प्रेरितों 25:1-21
प्रेरितों 25:1-21 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)
कार्यभार संभालने के तीन दिन बाद फ़ेस्तुस कयसरिया नगर से येरूशलेम गया. वहां उसके सामने प्रधान पुरोहितों और यहूदी अगुओं ने पौलॉस के विरुद्ध मुकद्दमा प्रस्तुत किया. उन्होंने फ़ेस्तुस से विनती की कि वह विशेष कृपादृष्टि कर पौलॉस को येरूशलेम भेज दें. वास्तव में उनकी योजना मार्ग में घात लगाकर पौलॉस की हत्या करने की थी. फ़ेस्तुस ने इसके उत्तर में कहा, “पौलॉस तो कयसरिया में बंदी है और मैं स्वयं शीघ्र वहां जा रहा हूं. इसलिये आप में से कुछ प्रधान व्यक्ति मेरे साथ वहां चलें. यदि पौलॉस को वास्तव में दोषी पाया गया तो उस पर मुकद्दमा चलाया जाएगा.” आठ-दस दिन ठहरने के बाद फ़ेस्तुस कयसरिया लौट गया और अगले दिन पौलॉस को न्यायालय में लाने की आज्ञा दी. पौलॉस के वहां आने पर येरूशलेम से आए यहूदियों ने उन्हें घेर लिया और उन पर अनेक गंभीर आरोपों की बौछार शुरू कर दी, जिन्हें वे स्वयं साबित न कर पाए. अपने बचाव में पौलॉस ने कहा, “मैंने न तो यहूदियों की व्यवस्था के विरुद्ध किसी भी प्रकार का अपराध किया है और न ही मंदिर या कयसर के विरुद्ध.” फिर भी यहूदियों को प्रसन्न करने के उद्देश्य से फ़ेस्तुस ने पौलॉस से प्रश्न किया, “क्या तुम चाहते हो कि तुम्हारे इन आरोपों की सुनवाई मेरे सामने येरूशलेम में हो?” इस पर पौलॉस ने उत्तर दिया, “मैं कयसर के न्यायालय में खड़ा हूं. ठीक यही है कि मेरी सुनवाई यहीं हो. मैंने यहूदियों के विरुद्ध कोई अपराध नहीं किया है; यह तो आपको भी भली-भांति मालूम है. यदि मैं अपराधी ही हूं और यदि मैंने मृत्यु दंड के योग्य कोई अपराध किया ही है, तो मुझे मृत्यु दंड स्वीकार है. किंतु यदि इन यहूदियों द्वारा मुझ पर लगाए आरोप सच नहीं हैं तो किसी को यह अधिकार नहीं कि वह मुझे इनके हाथों में सौंपे. यहां मैं अपनी सुनवाई की याचिका कयसर के न्यायालय में भेज रहा हूं.” अपनी महासभा से विचार-विमर्श के बाद फ़ेस्तुस ने घोषणा की, “ठीक है. तुमने कयसर से सुनवाई की विनती की है तो तुम्हें कयसर के पास ही भेजा जाएगा.” कुछ समय बाद राजा अग्रिप्पा तथा बेरनिके फ़ेस्तुस से भेंट करने कयसरिया नगर आए. वे वहां बहुत समय तक ठहरे. फ़ेस्तुस ने राजा को पौलॉस के विषय में इस प्रकार बताया: “फ़ेलिक्स एक बंदी को यहां छोड़ गया है. जब मैं येरूशलेम गया हुआ था; वहां प्रधान पुरोहितों तथा यहूदी प्राचीनों ने उस पर आरोप लगाए थे. उन्होंने उसे मृत्यु दंड दिए जाने की मांग की. “मैंने उनके सामने रोमी शासन की नीति स्पष्ट करते हुए उनसे कहा कि इस नीति के अंतर्गत दोषी और दोष लगानेवालों के आमने-सामने सवाल जवाब किए बिना तथा दोषी को अपनी सफ़ाई पेश करने का अवसर दिए बिना दंड के लिए सौंप देना सही नहीं है. इसलिये उनके यहां इकट्ठा होते ही मैंने बिना देर किए दूसरे ही दिन इस व्यक्ति को न्यायालय में प्रस्तुत किए जाने की आज्ञा दी. जब आरोपी खड़े हुए, उन्होंने उस पर सवाल जवाब शुरू कर दिए किंतु मेरे अनुमान के विपरीत, ये आरोप उन अपराधों के नहीं थे जिनकी मुझे आशा थी ये उनके पारस्परिक मतभेद थे, जिनका संबंध मात्र उनके विश्वास से तथा येशु नामक किसी मृत व्यक्ति से था, जो इस बंदी पौलॉस के अनुसार जीवित है. मैं समझ नहीं पा रहा था कि इस प्रकार के विषय का पता कैसे किया जाए. इसलिये मैंने यह जानना चाहा, क्या वह येरूशलेम में मुकद्दमा चलाए जाने के लिए राज़ी है. किंतु पौलॉस की इस विनती पर कि सम्राट के निर्णय तक उसे कारावास में रखा जाए, मैंने उसे कयसर के पास भेजे जाने तक बंदी बनाए रखने की आज्ञा दी है.”
प्रेरितों 25:1-21 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)
फेस्तुस उस प्रान्त में पहुँचने के तीन दिन बाद कैसरिया से यरूशलेम को गया। तब प्रधान याजकों और यहूदियों के प्रमुख लोगों ने उसके सामने पौलुस की नालिश की; और उससे विनती करके उसके विरोध में यह वर चाहा कि वह उसे यरूशलेम में बुलवाए, क्योंकि वे उसे रास्ते ही में मार डालने की घात में लगे हुए थे। फेस्तुस ने उत्तर दिया, “पौलुस कैसरिया में पहरे में है, और मैं आप जल्द वहाँ जाऊँगा।” फिर कहा, “तुम में जो अधिकार रखते हैं वे साथ चलें, और यदि इस मनुष्य ने कुछ अनुचित काम किया है तो उस पर दोष लगाएँ।” उनके बीच कोई आठ दस दिन रहकर वह कैसरिया चला गया; और दूसरे दिन न्याय–आसन पर बैठकर पौलुस को लाने की आज्ञा दी। जब वह आया तो जो यहूदी यरूशलेम से आए थे, उन्होंने आसपास खड़े होकर उस पर बहुत से गम्भीर आरोप लगाए, जिनका प्रमाण वे नहीं दे सकते थे। परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, “मैं ने न तो यहूदियों की व्यवस्था के और न मन्दिर के, और न ही कैसर के विरुद्ध कोई अपराध किया है।” तब फेस्तुस ने यहूदियों को खुश करने की इच्छा से पौलुस से कहा, “क्या तू चाहता है कि यरूशलेम को जाए; और वहाँ मेरे सामने तेरा यह मुक़द्दमा तय किया जाए?” पौलुस ने कहा, “मैं कैसर के न्याय–आसन के सामने खड़ा हूँ; मेरे मुक़द्दमे का यहीं फैसला होना चाहिए। जैसा तू अच्छी तरह जानता है, यहूदियों का मैं ने कुछ अपराध नहीं किया। यदि मैं अपराधी हूँ और मार डाले जाने योग्य कोई काम किया है, तो मरने से नहीं मुकरता; परन्तु जिन बातों का ये मुझ पर दोष लगाते हैं, यदि उनमें से कोई भी बात सच न ठहरे, तो कोई मुझे उनके हाथ नहीं सौंप सकता। मैं कैसर की दोहाई देता हूँ।” तब फेस्तुस ने मन्त्रियों की सभा के साथ बातें करके उत्तर दिया, “तू ने कैसर की दोहाई दी है, तू कैसर के ही पास जाएगा।” कुछ दिन बीतने के बाद अग्रिप्पा राजा और बिरनीके ने कैसरिया में आकर फेस्तुस से भेंट की। उनके बहुत दिन वहाँ रहने के बाद फेस्तुस ने पौलुस के विषय में राजा को बताया : “एक मनुष्य है, जिसे फेलिक्स बन्दी छोड़ गया है। जब मैं यरूशलेम में था, तो प्रधान याजक और यहूदियों के पुरनियों ने उसकी नालिश की और चाहा कि उस पर दण्ड की आज्ञा दी जाए। परन्तु मैं ने उनको उत्तर दिया कि रोमियों की यह रीति नहीं कि किसी मनुष्य को दण्ड के लिये सौंप दें, जब तक मुद्दाअलैह को अपने मुद्दइयों के सामने खड़े होकर दोष के उत्तर देने का अवसर न मिले। अत: जब वे यहाँ इकट्ठे हुए, तो मैं ने कुछ देर न की, परन्तु दूसरे ही दिन न्याय–आसन पर बैठकर उस मनुष्य को लाने की आज्ञा दी। जब उसके मुद्दई खड़े हुए, तो उन्होंने ऐसी अनुचित बातों का दोष नहीं लगाया, जैसा मैं समझता था। परन्तु वे अपने मत के और यीशु नाम किसी मनुष्य के विषय में, जो मर गया था और पौलुस उसको जीवित बताता था, विवाद करते थे। मैं उलझन में था कि इन बातों का पता कैसे लगाऊँ? इसलिये मैं ने उससे पूछा, ‘क्या तू यरूशलेम जाएगा कि वहाँ इन बातों का फैसला हो?’ परन्तु जब पौलुस ने दोहाई दी कि उसके मुक़द्दमे का फैसला महाराजाधिराज के यहाँ हो, तो मैं ने आज्ञा दी कि जब तक उसे कैसर के पास न भेजूँ, उसे हिरासत में रखा जाए।”
प्रेरितों 25:1-21 पवित्र बाइबल (HERV)
फिर फेस्तुस ने उस प्रदेश में प्रवेश किया और तीन दिन बाद वह कैसरिया से यरूशलेम को रवाना हो गया। वहाँ प्रमुख याजकों और यहूदियों के मुखियाओं ने पौलुस के विरुद्ध लगाये गये अभियोग उसके सामने रखे और उससे प्रार्थना की कि वह पौलुस को यरूशलेम भिजवा कर उन का पक्ष ले। (वे रास्ते में ही उसे मार डालने का षड्यन्त्र बनाये हुए थे।) फेस्तुस ने उत्तर दिया, “पौलुस कैसरिया में बन्दी है और वह जल्दी ही वहाँ जाने वाला है।” उसने कहा, “तुम अपने कुछ मुखियाओं को मेरे साथ भेज दो और यदि उस व्यक्ति ने कोई अपराध किया है तो वे वहाँ उस पर अभियोग लगायें।” उनके साथ कोई आठ दस दिन बात कर फेस्तुस कैसरिया चला गया। अगले ही दिन अदालत में न्यायासन पर बैठ कर उसने आज्ञा दी कि पौलुस को पेश किया जाये। जब वह पेश हुआ तो यरूशलेम से आये यहूदी उसे घेर कर खड़े हो गये। उन्होंने उस पर अनेक गम्भीर आरोप लगाये किन्तु उन्हें वे प्रमाणित नहीं कर सके। पौलुस ने स्वयं अपना बचाव करते हुए कहा, “मैंने यहूदियों के विधान के विरोध में कोई काम नहीं किया है, न ही मन्दिर के विरोध में और न ही कैसर के विरोध में।” फेस्तुस यहूदियों को प्रसन्न करना चाहता था, इसलिए उत्तर में उसने पौलुस से कहा, “तो क्या तू यरूशलेम जाना चाहता है ताकि मैं वहाँ तुझ पर लगाये गये इन अभियोगों का न्याय करूँ?” पौलुस ने कहा, “इस समय मैं कैसर की अदालत के सामने खड़ा हूँ। मेरा न्याय यहीं किया जाना चाहिये। मैंने यहूदियों के साथ कुछ बुरा नहीं किया है, इसे तू भी बहुत अच्छी तरह जानता है। यदि मैं किसी अपराध का दोषी हूँ और मैंने कुछ ऐसा किया है, जिसका दण्ड मृत्यु है तो मैं मरने से बचना नहीं चाहूँगा, किन्तु यदि ये लोग मुझ पर जो अभियोग लगा रहे हैं, उनमें कोई सत्य नहीं है तो मुझे कोई भी इन्हें नहीं सौंप सकता। यही कैसर से मेरी प्रार्थना है।” अपनी परिषद् से सलाह करने के बाद फेस्तुस ने उसे उत्तर दिया, “तूने कैसर से पुनर्विचार की प्रार्थना की है, इसलिये तुझे कैसर के सामने ही ले जाया जायेगा।” कुछ दिन बाद राजा अग्रिप्पा और बिरनिके फेस्तुस से मिलते कैसरिया आये। जब वे वहाँ कई दिन बिता चुके तो फेस्तुस ने राजा के सामने पौलुस के मुकदमे को इस प्रकार समझाया, “यहाँ एक ऐसा व्यक्ति है जिसे फेलिक्स बंदी के रूप में छोड़ गया था। जब मैं यरूशलेम में था, प्रमुख याजकों और बुजुर्गों ने उसके विरुद्ध मुकदमा प्रस्तुत किया था और माँग की थी कि उसे दण्डित किया जाये। मैंने उनसे कहा, ‘रोमियों में ऐसा चलन नहीं है कि किसी व्यक्ति को, जब तक वादी-प्रतिवादी को आमने-सामने न करा दिया जाये और उस पर लगाये गये अभियोगों से उसे बचाव का अवसर न दे दिया जाये, उसे दण्ड के लिये सौंपा जाये।’ “सो वे लोग जब मेरे साथ यहाँ आये तो मैंने बिना देर लगाये अगले ही दिन न्यायासन पर बैठ कर उस व्यक्ति को पेश किये जाने की आज्ञा दी। जब उस पर दोष लगाने वाले बोलने खड़े हुए तो उन्होंने उस पर ऐसा कोई दोष नहीं लगाया जैसा कि मैं सोच रहा था। बल्कि उनके अपने धर्म की कुछ बातों पर ही और यीशु नाम के एक व्यक्ति पर जो मर चुका है, उनमें कुछ मतभेद था। यद्यपि पौलुस का दावा है कि वह जीवित है। मैं समझ नहीं पा रहा था कि इन विषयों की छानबीन कैसे कि जाये, इसलिये मैंने उससे पूछा कि क्या वह अपने इन अभियोगों का न्याय कराने के लिये यरूशलेम जाने को तैयार है? किन्तु पौलुस ने जब प्रार्थना की कि उसे सम्राट के न्याय के लिये ही वहाँ रखा जाये, तो मैंने आदेश दिया, कि मैं जब तक उसे कैसर के पास न भिजवा दूँ, उसे यहीं रखा जाये।”
प्रेरितों 25:1-21 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)
अपने प्रदेश में पहुँचने के तीन दिन बाद फ़ेस्तुस कैसरिया से यरूशलेम गया। वहां यहूदियों के महापुरोहित तथा प्रमुख नेता पौलुस पर अभियोग लगाने उसके पास आये। उन्होंने फ़ेस्तुस से यह अनुरोध किया कि वह पौलुस को यरूशलेम बुलाने की कृपा करे, क्योंकि वे मार्ग में ही पौलुस को मार डालने का षड्यन्त्र रच रहे थे। किन्तु फेस्तुस ने यह उत्तर दिया, “पौलुस कैसरिया में बन्दी है। मैं स्वयं शीघ्र ही वहां जाने वाला हूँ, इसलिए आप लोगों के मुख्य अधिकारी मेरे साथ चलें। यदि उस व्यक्ति ने कुछ अनुचित कार्य किया है, तो वे उस पर अभियोग लगायें।” फ़ेस्तुस कोई आठ-दस दिन उनके बीच रह कर कैसरिया लौटा। दूसरे दिन न्यायासन पर बैठ कर उसने आदेश दिया कि पौलुस को लाया जाए। जब पौलुस आये, तो यरूशलेम से आये हुए यहूदी अधिकारियों ने उन्हें घेर लिया और उन पर अनेक गम्भीर अभियोग लगाने लगे, जिन्हें वे प्रमाणित नहीं कर सके। पौलुस ने अपने पक्ष के समर्थन में उत्तर दिया, “मैंने न तो यहूदियों की व्यवस्था के विरुद्ध कोई अपराध किया है, न मन्दिर के विरुद्ध, और न रोमन सम्राट के विरुद्ध।” किन्तु फ़ेस्तुस ने यहूदी अधिकारियों को प्रसन्न करने के लिए पौलुस से पूछा, “क्या तुम यरूशलेम जाना चाहते हो, जिससे वहाँ मेरे सामने इन बातों के विषय में तुम्हारा न्याय किया जाये?” पौलुस ने उत्तर दिया, “मैं सम्राट के न्यायासन के सम्मुख खड़ा हूं। मेरा न्याय यहीं होना चाहिए। आप अच्छी तरह जानते हैं कि मैंने यहूदियों के विरुद्ध कोई अपराध नहीं किया है। यदि मैंने प्राणदण्ड के योग्य कोई अपराध किया, तो मैं मरने से मुँह नहीं मोड़ता। किन्तु यदि इनके द्वारा मुझ पर लगाये गये अभियोगों में कोई सच्चाई नहीं है, तो कोई मुझे इनके हवाले नहीं कर सकता। मैं सम्राट की दुहाई देता हूँ!” फ़ेस्तुस ने परिषद् से परामर्श करने के बाद यह उत्तर दिया, “तुमने सम्राट की दुहाई दी है, तुम सम्राट के पास ही जाओगे।” कुछ दिन बीतने के पश्चात् राजा अग्रिप्पा और उसकी बहिन बिरनीके राज्यपाल फेस्तुस का अभिवादन करने कैसरिया में आये। वे वहाँ कई दिन ठहरे। फेस्तुस ने पौलुस का मामला राजा के सामने प्रस्तुत करते हुए कहा, “फ़ेलिक्स यहाँ एक व्यक्ति को बन्दीगृह में छोड़ गया है। जब मैं यरूशलेम में था, तो यहूदियों के महापुरोहितों तथा धर्मवृद्धों ने उसके विरुद्ध मुझे सूचना दी और अनुरोध किया कि उसे दण्डाज्ञा दी जाये। मैंने उत्तर दिया, ‘जब तक अभियुक्त को अभियोगियों के आमने-सामने न खड़ा किया जाये और उसे अभियोग के विषय में सफ़ाई देने का अवसर न मिले, तब तक अभियुक्त को अभियोगियों के हवाले करना रोमियों की प्रथा नहीं है।’ इसलिए वे यहाँ आये और मैंने अविलम्ब दूसरे ही दिन न्यायासन पर बैठ कर उस व्यक्ति को लाने का आदेश दिया। अभियोगियों ने उसे घेर लिया, किन्तु जिन अपराधों का मुझे अनुमान था, उनके विषय में उन्होंने उस पर कोई अभियोग नहीं लगाया। उन्हें केवल अपने धर्म से सम्बन्धित कुछ बातों में उससे मतभेद था और येशु नामक व्यक्ति के विषय में भी जो मर चुका है, किन्तु पौलुस जिसके जीवित होने का दावा करता है। मेरी समझ में नहीं आया कि इन बातों की छानबीन कैसे की जाये। इसलिए मैंने पौलुस से पूछा कि क्या तुम यरूशलेम जाना चाहोगे, जिससे वहाँ इन बातों के विषय में तुम्हारा न्याय किया जाये। किन्तु पौलुस ने दुहाई दी कि महाराजाधिराज का फ़ैसला हो जाने तक उसे संरक्षण में रखा जाये। इसलिए मैंने आदेश दिया कि जब तक मैं उसे सम्राट के पास न भेजूँ, तब तक वह पहरे में रहे।”
प्रेरितों 25:1-21 Hindi Holy Bible (HHBD)
फेस्तुस उस प्रान्त में पहुंचकर तीन दिन के बाद कैसरिया से यरूशलेम को गया। तब महायाजकों ने, और यहूदियों के बड़े लोगों ने, उसके साम्हने पौलुस की नालिश की। और उसे से बिनती करके उसके विरोध में यह वर चाहा, कि वह उसे यरूशलेम में बुलवाए, क्योंकि वे उसे रास्ते ही में मार डालने की घात लगाए हुए थे। फेस्तुस ने उत्तर दिया, कि पौलुस कैसरिया में पहरे में है, और मैं आप जल्द वहां आऊंगा। फिर कहा, तुम से जो अधिकार रखते हैं, वे साथ चलें, और यदि इस मनुष्य ने कुछ अनुचित काम किया है, तो उस पर दोष लगाएं॥ और उन के बीच कोई आठ दस दिन रहकर वह कैसरिया गया: और दूसरे दिन न्याय आसन पर बैठकर पौलुस के लाने की आज्ञा दी। जब वह आया, तो जो यहूदी यरूशलेम से आए थे, उन्होंने आस पास खड़े होकर उस पर बहुतेरे भारी दोष लगाए, जिन का प्रमाण वे नहीं दे सकते थे। परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, कि मैं ने न तो यहूदियों की व्यवस्था का और न मन्दिर का, और न कैसर का कुछ अपराध किया है। तब फेस्तुस ने यहूदियों को खुश करने की इच्छा से पौलुस को उत्तर दिया, क्या तू चाहता है कि यरूशलेम को जाए; और वहां मेरे साम्हने तेरा यह मुकद्दमा तय किया जाए? पौलुस ने कहा; मैं कैसर के न्याय आसन के साम्हने खड़ा हूं: मेरे मुकद्दमें का यहीं फैसला होना चाहिए: जैसा तू अच्छी तरह जानता है, यहूदियों का मैं ने कुछ अपराध नहीं किया। यदि अपराधी हूं और मार डाले जाने योग्य कोई काम किया है; तो मरने से नहीं मुकरता; परन्तु जिन बातों का ये मुझ पर दोष लगाते हैं, यदि उन में से कोई बात सच न ठहरे, तो कोई मुझे उन के हाथ नहीं सौंप सकता: मैं कैसर की दोहाई देता हूं। तब फेस्तुस ने मन्त्रियों की सभा के साथ बातें करके उत्तर दिया, तू ने कैसर की दोहाई दी है, तू कैसर के पास जाएगा॥ और कुछ दिन बीतने के बाद अग्रिप्पा राजा और बिरनीके ने कैसरिया में आकर फेस्तुस से भेंट की। और उन के बहुत दिन वहां रहने के बाद फेस्तुस ने पौलुस की कथा राजा को बताई; कि एक मनुष्य है, जिसे फेलिक्स बन्धुआ छोड़ गया है। जब मैं यरूशलेम में था, तो महायाजक और यहूदियों के पुरनियों ने उस की नालिश की; और चाहा, कि उस पर दण्ड की आज्ञा दी जाए। परन्तु मैं ने उन को उत्तर दिया, कि रोमियों की यह रीति नहीं, कि किसी मनुष्य को दण्ड के लिये सौंप दें, जब तक मुद्दाअलैह को अपने मुद्दइयों के आमने सामने खड़े होकर दोष के उत्तर देने का अवसर न मिले। सो जब वे यहां इकट्ठे हुए, तो मैं ने कुछ देर न की, परन्तु दूसरे ही दिन न्याय आसन पर बैठकर, उस मनुष्य को लाने की आज्ञा दी। जब उसके मुद्दई खड़े हुए, तो उन्होंने ऐसी बुरी बातों का दोष नहीं लगाया, जैसा मैं समझता था। परन्तु अपने मत के, और यीशु नाम किसी मनुष्य के विषय में जो मर गया था, और पौलुस उस को जीवित बताता था, विवाद करते थे। और मैं उलझन में था, कि इन बातों का पता कैसे लगाऊं इसलिये मैं ने उस से पूछा, क्या तू यरूशलेम जाएगा, कि वहां इन बातों का फैसला हो? परन्तु जब पौलुस ने दोहाई दी, कि मेरे मुकद्दमें का फैसला महाराजाधिराज के यहां हो; तो मैं ने आज्ञा दी, कि जब तक उसे कैसर के पास न भेजूं, उस की रखवाली की जाए।
प्रेरितों 25:1-21 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)
फेस्तुस उस प्रान्त में पहुँचने के तीन दिन बाद कैसरिया से यरूशलेम को गया। तब प्रधान याजकों और यहूदियों के प्रमुख लोगों ने उसके सामने पौलुस की नालिश की; और उससे विनती करके उसके विरोध में यह वर चाहा कि वह उसे यरूशलेम में बुलवाए, क्योंकि वे उसे रास्ते ही में मार डालने की घात में लगे हुए थे। फेस्तुस ने उत्तर दिया, “पौलुस कैसरिया में पहरे में है, और मैं आप जल्द वहाँ जाऊँगा।” फिर कहा, “तुम में जो अधिकार रखते हैं वे साथ चलें, और यदि इस मनुष्य ने कुछ अनुचित काम किया है तो उस पर दोष लगाएँ।” उनके बीच कोई आठ दस दिन रहकर वह कैसरिया चला गया; और दूसरे दिन न्याय–आसन पर बैठकर पौलुस को लाने की आज्ञा दी। जब वह आया तो जो यहूदी यरूशलेम से आए थे, उन्होंने आसपास खड़े होकर उस पर बहुत से गम्भीर आरोप लगाए, जिनका प्रमाण वे नहीं दे सकते थे। परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, “मैं ने न तो यहूदियों की व्यवस्था के और न मन्दिर के, और न ही कैसर के विरुद्ध कोई अपराध किया है।” तब फेस्तुस ने यहूदियों को खुश करने की इच्छा से पौलुस से कहा, “क्या तू चाहता है कि यरूशलेम को जाए; और वहाँ मेरे सामने तेरा यह मुक़द्दमा तय किया जाए?” पौलुस ने कहा, “मैं कैसर के न्याय–आसन के सामने खड़ा हूँ; मेरे मुक़द्दमे का यहीं फैसला होना चाहिए। जैसा तू अच्छी तरह जानता है, यहूदियों का मैं ने कुछ अपराध नहीं किया। यदि मैं अपराधी हूँ और मार डाले जाने योग्य कोई काम किया है, तो मरने से नहीं मुकरता; परन्तु जिन बातों का ये मुझ पर दोष लगाते हैं, यदि उनमें से कोई भी बात सच न ठहरे, तो कोई मुझे उनके हाथ नहीं सौंप सकता। मैं कैसर की दोहाई देता हूँ।” तब फेस्तुस ने मन्त्रियों की सभा के साथ बातें करके उत्तर दिया, “तू ने कैसर की दोहाई दी है, तू कैसर के ही पास जाएगा।” कुछ दिन बीतने के बाद अग्रिप्पा राजा और बिरनीके ने कैसरिया में आकर फेस्तुस से भेंट की। उनके बहुत दिन वहाँ रहने के बाद फेस्तुस ने पौलुस के विषय में राजा को बताया : “एक मनुष्य है, जिसे फेलिक्स बन्दी छोड़ गया है। जब मैं यरूशलेम में था, तो प्रधान याजक और यहूदियों के पुरनियों ने उसकी नालिश की और चाहा कि उस पर दण्ड की आज्ञा दी जाए। परन्तु मैं ने उनको उत्तर दिया कि रोमियों की यह रीति नहीं कि किसी मनुष्य को दण्ड के लिये सौंप दें, जब तक मुद्दाअलैह को अपने मुद्दइयों के सामने खड़े होकर दोष के उत्तर देने का अवसर न मिले। अत: जब वे यहाँ इकट्ठे हुए, तो मैं ने कुछ देर न की, परन्तु दूसरे ही दिन न्याय–आसन पर बैठकर उस मनुष्य को लाने की आज्ञा दी। जब उसके मुद्दई खड़े हुए, तो उन्होंने ऐसी अनुचित बातों का दोष नहीं लगाया, जैसा मैं समझता था। परन्तु वे अपने मत के और यीशु नाम किसी मनुष्य के विषय में, जो मर गया था और पौलुस उसको जीवित बताता था, विवाद करते थे। मैं उलझन में था कि इन बातों का पता कैसे लगाऊँ? इसलिये मैं ने उससे पूछा, ‘क्या तू यरूशलेम जाएगा कि वहाँ इन बातों का फैसला हो?’ परन्तु जब पौलुस ने दोहाई दी कि उसके मुक़द्दमे का फैसला महाराजाधिराज के यहाँ हो, तो मैं ने आज्ञा दी कि जब तक उसे कैसर के पास न भेजूँ, उसे हिरासत में रखा जाए।”
प्रेरितों 25:1-21 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)
फेस्तुस उस प्रान्त में पहुँचकर तीन दिन के बाद कैसरिया से यरूशलेम को गया। तब प्रधान याजकों ने, और यहूदियों के प्रमुख लोगों ने, उसके सामने पौलुस पर दोषारोपण की; और उससे विनती करके उसके विरोध में यह चाहा कि वह उसे यरूशलेम में बुलवाए, क्योंकि वे उसे रास्ते ही में मार डालने की घात लगाए हुए थे। फेस्तुस ने उत्तर दिया, “पौलुस कैसरिया में कैदी है, और मैं स्वयं जल्द वहाँ जाऊँगा।” फिर कहा, “तुम से जो अधिकार रखते हैं, वे साथ चलें, और यदि इस मनुष्य ने कुछ अनुचित काम किया है, तो उस पर दोष लगाएँ।” उनके बीच कोई आठ दस दिन रहकर वह कैसरिया गया: और दूसरे दिन न्याय आसन पर बैठकर पौलुस को लाने की आज्ञा दी। जब वह आया, तो जो यहूदी यरूशलेम से आए थे, उन्होंने आस-पास खड़े होकर उस पर बहुत से गम्भीर दोष लगाए, जिनका प्रमाण वे नहीं दे सकते थे। परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, “मैंने न तो यहूदियों की व्यवस्था के और न मन्दिर के, और न कैसर के विरुद्ध कोई अपराध किया है।” तब फेस्तुस ने यहूदियों को खुश करने की इच्छा से पौलुस को उत्तर दिया, “क्या तू चाहता है कि यरूशलेम को जाए; और वहाँ मेरे सामने तेरा यह मुकद्दमा तय किया जाए?” पौलुस ने कहा, “मैं कैसर के न्याय आसन के सामने खड़ा हूँ; मेरे मुकद्दमे का यहीं फैसला होना चाहिए। जैसा तू अच्छी तरह जानता है, यहूदियों का मैंने कुछ अपराध नहीं किया। यदि अपराधी हूँ और मार डाले जाने योग्य कोई काम किया है, तो मरने से नहीं मुकरता; परन्तु जिन बातों का ये मुझ पर दोष लगाते हैं, यदि उनमें से कोई बात सच न ठहरे, तो कोई मुझे उनके हाथ नहीं सौंप सकता। मैं कैसर की दुहाई देता हूँ।” तब फेस्तुस ने मंत्रियों की सभा के साथ विचार करके उत्तर दिया, “तूने कैसर की दुहाई दी है, तो तू कैसर के पास ही जाएगा।” कुछ दिन बीतने के बाद अग्रिप्पा राजा और बिरनीके ने कैसरिया में आकर फेस्तुस से भेंट की। उनके बहुत दिन वहाँ रहने के बाद फेस्तुस ने पौलुस के विषय में राजा को बताया, “एक मनुष्य है, जिसे फेलिक्स बन्दी छोड़ गया है। जब मैं यरूशलेम में था, तो प्रधान याजकों और यहूदियों के प्राचीनों ने उस पर दोषारोपण किया और चाहा, कि उस पर दण्ड की आज्ञा दी जाए। परन्तु मैंने उनको उत्तर दिया, कि रोमियों की यह रीति नहीं, कि किसी मनुष्य को दण्ड के लिये सौंप दें, जब तक आरोपी को अपने दोष लगाने वालों के सामने खड़े होकर दोष के उत्तर देने का अवसर न मिले। अतः जब वे यहाँ उपस्थित हुए, तो मैंने कुछ देर न की, परन्तु दूसरे ही दिन न्याय आसन पर बैठकर, उस मनुष्य को लाने की आज्ञा दी। जब उसके मुद्दई खड़े हुए, तो उन्होंने ऐसी बुरी बातों का दोष नहीं लगाया, जैसा मैं समझता था। परन्तु अपने मत के, और यीशु नामक किसी मनुष्य के विषय में जो मर गया था, और पौलुस उसको जीवित बताता था, विवाद करते थे। और मैं उलझन में था, कि इन बातों का पता कैसे लगाऊँ? इसलिए मैंने उससे पूछा, ‘क्या तू यरूशलेम जाएगा, कि वहाँ इन बातों का फैसला हो?’ परन्तु जब पौलुस ने दुहाई दी, कि मेरे मुकद्दमे का फैसला महाराजाधिराज के यहाँ हो; तो मैंने आज्ञा दी, कि जब तक उसे कैसर के पास न भेजूँ, उसकी रखवाली की जाए।”
प्रेरितों 25:1-21 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)
कार्यभार संभालने के तीन दिन बाद फ़ेस्तुस कयसरिया नगर से येरूशलेम गया. वहां उसके सामने प्रधान पुरोहितों और यहूदी अगुओं ने पौलॉस के विरुद्ध मुकद्दमा प्रस्तुत किया. उन्होंने फ़ेस्तुस से विनती की कि वह विशेष कृपादृष्टि कर पौलॉस को येरूशलेम भेज दें. वास्तव में उनकी योजना मार्ग में घात लगाकर पौलॉस की हत्या करने की थी. फ़ेस्तुस ने इसके उत्तर में कहा, “पौलॉस तो कयसरिया में बंदी है और मैं स्वयं शीघ्र वहां जा रहा हूं. इसलिये आप में से कुछ प्रधान व्यक्ति मेरे साथ वहां चलें. यदि पौलॉस को वास्तव में दोषी पाया गया तो उस पर मुकद्दमा चलाया जाएगा.” आठ-दस दिन ठहरने के बाद फ़ेस्तुस कयसरिया लौट गया और अगले दिन पौलॉस को न्यायालय में लाने की आज्ञा दी. पौलॉस के वहां आने पर येरूशलेम से आए यहूदियों ने उन्हें घेर लिया और उन पर अनेक गंभीर आरोपों की बौछार शुरू कर दी, जिन्हें वे स्वयं साबित न कर पाए. अपने बचाव में पौलॉस ने कहा, “मैंने न तो यहूदियों की व्यवस्था के विरुद्ध किसी भी प्रकार का अपराध किया है और न ही मंदिर या कयसर के विरुद्ध.” फिर भी यहूदियों को प्रसन्न करने के उद्देश्य से फ़ेस्तुस ने पौलॉस से प्रश्न किया, “क्या तुम चाहते हो कि तुम्हारे इन आरोपों की सुनवाई मेरे सामने येरूशलेम में हो?” इस पर पौलॉस ने उत्तर दिया, “मैं कयसर के न्यायालय में खड़ा हूं. ठीक यही है कि मेरी सुनवाई यहीं हो. मैंने यहूदियों के विरुद्ध कोई अपराध नहीं किया है; यह तो आपको भी भली-भांति मालूम है. यदि मैं अपराधी ही हूं और यदि मैंने मृत्यु दंड के योग्य कोई अपराध किया ही है, तो मुझे मृत्यु दंड स्वीकार है. किंतु यदि इन यहूदियों द्वारा मुझ पर लगाए आरोप सच नहीं हैं तो किसी को यह अधिकार नहीं कि वह मुझे इनके हाथों में सौंपे. यहां मैं अपनी सुनवाई की याचिका कयसर के न्यायालय में भेज रहा हूं.” अपनी महासभा से विचार-विमर्श के बाद फ़ेस्तुस ने घोषणा की, “ठीक है. तुमने कयसर से सुनवाई की विनती की है तो तुम्हें कयसर के पास ही भेजा जाएगा.” कुछ समय बाद राजा अग्रिप्पा तथा बेरनिके फ़ेस्तुस से भेंट करने कयसरिया नगर आए. वे वहां बहुत समय तक ठहरे. फ़ेस्तुस ने राजा को पौलॉस के विषय में इस प्रकार बताया: “फ़ेलिक्स एक बंदी को यहां छोड़ गया है. जब मैं येरूशलेम गया हुआ था; वहां प्रधान पुरोहितों तथा यहूदी प्राचीनों ने उस पर आरोप लगाए थे. उन्होंने उसे मृत्यु दंड दिए जाने की मांग की. “मैंने उनके सामने रोमी शासन की नीति स्पष्ट करते हुए उनसे कहा कि इस नीति के अंतर्गत दोषी और दोष लगानेवालों के आमने-सामने सवाल जवाब किए बिना तथा दोषी को अपनी सफ़ाई पेश करने का अवसर दिए बिना दंड के लिए सौंप देना सही नहीं है. इसलिये उनके यहां इकट्ठा होते ही मैंने बिना देर किए दूसरे ही दिन इस व्यक्ति को न्यायालय में प्रस्तुत किए जाने की आज्ञा दी. जब आरोपी खड़े हुए, उन्होंने उस पर सवाल जवाब शुरू कर दिए किंतु मेरे अनुमान के विपरीत, ये आरोप उन अपराधों के नहीं थे जिनकी मुझे आशा थी ये उनके पारस्परिक मतभेद थे, जिनका संबंध मात्र उनके विश्वास से तथा येशु नामक किसी मृत व्यक्ति से था, जो इस बंदी पौलॉस के अनुसार जीवित है. मैं समझ नहीं पा रहा था कि इस प्रकार के विषय का पता कैसे किया जाए. इसलिये मैंने यह जानना चाहा, क्या वह येरूशलेम में मुकद्दमा चलाए जाने के लिए राज़ी है. किंतु पौलॉस की इस विनती पर कि सम्राट के निर्णय तक उसे कारावास में रखा जाए, मैंने उसे कयसर के पास भेजे जाने तक बंदी बनाए रखने की आज्ञा दी है.”