अय्‍यूब 6:1-17

अय्‍यूब 6:1-17 पवित्र बाइबल (HERV)

फिर अय्यूब ने उत्तर देते हुए कहा, “यदि मेरी पीड़ा को तौला जा सके और सभी वेदनाओं को तराजू में रख दिया जाये, तभी तुम मेरी व्यथा को समझ सकोगे। मेरी व्यथा समुद्र की समूची रेत से भी अधिक भारी होंगी। इसलिये मेरे शब्द मूर्खतापूर्ण लगते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बाण मुझ में बिधे हैं और मेरा प्राण उन बाणों के विष को पिया करता है। परमेश्वर के वे भयानक शस्त्र मेरे विरुद्ध एक साथ रखी हुई हैं। तेरे शब्द कहने के लिये आसान हैं जब कुछ भी बुरा नहीं घटित हुआ है। यहाँ तक कि बनैला गधा भी नहीं रेंकता यदि उसके पास घास खाने को रहे और कोई भी गाय तब तक नहीं रम्भाती जब तक उस के पास चरने के लिये चारा है। भोजन बिना नमक के बेस्वाद होता है और अण्डे की सफेदी में स्वाद नहीं आता है। इस भोजन को छूने से मैं इन्कार करता हूँ। इस प्रकार का भोजन मुझे तंग कर डालता है। मेरे लिये तुम्हारे शब्द ठीक उसी प्रकार के हैं। “काश! मुझे वह मिल पाता जो मैंने माँगा है। काश! परमेश्वर मुझे दे देता जिसकी मुझे कामना है। काश! परमेश्वर मुझे कुचल डालता और मुझे आगे बढ़ कर मार डालता। यदि वह मुझे मारता है तो एक बात का चैन मुझे रहेगा, अपनी अनन्त पीड़ा में भी मुझे एक बात की प्रसन्नता रहेगा कि मैंने कभी भी अपने पवित्र के आदेशों पर चलने से इन्कार नहीं किया। “मेरी शक्ति क्षीण हो चुकी है अत: जीते रहने की आशा मुझे नहीं है। मुझ को पता नहीं कि अंत में मेरे साथ क्या होगा इसलिये धीरज धरने का मेरे पास कोई कारण नहीं है। मैं चट्टान की भाँति सुदृढ़ नहीं हूँ। न ही मेरा शरीर काँसे से रचा गया है। अब तो मुझमें इतनी भी शक्ति नहीं कि मैं स्वयं को बचा लूँ। क्यों? क्योंकि मुझ से सफलता छीन ली गई है। “क्योंकि वह जो अपने मित्रों के प्रति निष्ठा दिखाने से इन्कार करता है। वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर का भी अपमान करता है। किन्तु मेरे बन्धुओं, तुम विश्वासयोग्य नहीं रहे। मैं तुम पर निर्भर नहीं रह सकता हूँ। तुम ऐसी जलधाराओं के सामान हो जो कभी बहती है और कभी नहीं बहती है। तुम ऐसी जलधाराओं के समान हो जो उफनती रहती है। जब वे बर्फ से और पिघलते हुए हिम सा रूँध जाती है। और जब मौसम गर्म और सूखा होता है तब पानी बहना बन्द हो जाता है, और जलधाराऐं सूख जाती हैं।

अय्‍यूब 6:1-17 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)

अय्‍यूब ने एलीपज को उत्तर दिया। उसने कहा : ‘काश! कोई व्यक्‍ति मेरे दु:खों की गहराई नापता; काश! मेरी विपत्तियाँ तराजू में तौली जातीं! तब मेरे कष्‍ट समुद्रतट की रेत से भारी होते। एलीपज, इसी कारण मेरे मुंह से शब्‍द बिना सोच-विचार के निकल पड़े! सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के जहर-बुझे तीरों ने मुझे बेधा है, मेरी आत्‍मा उनका विष-पान कर रही है, परमेश्‍वर का आतंक मेरे विरुद्ध आक्रमण के लिए पंिक्‍तबद्ध खड़ा है। क्‍या जंगली गधा घास होते हुए रेंकता है? क्‍या बैल सानी खाते हुए रम्‍भाता है? क्‍या स्‍वादहीन भोजन बिना नमक के खाया जा सकता है? क्‍या अण्‍डे की सफेदी में स्‍वाद होता है? मेरा भूखा प्राण जिन खाद्य वस्‍तुओं को स्‍पर्श भी नहीं करना चाहता था, वे ही अब मेरा घृणित भोजन बन गई हैं। काश! मुझे मुँह-मांगा वरदान मिलता! काश! परमेश्‍वर मेरी इच्‍छा को पूर्ण करता! काश! वह प्रसन्न होकर मुझे रौंद देता, वह मुझ पर हाथ उठाता, और मुझे मार डालता! तब मुझे शान्‍ति प्राप्‍त होती; मैं पीड़ा में भी आनन्‍दित होता; क्‍योंकि मैंने पवित्र परमेश्‍वर के वचनों को कभी अस्‍वीकार नहीं किया। मुझ में बल ही क्‍या है कि मैं प्रभु के अनुग्रह की प्रतीक्षा करूं? जब मेरा अन्‍त निश्‍चित है तब मैं अपने प्राण को क्‍या धीरज दूं? क्‍या मैं पत्‍थर-जैसा मजबूत हूं? क्‍या मेरा शरीर पीतल का बना है? सच पूछो तो मैं असहाय हूं, मैं सर्वथा साधनहीन हूं। ‘जो व्यक्‍ति अपने दु:खी मित्र पर करुणा नहीं करता, वह सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर की भक्‍ति छोड़ देता है। मेरे भाई-बन्‍धु छिछली नदी के समान विश्‍वासघाती हैं, वे बरसाती नदी के समान हैं जो ग्रीष्‍म ऋतु में सूख जाती है; जो शीत ऋतु में बर्फ के कारण काली दिखाई देती है, और हिमपात के कारण छिपी रहती है। पर ग्रीष्‍म ऋतु में उसका जल सूख जाता है, और वह अपने स्‍थान से लुप्‍त हो जाती है।

अय्‍यूब 6:1-17 Hindi Holy Bible (HHBD)

फिर अय्यूब ने कहा, भला होता कि मेरा खेद तौला जाता, और मेरी सारी विपत्ति तुला में धरी जाती! क्योंकि वह समुद्र की बालू से भी भारी ठहरती; इसी कारण मेरी बातें उतावली से हूई हैं। क्योंकि सर्वशक्तिमान के तीर मेरे अन्दर चुभे हैं; और उनका विष मेरी आत्मा में पैठ गया है; ईश्वर की भयंकर बात मेरे विरुद्ध पांति बान्धे है। जब बनैले गदहे को घास मिलती, तब क्या वह रेंकता है? और बैल चारा पाकर क्या डकारता है? जो फीका है वह क्या बिना नमक खाया जाता है? क्या अण्डे की सफेदी में भी कुछ स्वाद होता है? जिन वस्तुओं को मैं छूना भी नहीं चाहता वही मानो मेरे लिये घिनौना आहार ठहरी हैं। भला होता कि मुझे मुंह मांगा वर मिलता और जिस बात की मैं आशा करता हूँ वह ईश्वर मुझे दे देता! कि ईश्वर प्रसन्न हो कर मुझे कुचल डालता, और हाथ बढ़ा कर मुझे काट डालता! यही मेरी शान्ति का कारण; वरन भारी पीड़ा में भी मैं इस कारण से उछल पड़ता; क्योंकि मैं ने उस पवित्र के वचनों का कभी इनकार नहीं किया। मुझ में बल ही क्या है कि मैं आशा रखूं? और मेरा अन्त ही क्या होगा, कि मैं धीरज धरूं? क्या मेरी दृढ़ता पत्थरों की सी है? क्या मेरा शरीर पीतल का है? क्या मैं निराधार नहीं हूँ? क्या काम करने की शक्ति मुझ से दूर नहीं हो गई? जो पड़ोसी पर कृपा नहीं करता वह सर्वशक्तिमान का भय मानना छोड़ देता है। मेरे भाई नाले के समान विश्वासघाती हो गए हैं, वरन उन नालों के समान जिनकी धार सूख जाती है; और वे बरफ के कारण काले से हो जाते हैं, और उन में हिम छिपा रहता है। परन्तु जब गरमी होने लगती तब उनकी धाराएं लोप हो जाती हैं, और जब कड़ी धूप पड़ती है तब वे अपनी जगह से उड़ जाते हैं

अय्‍यूब 6:1-17 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)

फिर अय्यूब ने कहा, “भला होता कि मेरा खेद तौला जाता, और मेरी सारी विपत्ति तुला में रखी जाती! क्योंकि वह समुद्र की बालू से भी भारी ठहरती; इसी कारण मेरी बातें उतावली से हुई हैं। क्योंकि सर्वशक्‍तिमान के तीर मेरे अन्दर चुभे हैं; और उनका विष मेरी आत्मा में पैठ गया है; परमेश्‍वर की भयंकर बात मेरे विरुद्ध पाँति बाँधे हैं। जब बनैले गदहे को घास मिलती, तब क्या वह रेंकता है? और बैल चारा पाकर क्या डकारता है? जो फीका है वह क्या बिना नमक खाया जाता है? क्या अण्डे की सफेदी में भी कुछ स्वाद होता है? जिन वस्तुओं को मैं छूना भी नहीं चाहता वही मानो मेरे लिये घिनौना आहार ठहरी हैं। “भला होता कि मुझे मुँह माँगा वर मिलता और जिस बात की मैं आशा करता हूँ वह परमेश्‍वर मुझे दे देता, कि परमेश्‍वर प्रसन्न होकर मुझे कुचल डालता, और हाथ बढ़ाकर मुझे काट डालता! यही मेरी शान्ति का कारण होता; वरन् भारी पीड़ा में भी मैं इस कारण से उछल पड़ता; क्योंकि मैं ने उस पवित्र के वचनों का कभी इन्कार नहीं किया। मुझ में बल ही क्या है कि मैं आशा रखूँ? मेरा अन्त ही क्या होगा कि मैं धीरज धरूँ? क्या मेरी दृढ़ता पत्थरों की सी है? क्या मेरा शरीर पीतल का है? क्या मैं निराधार नहीं हूँ? क्या काम करने की शक्‍ति मुझ से दूर नहीं हो गई? “जो पड़ोसी पर कृपा नहीं करता वह सर्वशक्‍तिमान का भय मानना छोड़ देता है। मेरे भाई नाले के समान विश्‍वासघाती हो गए हैं, वरन् उन नालों के समान जिनकी धार सूख जाती है; और वे बरफ के कारण काले से हो जाते हैं, और उनमें हिम छिपा रहता है। परन्तु जब गरमी होने लगती तब उनकी धाराएँ लोप हो जाती हैं, और जब कड़ी धूप पड़ती है तब वे अपनी जगह से उड़ जाते हैं

अय्‍यूब 6:1-17 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)

फिर अय्यूब ने उत्तर देकर कहा, “भला होता कि मेरा खेद तौला जाता, और मेरी सारी विपत्ति तराजू में रखी जाती! क्योंकि वह समुद्र की रेत से भी भारी ठहरती; इसी कारण मेरी बातें उतावली से हुई हैं। क्योंकि सर्वशक्तिमान के तीर मेरे अन्दर चुभे हैं; और उनका विष मेरी आत्मा में पैठ गया है; परमेश्वर की भयंकर बात मेरे विरुद्ध पाँति बाँधे हैं। जब जंगली गदहे को घास मिलती, तब क्या वह रेंकता है? और बैल चारा पाकर क्या डकारता है? जो फीका है क्या वह बिना नमक खाया जाता है? क्या अण्डे की सफेदी में भी कुछ स्वाद होता है? जिन वस्तुओं को मैं छूना भी नहीं चाहता वही मानो मेरे लिये घिनौना आहार ठहरी हैं। “भला होता कि मुझे मुँह माँगा वर मिलता और जिस बात की मैं आशा करता हूँ वह परमेश्वर मुझे दे देता! कि परमेश्वर प्रसन्न होकर मुझे कुचल डालता, और हाथ बढ़ाकर मुझे काट डालता! यही मेरी शान्ति का कारण; वरन् भारी पीड़ा में भी मैं इस कारण से उछल पड़ता; क्योंकि मैंने उस पवित्र के वचनों का कभी इन्कार नहीं किया। मुझ में बल ही क्या है कि मैं आशा रखूँ? और मेरा अन्त ही क्या होगा कि मैं धीरज धरूँ? क्या मेरी दृढ़ता पत्थरों के समान है? क्या मेरा शरीर पीतल का है? क्या मैं निराधार नहीं हूँ? क्या काम करने की शक्ति मुझसे दूर नहीं हो गई? “जो पड़ोसी पर कृपा नहीं करता वह सर्वशक्तिमान का भय मानना छोड़ देता है। मेरे भाई नाले के समान विश्वासघाती हो गए हैं, वरन् उन नालों के समान जिनकी धार सूख जाती है; और वे बर्फ के कारण काले से हो जाते हैं, और उनमें हिम छिपा रहता है। परन्तु जब गरमी होने लगती तब उनकी धाराएँ लोप हो जाती हैं, और जब कड़ी धूप पड़ती है तब वे अपनी जगह से उड़ जाते हैं

अय्‍यूब 6:1-17 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)

यह सुन अय्योब ने यह कहा: “कैसा होता यदि मेरी पीड़ा मापी जा सकती, इसे तराजू में रखा जाता! तब तो इसका माप सागर तट की बालू से अधिक होता. इसलिये मेरे शब्द मूर्खता भरे लगते हैं. क्योंकि सर्वशक्तिमान के बाण मुझे बेधे हुए हैं, उनका विष रिसकर मेरी आत्मा में पहुंच रहा है. परमेश्वर का आतंक आक्रमण के लिए मेरे विरुद्ध खड़ा है! क्या जंगली गधा घास के सामने आकर रेंकता है? क्या बछड़ा अपना चारा देख रम्भाता है? क्या किसी स्वादरहित वस्तु का सेवन नमक के बिना संभव है? क्या अंडे की सफेदी में कोई भी स्वाद होता है? मैं उनका स्पर्श ही नहीं चाहता; मेरे लिए ये घृणित भोजन-समान हैं. “कैसा होता यदि मेरा अनुरोध पूर्ण हो जाता तथा परमेश्वर मेरी लालसा को पूर्ण कर देते, तब ऐसा हो जाता कि परमेश्वर मुझे कुचलने के लिए तत्पर हो जाते, कि वह हाथ बढ़ाकर मेरा नाश कर देते! किंतु तब भी मुझे तो संतोष है, मैं असह्य दर्द में भी आनंदित होता हूं, क्योंकि मैंने पवित्र वचनों के आदेशों का विरोध नहीं किया है. “क्या है मेरी शक्ति, जो मैं आशा करूं? क्या है मेरी नियति, जो मैं धैर्य रखूं? क्या मेरा बल वह है, जो चट्टानों का होता है? अथवा क्या मेरी देह की रचना कांस्य से हुई है? क्या मेरी सहायता का मूल मेरे अंतर में निहित नहीं, क्या मेरी विमुक्ति मुझसे दूर हो चुकी? “जो अपने दुःखी मित्र पर करुणा नहीं दिखाता, वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रति श्रद्धा छोड़ देता है. मेरे भाई तो जलधाराओं समान विश्वासघाती ही प्रमाणित हुए, वे जलधाराएं, जो विलीन हो जाती हैं, जिनमें हिम पिघल कर जल बनता है और उनका जल छिप जाता है. वे जलहीन शांत एवं सूनी हो जाती हैं, वे ग्रीष्मऋतु में अपने स्थान से विलीन हो जाती हैं.