कारण कौर मुंह तक नहीं उठाता। आलसी अपने को ठीक उत्तर देने वाले सात मनुष्यों से भी अधिक बुद्धिमान समझता है।

नीतिवचन 26:1-16 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)

जैसा धूपकाल में हिम का, या कटनी के समय वर्षा होना, वैसा ही मूर्ख की महिमा भी ठीक नहीं होती। जैसे गौरैया घूमते-घूमते और शूपाबेनी उड़ते-उड़ते नहीं बैठती, वैसे ही व्यर्थ श्राप नहीं पड़ता। घोड़े के लिये कोड़ा, गदहे के लिये लगाम, और मूर्खों की पीठ के लिये छड़ी है। मूर्ख को उसकी मूर्खता के अनुसार उत्तर न देना ऐसा न हो कि तू भी उसके तुल्य ठहरे। मूर्ख को उसकी मूर्खता के अनुसार उत्तर देना, ऐसा न हो कि वह अपनी दृष्टि में बुद्धिमान ठहरे। जो मूर्ख के हाथ से सन्देशा भेजता है, वह मानो अपने पाँव में कुल्हाड़ा मारता और विष पीता है। जैसे लँगड़े के पाँव लड़खड़ाते हैं, वैसे ही मूर्खों के मुँह में नीतिवचन होता है। जैसे पत्थरों के ढेर में मणियों की थैली, वैसे ही मूर्ख को महिमा देनी होती है। जैसे मतवाले के हाथ में काँटा गड़ता है, वैसे ही मूर्खों का कहा हुआ नीतिवचन भी दुःखदाई होता है। जैसा कोई तीरन्दाज जो अकारण सब को मारता हो, वैसा ही मूर्खों या राहगीरों का मजदूरी में लगानेवाला भी होता है। जैसे कुत्ता अपनी छाँट को चाटता है, वैसे ही मूर्ख अपनी मूर्खता को दोहराता है। (2 पत. 2:20-22) यदि तू ऐसा मनुष्य देखे जो अपनी दृष्टि में बुद्धिमान बनता हो, तो उससे अधिक आशा मूर्ख ही से है। आलसी कहता है, “मार्ग में सिंह है, चौक में सिंह है!” जैसे किवाड़ अपनी चूल पर घूमता है, वैसे ही आलसी अपनी खाट पर करवटें लेता है। आलसी अपना हाथ थाली में तो डालता है, परन्तु आलस्य के कारण कौर मुँह तक नहीं उठाता। आलसी अपने को ठीक उत्तर देनेवाले सात मनुष्यों से भी अधिक बुद्धिमान समझता है।

नीतिवचन 26:1-16 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)

मूर्ख को सम्मानित करना वैसा ही असंगत है, जैसा ग्रीष्मऋतु में हिमपात तथा कटनी के समय वृष्टि. निर्दोष को दिया गया शाप वैसे ही प्रभावी नहीं हो पाता, जैसे गौरेया का फुदकना और अबाबील की उड़ान. जैसे घोड़े के लिए चाबुक और गधे के लिए लगाम, वैसे ही मूर्ख की पीठ के लिए छड़ी निर्धारित है. मूर्ख को उसकी मूर्खता के अनुरूप उत्तर न दो, कहीं तुम स्वयं मूर्ख सिद्ध न हो जाओ. मूर्खों को उनकी मूर्खता के उपयुक्त उत्तर दो, अन्यथा वे अपनी दृष्टि में विद्वान हो जाएंगे. किसी मूर्ख के द्वारा संदेश भेजना वैसा ही होता है, जैसा अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार लेना अथवा विषपान कर लेना. मूर्ख के मुख द्वारा निकला नीति सूत्र वैसा ही होता है, जैसा अपंग के लटकते निर्जीव पैर. किसी मूर्ख को सम्मानित करना वैसा ही होगा, जैसे पत्थर को गोफन में बांध देना. मूर्ख व्यक्ति द्वारा कहा गया नीतिवचन वैसा ही लगता है, जैसे मद्यपि के हाथों में चुभा हुआ कांटा. जो अनजान मूर्ख यात्री अथवा मदोन्मत्त व्यक्ति को काम पर लगाता है, वह उस धनुर्धारी के समान है, जो बिना किसी लक्ष्य के, लोगों को घायल करता है. अपनी मूर्खता को दोहराता हुआ व्यक्ति उस कुत्ते के समान है, जो बार-बार अपने उल्टी की ओर लौटता है. क्या तुमने किसी ऐसे व्यक्ति को देखा है, जो स्वयं को बुद्धिमान समझता है? उसकी अपेक्षा एक मूर्ख से कहीं अधिक अपेक्षा संभव है. आलसी कहता है, “मार्ग में सिंह है, सिंह गलियों में छुपा हुआ है!” आलसी अपने बिछौने पर वैसे ही करवटें बदलते रहता है, जैसे चूल पर द्वार. आलसी अपना हाथ भोजन की थाली में डाल तो देता है; किंतु आलस्यवश वह अपना हाथ मुख तक नहीं ले जाता. अपने विचार में आलसी उन सात व्यक्तियों से अधिक बुद्धिमान होता है, जिनमें सुसंगत उत्तर देने की क्षमता होती है.