सभा-उपदेशक 2:1-26

सभा-उपदेशक 2:1-26 पवित्र बाइबल (HERV)

मैंने अपने मन में कहा, “मुझे मनो विनोद करना चाहिए। मुझे हर वस्तु का जितना रस मैं ले सकूँ, उतना लेना चाहिय।” किन्तु मैंने जाना कि यह भी व्यर्थ है। हर समय हँसते रहना भी मूर्खता है। मनो विनोद से मेरा कोई भला नहीं हो सका। सो मैंने निश्चय किया कि मैं अपनी देह को दाखमधु से भर लूँ यद्यपि मेरा मस्तिष्क मुझे अभी ज्ञान की राह दिखा रहा था। मैंने यह मूर्खता पूर्ण आचरण किया, क्योंकि मैं आनन्द का कोई मार्ग ढूँढना चाहता था। मैं चाहता था कि लोगों के लिये अपने जीवन के थोड़े से दिनों में क्या करना उत्तम है, इसे खोज लूँ। फिर मैंने बड़े—बड़े काम करने शुरू किये। मैंने अपने लिये भवन बनवाएँ और अँगूर के बाग लगवाए। मैंने बगीचे लगवाएँ और बाग बनवाए। मैंने सभी तरह के फलों के पेड़ लगवाये। मैंने अपने लिये पानी के तालाब बनवाए और फिर इन तालाबों के पानी को मैं अपने बढ़ते पेड़ों को सींचने के काम में लाने लगा। मैंने दास और दासियाँ खरीदीं और फिर मेरे घर में उत्पन्न हुए दास भी थे। मैं बड़ी बड़ी वस्तुओं का स्वामी बन गया। मेरे पास झुँड के झुँड पशु और भेड़ों के रेवड़ थे। यरूशलेम में किसी भी व्यक्ति के पास जितनी वस्तुएँ थीं, मेरे पास उससे भी अधिक वस्तुएँ थीं। मैंने अपने लिये चाँदी सोना भी जमा किया। मैंने राजाओं और उनके देशों से भी खजाने एकत्र किये। मेरे पास बहुत सी वेश्याएँ थीं। मैं बहुत धनवान और प्रसिद्ध हो गया। मुझसे पहले यरूशलेम में जो भी कोई रहता था, मैं उससे अधिक महान था। मेरी बुद्धि सदा मेरी सहायता किया करती थी। मेरी आँखों ने जो कुछ देखा और चाहा उसे मैंने प्राप्त किया। मैं जो कुछ करता, मेरा मन सदा उससे प्रसन्न रहा करता और यह प्रसन्नता मेरे कठिन परिश्रम का प्रतिफल थीं। किन्तु मैंने जो कुछ किया था जब उस पर दृष्टि डाली और अपने किये कठिन परिश्रम के बारे में विचार किया तो मुझे लगा यह सब समय की बर्बादी थी! यह ऐसा ही था जैसा वायु को पकड़ना। इस जीवन में हम जो कुछ श्रम करते हैं उस सबकुछ का उचित परिणाम हमें नहीं मिलता। जितना एक राजा कर सकता है, उससे अधिक कोई भी व्यक्ति नहीं कर सकता। तुम जो भी कुछ करना चाह सकते हो, वह सबकुछ कोई राजा अब तक कर भी चुका होगा। मेरी समझ में आ गया कि एक राजा तक जिन कामों को करता है, वे सब भी व्यर्थ हैं। सो मैंने फिर बुद्धिमान बनने, मूर्ख बनने और सनकीपन के कामों को करने के बारे में सोचना आरम्भ किया। मैंने देखा कि बुद्धि मूर्खता से उसी प्रकार उत्तम है जिस प्रकार अँधेरे से प्रकाश उत्तम होता है। यह वैसे ही है जैसे: एक बुद्धिमान व्यक्ति, वह कहाँ जा रहा है, उसे देखने के लिये अपनी बुद्धि का उपयोग, अपनी आँखों की तरह करता है। किन्तु एक मूर्ख व्यक्ति उस व्यक्ति के समान है जो अंधेरे में चल रहा है। किन्तु मैंने यह भी देखा कि मूर्ख और बुद्धिमान दोनों का अंत एक ही प्रकार से होता हैं। दोनों ही अंत में मृत्यु को प्राप्त करते हैं। अपने मन में मैंने सोचा, “किसी मूर्ख व्यक्ति के साथ जो घटता है वह मेरे साथ भी घटेगा सो इतना बुद्धिमान बनने के लिये इतना कठिन परिश्रम मैंने क्यों किया?” अपने आपसे मैंने कहा, “बुद्धिमान बनना भी बेकार है।” बुद्धिमान व्यक्ति और मूर्ख व्यक्ति दोनों ही मर जायेंगे और लोग सदा के लिये न तो बुद्धिमान व्यक्ति को याद रखेंगे और न ही किसी मूर्ख व्यक्ति को। उन्होंने जो कुछ किया था, लोग उसे आगे चल कर भुला देंगे। इस प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति और मूर्ख व्यक्ति वास्तव में एक जैसे ही हैं। इसके कारण मुझे जीवन से घृणा हो गई। इस विचार से मैं बहुत दुःखी हुआ कि इस जीवन में जो कुछ है सब व्यर्थ है। बिल्कुल वैसा ही जैसे वायु को पकड़ने की कोशिश करना। मैंने जो कठिन परिश्रम किया था, उससे घृणा करना आरम्भ कर दिया। मैंने देखा कि वे लोग जो मेरे बाद जीवित रहेंगे उन वस्तुओं को ले लेंगे जिनके लिये मैंने कठोर परिश्रम किया था। मैं अपनी उन वस्तुओं को अपने साथ नहीं ले जा सकूँगा। जिन वस्तुओं के लिये मैंने मन लगाकर कठिन परिश्रम किया था उन सभी वस्तुओं पर किसी दूसरे ही व्यक्ति का नियन्त्रण होगा और मैं तो यह भी नहीं जानता कि वह व्यक्ति बुद्धिमान होगा या मूर्ख। पर यह सब भी तो अर्थहीन ही है। इसलिए मैंने जो भी कठिन परिश्रम किया था, उस सब के विषय में मैं बहुत दुःखी हुआ। एक व्यक्ति अपनी बुद्धि, अपने ज्ञान और अपनी चतुराई का प्रयोग करते हुए कठिन परिश्रम कर सकता हैं। किन्तु वह व्यक्ति तो मर जायेगा और जिन वस्तुओं के लिये उस व्यक्ति ने कठिन परिश्रम किया था, वे किसी दूसरे ही व्यक्ति को मिल जायेंगी। उन व्यक्तियों ने वस्तुओं के लिये कोई काम तो नहीं किया था, किन्तु उन्हें वह सभी कुछ हासिल हो जायेगा। इससे मुझे बहुत दुःख होता है। यह न्यायपूर्ण तो नहीं है। यह तो विवेकपूर्ण नहीं है। अपने जीवन में सारे परिश्रम और संघर्ष के बाद आखिर एक मनुष्य को वास्तव में क्या मिलता है? अपने सारे जीवन में वह कठिन परिश्रम करता रहा किन्तु पीड़ा और निराशा के अतिरिक्त उसके हाथ कुछ भी नहीं लगा। रात के समय भी मनुष्य का मन विश्राम नहीं पाता। यह सब भी अर्थहीन ही है। जीवन का जितना आनन्द मैंने लिया है क्या कोई भी ऐसा व्यक्ति और है जिसने मुझे से अधिक जीवन का आनन्द लेने का प्रयास किया हो? नहीं! मुझे जो ज्ञान हुआ है वह यह है: कोई व्यक्ति जो अच्छे से अच्छा कर सकता है वह है खाना, पीना और उस कर्म का आनन्द लेना जो उसे करना चाहिये। मैंने यह भी समझा है कि यह सब कुछ परमेश्वर से ही प्राप्त होता है। यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर को प्रसन्न करता है तो परमेश्वर उसे बुद्धि, ज्ञान और आनन्द प्रदान करता है। किन्तु वह व्यक्ति जो उसे अप्रसन्न करता है, वह तो बस वस्तुओं के संचय और उन्हें ढोने का ही काम करता रहेगा। परमेश्वर बुरे व्यक्तियों से लेकर अच्छे व्यक्तियों को देता रहता है। इस प्रकार यह समग्र कर्म व्यर्थ है। यह वैसा ही है जैसे वायु को पकड़ने का प्रयत्न करना।

सभा-उपदेशक 2:1-26 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)

मैंने अपने हृदय में कहा, “चल, अब मैं भोग-विलास को जांचूंगा, इसलिए मौज कर।” पर मुझे अनुभव हुआ कि भोग-विलास भी निस्‍सार है। मुझे हंसी-खुशी के विषय में कहना पड़ा, “यह पागलपन है,” और भोग-विलास के विषय में “यह किस काम का है?” मैंने मन लगाकर खोज-बीन की कि मदिरा से किस प्रकार अपने शरीर को सुखी करूं (मेरा मन अब तक बुद्धि के मार्ग पर मेरा पथ-प्रदर्शन कर रहा है), और मूढ़ता को मैं कैसे वश में करूं। मैंने यह भेद प्राप्‍त करने का प्रयत्‍न किया कि मनुष्‍यों की भलाई किस प्रकार का काम करने मैं है, ताकि वे जीवन के अल्‍पकाल में इस पृथ्‍वी पर उस काम को कर सकें। मैंने बड़े-बड़े काम किए। मैंने अपने लिए महल बनाए और अंगूर-उद्यान लगाए। मैंने अपने लिए बगीचे-उद्यान लगाए और इन उद्यानों में हर प्रकार के फलों के वृक्ष लगाए। मैंने जलाशय बनाए, जहाँ के जल से जंगल के वृक्षों को सींचा जाता था। मैंने स्‍त्री-पुरुष गुलाम खरीदे। मेरे पास वे गुलाम भी थे, जिनका जन्‍म मेरे ही महल में हुआ था। मेरे पास गाय-बैलों के इतने रेवड़ और भेड़-बकरियों के इतने झुण्‍ड थे जितने यरूशलेम में किसी राजा के पास नहीं थे। इनके अतिरिक्‍त मैंने राजाओं और प्रदेशों का सोना, चांदी और धन भी अपने पास इकट्ठा कर रखा था। मेरे दरबार में अनेक गायिकाएँ और गायक थे। मेरे पास पुरुष का दिल बहलानेवाली अनेक रखेल स्‍त्रियाँ भी थीं। इस प्रकार मैं यरूशलेम के भूतपूर्व राजाओं से अधिक महान और सम्‍पत्तिशाली हो गया। तो भी मेरी बुद्धि ने मेरा साथ नहीं छोड़ा। जिन वस्‍तुओं को देखने की मुझे इच्‍छा हुई, मैंने उन्‍हें भरपूर नजर से देखा। मैं किसी भी प्रकार के आमोद-प्रमोद से अपना हृदय वंचित नहीं रखता था, क्‍योंकि मेरा हृदय मेरे परिश्रम के सब कामों में आनन्‍द लेता था और यही आनन्‍द मेरे सब परिश्रमों का पुरस्‍कार था। तब मैंने अपने कामों पर विचार किया, मैंने उस परिश्रम पर भी सोचा जो मैंने उन कामों पर किया था। मुझे अनुभव हुआ कि यह सब निस्‍सार है− यह मानो हवा को पकड़ना है। इस सूर्य के नीचे धरती पर मनुष्‍य के काम और परिश्रम से कुछ लाभ नहीं। अब मैं बुद्धि, पागलपन और मूर्खता पर विचार करने लगा, क्‍योंकि उत्तराधिकारी जो राजा के पीछे आएगा, वह क्‍या कर सकता है? वही न, जो राजा कर चुका है? मैंने देखा कि जैसे अन्‍धकार से प्रकाश श्रेष्‍ठ है वैसे ही बुद्धि मूर्खता से श्रेष्‍ठ है। बुद्धिमान व्यक्‍ति के सिर में उसकी आंखें होती हैं, और वह देखकर चलता है, किन्‍तु मूर्ख मनुष्‍य अन्‍धकार में टटोलता है। तो भी मुझे यह अनुभव हुआ कि मूर्ख और बुद्धिमान दोनों एक ही गति को प्राप्‍त होते हैं। मैंने अपने हृदय में कहा, “जो दशा मूर्ख की होती है, वही मेरी भी होगी। फिर मैं इतना बुद्धिमान क्‍यों हुआ?” अत: मैंने अपने हृदय में कहा, “मूर्ख होना, अथवा बुद्धिमान होना भी व्‍यर्थ है।” क्‍योंकि जैसे मूर्ख की स्‍मृति स्‍थायी नहीं होती वैसे ही बुद्धिमान की भी स्‍मृति स्‍थायी नहीं होती। कुछ ही दिनों में लोग सब भूल जाते हैं। जैसे मूर्ख मरता है वैसे ही बुद्धिमान भी। मुझे जीवन से घृणा हो गई, क्‍योंकि आकाश के नीचे पृथ्‍वी पर किए जाने वाले सब कार्य मुझे बुरे लगने लगे। यह सब व्‍यर्थ है, यह मानो हवा को पकड़ना है। मैंने देखा कि मुझे अपने परिश्रम का फल उस उत्तराधिकारी के लिए छोड़ जाना होगा जो मेरे पीछे आनेवाला है। अत: मुझे अपने सम्‍पूर्ण परिश्रम से घृणा हो गई जो मैंने सूर्य के नीचे इस धरती पर किया था। कौन जानता है कि मेरा उत्तराधिकारी बुद्धिमान होगा अथवा मूर्ख? तो भी धरती पर वह मेरे समस्‍त परिश्रम के फल को भोगेगा और जो कुछ मैंने बुद्धि से संग्रह किया है वह उसका स्‍वामी होगा। अत: यह भी व्‍यर्थ है। इसलिए मैं सूर्य के नीचे धरती पर किए गए अपने सम्‍पूर्ण परिश्रम के प्रति निराश हो गया। उससे विमुख हो गया। कभी ऐसा भी होता है कि मनुष्‍य बुद्धि, ज्ञान और कौशल से परिश्रम करता है किन्‍तु वह उसका फल उस व्यक्‍ति के द्वारा भोगने के लिए छोड़ जाता है, जिसने उसके लिए कुछ भी परिश्रम नहीं किया। यह भी व्‍यर्थ है और बहुत बुरा है। सूर्य के नीचे पृथ्‍वी पर मन लगा कर किए गए परिश्रम से मनुष्‍य को क्‍या लाभ? सच पूछो तो उसके जीवन के सब दिन दु:खों से भरे रहते हैं, और उसका काम सन्‍तोष नहीं, वरन् सन्‍ताप उत्‍पन्न करता है। रात में भी उसके मन को चैन नहीं मिलता। यह भी व्‍यर्थ है। मनुष्‍य के लिए इससे अधिक अच्‍छी बात और कोई नहीं कि वह खाए-पीए और आनन्‍द के साथ परिश्रम करे। किन्‍तु मैंने देखा है कि यह भी परमेश्‍वर के हाथ से प्राप्‍त होता है। क्‍योंकि परमेश्‍वर से दूर रहकर कौन व्यक्‍ति खा-पी सकता है, और आनन्‍द मना सकता है? जिस मनुष्‍य से परमेश्‍वर प्रसन्न होता है वह उसी को बुद्धि, ज्ञान और आनन्‍द प्रदान करता है। पापी मनुष्‍य से परमेश्‍वर कठोर परिश्रम कराता है। पापी मनुष्‍य परमेश्‍वर के प्रिय व्यक्‍ति के लिए धन एकत्र करता और उसको संचित करता है। अत: यह भी व्‍यर्थ है, यह मानो हवा को पकड़ना है।

सभा-उपदेशक 2:1-26 Hindi Holy Bible (HHBD)

मैं ने अपने मन से कहा, चल, मैं तुझ को आनन्द के द्वारा जांचूंगा; इसलिये आनन्दित और मगन हो। परन्तु देखो, यह भी व्यर्थ है। मैं ने हंसी के विषय में कहा, यह तो बावलापन है, और आनन्द के विषय में, उस से क्या प्राप्त होता है? मैं ने मन में सोचा कि किस प्रकार से मेरी बुद्धि बनी रहे और मैं अपने प्राण को दाखमधु पीने से क्योंकर बहलाऊं और क्योंकर मूर्खता को थामे रहूं, जब तक मालूम न करूं कि वह अच्छा काम कौन सा है जिसे मनुष्य जीवन भर करता रहे। मैं ने बड़े बड़े काम किए; मैं ने अपने लिये घर बनवा लिए और अपने लिये दाख की बारियां लगवाईं; मैं ने अपने लिये बारियां और बाग लगावा लिए, और उन में भांति भांति के फलदाई वृक्ष लगाए। मैं ने अपने लिये कुण्ड खुदवा लिए कि उन से वह वन सींचा जाए जिस में पौधे लगाए जाते थे। मैं ने दास और दासियां मोल लीं, और मेरे घर में दास भी उत्पन्न हुए; और जितने मुझ से पहिले यरूशलेम में थे उन से कहीं अधिक गाय-बैल और भेड़-बकरियों का मैं स्वामी था। मैं ने चान्दी और सोना और राजाओं और प्रान्तों के बहुमूल्य पदार्थों का भी संग्रह किया; मैं ने अपने लिये गवैयों और गानेवालियों को रखा, और बहुत सी कामिनियां भी, जिन से मनुष्य सुख पाते हैं, अपनी कर लीं॥ इस प्रकार मैं अपने से पहिले के सब यरूशलेमवासियों अधिक महान और धनाढय हो गया; तौभी मेरी बुद्धि ठिकाने रही। और जितनी वस्तुओं के देखने की मैं ने लालसा की, उन सभों को देखने से मैं न रूका; मैं ने अपना मन किसी प्रकार का आनन्द भोगने से न रोका क्योंकि मेरा मन मेरे सब परिश्रम के कारण आनन्दित हुआ; और मेरे सब परिश्रम से मुझे यही भाग मिला। तब मैं ने फिर से अपने हाथों के सब कामों को, और अपने सब परिश्रम को देखा, तो क्या देखा कि सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना है, और संसार में कोई लाभ नहीं॥ फिर मैं ने अपने मन को फेरा कि बुद्धि और बावलेपन और मूर्खता के कार्यों को देखूं; क्योंकि जो मनुष्य राजा के पीछे आएगा, वह क्या करेगा? केवल वही जो होता चला आया है। तब मैं ने देखा कि उजियाला अंधियारे से जितना उत्तम है, उतना बुद्धि भी मूर्खता से उत्तम है। जो बुद्धिमान है, उसके सिर में आंखें रहती हैं, परन्तु मूर्ख अंधियारे में चलता है; तौभी मैं ने जान लिया कि दोनों की दशा एक सी होती है। तब मैं ने मन में कहा, जैसी मूर्ख की दशा होगी, वैसी ही मेरी भी होगी; फिर मैं क्यों अधिक बुद्धिमान हुआ? और मैं ने मन में कहा, यह भी व्यर्थ ही है। क्योंकि न तो बुद्धिमान का और न मूर्ख का स्मरण सर्वदा बना रहेगा, परन्तु भविष्य में सब कुछ बिसर जाएगा। बुद्धिमान क्योंकर मूर्ख के समान मरता है! इसलिये मैं ने अपने जीवन से घृणा की, क्योंकि जो काम संसार में किया जाता है मुझे बुरा मालूम हुआ; क्योंकि सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना है। मैं ने अपने सारे परिश्रम के प्रतिफल से जिसे मैं ने धरती पर किया था घृणा की, क्योंकि अवश्य है कि मैं उसका फल उस मनुष्य के लिये छोड़ जाऊं जो मेरे बाद आएगा। यह कौन जानता है कि वह मनुष्य बुद्धिमान होगा वा मूर्ख? तौभी धरती पर जितना परिश्रम मैं ने किया, और उसके लिये बुद्धि प्रयोग की उस सब का वही अधिकारी होगा। यह भी व्यर्थ ही है। तब मैं अपने मन में उस सारे परिश्रम के विषय जो मैं ने धरती पर किया था निराश हुआ, क्योंकि ऐसा मनुष्य भी है, जिसका कार्य परिश्रम और बुद्धि और ज्ञान से होता है और सफल भी होता है, तौभी उसको ऐसे मनुष्य के लिये छोड़ जाना पड़ता है, जिसने उस में कुछ भी परिश्रम न किया हो। यह भी व्यर्थ और बहुत ही बुरा है। मनुष्य जो धरती पर मन लगा लगाकर परिश्रम करता है उस से उसको क्या लाभ होता है? उसके सब दिन तो दु:खों से भरे रहते हैं, और उसका काम खेद के साथ होता है; रात को भी उसका मन चैन नहीं पाता। यह भी व्यर्थ ही है। मनुष्य के लिये खाने-पीने और परिश्रम करते हुए अपने जीव को सुखी रखने के सिवाय और कुछ भी अच्छा नहीं। मैं ने देखा कि यह भी परमेश्वर की ओर से मिलता है। क्योंकि खाने-पीने और सुख भोगने में मुझ से अधिक समर्थ कौन है? जो मनुष्य परमेश्वर की दृष्टि में अच्छा है, उसको वह बुद्धि और ज्ञान और आनन्द देता है; परन्तु पापी को वह दु:खभरा काम ही देता है कि वह उसका देने के लिये संचय कर के ढेर लगाए जो परमेश्वर की दृष्टि में अच्छा हो। यह भी व्यर्थ और वायु को पकड़ना है॥

सभा-उपदेशक 2:1-26 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)

मैं ने अपने मन से कहा, “चल, मैं तुझ को आनन्द के द्वारा जाँचूँगा; इसलिये आनन्दित और मगन हो।” परन्तु देखो, यह भी व्यर्थ है। मैं ने हँसी के विषय में कहा, “यह तो बावलापन है,” और आनन्द के विषय में, “उस से क्या प्राप्‍त होता है?” मैं ने मन में सोचा कि किस प्रकार से मेरी बुद्धि बनी रहे और मैं अपने प्राण को दाखमधु पीने से किस प्रकार बहलाऊँ और कैसे मूर्खता को थामे रहूँ, जब तक मालूम न करूँ कि वह अच्छा काम कौन सा है जिसे मनुष्य अपने जीवन भर करता रहे। मैं ने बड़े बड़े काम किए; मैं ने अपने लिये घर बनवा लिए और अपने लिये दाख की बारियाँ लगवाईं; मैं ने अपने लिये बारियाँ और बाग लगवा लिए, और उनमें भाँति भाँति के फलदाई वृक्ष लगाए। मैं ने अपने लिये कुण्ड खुदवा लिए कि उन से वह वन सींचा जाए जिसमें पौधे लगाए जाते थे। मैं ने दास और दासियाँ मोल लीं, और मेरे घर में दास भी उत्पन्न हुए; और जितने मुझ से पहले यरूशलेम में थे उन से कहीं अधिक गाय–बैल और भेड़–बकरियों का मैं स्वामी था। मैं ने चाँदी और सोना और राजाओं और प्रान्तों के बहुमूल्य पदार्थों का भी संग्रह किया; मैं ने अपने लिये गायकों और गायिकाओं को रखा, और बहुत सी कामिनियाँ भी, जिनसे मनुष्य सुख पाते हैं, अपनी कर लीं। इस प्रकार मैं अपने से पहले के सब यरूशलेमवासियों से अधिक महान् और धनाढ्‍य हो गया; तौभी मेरी बुद्धि ठिकाने रही। और जितनी वस्तुओं को देखने की मैं ने लालसा की, उन सभों को देखने से मैं न रुका; मैं ने अपना मन किसी प्रकार का आनन्द भोगने से न रोका क्योंकि मेरा मन मेरे सब परिश्रम के कारण आनन्दित हुआ; और मेरे सब परिश्रम से मुझे यही भाग मिला। तब मैं ने फिर से अपने हाथों के सब कामों को, और अपने सब परिश्रम को देखा, तो क्या देखा कि सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना है, और संसार में कोई लाभ नहीं। फिर मैं ने अपने मन को मोड़ा कि बुद्धि और बावलेपन और मूर्खता के कार्यों को देखूँ; क्योंकि जो मनुष्य राजा के पीछे आएगा, वह क्या करेगा? केवल वही जो होता चला आया है। तब मैं ने देखा कि उजियाला अंधियारे से जितना उत्तम है, उतना बुद्धि भी मूर्खता से उत्तम है। जो बुद्धिमान है, उसके सिर में आँखें रहती हैं, परन्तु मूर्ख अंधियारे में चलता है; तौभी मैं ने जान लिया कि दोनों की दशा एक सी होती है। तब मैं ने मन में कहा, “जैसी मूर्ख की दशा होगी, वैसी ही मेरी भी होगी; फिर मैं क्यों अधिक बुद्धिमान हुआ?” और मैं ने मन में कहा कि यह भी व्यर्थ ही है। क्योंकि न तो बुद्धिमान का और न मूर्ख का स्मरण सर्वदा बना रहेगा, परन्तु भविष्य में सब कुछ भुला दिया जाएगा। बुद्धिमान कैसे मूर्ख के समान मरता है! इसलिये मैं ने अपने जीवन से घृणा की, क्योंकि जो काम संसार में किया जाता है मुझे बुरा मालूम हुआ; क्योंकि सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना है। मैं ने अपने सारे परिश्रम के प्रतिफल से जिसे मैं ने धरती पर किया था घृणा की, क्योंकि अवश्य है कि मैं उसका फल उस मनुष्य के लिये छोड़ जाऊँ जो मेरे बाद आएगा। यह कौन जानता है कि वह मनुष्य बुद्धिमान होगा या मूर्ख? तौभी धरती पर जितना परिश्रम मैं ने किया, और उसके लिये बुद्धि प्रयोग की उस सब का वही अधिकारी होगा। यह भी व्यर्थ ही है। तब मैं अपने मन में उस सारे परिश्रम के विषय जो मैं ने धरती पर* किया था निराश हुआ, क्योंकि ऐसा मनुष्य भी है, जिसका कार्य परिश्रम और बुद्धि और ज्ञान से होता है और सफल भी होता है, तौभी उसको ऐसे मनुष्य के लिए छोड़ जाना पड़ता है, जिसने उसमें कुछ भी परिश्रम न किया हो। यह भी व्यर्थ और बहुत ही बुरा है। मनुष्य जो धरती पर* मन लगा लगाकर परिश्रम करता है उससे उसको क्या लाभ होता है? उसके सब दिन तो दु:खों से भरे रहते हैं, और उसका काम खेद के साथ होता है; रात को भी उसका मन चैन नहीं पाता। यह भी व्यर्थ ही है। मनुष्य के लिये खाने–पीने और परिश्रम करते हुए अपने जीव को सुखी रखने के सिवाय और कुछ भी अच्छा नहीं। मैं ने देखा कि यह भी परमेश्‍वर की ओर से मिलता है; क्योंकि खाने–पीने और सुख भोगने में मुझ से अधिक समर्थ कौन है? जो मनुष्य परमेश्‍वर की दृष्‍टि में अच्छा है, उसको वह बुद्धि और ज्ञान और आनन्द देता है; परन्तु पापी को वह दु:ख भरा काम ही देता है कि वह उसको देने के लिये संचय करके ढेर लगाए जो परमेश्‍वर की दृष्‍टि में अच्छा हो। यह भी व्यर्थ और वायु को पकड़ना है।

सभा-उपदेशक 2:1-26 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)

मैंने अपने मन से कहा, “चल, मैं तुझको आनन्द के द्वारा जाँचूँगा; इसलिए आनन्दित और मगन हो।” परन्तु देखो, यह भी व्यर्थ है। मैंने हँसी के विषय में कहा, “यह तो बावलापन है,” और आनन्द के विषय में, “उससे क्या प्राप्त होता है?” मैंने मन में सोचा कि किस प्रकार से मेरी बुद्धि बनी रहे और मैं अपने प्राण को दाखमधु पीने से किस प्रकार बहलाऊँ और कैसे मूर्खता को थामे रहूँ, जब तक मालूम न करूँ कि वह अच्छा काम कौन सा है जिसे मनुष्य अपने जीवन भर करता रहे। मैंने बड़े-बड़े काम किए; मैंने अपने लिये घर बनवा लिए और अपने लिये दाख की बारियाँ लगवाईं; मैंने अपने लिये बारियाँ और बाग लगवा लिए, और उनमें भाँति-भाँति के फलदाई वृक्ष लगाए। मैंने अपने लिये कुण्ड खुदवा लिए कि उनसे वह वन सींचा जाए जिसमें वृक्षों को लगाया जाता था। मैंने दास और दासियाँ मोल लीं, और मेरे घर में दास भी उत्पन्न हुए; और जितने मुझसे पहले यरूशलेम में थे उनसे कहीं अधिक गाय-बैल और भेड़-बकरियों का मैं स्वामी था। मैंने चाँदी और सोना और राजाओं और प्रान्तों के बहुमूल्य पदार्थों का भी संग्रह किया; मैंने अपने लिये गायकों और गायिकाओं को रखा, और बहुत सी कामिनियाँ भी, जिनसे मनुष्य सुख पाते हैं, अपनी कर लीं। इस प्रकार मैं अपने से पहले के सब यरूशलेमवासियों से अधिक महान और धनाढ्य हो गया; तो भी मेरी बुद्धि ठिकाने रही। और जितनी वस्तुओं को देखने की मैंने लालसा की, उन सभी को देखने से मैं न रुका; मैंने अपना मन किसी प्रकार का आनन्द भोगने से न रोका क्योंकि मेरा मन मेरे सब परिश्रम के कारण आनन्दित हुआ; और मेरे सब परिश्रम से मुझे यही भाग मिला। तब मैंने फिर से अपने हाथों के सब कामों को, और अपने सब परिश्रम को देखा, तो क्या देखा कि सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना है, और सूर्य के नीचे कोई लाभ नहीं। फिर मैंने अपने मन को फेरा कि बुद्धि और बावलेपन और मूर्खता के कार्यों को देखूँ; क्योंकि जो मनुष्य राजा के पीछे आएगा, वह क्या करेगा? केवल वही जो होता चला आया है। तब मैंने देखा कि उजियाला अंधियारे से जितना उत्तम है, उतना बुद्धि भी मूर्खता से उत्तम है। जो बुद्धिमान है, उसके सिर में आँखें रहती हैं, परन्तु मूर्ख अंधियारे में चलता है; तो भी मैंने जान लिया कि दोनों की दशा एक सी होती है। तब मैंने मन में कहा, “जैसी मूर्ख की दशा होगी, वैसी ही मेरी भी होगी; फिर मैं क्यों अधिक बुद्धिमान हुआ?” और मैंने मन में कहा, यह भी व्यर्थ ही है। क्योंकि न तो बुद्धिमान का और न मूर्ख का स्मरण सर्वदा बना रहेगा, परन्तु भविष्य में सब कुछ भूला दिया जाएगा। बुद्धिमान कैसे मूर्ख के समान मरता है! इसलिए मैंने अपने जीवन से घृणा की, क्योंकि जो काम सूर्य के नीचे किया जाता है मुझे बुरा मालूम हुआ; क्योंकि सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना है। मैंने अपने सारे परिश्रम के प्रतिफल से जिसे मैंने सूर्य के नीचे किया था घृणा की, क्योंकि अवश्य है कि मैं उसका फल उस मनुष्य के लिये छोड़ जाऊँ जो मेरे बाद आएगा। यह कौन जानता है कि वह मनुष्य बुद्धिमान होगा या मूर्ख? तो भी सूर्य के नीचे जितना परिश्रम मैंने किया, और उसके लिये बुद्धि प्रयोग की उस सब का वही अधिकारी होगा। यह भी व्यर्थ ही है। तब मैं अपने मन में उस सारे परिश्रम के विषय जो मैंने सूर्य के नीचे किया था निराश हुआ, क्योंकि ऐसा मनुष्य भी है, जिसका कार्य परिश्रम और बुद्धि और ज्ञान से होता है और सफल भी होता है, तो भी उसको ऐसे मनुष्य के लिये छोड़ जाना पड़ता है, जिसने उसमें कुछ भी परिश्रम न किया हो। यह भी व्यर्थ और बहुत ही बुरा है। मनुष्य जो सूर्य के नीचे मन लगा लगाकर परिश्रम करता है उससे उसको क्या लाभ होता है? उसके सब दिन तो दुःखों से भरे रहते हैं, और उसका काम खेद के साथ होता है; रात को भी उसका मन चैन नहीं पाता। यह भी व्यर्थ ही है। मनुष्य के लिये खाने-पीने और परिश्रम करते हुए अपने जीव को सुखी रखने के सिवाय और कुछ भी अच्छा नहीं। मैंने देखा कि यह भी परमेश्वर की ओर से मिलता है। क्योंकि खाने-पीने और सुख भोगने में उससे अधिक समर्थ कौन है? जो मनुष्य परमेश्वर की दृष्टि में अच्छा है, उसको वह बुद्धि और ज्ञान और आनन्द देता है; परन्तु पापी को वह दुःख भरा काम ही देता है कि वह उसको देने के लिये संचय करके ढेर लगाए जो परमेश्वर की दृष्टि में अच्छा हो। यह भी व्यर्थ और वायु को पकड़ना है।

सभा-उपदेशक 2:1-26 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)

मैंने अपने आपसे कहा, “चलो, मैं आनंद के द्वारा तुम्हें परखूंगा.” इसलिये आनंदित और मगन हो जाओ. मगर मैंने यही पाया कि यह भी बेकार ही है. मैंने हंसी के बारे में कहा, “यह बावलापन है” और आनंद के बारे में, “इससे क्या मिला?” जब मेरा मन यह सोच रहा था कि किस प्रकार मेरी बुद्धि बनी रहे, मैंने अपने पूरे मन से इसके बारे में खोज कर डाली कि किस प्रकार दाखमधु से शरीर को बहलाया जा सकता है और किस प्रकार मूर्खता को काबू में किया जा सकता है, कि मैं यह समझ सकूं कि पृथ्वी पर मनुष्यों के लिए उनके छोटे से जीवन में क्या करना अच्छा है. मैंने अपने कामों को बढ़ाया: मैंने अपने लिए घरों को बनाया, मैंने अपने लिए अंगूर के बगीचे लगाए. मैंने बगीचे और फलों के बागों को बनाया और उनमें सब प्रकार के फलों के पेड़ लगाए. वनों में सिंचाई के लिए मैंने तालाब बनवाए ताकि उससे पेड़ बढ़ सकें. मैंने दास-दासी खरीदें जिनकी मेरे यहां ही संतानें भी पैदा हुईं. मैं बहुत से गाय-बैलों का स्वामी हो गया. जो मुझसे पहले थे उनसे कहीं अधिक मेरे गाय-बैल थे. मैंने अपने आपके लिए सोने, चांदी तथा राज्यों व राजाओं से धन इकट्ठा किया, गायक-गायिकाएं चुन लिए और उपपत्नियां भी रखीं जिससे पुरुषों को सुख मिलता है. मैं येरूशलेम में अपने से पहले वालों से बहुत अधिक महान हो गया. मेरी बुद्धि ने हमेशा ही मेरा साथ दिया. मेरी आंखों ने जिस किसी चीज़ की इच्छा की; मैंने उन्हें उससे दूर न रखा और न अपने मन को किसी आनंद से; क्योंकि मेरी उपलब्धियों में मेरी संतुष्टि थी, और यही था मेरे परिश्रम का पुरुस्कार. इसलिये मैंने अपने द्वारा किए गए सभी कामों को, और अपने द्वारा की गई मेहनत को नापा, और यही पाया कि यह सब भी बेकार और हवा से झगड़ना था; और धरती पर इसका कोई फायदा नहीं. सो मैंने बुद्धि, बावलेपन तथा मूर्खता के बारे में विचार किया. राजा के बाद आनेवाला इसके अलावा और क्या कर सकता है? केवल वह जो पहले से होता आया है. मैंने यह देख लिया कि बुद्धि मूर्खता से बेहतर है, जैसे रोशनी अंधकार से. बुद्धिमान अपने मन की आंखों से व्यवहार करता है, जबकि मूर्ख अंधकार में चलता है. यह सब होने पर भी मैं जानता हूं कि दोनों का अंतिम परिणाम एक ही है. मैंने मन में विचार किया, जो दशा मूर्ख की है वही मेरी भी होगी. तो मैं अधिक बुद्धिमान क्यों रहा? “मैंने स्वयं को याद दिलाया, यह भी बेकार ही है.” बुद्धिमान को हमेशा याद नहीं किया जाएगा जैसे मूर्ख को; कुछ दिनों में ही वे भुला दिए जाएंगे. बुद्धिमान की मृत्यु कैसे होती है? मूर्ख के समान ही न! इसलिये मुझे जीवन से घृणा हो गई क्योंकि धरती पर जो कुछ किया गया था वह मेरे लिए तकलीफ़ देनेवाला था; क्योंकि सब कुछ बेकार और हवा से झगड़ना था. इसलिये मैंने जो भी मेहनत इस धरती पर की थी उससे मुझे नफ़रत हो गई, क्योंकि इसे मुझे अपने बाद आनेवाले के लिए छोड़ना पड़ेगा. और यह किसे मालूम है कि वह बुद्धिमान होगा या मूर्ख. मगर वह उन सभी वस्तुओं का अधिकारी बन जाएगा जिनके लिए मैंने धरती पर बुद्धिमानी से मेहनत की. यह भी बेकार ही है. इसलिये धरती पर मेरे द्वारा की गई मेहनत के प्रतिफल से मुझे घोर निराशा हो गई. कभी एक व्यक्ति बुद्धि, ज्ञान और कुशलता के साथ मेहनत करता है और उसे हर एक वस्तु उस व्यक्ति के आनंद के लिए त्यागनी पड़ती है जिसने उसके लिए मेहनत ही नहीं की. यह भी बेकार और बहुत बुरा है. मनुष्य को अपनी सारी मेहनत और कामों से, जो वह धरती पर करता है, क्या मिलता है? वास्तव में सारे जीवन में उसकी पूरी मेहनत दुःखों और कष्टों से भरी होती है; यहां तक की रात में भी उसके मन को और दिमाग को आराम नहीं मिल पाता. यह भी बेकार ही है. मनुष्य के लिए इससे अच्छा और कुछ नहीं है कि वह खाए, पिए और खुद को विश्वास दिलाए कि उसकी मेहनत उपयोगी है. मैंने यह भी पाया है कि इसमें परमेश्वर का योगदान होता है, नहीं तो कौन परमेश्वर से अलग हो खा-पीकर सुखी रह सकता है? क्योंकि जो मनुष्य परमेश्वर की नज़रों में अच्छा है, उसे परमेश्वर ने बुद्धि, ज्ञान और आनंद दिया है, मगर पापी को परमेश्वर ने इकट्ठा करने और बटोरने का काम दिया है सिर्फ इसलिये कि वह उस व्यक्ति को दे दे जो परमेश्वर की नज़रों में अच्छा है. यह सब भी बेकार और हवा से झगड़ना है.