मारकुस 6:30-56

मारकुस 6:30-56 पवित्र बाइबल (HERV)

फिर दिव्य संदेश का प्रचार करने वाले प्रेरितों ने यीशु के पास इकट्ठे होकर जो कुछ उन्होंने किया था और सिखाया था, सब उसे बताया। फिर यीशु ने उनसे कहा, “तुम लोग मेरे साथ किसी एकांत स्थान पर चलो और थोड़ा आराम करो।” क्योंकि वहाँ बहुत लोगों का आना जाना लगा हुआ था और उन्हें खाने तक का मौका नहीं मिल पाता था। इसलिये वे अकेले ही एक नाव में बैठ कर किसी एकांत स्थान को चले गये। बहुत से लोगों ने उन्हें जाते देखा और पहचान लिया कि वे कौन थे। इसलिये वे सारे नगरों से धरती के रास्ते चल पड़े और उनसे पहले ही वहाँ जा पहुँचे। जब यीशु नाव से बाहर निकला तो उसने एक बड़ी भीड़ देखी। वह उनके लिए बहुत दुखी हुआ क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों जैसे थे। सो वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा। तब तक बहुत शाम हो चुकी थी। इसलिये उसके शिष्य उसके पास आये और बोले, “यह एक सुनसान जगह है और शाम भी बहुत हो चुकी है। लोगों को आसपास के गाँवों और बस्तियों में जाने दो ताकि वे अपने लिए कुछ खाने को मोल ले सकें।” किन्तु उसने उत्तर दिया, “उन्हें खाने को तुम दो।” तब उन्होंने उससे कहा, “क्या हम जायें और दो सौ दीनार की रोटियाँ मोल ले कर उन्हें खाने को दें?” उसने उनसे कहा, “जाओ और देखो, तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” पता करके उन्होंने कहा, “हमारे पास पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं।” फिर उसने आज्ञा दी, “हरी घास पर सब को पंक्ति में बैठा दो।” तब वे सौ-सौ और पचास-पचास की पंक्तियों में बैठ गये। और उसने वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ उठा कर स्वर्ग की ओर देखते हुए धन्यवाद दिया और रोटियाँ तोड़ कर लोगों को परोसने के लिए, अपने शिष्यों को दीं। और उसने उन दो मछलियों को भी उन सब लोगों में बाँट दिया। सब ने खाया और तृप्त हुए। और फिर उन्होंने बची हुई रोटियों और मछलियों से भर कर, बारह टोकरियाँ उठाईं। जिन लोगों ने रोटियाँ खाईं, उनमे केवल पुरुषों की ही संख्या पांच हज़ार थी। फिर उसने अपने चेलों को तुरंत नाव पर चढ़ाया ताकि जब तक वह भीड़ को बिदा करे, वे उससे पहले ही परले पार बैतसैदा चले जायें। उन्हें बिदा करके, प्रार्थना करने के लिये वह पहाड़ी पर चला गया। और जब शाम हुई तो नाव झील के बीचों-बीच थी और वह अकेला धरती पर था। उसने देखा कि उन्हें नाव खेना भारी पड़ रहा था। क्योंकि हवा उनके विरुद्ध थी। लगभग रात के चौथे पहर वह झील पर चलते हुए उनके पास आया। वह उनके पास से निकलने को ही था। उन्होंने उसे झील पर चलते देखा सोचा कि वह कोई भूत है। और उनकी चीख निकल गयी। क्योंकि सभी ने उसे देखा था और वे सहम गये थे। तुरंत उसने उन्हें संबोधित करते हुए कहा, “साहस रखो, यह मैं हूँ! डरो मत!” फिर वह उनके साथ नाव पर चढ़ गया और हवा थम गयी। इससे वे बहुत चकित हुए। वे रोटियों के आश्चर्य कर्म के विषय में समझ नहीं पाये थे। उनकी बुद्धि जड़ हो गयी थी। झील पार करके वे गन्नेसरत पहुँचे। उन्होंने नाव बाँध दी। जब वे नाव से उतर कर बाहर आये तो लोग यीशु को पहचान गये। फिर वे बीमारों को खाटों पर डाले समूचे क्षेत्र में जहाँ कहीं भी, उन्होंने सुना कि वह है, उन्हें लिये दौड़ते फिरे। वह गावों में, नगरों में या बस्तियों में, जहाँ कहीं भी जाता, लोग अपने बीमारों को बाज़ारों में रख देते और उससे विनती करते कि वह अपने वस्त्र का बस कोई सिरा ही उन्हें छू लेने दे। और जो भी उसे छू पाये, सब चंगे हो गये।

मारकुस 6:30-56 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)

प्रेरित लौट कर येशु के पास एकत्र हुए। उन्‍होंने येशु को वह सब कुछ बताया कि हम लोगों ने क्‍या-क्‍या किया और क्‍या-क्‍या सिखाया है। तब येशु ने उनसे कहा, “तुम लोग अकेले ही मेरे साथ निर्जन स्‍थान में चलो और थोड़ा विश्राम कर लो”; क्‍योंकि इतने लोग आया-जाया करते थे कि उन्‍हें भोजन करने की भी फुरसत नहीं रहती थी। इसलिए वे नाव पर चढ़ कर निर्जन स्‍थान की ओर एकांत में चले गए। बहुत लोगों ने उन्‍हें जाते हुए देखा, और वे उन्‍हें पहचान गए। वे नगर-नगर से निकल कर पैदल ही उधर दौड़ पड़े और उन से पहले ही वहाँ पहुँच गये। येशु ने नाव से उतर कर एक विशाल जनसमूह देखा। उन्‍हें उन लोगों पर तरस आया, क्‍योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों की तरह थे और वे उन्‍हें बहुत-सी बातों की शिक्षा देने लगे। जब दिन बहुत ढल गया, तो येशु के शिष्‍यों ने उनके पास आ कर कहा, “यह स्‍थान निर्जन है और दिन बहुत ढल चुका है। लोगों को विदा कीजिए, जिससे वे आसपास की बस्‍तियों और गाँवों में जा कर अपने भोजन के लिए कुछ खरीद लें।” येशु ने उन्‍हें उत्तर दिया, “तुम लोग ही उन्‍हें भोजन दो।” शिष्‍यों ने कहा, “क्‍या हम जा कर दो सौ चाँदी के सिक्‍कों की रोटियाँ खरीद कर लाएँ और उन्‍हें लोगों को खाने को दें?” येशु ने पूछा, “तुम्‍हारे पास कितनी रोटियाँ हैं? जा कर देखो।” उन्‍होंने पता लगा कर कहा, “पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ।” इस पर येशु ने सब को अलग-अलग समूह में हरी घास पर बैठाने का आदेश दिया। लोग सौ-सौ और पचास-पचास के झुंड में बैठ गये। येशु ने वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं और आकाश की ओर आँखें उठा कर आशिष माँगी। उन्‍होंने रोटियाँ तोड़ीं और शिष्‍यों को दीं, ताकि वे लोगों को परोसते जाएँ। उन्‍होंने उन दो मछलियों को भी सब में बाँट दिया। सब ने खाया और खा कर तृप्‍त हो गये। शिष्‍यों ने रोटी के टुकड़ों और मछलियों से भरी हुई बारह टोकरियाँ उठाईं। रोटी खाने वाले पुरुषों की संख्‍या पाँच हजार थी। इसके तुरन्‍त बाद येशु ने अपने शिष्‍यों को इसके लिए बाध्‍य किया कि वे नाव पर चढ़कर उन से पहले उस पार, बेतसैदा गाँव चले जाएँ। इतने में वह स्‍वयं लोगों को विदा कर देंगे। तब येशु उन्‍हें विदा कर पहाड़ी पर प्रार्थना करने चले गये। सन्‍ध्‍या हो गयी थी। नाव झील के बीच में थी और येशु अकेले स्‍थल पर थे। येशु ने देखा कि शिष्‍य बड़ी कठिनाई से नाव खे रहे हैं, क्‍योंकि वायु प्रतिकूल थी। इसलिए वे रात के लगभग चौथे पहर झील पर चलते हुए उनकी ओर आए। वह उनसे कतरा कर आगे निकल जाना चाहते थे। शिष्‍यों ने उन्‍हें झील पर चलते देखा। वे उन्‍हें प्रेत समझ कर चिल्‍ला उठे, क्‍योंकि सब-के-सब उन्‍हें देख कर घबरा गये थे। पर येशु तुरन्‍त उनसे बोले, “धैर्य रखो, मैं हूँ। डरो मत।” तब वह उनके पास आ कर नाव पर चढ़े और वायु थम गयी। शिष्‍य आश्‍चर्य-चकित रह गये, क्‍योंकि वे रोटियों से संबंधित घटना नहीं समझ पाए थे। उनका हृदय कठोर हो गया था। वे झील को पार कर गिनेसरेत के सीमा-क्षेत्र में पहुँचे। उन्‍होंने नाव किनारे लगा दी। ज्‍यों ही वे भूमि पर उतरे, लोगों ने येशु को पहचान लिया। वे उस सारे प्रदेश में दौड़ गए, और जहाँ-जहाँ उन्‍होंने सुना कि वह हैं, वहाँ वे चारपाइयों पर पड़े रोगियों को उनके पास लाने लगे। गाँव, नगर या बस्‍ती, जहाँ कहीं भी येशु आते, वहाँ लोग रोगियों को सार्वजनिक स्‍थानों पर रख कर उनसे अनुनय-विनय करते थे कि वह उन्‍हें अपने वस्‍त्र का सिरा ही छूने दें। जितनों ने उनका स्‍पर्श किया, वे सब-के-सब स्‍वस्‍थ्‍य हो गये।

मारकुस 6:30-56 Hindi Holy Bible (HHBD)

प्रेरितों ने यीशु के पास इकट्ठे होकर, जो कुछ उन्होंने किया, और सिखाया था, सब उस को बता दिया। उस ने उन से कहा; तुम आप अलग किसी जंगली स्थान में आकर थोड़ा विश्राम करो; क्योंकि बहुत लोग आते जाते थे, और उन्हें खाने का अवसर भी नहीं मिलता था। इसलिये वे नाव पर चढ़कर, सुनसान जगह में अलग चले गए। और बहुतों ने उन्हें जाते देखकर पहिचान लिया, और सब नगरों से इकट्ठे होकर वहां पैदल दौड़े और उन से पहिले जा पहुंचे। उस ने निकलकर बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे, जिन का कोई रखवाला न हो; और वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा। जब दिन बहुत ढल गया, तो उसके चेले उसके पास आकर कहने लगे; यह सुनसान जगह है, और दिन बहुत ढल गया है। उन्हें विदा कर, कि चारों ओर के गांवों और बस्तियों में जाकर, अपने लिये कुछ खाने को मोल लें। उस ने उन्हें उत्तर दिया; कि तुम ही उन्हें खाने को दो: उन्हों ने उस से कहा; क्या हम सौ दीनार की रोटियां मोल लें, और उन्हें खिलाएं? उस ने उन से कहा; जाकर देखो तुम्हारे पास कितनी रोटियां हैं? उन्होंने मालूम करके कहा; पांच और दो मछली भी। तब उस ने उन्हें आज्ञा दी, कि सब को हरी घास पर पांति पांति से बैठा दो। वे सौ सौ और पचास पचास करके पांति पांति बैठ गए। और उस ने उन पांच रोटियों को और दो मछिलयों को लिया, और स्वर्ग की ओर देखकर धन्यवाद किया और रोटियां तोड़ तोड़ कर चेलों को देता गया, कि वे लोगों को परोसें, और वे दो मछिलयां भी उन सब में बांट दीं। और सब खाकर तृप्त हो गए। और उन्होंने टुकडों से बारह टोकिरयां भर कर उठाई, और कुछ मछिलयों से भी। जिन्हों ने रोटियां खाईं, वे पांच हजार पुरूष थे॥ तब उस ने तुरन्त अपने चेलों को बरबस नाव पर चढाया, कि वे उस से पहिले उस पार बैतसैदा को चले जांए, जब तक कि वह लोगों को विदा करे। और उन्हें विदा करके पहाड़ पर प्रार्थना करने को गया। और जब सांझ हुई, तो नाव झील के बीच में थी, और वह अकेला भूमि पर था। और जब उस ने देखा, कि वे खेते खेते घबरा गए हैं, क्योंकि हवा उनके विरूद्ध थी, तो रात के चौथे पहर के निकट वह झील पर चलते हुए उन के पास आया; और उन से आगे निकल जाना चाहता था। परन्तु उन्होंने उसे झील पर चलते देखकर समझा, कि भूत है, और चिल्ला उठे, क्योंकि सब उसे देखकर घबरा गए थे। पर उस ने तुरन्त उन से बातें कीं और कहा; ढाढ़स बान्धो: मैं हूं; डरो मत। तब वह उन के पास नाव पर आया, और हवा थम गई: और वे बहुत ही आश्चर्य करने लगे। क्योंकि वे उन रोटियों के विषय में ने समझे थे परन्तु उन के मन कठोर हो गए थे॥ और वे पार उतरकर गन्नेसरत में पहुंचे, और नाव घाट पर लगाई। और जब वे नाव पर से उतरे, तो लोग तुरन्त उस को पहचान कर। आसपास के सारे देश में दोड़े, और बीमारों को खाटों पर डालकर, जहां जहां समाचार पाया कि वह है, वहां वहां लिए फिरे। और जहां कहीं वह गांवों, नगरों, या बस्तियों में जाता था, तो लोग बीमारों को बाजारों में रखकर उस से बिनती करते थे, कि वह उन्हें अपने वस्त्र के आंचल ही को छू लेने दे: और जितने उसे छूते थे, सब चंगे हो जाते थे॥

मारकुस 6:30-56 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)

प्रेरितों ने यीशु के पास इकट्ठे होकर, जो कुछ उन्होंने किया और सिखाया था, सब उसको बताया। उसने उनसे कहा, “तुम आप अलग किसी एकान्त स्थान में चलकर थोड़ा विश्राम करो।” क्योंकि बहुत लोग आते जाते थे, और उन्हें खाने का अवसर भी नहीं मिलता था। इसलिये वे नाव पर चढ़कर, सुनसान जगह में अलग चले गए। बहुतों ने उन्हें जाते देखकर पहचान लिया, और सब नगरों से इकट्ठे होकर वहाँ पैदल दौड़े और उनसे पहले जा पहुँचे। उसने उतर कर बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे, जिनका कोई रखवाला न हो; और वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा। जब दिन बहुत ढल गया, तो उसके चेले उसके पास आकर कहने लगे, “यह सुनसान जगह है, और दिन बहुत ढल गया है। उन्हें विदा कर कि चारों ओर के गाँवों और बस्तियों में जाकर, अपने लिये कुछ खाने को मोल लें।” उस ने उत्तर दिया, “तुम ही उन्हें खाने को दो।” उन्होंने उससे कहा, “क्या हम सौ दीनार की रोटियाँ मोल लें, और उन्हें खिलाएँ?” उसने उनसे कहा, “जाकर देखो तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने मालूम करके कहा, “पाँच और दो मछली भी।” तब उसने उन्हें आज्ञा दी कि सब को हरी घास पर पाँति–पाँति से बैठा दो। वे सौ सौ और पचास पचास करके पाँति–पाँति बैठ गए। उसने उन पाँच रोटियों को और दो मछलियों को लिया, और स्वर्ग की ओर देखकर धन्यवाद किया, और रोटियाँ तोड़–तोड़ कर चेलों को देता गया कि वे लोगों को परोसें, और वे दो मछलियाँ भी उन सब में बाँट दीं। सब खाकर तृप्‍त हो गए, और उन्होंने टुकड़ों से बारह टोकरियाँ भर कर उठाईं, और कुछ मछलियों से भी। जिन्होंने रोटियाँ खाईं, वे पाँच हज़ार पुरुष थे। तब उसने तुरन्त अपने चेलों को नाव पर चढ़ने के लिये विवश किया कि वे उससे पहले उस पार बैतसैदा को चले जाएँ, जब तक कि वह लोगों को विदा करे। उन्हें विदा करके वह पहाड़ पर प्रार्थना करने को गया। जब साँझ हुई, तो नाव झील के बीच में थी, और वह अकेला भूमि पर था। जब उसने देखा कि वे खेते खेते घबरा गए हैं, क्योंकि हवा उनके विरुद्ध थी, तो रात के चौथे पहर के निकट वह झील पर चलते हुए उनके पास आया; और उनसे आगे निकल जाना चाहता था। परन्तु उन्होंने उसे झील पर चलते देखकर समझा कि भूत है, और चिल्‍ला उठे; क्योंकि सब उसे देखकर घबरा गए थे। पर उसने तुरन्त उनसे बातें कीं और कहा, “ढाढ़स बाँधो : मैं हूँ; डरो मत!” तब वह उनके पास नाव पर आया, और हवा थम गई : और वे बहुत ही आश्‍चर्य करने लगे। वे उन रोटियों के विषय में न समझे थे, क्योंकि उनके मन कठोर हो गए थे। वे पार उतरकर गन्नेसरत में पहुँचे, और नाव घाट पर लगाई। जब वे नाव पर से उतरे, तो लोग तुरन्त उसको पहचान कर, आसपास के सारे देश में दौड़े, और बीमारों को खाटों पर डालकर, जहाँ–जहाँ समाचार पाया कि वह है, वहाँ–वहाँ लिये फिरे। और जहाँ कहीं वह गाँवों, नगरों, या बस्तियों में जाता था, लोग बीमारों को बाजारों में रखकर उससे विनती करते थे कि वह उन्हें अपने वस्त्र के आँचल ही को छू लेने दे : और जितने उसे छूते थे, सब चंगे हो जाते थे।

मारकुस 6:30-56 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)

प्रेरितों ने यीशु के पास इकट्ठे होकर, जो कुछ उन्होंने किया, और सिखाया था, सब उसको बता दिया। उसने उनसे कहा, “तुम आप अलग किसी एकान्त स्थान में आकर थोड़ा विश्राम करो।” क्योंकि बहुत लोग आते-जाते थे, और उन्हें खाने का अवसर भी नहीं मिलता था। इसलिए वे नाव पर चढ़कर, सुनसान जगह में अलग चले गए। और बहुतों ने उन्हें जाते देखकर पहचान लिया, और सब नगरों से इकट्ठे होकर वहाँ पैदल दौड़े और उनसे पहले जा पहुँचे। उसने उतरकर बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे, जिनका कोई रखवाला न हो; और वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा। (2 इति. 18:16, 1 राजा. 22:17) जब दिन बहुत ढल गया, तो उसके चेले उसके पास आकर कहने लगे, “यह सुनसान जगह है, और दिन बहुत ढल गया है। उन्हें विदा कर, कि चारों ओर के गाँवों और बस्तियों में जाकर, अपने लिये कुछ खाने को मोल लें।” उसने उन्हें उत्तर दिया, “तुम ही उन्हें खाने को दो।” उन्होंने उससे कहा, “क्या हम दो सौ दीनार की रोटियाँ मोल लें, और उन्हें खिलाएँ?” उसने उनसे कहा, “जाकर देखो तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने मालूम करके कहा, “पाँच रोटी और दो मछली भी।” तब उसने उन्हें आज्ञा दी, कि सब को हरी घास पर समूह में बैठा दो। वे सौ-सौ और पचास-पचास करके समूह में बैठ गए। और उसने उन पाँच रोटियों को और दो मछलियों को लिया, और स्वर्ग की ओर देखकर धन्यवाद किया और रोटियाँ तोड़-तोड़कर चेलों को देता गया, कि वे लोगों को परोसें, और वे दो मछलियाँ भी उन सब में बाँट दीं। और सब खाकर तृप्त हो गए, और उन्होंने टुकड़ों से बारह टोकरियाँ भरकर उठाई, और कुछ मछलियों से भी। जिन्होंने रोटियाँ खाई, वे पाँच हजार पुरुष थे। तब उसने तुरन्त अपने चेलों को विवश किया कि वे नाव पर चढ़कर उससे पहले उस पार बैतसैदा को चले जाएँ, जब तक कि वह लोगों को विदा करे। और उन्हें विदा करके पहाड़ पर प्रार्थना करने को गया। और जब साँझ हुई, तो नाव झील के बीच में थी, और वह अकेला भूमि पर था। और जब उसने देखा, कि वे खेते-खेते घबरा गए हैं, क्योंकि हवा उनके विरुद्ध थी, तो रात के चौथे पहर के निकट वह झील पर चलते हुए उनके पास आया; और उनसे आगे निकल जाना चाहता था। परन्तु उन्होंने उसे झील पर चलते देखकर समझा, कि भूत है, और चिल्ला उठे, क्योंकि सब उसे देखकर घबरा गए थे। पर उसने तुरन्त उनसे बातें की और कहा, “धैर्य रखो: मैं हूँ; डरो मत।” तब वह उनके पास नाव पर आया, और हवा थम गई: वे बहुत ही आश्चर्य करने लगे। क्योंकि वे उन रोटियों के विषय में न समझे थे परन्तु उनके मन कठोर हो गए थे। और वे पार उतरकर गन्नेसरत में पहुँचे, और नाव घाट पर लगाई। और जब वे नाव पर से उतरे, तो लोग तुरन्त उसको पहचानकर, आस-पास के सारे देश में दौड़े, और बीमारों को खाटों पर डालकर, जहाँ-जहाँ समाचार पाया कि वह है, वहाँ-वहाँ लिए फिरे। और जहाँ कहीं वह गाँवों, नगरों, या बस्तियों में जाता था, तो लोग बीमारों को बाजारों में रखकर उससे विनती करते थे, कि वह उन्हें अपने वस्त्र के आँचल ही को छू लेने दे: और जितने उसे छूते थे, सब चंगे हो जाते थे।

मारकुस 6:30-56 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)

प्रेरित लौटकर मसीह येशु के पास आए और उन्हें अपने द्वारा किए गए कामों और दी गई शिक्षा का विवरण दिया. मसीह येशु ने उनसे कहा, “आओ, कुछ समय के लिए कहीं एकांत में चलें और विश्राम करें,” क्योंकि अनेक लोग आ जा रहे थे और उन्हें भोजन तक का अवसर प्राप्‍त न हो सका था. वे चुपचाप नाव पर सवार हो एक सुनसान जगह पर चले गए. लोगों ने उन्हें वहां जाते हुए देख लिया. अनेकों ने यह भी पहचान लिया कि वे कौन थे. आस-पास के नगरों से अनेक लोग दौड़ते हुए उनसे पहले ही उस स्थान पर जा पहुंचे. जब मसीह येशु तट पर पहुंचे, उन्होंने वहां एक बड़ी भीड़ को इकट्ठा देखा. उसे देख वह दुःखी हो उठे क्योंकि उन्हें भीड़ बिना चरवाहे की भेड़ों के समान लगी. वहां मसीह येशु उन्हें अनेक विषयों पर शिक्षा देने लगे. दिन ढल रहा था. शिष्यों ने मसीह येशु के पास आकर उनसे कहा, “यह सुनसान जगह है और दिन ढला जा रहा है. अब आप इन्हें विदा कर दीजिए कि ये पास के गांवों में जाकर अपने लिए भोजन-व्यवस्था कर सकें.” किंतु मसीह येशु ने उन्हीं से कहा, “तुम ही दो इन्हें भोजन!” शिष्यों ने इसके उत्तर में कहा, “इतनों के भोजन में कम से कम दो सौ दीनार लगेंगे. क्या आप चाहते हैं कि हम जाकर इनके लिए इतने का भोजन ले आएं?” मसीह येशु ने उनसे पूछा, “कितनी रोटियां हैं यहां? जाओ, पता लगाओ!” उन्होंने पता लगाकर उत्तर दिया, “पांच—और इनके अलावा दो मछलियां भी.” मसीह येशु ने सभी लोगों को झुंड़ों में हरी घास पर बैठ जाने की आज्ञा दी. वे सभी सौ-सौ और पचास-पचास के झुंडों में बैठ गए. मसीह येशु ने वे पांच रोटियां और दो मछलियां लेकर स्वर्ग की ओर आंखें उठाकर उनके लिए धन्यवाद प्रकट किया. तब वह रोटियां तोड़ते और शिष्यों को देते गए कि वे उन्हें भीड़ में बांटते जाएं. इसके साथ उन्होंने वे दो मछलियां भी उनमें बांट दीं. सभी ने भरपेट खाया. शिष्यों ने शेष रह गए रोटियों तथा मछलियों के टुकड़े इकट्ठा किए तो बारह टोकरे भर गए. जिन्होंने भोजन किया था, उनमें पुरुष ही पांच हज़ार थे. तुरंत ही मसीह येशु ने शिष्यों को जबरन नाव पर बैठा उन्हें अपने से पहले दूसरे किनारे पर स्थित नगर बैथसैदा पहुंचने के लिए विदा किया—वह स्वयं भीड़ को विदा कर रहे थे. उन्हें विदा करने के बाद वह प्रार्थना के लिए पर्वत पर चले गए. रात हो चुकी थी. नाव झील के मध्य में थी. मसीह येशु किनारे पर अकेले थे. मसीह येशु देख रहे थे कि हवा उल्टी दिशा में चलने के कारण शिष्यों को नाव खेने में कठिन प्रयास करना पड़ रहा था. रात के चौथे प्रहर मसीह येशु झील की सतह पर चलते हुए उनके पास जा पहुंचे और ऐसा अहसास हुआ कि वह उनसे आगे निकलना चाह रहे थे. उन्हें जल सतह पर चलता देख शिष्य समझे कि कोई दुष्टात्मा है और वे चिल्ला उठे क्योंकि उन्हें देख वे भयभीत हो गए थे. इस पर मसीह येशु ने कहा, “मैं हूं! मत डरो! साहस मत छोड़ो!” यह कहते हुए वह उनकी नाव में चढ़ गए और वायु थम गई. शिष्य इससे अत्यंत चकित रह गए. रोटियों की घटना अब तक उनकी समझ से परे थी. उनके हृदय निर्बुद्धि जैसे हो गए थे. झील पार कर वे गन्‍नेसरत प्रदेश में पहुंच गए. उन्होंने नाव वहीं लगा दी. मसीह येशु के नाव से उतरते ही लोगों ने उन्हें पहचान लिया. जहां कहीं भी मसीह येशु होते थे, लोग दौड़-दौड़ कर बिछौनों पर रोगियों को वहां ले आते थे. मसीह येशु जिस किसी नगर, गांव या बाहरी क्षेत्र में प्रवेश करते थे, लोग रोगियों को सार्वजनिक स्थलों में लिटा कर उनसे विनती करते थे कि उन्हें उनके वस्त्र के छोर का स्पर्श मात्र ही कर लेने दें. जो कोई उनके वस्त्र का स्पर्श कर लेता था, स्वस्थ हो जाता था.