2 राजा 4:8-37

2 राजा 4:8-37 पवित्र बाइबल (HERV)

एक दिन एलीशा शूनेम को गया। शूनेम में एक महत्वपूर्ण स्त्री रहती थी। इस स्त्री ने एलीशा से कहा कि वह ठहरे और उसके घर भोजन करे। इसलिये जब भी एलीशा उस स्थान से होकर जाता था तब भोजन करने के लिये वहाँ रूकता था। उस स्त्री ने अपने पति से कहा, “देखो मैं समझती हूँ कि एलीशा परमेश्वर का जन है। वह सदा हमारे घर होकर जाता है। कृपया हम लोग एक कमरा एलीशा के लिये छत पर बनाएं। इस कमरे में हम एक बिछौना लगा दें। उसमें हम लोग एक मेज, एक कुर्सी और एक दीपाधार रख दें। तब जब वह हमारे यहाँ आए तो वह इस कमरे को अपने रहने के लिये रख सकता है।” एक दिन एलीशा उस स्त्री के घर आया। वह उस कमरे में गया और वहाँ आराम किया। एलीशा ने अपने सेवक गेहजी से कहा, “शूनेमिन स्त्री को बुलाओ।” सेवक ने शूनेमिन स्त्री को बुलाया और वह उसके सामने आ खड़ी हूई। एलीशा ने अपने सेवक से कहा—अब इस स्त्री से कहो, “देखो हम लोगों की देखभाल के लिये तुमने यथासम्भव अच्छा किया है। हम लोग तुम्हारे लिये क्या करें क्या तुम चाहती हो कि हम लोग तुम्हारे लिये राजा या सेना के सेनापती से बात करें” उस स्त्री ने उत्तर दिया, “मैं यहाँ बहुत अच्छी तरह अपने लोगों में रह रही हूँ।” एलीशा ने गेहजी से कहा, “हम उसके लिये क्या कर सकते हैं” गेहजी ने कहा, “मैं जानता हूँ कि उसका पुत्र नहीं है और उसका पति बूढ़ा है।” तब एलीशा ने कहा, “उसे बुलाओ।” अतः गेहजी ने उस स्त्री को बुलाया। वह आई और उसके दरवाजे के पास खड़ी हो गई। एलीशा ने स्त्री से कहा, “अगले बसन्त में इस समय तुम अपने पुत्र को गले से लगा रही होगी।” उस स्त्री ने कहा, “नहीं महोदय! परमेश्वर के जन, मुझसे झूठ न बोलो।” किन्तु वह स्त्री गर्भवती हुई। उसने अगले बसन्त में एक पुत्र को जन्म दिया, जैसा एलीशा ने कहा था। लड़का बड़ा हुआ। एक दिन वह लड़का खेतों में अपने पिता और फसल काटते हुए पुरुषों को देखने गया। लड़के ने अपने पिता से कहा, “ओह, मेरा सिर! मेरा सिर फटा जा रहा है!” पिता ने अपने सेवक से कहा, “इसे इसकी माँ के पास ले जाओ!” सेवक उस लड़के को उसकी माँ के पास ले गया। लड़का दोपहर तक अपनी माँ की गोद मैं बैठा। तब वह मर गया। उस स्त्री ने लड़के को परमेश्वर के जन (एलीशा) के बिछौने पर लिटा दिया। तब उसने दरवाजा बन्द किया और बाहर चली गई। उसने अपने पति को बुलाया और कहा, “कृपया मेरे पास सेवकों में से एक तथा गधों में से एक को भेजें। तब मैं परमेश्वर के जन (एलीशा) से मिलने शीघ्रता से जाऊँगी और लौट आऊँगी।” उस स्त्री के पति ने कहा, “तुम आज परमेश्वर के जन (एलीशा) के पास क्यों जाना चाहती हो यह नवचन्द्र या सब्त का दिन नहीं है।” उसने कहा, “परेशान मत होओ। सब कुछ ठीक होगा।” तब उसने एक गधे पर काठी रखी और अपने सेवक से कहा, “आओ चलें और शीघ्रता करें। धीरे तभी चलो जब मैं कहूँ।” वह स्त्री परमेश्वर के जन (एलीशा) से मिलने कर्म्मेल पर्वत पर गई। परमेश्वर के जन (एलीशा) ने शूनेमिन स्त्री को दूर से आते देखा। एलीशा ने अपने सेवक गेहजी से कहा, “देखो, वह शूनेमिन स्त्री है! कृपया अब दौड़ कर उससे मिलो। उससे पूछो, ‘क्या बुरा घटित हुआ है क्या तुम कुशल से हो क्या तुम्हारा पति कुशल से है क्या बच्चा ठीक है?’” गेहजी ने उस शूनेमिन स्त्री से यही पूछा। उसने उत्तर दिया, “सब कुशल है।” किन्तु शूनेमिन स्त्री पर्वत पर चढ़कर परमेश्वर के जन (एलीशा) के पास पहुँची। वह प्रणाम करने झुकी और उसने एलीशा के पाँव पकड़ लिये। गेहजी शूनेमिन स्त्री को दूर खींच लेने के लिये निकट आया। किन्तु परमेश्वर के जन (एलीशा) ने गेहजी से कहा, “उसे अकेला छोड़ दो! वह बहुत परेशान है और यहोवा ने इसके बारे में मुझसे नहीं कहा। यहोवा ने यह खबर मुझसे छिपाई।” तब शूनेमिन स्त्री ने कहा, “महोदय, मैंने आपसे पुत्र नहीं माँगा था। मैंने आपसे कहा था, ‘आप मुझे मूर्ख न बनाए!’” तब एलीशा ने गेहजी से कहा, “जाने के लिये तैयार हो जाओ। मेरी टहलने की छड़ी ले लो और जाओ। किसी से बात करने के लिये न रुको। यदि तुम किसी व्यक्ति से मिलो तो उसे नमस्कार भी न कहो। यदि कोई व्यक्ति नमस्कार करे तो तुम उसका उत्तर भी न दो। मेरी टहलने की छड़ी को बच्चे के चेहरे पर रखो।” किन्तु बच्चे की माँ ने कहा, “जैसा कि यहोवा शाश्वत है और आप जीवित हैं मैं इसको साक्षी कर प्रतिज्ञा करती हूँ कि मैं आपके बिना यहाँ से नहीं जाऊँगी।” अतः एलीशा उठा और शूनेमिन स्त्री के साथ चल पड़ा। गेहजी शूनेमिन स्त्री के घर, एलीशा और शूनेमिन से पहले पहुँचा। गेहजी ने टहलने की छड़ी को बच्चे के चेहरे पर रखा। किन्तु बच्चे ने न कोई बात की और न ही कोई ऐसा संकेत दिया जिससे यह लगे कि उसने कुछ सुना है। तब गेहजी एलीशा से मिलने लौटा। गेहजी ने एलीशा से कहा, “बच्चा नहीं जागा!” एलीशा घर में आया और बच्चा अपने बिछौने पर मरा पड़ा था। एलीशा कमरे में आया और उसने दरवाजा बन्द कर लिया। अब एलीशा और वह बच्चा कमरे में अकेले थे। तब एलीशा ने यहोवा से प्रार्थना की। एलीशा बिछौनो पर गया और बच्चे पर लेटा। एलीशा ने अपना मुख बच्चे के मुख पर रखा। एलीशा ने अपनी आँखें बच्चे की आँखों पर रखीं। एलीशा ने अपने हाथों को बच्चे के हाथों पर रखा। एलीशा ने अपने को बच्चे के ऊपर फैलाया। तब बच्चे का शरीर गर्म हो गया। एलीशा कमरे के बाहर आया और घर में चारों ओर घूमा। तब वह कमरे में लौटा और बच्चे के ऊपर लेट गया। तब बच्चा सात बार छींका और उसने आँखें खोलीं। एलीशा ने गेहजी को बुलाया और कहा, “शूनेमिन स्त्री को बुलाओ!” गेहजी ने शूनेमिन स्त्री को बुलाया और वह एलीशा के पास आई। एलीशा ने कहा, “अपने पुत्र को उठा लो।” तब शूनेमिन स्त्री कमरे में गई और एलीशा के चरणों पर झुकी। तब उसने अपने पुत्र को उठाया और वह बाहर गई।

2 राजा 4:8-37 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)

एक दिन एलीशा शूनेम नगर से गुजरे। वहां एक धनवान महिला रहती थी। उसने एलीशा को भोजन के लिए विवश किया। इस घटना के बाद जब-जब एलीशा उस मार्ग से गुजरते थे, वह भोजन करने के लिए वहां रुक जाते थे। एक दिन महिला ने अपने पति से कहा, ‘देखो, मैं जानती हूं कि यह व्यक्‍ति जो हमारे पास निरन्‍तर आया करते हैं, परमेश्‍वर के पवित्र जन हैं। क्‍यों न हम उनके लिए अपने मकान की छत पर एक छोटी बरसाती बना दें। हम वहां उनके लिए एक पलंग, एक मेज, एक कुर्सी और एक दीया रख देंगे। जब-जब वह हमारे पास आएंगे, वह उसमें ठहरेंगे।’ एक दिन एलीशा वहां आए। वह बरसाती में गए और वहां लेट गए। एलीशा ने अपने सेवक गेहजी से कहा, ‘महिला को बुला।’ सेवक ने शूनेमवासी महिला को बुलाया। वह आई और एलीशा के सम्‍मुख खड़ी हो गई। एलीशा ने अपने सेवक से कहा, ‘इनसे कह : देखो, तुमने हमारी सुविधा के लिए इतनी चिन्‍ता की। अब तुम्‍हारे लिए क्‍या करना चाहिए? क्‍या तुम चाहती हो कि तुम्‍हारे लिए महाराज अथवा सेनापति से सिफारिश की जाए?’ शूनेमवासी महिला बोली, ‘मैं अपने निज लोगों के मध्‍य रहते हुए सन्‍तुष्‍ट हूँ।’ एलीशा ने अपने सेवक से पूछा, ‘इस महिला के लिए क्‍या करना चाहिए?’ गेहजी ने बताया, ‘इसको पुत्र नहीं हुआ और इसका पति भी वृद्ध है।’ एलीशा ने कहा, ‘महिला को बुला।’ गेहजी ने फिर उसको बुलाया। वह आई और द्वार पर खड़ी हो गई। एलीशा ने कहा, ‘अगले वर्ष इसी समय तुम्‍हारी गोद में एक पुत्र खेलेगा।’ पर महिला ने कहा, ‘नहीं, नहीं, मेरे स्‍वामी, ओ परमेश्‍वर के जन! कृपया, अपनी सेविका से झूठ मत बोलिए!’ जैसा एलीशा ने कहा था, वैसा ही हुआ। शूनेमवासी महिला गर्भवती हुई। अगले वर्ष नियत समय पर उसको पुत्र उत्‍पन्न हुआ। शूनेमवासी महिला का पुत्र बड़ा हुआ। एक दिन वह अपने पिता के पास गया, जो फसल काटने वालों के साथ था। उसने अपने पिता से कहा, ‘पिताजी, मेरा सिर! आह, मेरा सिर!’ पिता ने अपने सेवक से कहा, ‘इसे इसकी मां के पास ले जाओ।’ सेवक ने बालक को उठाया, और उसको उसकी मां के पास ले गया। बालक दोपहर तक अपनी मां की गोद में बैठा रहा। तत्‍पश्‍चात् वह मर गया। बालक की मां एलीशा की बरसाती में गई। उसने उनके पलंग पर बालक को लिटा दिया। तत्‍पश्‍चात् वह कमरे से बाहर निकली और द्वार बन्‍द कर दिया। उसने अपने पति को बुलाया, और उससे कहा, ‘एक सेवक और एक गधे को मेरे पास भेजिए, जिससे मैं शीघ्र ही परमेश्‍वर के जन के पास जाऊं और तुरन्‍त लौट सकूं।’ उसके पति ने कहा, ‘तुम आज ही उनके पास क्‍यों जाना चाहती हो? आज न नवचन्‍द्र पर्व है, और न विश्राम-दिवस।’ परन्‍तु उसने कहा, ‘कल्‍याण ही होगा।’ वह गधे पर सवार हुई। उसने अपने सेवक को आदेश दिया, ‘हांक! तेज चल! जब तक मैं तुझे धीरे हांकने को न कहूंगी तब तक तू धीरे मत हांकना।’ यों वह चली गई। वह कर्मेल पर्वत पर परमेश्‍वर के जन एलीशा के पास पहुंची। जब परमेश्‍वर के जन एलीशा ने उसे दूर से देखा तब उन्‍होंने अपने सेवक गेहजी से कहा, ‘देख, शूनेमवासी महिला आ रही है। तू उससे भेंट करने के लिए दौड़ कर जा। तू उससे यह पूछना, “तुम सकुशल तो हो? तुम्‍हारे पति सकुशल हैं? तुम्‍हारा पुत्र सकुशल है?” शूनेमवासी महिला ने कहा, ‘सब सकुशल है।’ वह कर्मेल पर्वत पर पहुंची। उसने परमेश्‍वर के जन एलीशा के पैर पकड़ लिए। गेहजी उसको बलपूर्वक हटाने लगा। परन्‍तु परमेश्‍वर के जन एलीशा ने गेहजी से कहा, ‘इनको छोड़ दे। इनके प्राण व्‍याकुल हैं। किन्‍तु प्रभु ने मुझसे यह बात छिपा रखी है। उसने मुझ पर प्रकट नहीं किया।’ शूनेमवासी महिला ने कहा, ‘क्‍या मैंने स्‍वामी से पुत्र मांगा था? क्‍या मैंने यह नहीं कहा था, “मुझे धोखा मत दीजिए” ?’ एलीशा ने गेहजी से कहा, ‘तू तुरन्‍त तैयार हो। अपने हाथ में मेरी सोंटी ले, और अविलम्‍ब जा। यदि मार्ग में तुझे कोई परिचित व्यक्‍ति मिलेगा, तो तू उसका कुशल-मंगल पूछने के लिए मत रुकना। यदि मार्ग में कोई व्यक्‍ति तेरा कुशल-मंगल पूछेगा तो तू उत्तर देने के लिए मत रुकना। तू बालक के मुख पर मेरी सोंटी रख देना।’ बालक की मां ने कहा, ‘जीवन्‍त प्रभु की सौगन्‍ध! आपके प्राण की सौगन्‍ध! मैं आपको नहीं छोड़ूंगी आप मेरे साथ चलिए।’ अत: एलीशा उठे और उसके साथ गए। गेहजी एलीशा और बालक की मां से पहले चला गया। उसने बालक के मुख पर सोंटी रखी। किन्‍तु न कोई आवाज सुनाई दी, और न जीवन का कोई लक्षण दिखाई दिया। अत: वह एलीशा से मिलने के लिए लौटा। उसने एलीशा को बताया, ‘बालक जीवित नहीं हुआ।’ एलीशा ने घर में प्रवेश किया। उन्‍होंने देखा कि बालक मर गया है और उनके पलंग पर पड़ा है। वह कमरे में आए। उन्‍होंने भीतर से द्वार बन्‍द कर लिया। तत्‍पश्‍चात् उन्‍होंने प्रभु से प्रार्थना की। तब वह पलंग पर चढ़े, और बालक पर यों लेट गए कि उनका मुंह बालक के मुंह पर, उनकी आंखें बालक की आंखों पर और उनकी हथेली बालक की हथेली पर हो गई। वह बालक के शरीर पर पसर गए। बालक का शरीर गर्म होने लगा। एलीशा उठे। उन्‍होंने पलंग से उतरकर कमरे में एक बार चहलकदमी की। वह पलंग पर पुन: चढ़े, और बालक के शरीर पर पसर गए। तब बालक ने सात बार छींका, और अपनी आँखें खोल दीं। एलीशा ने गेहजी को बुलाया। उन्‍होंने उससे कहा, ‘बालक की मां को बुला।’ गेहजी ने उसे बुलाया। वह एलीशा के पास आई। एलीशा ने कहा, ‘अपने पुत्र को उठा ले।’ बालक की मां कमरे के भीतर गई, और एलीशा के पैरों पर गिर पड़ी। उसने भूमि पर लेटकर उनको साष्‍टांग प्रणाम किया। तत्‍पश्‍चात् उसने अपने पुत्र को उठाया, और कमरे से बाहर चली गई।

2 राजा 4:8-37 Hindi Holy Bible (HHBD)

फिर एक दिन की बात है कि एलीशा शूनेम को गया, जहां एक कुलीन स्त्री थी, और उसने उसे रोटी खाने के लिये बिनती कर के विवश किया। और जब जब वह उधर से जाता, तब तब वह वहां रोटी खाने को उतरता था। और उस स्त्री ने अपने पति से कहा, सुन यह जो बार बार हमारे यहां से हो कर जाया करता है वह मुझे परमेश्वर का कोई पवित्र भक्त जान पड़ता है। तो हम भीत पर एक छोटी उपरौठी कोठरी बनाएं, और उस में उसके लिये एक खाट, एक मेज, एक कुसीं और एक दीवट रखें, कि जब जब वह हमारे यहां आए, तब तब उसी में टिका करे। एक दिन की बात है, कि वह वहां जा कर उस उपरौठी कोठरी में टिका और उसी में लेट गया। और उसने अपने सेवक गेहजी से कहा, उस शुनेमिन को बुला ले। उसके बुलाने से वह उसके साम्हने खड़ी हुई। तब उसने गेहजी से कहा, इस से कह, कि तू ने हमारे लिये ऐसी बड़ी चिन्ता की है, तो तेरे लिये क्या किया जाए? क्या तेरी चर्चा राजा, वा प्रधान सेनापति से की जाए? उसने उत्तर दिया मैं तो अपने ही लोगों में रहती हूँ। फिर उसने कहा, तो इसके लिये क्या किया जाए? गेहजी ने उत्तर दिया, निश्चय उसके कोई लड़का नहीं, और उसका पति बूढ़ा है। उसने कहा, उसको बुला ले। और जब उसने उसे बुलाया, तब वह द्वार में खड़ी हुई। तब उसने कहा, बसन्त ऋतु में दिन पूरे होने पर तू एक बेटा छाती से लगाएगी। स्त्री ने कहा, हे मेरे प्रभु! हे परमेश्वर के भक्त ऐसा नहीं, अपनी दासी को धोखा न दे। और स्त्री को गर्भ रहा, और वसन्त ऋतु का जो समय एलीशा ने उस से कहा था, उसी समय जब दिन पूरे हुए, तब उसके पुत्र उत्पन्न हुआ। और जब लड़का बड़ा हो गया, तब एक दिन वह अपने पिता के पास लवने वालों के निकट निकल गया। और उसने अपने पिता से कहा, आह! मेरा सिर, आह! मेरा सिर। तब पिता ने अपने सेवक से कहा, इस को इसकी माता के पास ले जा। वह उसे उठा कर उसकी माता के पास ले गया, फिर वह दोपहर तक उसके घुटनों पर बैठा रहा, तब मर गया। तब उसने चढ़ कर उसको परमेश्वर के भक्त की खाट पर लिटा दिया, और निकल कर किवाड़ बन्द किया, तब उतर गई। और उसने अपने पति से पुकार कर कहा, मेरे पास एक सेवक और एक गदही तुरन्त भेज दे कि मैं परमेश्वर के भक्त के यहां झट पट हो आऊं। उसने कहा, आज तू उसके यहां क्योंजाएगी? आज न तो नये चांद का, और न विश्राम का दिन है; उसने कहा, कल्याण होगा। तब उस स्त्री ने गदही पर काठी बान्ध कर अपने सेवक से कहा, हांके चल; और मेरे कहे बिना हांकने में ढिलाई न करना। तो वह चलते चलते कर्मेल पर्वत को परमेश्वर के भक्त के निकट पहुंची। उसे दूर से देखकर परमेश्वर के भक्त ने अपने सेवक गेहजी से कहा, देख, उधर तो वह शूनेमिन है। अब उस से मिलने को दौड़ जा, और उस से पूछ, कि तू कुशल से है? तेरा पति भी कुशल से है? और लड़का भी कुशल से है? पूछने पर स्त्री ने उत्तर दिया, हां, कुशल से हैं। वह पहाड़ पर परमेश्वर के भक्त के पास पहुंची, और उसके पांव पकड़ने लगी, तब गेहजी उसके पास गया, कि उसे धक्का देकर हटाए, परन्तु परमेश्वर के भक्त ने कहा, उसे छोड़ दे, उसका मन व्याकुल है; परन्तु यहोवा ने मुझ को नहीं बताया, छिपा ही रखा है। तब वह कहने लगी, क्या मैं ने अपने प्रभु से पुत्र का वर मांगा था? क्या मैं ने न कहा था मुझे धोखा न दे? तब एलीशा ने गेहजी से कहा, अपनी कमर बान्ध, और मेरी छड़ी हाथ में ले कर चला जा, मार्ग में यदि कोई तुझे मिले तो उसका कुशल न पूछना, और कोई तेरा कुशल पूछे, तो उसको उत्तर न देना, और मेरी यह छड़ी उस लड़के के मुंह पर धर देना। तब लड़के की मां ने एलीशा से कहा, यहोवा के और तेरे जीवन की शपथ मैं तुझे न छोड़ूंगी। तो वह उठ कर उसके पीछे पीछे चला। उन से पहिले पहुंच कर गेहजी ने छड़ी को उस लड़के के मुंह पर रखा, परन्तु कोई शब्द न सुन पड़ा, और न उसने कान लगाया, तब वह एलीशा से मिलने को लौट आया, और उसको बतला दिया, कि लड़का नहीं जागा। जब एलीशा घर में आया, तब क्या देखा, कि लड़का मरा हुआ उसकी खाट पर पड़ा है। तब उसने अकेला भीतर जा कर किवाड़ बन्द किया, और यहोवा से प्रार्थना की। तब वह चढ़कर लड़के पर इस रीति से लेट गया कि अपना मुंह उसके मुंह से और अपनी आंखें उसकी आंखों से और अपने हाथ उसके हाथों से मिला दिये और वह लड़के पर पसर गया, तब लड़के की देह गर्म होने लगी। और वह उसे छोड़कर घर में इधर उधर टहलने लगा, और फिर चढ़ कर लड़के पर पसर गया; तब लड़के ने सात बार छींका, और अपनी आंखें खोलीं। तब एलीशा ने गेहजी को बुला कर कहा, शूनेमिन को बुला ले। जब उसके बुलाने से वह उसके पास आई, तब उसने कहा, अपने बेटे को उठा ले। वह भीतर गई, और उसके पावों पर गिर भूमि तक झुककर दण्डवत किया; फिर अपने बेटे को उठा कर निकल गई।

2 राजा 4:8-37 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)

एक दिन की बात है कि एलीशा शूनेम को गया, जहाँ एक कुलीन स्त्री थी, और उसने उसे रोटी खाने के लिये विनती करके विवश किया। अत: जब जब वह उधर से जाता, तब तब वह वहाँ रोटी खाने को उतरता था। उस स्त्री ने अपने पति से कहा, “सुन यह जो बार बार हमारे यहाँ से होकर जाया करता है वह मुझे परमेश्‍वर का कोई पवित्र भक्‍त जान पड़ता है। हम भीत पर एक छोटी उपरौठी कोठरी बनाएँ, और उसमें उसके लिये एक खाट, एक मेज, एक कुर्सी और एक दीवट रखें, कि जब जब वह हमारे यहाँ आए, तब तब उसी में टिका करे।” एक दिन की बात है कि वह वहाँ जाकर उस उपरौठी कोठरी में टिका और उसी में लेट गया। और उसने अपने सेवक गेहजी से कहा, “उस शूनेमिन को बुला ले।” उसके बुलाने से वह उसके सामने खड़ी हुई। तब उसने गेहजी से कहा, “इससे कह, कि तू ने हमारे लिये ऐसी बड़ी चिन्ता की है, तो तेरे लिये क्या किया जाए? क्या तेरी चर्चा राजा, या प्रधान सेनापति से की जाए?” उसने उत्तर दिया, “मैं तो अपने ही लोगों में रहती हूँ।” फिर उसने कहा, “तो इसके लिये क्या किया जाए?” गेहजी ने उत्तर दिया, “निश्‍चय उसके कोई लड़का नहीं, और उसका पति बूढ़ा है।” उसने कहा, “उसको बुला ले।” और जब उसने उसे बुलाया, तब वह द्वार में खड़ी हुई। तब उसने कहा, “वसन्त ऋतु में दिन पूरे होने पर तू एक बेटा छाती से लगाएगी।” स्त्री ने कहा, “हे मेरे प्रभु! हे परमेश्‍वर के भक्‍त, ऐसा नहीं, अपनी दासी को धोखा न दे।” स्त्री को गर्भ रहा, और वसन्त ऋतु का जो समय एलीशा ने उससे कहा था, उसी समय जब दिन पूरे हुए, तब उसके पुत्र उत्पन्न हुआ। जब लड़का बड़ा हो गया, तब एक दिन वह अपने पिता के पास लवनेवालों के निकट निकल गया। और उसने अपने पिता से कहा, “आह! मेरा सिर, आह! मेरा सिर।” तब पिता ने अपने सेवक से कहा, “इसको इसकी माता के पास ले जा।” वह उसे उठाकर उसकी माता के पास ले गया, फिर वह दोपहर तक उसके घुटनों पर बैठा रहा, तब मर गया। तब उसने चढ़कर उसको परमेश्‍वर के भक्‍त की खाट पर लिटा दिया, और निकलकर द्वार बन्द किया, तब उतर गई। तब उसने अपने पति से पुकारकर कहा, “मेरे पास एक सेवक और एक गदही तुरन्त भेज दे कि मैं परमेश्‍वर के भक्‍त के यहाँ झटपट हो आऊँ।” उसने कहा, “आज तू उसके यहाँ क्यों जाएगी? आज न तो नये चाँद का, और न विश्राम का दिन है;” उसने कहा, “कल्याण होगा।” तब उस स्त्री ने गदही पर काठी बाँध कर अपने सेवक से कहा, “हाँके चल; और मेरे कहे बिना हाँकने में ढिलाई न करना।” तो वह चलते चलते कर्मेल पर्वत को परमेश्‍वर के भक्‍त के निकट पहुँची। उसे दूर से देखकर परमेश्‍वर के भक्‍त ने अपने सेवक गेहजी से कहा, “देख, उधर तो वह शूनेमिन है। अब उस से मिलने को दौड़ जा, और उससे पूछ कि तू कुशल से है? तेरा पति भी कुशल से है? और लड़का भी कुशल से है?” पूछने पर स्त्री ने उत्तर दिया, “हाँ, कुशल से हैं।” वह पहाड़ पर परमेश्‍वर के भक्‍त के पास पहुँची, और उसके पाँव पकड़ने लगी, तब गेहजी उसके पास गया कि उसे धक्‍का देकर हटाए, परन्तु परमेश्‍वर के भक्‍त ने कहा, “उसे छोड़ दे, उसका मन व्याकुल है; परन्तु यहोवा ने मुझ को नहीं बताया, छिपा ही रखा है।” तब वह कहने लगी, “क्या मैं ने अपने प्रभु से पुत्र का वर माँगा था? क्या मैं ने न कहा था मुझे धोखा न दे?” तब एलीशा ने गेहजी से कहा, “अपनी कमर बाँध, और मेरी छड़ी हाथ में लेकर चला जा, मार्ग में यदि कोई तुझे मिले तो उसका कुशल न पूछना, और कोई तेरा कुशल पूछे, तो उसको उत्तर न देना; और मेरी यह छड़ी उस लड़के के मुँह पर रख देना।” तब लड़के की माँ ने एलीशा से कहा, “यहोवा के और तेरे जीवन की शपथ मैं तुझे न छोड़ूँगी।” इसलिये वह उठकर उसके पीछे पीछे चला। उनसे पहले पहुँचकर गेहजी ने छड़ी को उस लड़के के मुँह पर रखा, परन्तु कोई शब्द न सुन पड़ा, और न उसमें कोई हरकत हुई; तब वह एलीशा से मिलने को लौट आया, और उसको बतला दिया, “लड़का नहीं जागा।” जब एलीशा घर में आया, तब क्या देखा कि लड़का मरा हुआ उसकी खाट पर पड़ा है। तब उसने अकेले भीतर जाकर द्वार बन्द किया, और यहोवा से प्रार्थना की। तब वह चढ़कर लड़के पर इस रीति से लेट गया कि अपना मुँह उसके मुँह से और अपनी आँखें उसकी आँखों से और अपने हाथ उसके हाथों से मिला दिये और वह लड़के पर पसर गया, तब लड़के की देह गर्म होने लगी। तब वह उसे छोड़कर घर में इधर उधर टहलने लगा, और फिर चढ़कर लड़के पर पसर गया; तब लड़के ने सात बार छींका, और अपनी आँखें खोलीं। तब एलीशा ने गेहजी को बुलाकर कहा, “शूनेमिन को बुला ले।” जब उसके बुलाने से वह उसके पास आई, तब उसने कहा, “अपने बेटे को उठा ले।” वह भीतर गई, और उसके पाँवों पर गिर भूमि तक झुककर दण्डवत् किया; फिर अपने बेटे को उठाकर निकल गई।

2 राजा 4:8-37 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)

फिर एक दिन की बात है कि एलीशा शूनेम को गया, जहाँ एक कुलीन स्त्री थी, और उसने उसे रोटी खाने के लिये विनती करके विवश किया। अतः जब जब वह उधर से जाता, तब-तब वह वहाँ रोटी खाने को उतरता था। और उस स्त्री ने अपने पति से कहा, “सुन यह जो बार बार हमारे यहाँ से होकर जाया करता है वह मुझे परमेश्वर का कोई पवित्र भक्त जान पड़ता है। हम दीवार पर एक छोटी उपरौठी कोठरी बनाएँ, और उसमें उसके लिये एक खाट, एक मेज, एक कुर्सी और एक दीवट रखें, कि जब जब वह हमारे यहाँ आए, तब-तब उसी में टिका करे।” एक दिन की बात है, कि वह वहाँ जाकर उस उपरौठी कोठरी में टिका और उसी में लेट गया। और उसने अपने सेवक गेहजी से कहा, “उस शूनेमिन को बुला ले।” उसके बुलाने से वह उसके सामने खड़ी हुई। तब उसने गेहजी से कहा, “इससे कह, कि तूने हमारे लिये ऐसी बड़ी चिन्ता की है, तो तेरे लिये क्या किया जाए? क्या तेरी चर्चा राजा, या प्रधान सेनापति से की जाए?” उसने उत्तर दिया, “मैं तो अपने ही लोगों में रहती हूँ।” फिर उसने कहा, “तो इसके लिये क्या किया जाए?” गेहजी ने उत्तर दिया, “निश्चय उसके कोई लड़का नहीं, और उसका पति बूढ़ा है।” उसने कहा, “उसको बुला ले।” और जब उसने उसे बुलाया, तब वह द्वार में खड़ी हुई। तब उसने कहा, “वसन्त ऋतु में दिन पूरे होने पर तू एक बेटा छाती से लगाएगी।” स्त्री ने कहा, “हे मेरे प्रभु! हे परमेश्वर के भक्त ऐसा नहीं, अपनी दासी को धोखा न दे।” स्त्री को गर्भ रहा, और वसन्त ऋतु का जो समय एलीशा ने उससे कहा था, उसी समय जब दिन पूरे हुए, तब उसके पुत्र उत्पन्न हुआ। जब लड़का बड़ा हो गया, तब एक दिन वह अपने पिता के पास लवनेवालों के निकट निकल गया। और उसने अपने पिता से कहा, “आह! मेरा सिर, आह! मेरा सिर।” तब पिता ने अपने सेवक से कहा, “इसको इसकी माता के पास ले जा।” वह उसे उठाकर उसकी माता के पास ले गया, फिर वह दोपहर तक उसके घुटनों पर बैठा रहा, तब मर गया। तब उसने चढ़कर उसको परमेश्वर के भक्त की खाट पर लिटा दिया, और निकलकर किवाड़ बन्द किया, तब उतर गई। तब उसने अपने पति से पुकारकर कहा, “मेरे पास एक सेवक और एक गदही तुरन्त भेज दे कि मैं परमेश्वर के भक्त के यहाँ झटपट हो आऊँ।” उसने कहा, “आज तू उसके यहाँ क्यों जाएगी? आज न तो नये चाँद का, और न विश्राम का दिन है;” उसने कहा, “कल्याण होगा।” तब उस स्त्री ने गदही पर काठी बाँधकर अपने सेवक से कहा, “हाँके चल; और मेरे कहे बिना हाँकने में ढिलाई न करना।” तो वह चलते-चलते कर्मेल पर्वत को परमेश्वर के भक्त के निकट पहुँची। उसे दूर से देखकर परमेश्वर के भक्त ने अपने सेवक गेहजी से कहा, “देख, उधर तो वह शूनेमिन है। अब उससे मिलने को दौड़ जा, और उससे पूछ, कि तू कुशल से है? तेरा पति भी कुशल से है? और लड़का भी कुशल से है?” पूछने पर स्त्री ने उत्तर दिया, “हाँ, कुशल से हैं।” वह पहाड़ पर परमेश्वर के भक्त के पास पहुँची, और उसके पाँव पकड़ने लगी, तब गेहजी उसके पास गया, कि उसे धक्का देकर हटाए, परन्तु परमेश्वर के भक्त ने कहा, “उसे छोड़ दे, उसका मन व्याकुल है; परन्तु यहोवा ने मुझ को नहीं बताया, छिपा ही रखा है।” तब वह कहने लगी, “क्या मैंने अपने प्रभु से पुत्र का वर माँगा था? क्या मैंने न कहा था मुझे धोखा न दे?” तब एलीशा ने गेहजी से कहा, “अपनी कमर बाँध, और मेरी छड़ी हाथ में लेकर चला जा, मार्ग में यदि कोई तुझे मिले तो उसका कुशल न पूछना, और कोई तेरा कुशल पूछे, तो उसको उत्तर न देना, और मेरी यह छड़ी उस लड़के के मुँह पर रख देना।” (लूका 10:4, लूका 12:35) तब लड़के की माँ ने एलीशा से कहा, “यहोवा के और तेरे जीवन की शपथ मैं तुझे न छोड़ूँगी।” तो वह उठकर उसके पीछे-पीछे चला। उनसे पहले पहुँचकर गेहजी ने छड़ी को उस लड़के के मुँह पर रखा, परन्तु कोई शब्द न सुन पड़ा, और न उसमें कोई हरकत हुई, तब वह एलीशा से मिलने को लौट आया, और उसको बता दिया, “लड़का नहीं जागा।” जब एलीशा घर में आया, तब क्या देखा, कि लड़का मरा हुआ उसकी खाट पर पड़ा है। तब उसने अकेला भीतर जाकर किवाड़ बन्द किया, और यहोवा से प्रार्थना की। (मत्ती 6:6) तब वह चढ़कर लड़के पर इस रीति से लेट गया कि अपना मुँह उसके मुँह से और अपनी आँखें उसकी आँखों से और अपने हाथ उसके हाथों से मिला दिये और वह लड़के पर पसर गया, तब लड़के की देह गर्म होने लगी। वह उसे छोड़कर घर में इधर-उधर टहलने लगा, और फिर चढ़कर लड़के पर पसर गया; तब लड़के ने सात बार छींका, और अपनी आँखें खोलीं। तब एलीशा ने गेहजी को बुलाकर कहा, “शूनेमिन को बुला ले।” जब उसके बुलाने से वह उसके पास आई, “तब उसने कहा, अपने बेटे को उठा ले।” (लूका 7:15) वह भीतर गई, और उसके पाँवों पर गिर भूमि तक झुककर दण्डवत् किया; फिर अपने बेटे को उठाकर निकल गई।

2 राजा 4:8-37 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)

एक दिन एलीशा शूनेम नाम के स्थान पर गए. वहां एक धनी स्त्री रहती थी. उसने एलीशा को विनती करके भोजन पर बुलाया. इसके बाद जब कभी एलीशा वहां से जाते थे, वहीं रुक कर भोजन कर लेते थे. उस स्त्री ने अपने पति से कहा, “सुनिए, अब तो मैं यह समझ गई हूं कि यह व्यक्ति, जो हमेशा इसी मार्ग से जाया करते हैं, परमेश्वर के पवित्र जन हैं. हम छत पर दीवारें उठाकर एक छोटा कमरा बना लें, उनके लिए वहां एक बिछौना, एक मेज़ एक कुर्सी और एक दीपक रख दें, कि जब कभी वह यहां आएं, वहां ठहर सकें.” एक दिन एलीशा वहां आए और उन्होंने उस कमरे में जाकर आराम किया. उन्होंने अपने सेवक गेहज़ी से कहा, “शूनामी स्त्री को बुला लाओ.” वह आकर उनके सामने खड़ी हो गई. एलीशा ने गेहज़ी को आदेश दिया, “उससे कहो, ‘देखिए, आपने हम दोनों का ध्यान रखने के लिए यह सब कष्ट किया है; आपके लिए क्या किया जा सकता है? क्या आप चाहती हैं कि किसी विषय में राजा के सामने आपकी कोई बात रखी जाए, या सेनापति से कोई विनती की जाए?’ ” उस स्त्री ने उत्तर दिया, “मैं तो अपनों ही के बीच में रह रही हूं!” तब उन्होंने पूछा, “तब इस स्त्री के लिए क्या किया जा सकता है?” गेहज़ी ने उत्तर दिया, “उसके कोई पुत्र नहीं है, और उसके पति ढलती उम्र के व्यक्ति हैं.” एलीशा ने कहा, “उसे यहां बुलाओ.” जब वह स्त्री आकर द्वार पर खड़ी हो गई, एलीशा ने उससे कहा, “अगले साल इसी मौसम में लगभग इसी समय तुम्हारी गोद में एक पुत्र होगा.” वह स्त्री कहने लगी, “नहीं, मेरे स्वामी! परमेश्वर के जन, अपनी सेविका को झूठी आशा न दीजिए.” उस स्त्री ने गर्भधारण किया और अगले साल उसी समय वसन्त के मौसम में उसने एक पुत्र को जन्म दिया—ठीक जैसा एलीशा ने उससे कहा था. बड़ा होता हुआ वह बालक, एक दिन कटनी कर रहे मजदूरों के बीच अपने पिता के पास चला गया. अचानक उसने अपने पिता से कहा, “अरे, मेरा सिर! मेरा सिर!” पिता ने अपने सेवक को आदेश दिया, “इसे इसकी माता के पास ले जाओ.” सेवक ने उस बालक को उठाया और उसकी माता के पास ले गया. वह बालक दोपहर तक अपनी माता की गोद में ही बैठा रहा और वहीं उसकी मृत्यु हो गई. उस स्त्री ने बालक को ऊपर ले जाकर उस परमेश्वर के जन के बिछौने पर लिटा दिया और दरवाजा बंद करके चली गई. तब उसने अपने पति को यह संदेश भेजा, “मेरे पास अपना एक सेवक और गधा भेज दीजिए कि मैं जल्दी ही परमेश्वर के जन से भेंटकर लौट आऊं.” पति ने प्रश्न किया, “तुम आज ही क्यों जाना चाह रही हो? आज न तो नया चांद है, और न ही शब्बाथ.” उसका उत्तर था, “सब कुछ कुशल ही होगा.” तब उसने गधे को तैयार किया और अपने सेवक को आदेश दिया, “गधे को तेज हांको! मेरे लिए रफ़्तार धीमी न होने पाए, जब तक मैं इसके लिए आदेश न दूं.” वह चल पड़ी और कर्मेल पर्वत पर परमेश्वर के जन के घर तक पहुंच गई. जब परमेश्वर के जन ने उसे अपनी ओर आते देखा, उन्होंने अपने सेवक गेहज़ी से कहा, “वह देखो! शूनामी स्त्री! तुरंत उससे मिलने के लिए दौड़ो और उससे पूछो, ‘क्या आप सकुशल हैं? क्या आपके पति सकुशल हैं? क्या आपका पुत्र सकुशल है?’ ” उसने उसे उत्तर दिया, “सभी कुछ सकुशल है.” तब, जैसे ही वह पर्वत पर परमेश्वर के जन के पास पहुंची, उसने एलीशा के पैर पकड़ लिए. जब गेहज़ी उसे हटाने वहां पहुंचा, परमेश्वर के जन ने उससे कहा, “ऐसा कुछ न करो, क्योंकि इसका मन भारी दर्द से भरा हुआ है. इसके बारे में मुझे याहवेह ने कोई सूचना नहीं दी है, इसे गुप्‍त ही रखा है.” तब उस स्त्री ने कहना शुरू किया, “क्या अपने स्वामी से पुत्र की विनती मैंने की थी? क्या मैंने न कहा था, ‘मुझे झूठी आशा न दीजिए?’ ” एलीशा ने गेहज़ी को आदेश दिया, “कमर कस लो और अपने साथ मेरी लाठी ले लो और चल पड़ो! मार्ग में अगर कोई मिले तो उससे हाल-चाल जानने के लिए न रुकना. यदि तुम्हें कोई नमस्कार करे तो उसका उत्तर न देना. जाकर मेरी लाठी उस बालक के मुंह पर रख देना.” तब बालक की माता ने एलीशा से कहा, “जीवित याहवेह की शपथ और आपकी शपथ, मैं आपके बिना न लौटूंगी!” तब एलीशा उठे और उस स्त्री के साथ चल दिए. गेहज़ी ने आगे-आगे जाकर बालक के मुंह पर लाठी टिका दी, मगर वहां न तो कोई आवाज सुनाई दिया गया और न ही उसमें जीवन का कोई लक्षण दिखाई दिया. तब गेहज़ी ने लौटकर एलीशा को ख़बर दी, “बालक तो जागा ही नहीं!” जब एलीशा ने घर में प्रवेश किया, वह मरा हुआ बालक उनके ही बिछौने पर ही लिटाया हुआ था. तब एलीशा कमरे के भीतर चले गए और दरवाजा बंद कर लिया, वे दोनों बाहर ही थे. एलीशा ने याहवेह से प्रार्थना की. तब वह जाकर बालक के ऊपर लेट गए. उन्होंने अपना मुख बालक के मुख पर रखा, उनकी आंखें बालक की आंखों पर थी और उनके हाथ बालक के हाथों पर. जब वह उस बालक पर लेट गए, तब बालक के शरीर में गर्मी आने लगी. फिर वह नीचे उतरे और घर के भीतर ही टहलते रहे. तब वह दोबारा बिछौने पर चढ़ गए और बालक पर लेट गए. इससे उस बालक को सात बार छींक आई और उसने आंखें खोल दीं. एलीशा ने गेहज़ी को पुकारा और आदेश दिया, “शूनामी स्त्री को बुलाओ.” तब गेहज़ी ने उसे पुकारा. जब वह भीतर आई, उन्होंने उस स्त्री से कहा, “उठा लो अपने पुत्र को.” वह आई और भूमि की ओर झुककर एलीशा के पैरों पर गिर पड़ी. इसके बाद उसने अपने पुत्र को गोद में उठाया और वहां से चली गई.