नीतिवचन 10:15-32
नीतिवचन 10:15-32 पवित्र बाइबल (HERV)
धनी का धन, उनका मज़बूत किला होता, दीन की दीनता पर उसका विनाश है। नेक की कमाई, उन्हें जीवन देती है, किन्तु दुष्ट की आय दण्ड दिलवाती। ऐसे अनुशासन से जो जन सीखता है, जीवन के मार्ग की राह वह दिखाता है। किन्तु जो सुधार की उपेक्षा करता है ऐसा मनुष्य तो भटकाया करता है। जो मनुष्य बैर पर परदा डाले रखता है, वह मिथ्यावादी है और वह जो निन्दा फैलाता है, मूढ़ है। अधिक बोलने से, कभी पाप नहीं दूर होता किन्तु जो अपनी जुबान को लगाम देता है, वही बुद्धिमान है। धर्मी की वाणी विशुद्ध चाँदी है, किन्तु दुष्ट के हृदय का कोई नहीं मोल। धर्मी के मुख से अनेक का भला होता, किन्तु मूर्ख समझ के अभाव में मिट जाते। यहोवा के वरदान से जो धन मिलता है, उसके साथ वह कोई दुःख नहीं जोड़ता। बुरे आचार में मूढ़ को सुख मिलता, किन्तु एक समझदार विवेक में सुख लेता है। जिससे मूढ़ भयभीत होता, वही उस पर आ पड़ेगी, धर्मी की कामना तो पूरी की जायेगी। आंधी जब गुज़रती है, दुष्ट उड़ जाते हैं, किन्तु धर्मी जन तो, निरन्तर टिके रहते हैं। काम पर जो किसी आलसी को भेजता है, वह बन जाता है जैसे अम्ल सिरका दाँतों को खटाता है, और धुंआ आँखों को तड़पाता दुःख देता है। यहोवा का भय आयु का आयाम बढ़ाता है, किन्तु दुष्ट की आयु तो घटती रहती है। धर्मी का भविष्य आनन्द—उल्लास है। किन्तु दुष्ट की आशा तो व्यर्थ रह जाती है। धर्मी जन के लिये यहोवा का मार्ग शरण स्थल है किन्तु जो दुराचारी है, उनका यह विनाश है। धर्मी जन को कभी उखाड़ा न जायेगा, किन्तु दुष्ट धरती पर टिक नहीं पायेगा। धर्मी के मुख से बुद्धि प्रवाहित होती है, किन्तु कुटिल जीभ को तो काट फेंका जायेगा। धर्मी के अधर जो उचित है जानते हैं, किन्तु दुष्ट का मुख बस कुटिल बातें बोलता।
नीतिवचन 10:15-32 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)
धनी का धन उसका दृढ़ नगर है; किन्तु गरीब की गरीबी उसके विनाश का कारण है। धार्मिक मनुष्य का परिश्रम उसको जीवन को ओर ले जाता है; पर दुर्जन की कमाई उसको पाप की ओर अग्रसर करती है। जो मनुष्य शिक्षा की बातों पर ध्यान देता है, वह जीवन के मार्ग पर चलता है; पर जो व्यक्ति चेतावनी की उपेक्षा करता है; वह जीवन के मार्ग से भटक जाता है। जो मनुष्य घृणा को मन में छिपाकर रखता है, उसके ओंठों से झूठ निकलता है; निन्दा करनेवाला मनुष्य वास्तव में मूर्ख होता है। जो मनुष्य अधिक बोलता है, वह अपराध करने से बच नहीं सकता; पर अपनी जीभ को वश में रखनेवाला मनुष्य बुद्धिमान है! धार्मिक मनुष्य के शब्द सर्वोत्तम चांदी के सदृश बहुमूल्य होते हैं; पर दुर्जन के विचारों का कोई मूल्य नहीं होता। धार्मिक मनुष्य के शब्दों से अनेक लोगों का भला होता है; पर मूर्ख मनुष्य समझ के अभाव में मर जाता है। प्रभु की आशिष से ही मनुष्य धनवान बनता है। आशिष के साथ प्रभु दु:ख नहीं देता। मुर्ख व्यक्ति पाप कर्म को हंसी की बात समझता है, पर समझदार व्यक्ति सदाचरण को प्रशंसा की बात मानता है। जिस बात से दुर्जन डरता है, वह उस पर आती है; पर धार्मिक मनुष्य की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। बवंडर आता है तो दुर्जन उड़ जाता है; पर धार्मिक मनुष्य सदा टिका रहता है। जैसे सिरका दांतों को, और धुआं आंखों को अप्रिय है वैसे ही भेजनेवाले को आलसी दूत अप्रिय होता है। प्रभु की भक्ति करने से मनुष्य लम्बी आयु प्राप्त करता है; पर दुर्जन असमय में ही मर जाता है। धार्मिक मनुष्य की आशाएं पूर्ण होती हैं, और वह आनन्दित होता है, पर दुर्जन की आशा निराशा में बदल जाती है। निष्कपट मनुष्य का गढ़ है− प्रभु; किन्तु प्रभु दुष्कर्मियों का संहार करता है। धार्मिक मनुष्य अपने देश में स्थायी रूप से निवास करेगा, पर दुर्जन का डेरा उखड़ जाएगा। धार्मिक मनुष्य के ओंठों से बुद्धि के वचन निकलते हैं; पर कुटिल जिह्वा काट दी जाएगी! धार्मिक मनुष्य समझ-बूझकर ग्रहणयोग्य बातें ही बोलता है, पर दुर्जन के ओंठों से कुटिल बातें ही निकलती हैं।
नीतिवचन 10:15-32 Hindi Holy Bible (HHBD)
धनी का धन उसका दृढ़ नगर है, परन्तु कंगाल लोग निर्धन होने के कारण विनाश होते हैं। धर्मी का परिश्रम जीवन के लिये होता है, परन्तु दुष्ट के लाभ से पाप होता है। जो शिक्षा पर चलता वह जीवन के मार्ग पर है, परन्तु जो डांट से मुंह मोड़ता, वह भटकता है। जो बैर को छिपा रखता है, वह झूठ बोलता है, और जो अपवाद फैलाता है, वह मूर्ख है। जहां बहुत बातें होती हैं, वहां अपराध भी होता है, परन्तु जो अपने मुंह को बन्द रखता है वह बुद्धि से काम करता है। धर्मी के वचन तो उत्तम चान्दी हैं; परन्तु दुष्टों का मन बहुत हलका होता है। धर्मी के वचनों से बहुतों का पालन पोषण होता है, परन्तु मूढ़ लोग निर्बुद्धि होने के कारण मर जाते हैं। धन यहोवा की आशीष ही से मिलता है, और वह उसके साथ दु:ख नहीं मिलाता। मूर्ख को तो महापाप करना हंसी की बात जान पड़ती है, परन्तु समझ वाले पुरूष में बुद्धि रहती है। दुष्ट जन जिस विपत्ति से डरता है, वह उस पर आ पड़ती है, परन्तु धर्मियों की लालसा पूरी होती है। बवण्डर निकल जाते ही दुष्ट जन लोप हो जाता है, परन्तु धर्मी सदा लों स्थिर है। जैसे दांत को सिरका, और आंख को धूंआ, वैसे आलसी उन को लगाता है जो उस को कहीं भेजते हैं। यहोवा के भय मानने से आयु बढ़ती है, परन्तु दुष्टों का जीवन थोड़े ही दिनों का होता है। धर्मियों को आशा रखने में आनन्द मिलता है, परन्तु दुष्टों की आशा टूट जाती है। यहोवा खरे मनुष्य का गढ़ ठहरता है, परन्तु अनर्थकारियों का विनाश होता है। धर्मी सदा अटल रहेगा, परन्तु दुष्ट पृथ्वी पर बसने न पाएंगे। धर्मी के मुंह से बुद्धि टपकती है, पर उलट फेर की बात कहने वाले की जीभ काटी जायेगी। धर्मी ग्रहणयोग्य बात समझ कर बोलता है, परन्तु दुष्टों के मुंह से उलट फेर की बातें निकलती हैं॥
नीतिवचन 10:15-32 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)
धनी का धन उसका दृढ़ नगर है, परन्तु कंगाल की निर्धनता उसके विनाश का कारण है। धर्मी का परिश्रम जीवन के लिये होता है, परन्तु दुष्ट के लाभ से पाप होता है। जो शिक्षा पर चलता, वह जीवन के मार्ग पर है, परन्तु जो डाँट से मुँह मोड़ता, वह भटकता है। जो बैर को छिपा रखता है, वह झूठ बोलता है, और जो झूठी निन्दा फैलाता है, वह मूर्ख है। जहाँ बहुत बातें होती हैं, वहाँ अपराध भी होता है, परन्तु जो अपने मुँह को बन्द रखता वह बुद्धि से काम करता है। धर्मी के वचन तो उत्तम चाँदी हैं; परन्तु दुष्टों का मन बहुत हल्का होता है। धर्मी के वचनों से बहुतों का पालन–पोषण होता है, परन्तु मूढ़ लोग निर्बुद्धि होने के कारण मर जाते हैं। धन यहोवा की आशीष ही से मिलता है, और वह उसके साथ दु:ख नहीं मिलाता। मूर्ख को तो महापाप करना हँसी की बात जान पड़ती है, परन्तु समझवाले पुरुष में बुद्धि रहती है। दुष्ट जन जिस विपत्ति से डरता है, वह उस पर आ पड़ती है, परन्तु धर्मियों की लालसा पूरी होती है। बवण्डर निकल जाते ही दुष्ट जन लोप हो जाता है, परन्तु धर्मी सदा लों स्थिर है। जैसे दाँत को सिरका, और आँख को धूआँ, वैसे आलसी उनको लगता है जो उसको कहीं भेजते हैं। यहोवा का भय मानने से आयु बढ़ती है, परन्तु दुष्टों का जीवन थोड़े ही दिनों का होता है। धर्मियों को आशा रखने में आनन्द मिलता है, परन्तु दुष्टों की आशा टूट जाती है। यहोवा खरे मनुष्य का गढ़ ठहरता है, परन्तु अनर्थकारियों का विनाश होता है। धर्मी सदा अटल रहेगा, परन्तु दुष्ट पृथ्वी पर बसने न पाएँगे। धर्मी के मुँह से बुद्धि टपकती है, पर उलट फेर की बात कहनेवाले की जीभ काटी जाएगी। धर्मी ग्रहणयोग्य बात समझ कर बोलता है, परन्तु दुष्टों के मुँह से उलट फेर की बातें निकलती हैं।
नीतिवचन 10:15-32 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)
धनी का धन उसका दृढ़ नगर है, परन्तु कंगाल की निर्धनता उसके विनाश का कारण हैं। धर्मी का परिश्रम जीवन की ओर ले जाता है; परन्तु दुष्ट का लाभ पाप की ओर ले जाता है। जो शिक्षा पर चलता वह जीवन के मार्ग पर है, परन्तु जो डाँट से मुँह मोड़ता, वह भटकता है। जो बैर को छिपा रखता है, वह झूठ बोलता है, और जो झूठी निन्दा फैलाता है, वह मूर्ख है। जहाँ बहुत बातें होती हैं, वहाँ अपराध भी होता है, परन्तु जो अपने मुँह को बन्द रखता है वह बुद्धि से काम करता है। धर्मी के वचन तो उत्तम चाँदी हैं; परन्तु दुष्टों का मन बहुत हलका होता है। धर्मी के वचनों से बहुतों का पालन-पोषण होता है, परन्तु मूर्ख लोग बुद्धिहीनता के कारण मर जाते हैं। धन यहोवा की आशीष ही से मिलता है, और वह उसके साथ दुःख नहीं मिलाता। मूर्ख को तो महापाप करना हँसी की बात जान पड़ती है, परन्तु समझवाले व्यक्ति के लिए बुद्धि प्रसन्नता का विषय है। दुष्ट जन जिस विपत्ति से डरता है, वह उस पर आ पड़ती है, परन्तु धर्मियों की लालसा पूरी होती है। दुष्ट जन उस बवण्डर के समान है, जो गुजरते ही लोप हो जाता है परन्तु धर्मी सदा स्थिर रहता है। जैसे दाँत को सिरका, और आँख को धुआँ, वैसे आलसी उनको लगता है जो उसको कहीं भेजते हैं। यहोवा के भय मानने से आयु बढ़ती है, परन्तु दुष्टों का जीवन थोड़े ही दिनों का होता है। धर्मियों को आशा रखने में आनन्द मिलता है, परन्तु दुष्टों की आशा टूट जाती है। यहोवा खरे मनुष्य का गढ़ ठहरता है, परन्तु अनर्थकारियों का विनाश होता है। धर्मी सदा अटल रहेगा, परन्तु दुष्ट पृथ्वी पर बसने न पाएँगे। धर्मी के मुँह से बुद्धि टपकती है, पर उलट-फेर की बात कहनेवाले की जीभ काटी जाएगी। धर्मी ग्रहणयोग्य बात समझकर बोलता है, परन्तु दुष्टों के मुँह से उलट-फेर की बातें निकलती हैं।
नीतिवचन 10:15-32 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)
धनी व्यक्ति के लिए उसका धन एक गढ़ के समान होता है, किंतु निर्धन की गरीबी उसे ले डूबती है. धर्मी का ज्ञान उसे जीवन प्रदान करता है, किंतु दुष्ट की उपलब्धि होता है पाप. जो कोई सावधानीपूर्वक शिक्षा का चालचलन करता है, वह जीवन मार्ग पर चल रहा होता है, किंतु जो ताड़ना की अवमानना करता है, अन्यों को भटका देता है. वह, जो घृणा को छिपाए रहता है, झूठा होता है और वह व्यक्ति मूर्ख प्रमाणित होता है, जो निंदा करता फिरता है. जहां अधिक बातें होती हैं, वहां अपराध दूर नहीं रहता, किंतु जो अपने मुख पर नियंत्रण रखता है, वह बुद्धिमान है. धर्मी की वाणी उत्कृष्ट चांदी तुल्य है; दुष्ट के विचारों का कोई मूल्य नहीं होता. धर्मी के उद्गार अनेकों को तृप्त कर देते हैं, किंतु बोध के अभाव में ही मूर्ख मृत्यु का कारण हो जाते हैं. याहवेह की कृपादृष्टि समृद्धि का मर्म है. वह इस कृपादृष्टि में दुःख को नहीं मिलाता. जैसे अनुचित कार्य करना मूर्ख के लिए हंसी का विषय है, वैसे ही बुद्धिमान के समक्ष विद्वत्ता आनंद का विषय है. जो आशंका दुष्ट के लिए भयास्पद होती है, वही उस पर घटित हो जाती है; किंतु धर्मी की मनोकामना पूर्ण होकर रहती है. बवंडर के निकल जाने पर दुष्ट शेष नहीं रह जाता, किंतु धर्मी चिरस्थायी बना रहता है. आलसी संदेशवाहक अपने प्रेषक पर वैसा ही प्रभाव छोड़ता है, जैसा सिरका दांतों पर और धुआं नेत्रों पर. याहवेह के प्रति श्रद्धा से आयु बढ़ती जाती है, किंतु थोड़े होते हैं दुष्ट के आयु के वर्ष. धर्मी की आशा में आनंद का उद्घाटन होता है, किंतु दुर्जन की आशा निराशा में बदल जाती है. निर्दोष के लिए याहवेह का विधान एक सुरक्षित आश्रय है, किंतु बुराइयों के निमित्त सर्वनाश. धर्मी सदैव अटल और स्थिर बने रहते हैं, किंतु दुष्ट पृथ्वी पर निवास न कर सकेंगे. धर्मी अपने बोलने में ज्ञान का संचार करते हैं, किंतु कुटिल की जीभ काट दी जाएगी. धर्मी में यह सहज बोध रहता है, कि उसका कौन सा उद्गार स्वीकार्य होगा, किंतु दुष्ट के शब्द कुटिल विषय ही बोलते हैं.